पूर्व
सीएम
अखिलेश
यादव
उत्तर
प्रदेश
में
बीजेपी
मिशन-80
को
हासिल
करने
के
लिए
हर
संभव
कोशिश
में
है
तो
वहीं
सपा
प्रमुख
अखिलेश
यादव
हर
हाल
में
पीएम
मोदी
के
विजय
रथ
को
रोकने
की
कवायद
में
जुटे
हैं.
सूबे
में
जिस
यादव
समुदाय
के
वोटों
के
दम
पर
मुलायम
सिंह
यादव
और
अखिलेश
यादव
ने
पार्टी
को
सत्ता
की
बुलंदी
पर
पहुंचाया,
अब
सपा
उसी
यादव
वोटों
से
किनारा
करती
दिख
रही
है.
सपा
ने
अपने
सियासी
इतिहास
में
पहली
बार
यादव
समुदाय
से
सिर्फ
4
कैंडिडेट
उतारे
हैं
और
चारो
मुलायम
परिवार
से
हैं.
2024
के
लोकसभा
चुनाव
में
सपा
प्रमुख
अखिलेश
यादव
नया
सियासी
समीकरण
लिखने
में
जुटे
हैं,
जिसके
लिए
यादव
समुदाय
के
उम्मीदवारों
पर
दांव
लगाने
से
बच
रहे
हैं.
सपा
ने
सूबे
में
अपने
कोटो
की
62
सीटों
में
से
57
सीट
पर
उम्मीदवारों
के
नामों
का
ऐलान
कर
दिया
है,
जिसमें
सिर्फ
चार
लोकसभा
टिकट
ही
यादव
समुदाय
से
दिए
गए
हैं.
ये
चारो
ही
कैंडिडेट
मुलायम
परिवार
से
हैं,
जिसमें
तीन
अखिलेश
के
चचेरे
भाई
हैं
तो
एक
उनकी
पत्नी
हैं.
सपा
के
चार
यादव
कैंडिडेट
मैनपुरी
लोकसभा
सीट
से
सपा
ने
डिंपल
यादव
को
एक
बार
फिर
से
प्रत्याशी
बनाया
है,
जो
मंगलवार
को
अपना
नामांकन
दाखिल
कर
रही
हैं.
ऐसे
ही
फिरोजाबाद
सीट
से
रामगोपाल
यादव
के
बेटे
अक्षय
यादव
को
टिकट
दिया
है.
आजमगढ़
लोकसभा
सीट
से
सपा
ने
धर्मेंद्र
यादव
को
कैंडिडेट
बनाया
है
तो
बदायूं
सीट
से
शिवपाल
यादव
के
बेटे
आदित्य
यादव
को
टिकट
दिया
गया
है.
हालांकि,
सपा
अभी
पांच
सीटों
पर
उम्मीदवारों
के
नाम
का
ऐलान
और
करेगी,
जिसमें
से
देखना
है
कि
कितने
टिकट
यादव
समुदाय
के
लोगों
को
देती
है.
ये
भी
पढ़ें
सपा
के
इतिहास
में
सबसे
कम
टिकट
सपा
के
सियासी
इतिहास
में
पहली
बार
है
जब
इतनी
कम
संख्या
में
यादव
समुदाय
को
टिकट
दिए
गए
हैं.
सपा
का
गठन
मुलायम
सिंह
यादव
ने
अक्टूबर
1992
में
किया
था.
सपा
ने
पहली
बार
1996
लोकसभा
चुनाव
लड़ा
था
और
उसके
बाद
से
हर
चुनाव
में
किस्मत
आजमाती
रही
है.
1996
में
सपा
ने
8
यादव
प्रत्याशी
उतारे
थे.
इसके
बाद
1998
में
10
,
1999
में
9,
2004
में
9,
2009
में
11,
2014
में
13,
2019
में
11
और
2024
में
चार
यादव
प्रत्याशी
दिए
हैं.
2019
में
सपा
ने
बसपा
और
आरएलडी
के
साथ
मिलकर
चुनाव
लड़ा
था.
सपा
ने
महज
37
सीटों
पर
उम्मीदवार
उतारे
थे,
जिनमें
से
11
सीट
पर
यादव
समुदाय
को
टिकट
दिया
था.
सपा
ने
2014
में
सबसे
ज्यादा
यादव
प्रत्याशी
दिए
तो
2024
में
सबसे
कम.
