LS Elections: जेल से नेता चुनाव लड़ते हैं, कैदी क्यों नहीं दे सकते वोट? देश की 1300 जेलों में बंद हैं 5.50 लाख

LS Elections: जेल से नेता चुनाव लड़ते हैं, कैदी क्यों नहीं दे सकते वोट? देश की 1300 जेलों में बंद हैं 5.50 लाख
Leaders can contest elections from jail but 5.50 lakh prisoners lodged in 1300 jails of country cannot vote

मप्र
लोकसभा
चुनाव।


फोटो
:
अमर
उजाला

विस्तार

वह
देश
के
ही
नागरिक
हैं,
देश
की
आबादी
की
गिनती
में
भी
उनका
नाम
शुमार
होता
है।
उनके
परिवार
यहां
लागू
होने
वाले
सभी
करों
का
भुगतान
भी
करते
हैं,
लेकिन
इस
लोकतांत्रिक
व्यवस्था
की
मजबूती
के
लिए
जरूरी
मतदान
में
इनकी
भागीदारी
नहीं
है।
यह
साढ़े
पांच
लाख
से
ज्यादा
ज्यादा
की
संख्या
उन
लोगों
की
है,
जो
देश
की
1300
से
ज्यादा
जेलों
में
बंद
हैं।
इन
साढ़े
पांच
लाख
में
से
करीब
10
फीसदी
हिस्सा
ऐसा
है,
जिनके
दोष
सिद्ध
हो
चुके
हैं
और
उन्हें
इस
जुर्म
की
सजा
दी
गई
है।
लेकिन,
बाकी
के
90
प्रतिशत
किसी
फैसले
के
इंतजार
में
होते
हुए
भी
देश
की
लोकतांत्रिक
व्यवस्था
से
अलग
थलग
कर
दिए
गए
हैं।

जानकारी
के
मुताबिक
देश
में
कुल
1306
जेलें
हैं।
जिनमें
145
केंद्रीय
जेल,
413
जिला
जेल
और
565
उप
जेल
हैं।
इसके
अलावा
88
खुली
जेल,
44
विशेष
जेल,
29
महिला
जेल
और
 19
बोसर्टल
स्कूल
के
अलावा
3
अन्य
जेल
भी
यहां
मौजूद
हैं।
देश
की
इन
जेलों
में
करीब
5
लाख
54
हजार
लोग
बंद
हैं।
इनमें
से
करीब
 4
लाख
27
हजार
लोग
ऐसे
हैं,
जिन
पर
कोई
दोष
सिद्ध
नहीं
हुआ
है
और
फिलहाल
इनका
ट्रायल
ही
चल
रहा
है। 


प्रदेश
में
ओवरलोड

जानकारी
के
मुताबिक
मध्य
प्रदेश
में
करीब
123
जेल
हैं।
जिनकी
क्षमता
27
हजार
677
है।
लेकिन,
यहां
इस
कैपिसिटी
से
अधिक
37
हजार
से
ज्यादा
बंदी
मौजूद
हैं।


अंग्रेजों
के
जमाने
का
कानून

जेल
में
बंद
कैदियों
को
मताधिकार
से
वंचित
करने
का
प्रमाण
अंग्रेजी
जब्ती
अधिनियम
1870
में
मिलता
है।
उस
दौरान
देशद्रोह
या
गुंडागर्दी
के
दोषी
व्यक्तियों
को
मताधिकार
से
अयोग्य
ठहरा
दिया
जाता
था
और
उन्हें
वोट
देने
से
वंचित
कर
दिया
जाता
था।
यही
नियम
गवर्नमेंट
ऑफ
इंडिया
एक्ट
1935
में
भी
लागू
रहा।
इसके
तहत
खास
सजा
काट
रहे
लोगों
को
वोट
देने
से
रोक
दिया
गया
था।
हालांकि,
जन
प्रतिनिधित्व
अधिनियम
1951
में
किसी
व्यक्ति
से
मताधिकार
का
अधिकार
तब
वापस
ले
लिया
जाता
है,
जब
वह
आरोपित,
दोषी
हो
या
जेल
में
हो। लोक
प्रतिनिधित्व
अधिनियम
1951
की
धारा
62
वोट
देने
का
अधिकार
देती
है।