हालांकि,
अभी
5
सीट
पर
टिकट
घोषित
करना
बाकी
है.
माना
जा
रहा
है
कि
सपा
बहुत
ज्यादा
एक
से
दो
टिकट
और
यादव
समुदाय
को
दे
सकती
है.
मुलायम
परिवार
तक
सिमटी
अखिलेश
यादव
ने
यूपी
में
जिन
चार
सीटों
पर
यादव
कैंडिडेट
उतारे
हैं,
वो
उनके
परिवार
के
सदस्य
हैं.
धर्मेंद्र
यादव,
आदित्य
यादव
और
अक्षय
यादव
तीनों
ही
अखिलेश
यादव
के
चचेरे
भाई
हैं.
आदित्य
पहली
बार
चुनाव
लड़
रहे
हैं
जबकि
धर्मेंद्र
और
अक्षय
पहले
सांसद
रह
चुके
हैं.
मैनपुरी
सीट
से
चुनाव
लड़
रही
डिंपल
यादव
सपा
प्रमुख
अखिलेश
यादव
की
पत्नी
है.
इस
तरह
अखिलेश
ने
अपने
परिवार
से
बाहर
किसी
यादव
समुदाय
के
नेता
को
टिकट
नहीं
दिया
है.
इसके
चलते
बीजेपी
सहित
विपक्षी
दलों
के
निशाने
पर
सपा
है.
यूपी
में
यादव
वोटर
की
ताकत
उत्तर
प्रदेश
में
करीब
8
फीसदी
वोटर्स
यादव
समुदाय
के
हैं,
जो
कि
ओबीसी
समुदाय
में
आबादी
का
20
फीसदी
है.
इस
तरह
ओबीसी
समुदाय
में
सबसे
बड़ी
आबादी
यादव
वोटर्स
की
है.
उत्तर
प्रदेश
के
इटावा,
एटा,
फर्रुखाबाद,
मैनपुरी,
फिरोजाबाद,
कन्नौज,
बदायूं,
आजमगढ़,
फैजाबाद,
बलिया,
संतकबीर
नगर,
जौनपुर,
रायबरेली
और
कुशीनगर
को
यादव
बहुल
माना
जाता
है.
सूबे
के
44
जिलों
में
9
फीसदी
वोटर
यादव
हैं
जबकि
10
जिलों
में
ये
वोटर
15
फीसदी
से
ज्यादा
है.
पूर्वांचल,
अवध
और
बृज
के
इलाके
में
यादव
वोटर
सियासत
की
दशा
और
दिशा
तय
करते
हैं.
मुलायम
के
दौर
में
बढ़ा
वर्चस्व
सूबे
में
यादव
समाज
में
मंडल
कमीशन
के
बाद
ऐसी
गोलबंदी
हुई
कि
ये
सपा
का
कोर
वोटर
बन
गया.
इन्हीं
वोटरों
के
दम
पर
मुलायम
सिंह
यादव
तीन
बार
और
अखिलेश
यादव
एक
बार
सूबे
के
मुख्यमंत्री
रहे.
हालांकि,
सपा
के
राजनीतिक
आगाज
से
पहले
ही
रामनरेश
यादव
जनता
पार्टी
से
यूपी
के
मुख्यमंत्री
रहे
थे.
बाद
में
उन्होंने
कांग्रेस
का
दामन
थाम
लिया,
लेकिन
यादव
समुदाय
के
नेता
के
तौर
पर
मुलायम
सिंह
यादव
जैसी
पकड़
नहीं
बना
सके.
सपा
के
यूपी
की
सत्ता
में
रहने
के
दौरान
यादव
समाज
राजनीतिक
ही
नहीं
बल्कि
आर्थिक,सामाजिक
और
शैक्षणिक
रूप
से
काफी
मजबूत
हुआ.
मुलायम
और
अखिलेश
सरकार
में
यादवों
की
तूती
बोलती
है.
हालांकि,
सपा
पर
सत्ता
में
रहते
हुए
यादव
परस्त
होने
का
आरोप
भी
विपक्ष
लगाता
रहा
है.
इसके
चलते
गैर-यादव
ओबीसी
जातियां
सपा
से
छिटककर
बीजेपी
और
दूसरे
दलों
के
साथ
चली
गईं.
यादव
परस्त
छवि
तोड़
पाएगी
सपा
2014
के
बाद
से
यूपी
में
बीजेपी
ने
ऐसी
सियासी
बिसात
बिछाई
कि
यादव
वर्चस्व
वाली
राजनीति
को
तगड़ा
झटका
लगा.
माना
जा
रहा
है
कि
सपा
प्रमुख
अखिलेश
यादव
अब
यादव
परस्त
छवि
को
तोड़ने
में
जुटे
हैं,
जिसके
लिए
उन्होंने
सिर्फ
चार
यादव
समुदाय
से
प्रत्याशी
उतारे
हैं.
पूर्वांचल
में
सिर्फ
आजमगढ़
सीट
पर
ही
अखिलेश
यादव
ने
धर्मेंद्र
यादव
को
टिकट
दिया
है
जबकि
बाकी
सीटों
पर
गैर-यादव
ओबीसी
पर
दांव
खेला
है.
सपा
ने
जिन
सीट
पर
यादव
प्रत्याशी
उतारे
हैं,
वो
सभी
मुलायम-अखिलेश
परिवार
से
हैं.
सपा
2024
के
चुनाव
में
पीडीए
फॉर्मूले
पर
सियासी
बिसात
बिछाने
में
जुटी
है.
अब
तक
सपा
की
घोषित
टिकटों
में
महज
7
फीसदी
यादव
चेहरे
हैं.
2014
के
अनुपात
में
यह
आधा
और
2019
के
मुकाबले
महज
एक-तिहाई
है.
इसके
जिन
चार
टिकट
यादवों
को
मिले
हैं,
वे
सभी
मुलायम
परिवार
के
ही
हैं.
पार्टी
अब
तक
यादवों
से
अधिक
टिकट
कुर्मी-पटेल
को
दे
चुकी
है.
सपा
के
लिए
कहीं
यादव
समुदाय
को
नजर
अंदाज
करना
सियासी
तौर
पर
महंगा
न
पड़ा
जाए.
बीजेपी-सपा
में
शह-मात
का
खेल
बीजेपी
के
प्रवक्ता
राकेश
त्रिपाठी
ने
आरोप
लगाते
हुए
कहा
कि
अखिलेश
यादव
अपने
परिवार
के
सिवा
किसी
दूसरे
यादव
समुदाय
का
भला
नहीं
करना
चाहते
हैं.
अपने
परिवार
के
बाहर
किसी
भी
यादव
समुदाय
के
नेता
को
आगे
नहीं
बढ़ाना
चाहते
हैं.
इस
बात
को
अब
यादव
समाज
बाखूबी
तरीके
से
समझ
रहा
है
और
वो
यह
देख
रहा
है
कि
कैसे
बीजेपी
ने
मध्य
प्रदेश
में
यादव
समुदाय
के
नेता
को
सीएम
बनाया
है.
देश
के
दूसरे
राज्यों
की
तरह
यूपी
में
भी
यादव
समुदाय
का
विश्वास
बीजेपी
के
साथ
है.
वहीं,
सपा
के
प्रवक्ता
आजम
खान
कहते
हैं
कि
सपा
किसी
एक
समुदाय
को
लेकर
नहीं
चल
रही
है
बल्कि
पीडीए
फॉर्मूले
के
तहत
टिकट
दिए
जा
रहे
हैं.
सपा
जब
यादव
समुदाय
को
टिकट
देती
थी
तो
बीजेपी
के
लोग
कहते
थे
कि
यादवों
की
पार्टी
है
और
अब
नहीं
दे
रही
है
तो
भी
पेट
में
दर्द
हो
रहा
है.
सपा
इस
बार
के
चुनाव
में
स्थानीय
समीकरण
को
देखकर
प्रत्याशी
उतार
रही
है,
जिसके
चलते
बीजेपी
चिंतित
और
परेशान
है.
बीजेपी
का
कोई
भी
दांव
2024
में
काम
नहीं
आएगा.
मुलायम
सिंह
ने
तैयार
की
सियासी
जमीन
सैफई
परिवार
को
सियासत
में
लाने
का
काम
मुलायम
सिंह
यादव
ने
किया.
मुलायम
सिंह
बकायदा
सियासी
जमीन
तैयार
करके
परिवार
को
सौंपते
रहे
हैं.