विज्ञापन


विज्ञापन

इसकी
धारा
62(5)
के
तहत
कुछ
लोगों
को
अयोग्य
ठहराया
गया
है।
इसमें
कहा
गया
है
कि
कोई
भी
व्यक्ति
किसी
भी
चुनाव
में
मतदान
नहीं
करेगा,
यदि
वह
जेल
में
बंद
है,
चाहे
वह
सजा
के
तहत
कारावास
में
बंद
है
या
परिवहन
या
अन्यथा,
अथवा
पुलिस
की
वैध
हिरासत
में
है।
हालांकि,
इसकी
उपधारा
के
तहत
यह
कुछ
व्यक्ति
पर
लागू
नहीं
होगा
यदि
वह
कुछ
समय
के
लिए
प्रिवेंटिव
कस्टडी
में
है।
संविधान
के
अनुच्छेद
326
में
मताधिकार
की
अयोग्यता
के
लिए
कुछ
आधार
मौजूद
हैं।
ये
अयोग्यताएं
मानसिक
अस्वस्थता,
गैर-निवास
और
अपराध/भ्रष्ट/अवैध
आचरण
से
संबंधित
हैं।
प्रवीण
कुमार
चौधरी
बनाम
भारत
निर्वाचन
आयोग
[डब्ल्यू.पी.
(सी)
2336/2019],
मामले
में
दिल्ली
उच्च
न्यायालय
ने
फिर
से
पुष्टि
की
कि
कैदियों
को
वोट
देने
का
अधिकार
नहीं
है।


विज्ञापन


जेल
से
चुनाव
लड़
सकते
हैं 

भारत
में
जेल
में
रहते
हुए
चुनाव
लड़ने
की
परंपरा
बहुत
पुरानी
है।
कहा
जाता
है
कि
इसकी
शुरुआत
पूर्वांचल
के
गैंगस्टर
हरिशंकर
तिवारी
ने
सबसे
पहले
जेल
में
रहते
हुए
चुनाव
जीता
था।
इसके
बाद
बाहुबलियों
और
गैंगस्टरों
में
यह
तरीका
तेजी
से
प्रसिद्ध
हुआ
और
जेल
में
रहते
हुए
कई
गैंगस्टर
और
बाहुबली
चुनाव
जीते।
इनमें
मुख्तार
अंसारी,
अमरमणि
त्रिपाठी
दर्जनों
प्रमुख
नाम
हैं।
ये
प्रक्रिया
आज
भी
जारी
है।
चुनाव
की
प्रक्रिया
में
जेल
में
बंद
कैदियों
को
वोट
देने
का
अधिकार
नहीं
होता
है,
लेकिन
वे
चुनाव
लड़
लेते
हैं।
हालांकि,
इसके
लिए
महत्वपूर्ण
है
कि
कैदी
विचाराधीन
होना
चाहिए।
चुनाव
लड़ने
वाले
व्यक्ति
को
पीठासीन
अधिकारी
के
सामने
नामांकन
पत्र
देना
होता
है।
ऐसी
स्थिति
में
सवाल
उठेगा
कि
जेल
में
बंद
कैदी
पीठासीन
अधिकारी
के
समक्ष
कैसे
हाजिर
होगा।


गिरते
मत
प्रतिशत
को
सहेजने
में
मददगार 

लोकसभा
चुनाव
के
अब
तक
हुए
दो
चरणों
में
प्रदेश
समेत
देशभर
में
मतदान
प्रतिशत
पिछले
चुनाव
की
तुलना
में
कम
रहा
है।
इसको
सहेजने
के
लिए
जहां
सियासी
प्रयास
तेज
हैं,
वहीं
निर्वाचन
आयोग
भी
अपनी
कोशिशों
में
लगा
हुआ
है।
ऐसे
में
जेल
में
बंद
विचाराधीन
कैदियों
को
मतदान
अधिकार
देकर
इस
घटते
मत
प्रतिशत
को
सहेजा
जा
सकता
है।
बुजुर्गों,
दिव्यांगों,
पत्रकारों,
कर्मचारियों
को
दिए
जाने
वाली
अतिरिक्त
सुविधाओं
वाले
मतदान
प्रक्रिया
से
जेल
में
बंद
कैदियों
को
भी
जोड़ा
जा
सकता
है।