आजमगढ़,
मैनपुरी,
कन्नौज,
फिरोजाबाद,
बदायूं
और
संभल
ऐसी
संसदीय
सीटें
हैं,
जहां
की
राजनीति
मुलायम
परिवार
के
इर्द-गिर्द
ही
घूमती
रही
हैं.
मुलायम
सिंह
ने
विधायकी
से
लोकसभा
की
सियासत
में
किस्मत
आजमाई.
1996
में
मुलायम
सिंह
ने
मैनपुरी
और
संभल
सीट
से
चुनाव
लड़े
और
जीतने
में
सफल
रहे.
इसके
बाद
से
मुलायम
परिवार
के
सदस्यों
का
संसद
पहुंचने
का
सिलसिला
शुरू
हुआ.
2004
में
मुलायम
सिंह
बने
सीएम
1998
में
मुलायम
सिंह
संभल
से
दोबारा
चुने
गए.
इसके
बाद
1999
में
मुलायम
सिंह
मैनपुरी
और
कन्नौज
सीट
से
चुनाव
लड़े
और
दोनों
सीट
से
जीतने
में
सफल
रहे.
इसके
बाद
मुलायम
सिंह
ने
कन्नौज
सीट
छोड़ी
दी
थी,
जहां
से
अखिलेश
यादव
सांसद
बने.
2004
में
मुलायम
परिवार
से
तीन
लोग
चुनाव
लड़े.
मुलायम
सिंह
मैनपुरी,
अखिलेश
यादव
ने
कन्नौज
और
रामगोपाल
यादव
ने
संभल
सीट
से
किस्मत
आजमाई.
तीनों
ही
सदस्य
जीतने
में
सफल
रहे.
2004
में
मुलायम
सिंह
यादव
ने
यूपी
के
मुख्यमंत्री
बनने
पर
मैनपुरी
सीट
छोड़
दी,
जिसके
बाद
धर्मेंद्र
यादव
सांसद
बने.
धीरे-धीरे
मैदान
में
उतरा
मुलायम
परिवार
2009
के
चुनाव
में
मुलायम
परिवार
से
चार
सदस्य
चुनाव
लड़े.
मुलायम
सिंह
ने
मैनपुरी
और
धर्मेंद्र
यादव
ने
बदायूं
सीट
से
चुनाव
लड़ा.
अखिलेश
यादव
ने
फिरोजाबाद
और
कन्नौज
सीट
से
किस्मत
आजमाई.
दोनों
ही
सीटें
जीतने
में
सफल
रहे,
जिसके
बाद
अखिलेश
यादव
ने
फिरोजाबाद
सीट
को
छोड़
दिया
तो
वहां
से
उनकी
पत्नी
डिंपल
यादव
ने
चुनाव
लड़ा,
लेकिन
जीत
नहीं
सकीं.
2014
में
मुलायम
परिवार
के
पांच
सदस्यों
ने
चुनाव
लड़ा
और
पांचों
ने
जीत
दर्ज
की.
2019
में
कैसा
रहा
परिवार
का
प्रदर्शन
मुलायम
सिंह
यादव
मैनपुरी
और
आजमगढ़
सीट
से
चुनाव
लड़े
थे.
डिंपल
यादव
कन्नौज,
धर्मेंद्र
यादव
बदायूं,
अक्षय
यादव
फिरोजाबाद
सीट
से
चुनाव
लड़े.
मुलायम
सिंह
ने
मैनपुरी
सीट
छोड़
दी,
जिसके
बाद
तेज
प्रताप
यादव
चुनाव
जीतने
में
सफल
रहे.
2014
में
मुलायम
परिवार
से
छह
सदस्य
संसद
में
एक
साथ
रहे.
पांच
लोकसभा
सदस्य
और
रामगोपाल
यादव
राज्यसभा
सदस्य
थे.
2019
में
मुलायम
परिवार
से
छह
सदस्य
लोकसभा
चुनाव
लड़े
थे,
जिनमें
से
आजमगढ़
से
अखिलेश
यादव
और
मैनपुरी
से
मुलायम
सिंह
यादव
ही
जीत
सके
थे.
कन्नौज
से
डिंपल
यादव,
बदायूं
से
धर्मेंद्र
यादव
और
फिरोजाबाद
से
अक्षय
यादव
और
शिवपाल
यादव
चुनाव
हार
गए
थे.