नई
दिल्ली.
सुप्रीम
कोर्ट
भारत
में
न्याय
की
आखिरी
दहलीज
है.
लोग
जब
हर
तरफ
से
थक-हार
जाते
हैं
तो
वे
शीर्ष
अदालत
का
रुख
इस
उम्मीद
से
करते
हैं
कि
उन्हें
यहां
से
न्याय
जरूर
मिलेगा.
सुप्रीम
कोर्ट
ने
आजादी
के
बाद
से
दर्जनों
ऐसे
फैसले
दिए
हैं,
जो
देश
के
आमलोगों
और
यहां
के
नागरिकों
के
हितों
एवं
अधिकारों
के
लिए
महत्वपूर्ण
हैं.
देश
की
सर्वोच्च
न्यायिक
संस्था
ने
हाल
ही
में
एक
ऐसा
फैसला
दिया
है,
जिसका
दूरगामी
प्रभाव
है.
न्यूजक्लिक
के
संस्थापक-सह-संपादक
प्रबीर
पुरकायस्थ
मामले
में
दो
जजों
की
पीठ
ने
स्पष्ट
कर
दिया
है
कि
जांच
एजेंसी
या
फिर
पुलिस
को
उस
व्यक्ति
को
लिखित
में
यह
बताना
होगा
कि
उसे
किस
आधार
पर
गिरफ्तार
किया
गया
है,
ताकि
वह
अपने
मन
मुताबिक
वकील
रख
सके
और
कानूनी
राहत
के
लिए
समाधान
तलाश
सके.
प्रबीर
पुरकायस्थ
को
UAPA
की
सख्त
धाराओं
के
साथ
ही
IPC
के
अन्य
सेक्शन
के
तहत
पिछले
साल
अक्टूबर
में
गिरफ्तार
किया
गया
था.
दिल्ली
पुलिस
की
स्पेशल
सेल
ने
प्रबीर
पुरकायस्थ
को
3
अक्टूबर
2023
को
गिरफ्तार
किया
था.
4
अक्टूबर
2023
को
सुबह
6
बजे
उन्हें
सेशंस
कोर्ट
में
पेश
किया
गया,
जहां
से
उन्हें
रिमांड
पर
भेज
दिया
गया
था.
इन
सारी
प्रक्रियाओं
के
बीच
उनके
वकील
को
इसकी
जानकारी
नहीं
दी
गई
थी.
प्रबीर
पुरकायस्थ
के
लॉयर
को
इस
संबंध
में
5
अक्टूबर
2005
को
सूचित
किया
गया
था,
जबकि
उन्हें
कोर्ट
ने
पहले
ही
रिमांड
पर
भेज
दिया
था.
सुप्रीम
कोर्ट
ने
इसको
लेकर
दिल्ली
पुलिस
की
स्पेशल
सेल
को
फटकार
लगाते
हुए
प्रबीर
पुरकायस्थ
को
रिहा
करने
का
आदेश
दे
दिया.
दो
जजों
की
बेंच
का
अहम
फैसला
प्रबीर
पुरकायस्थ
को
जमानत
पर
रिहा
करने
का
आदेश
देते
हुए
जस्टिस
बीआर
गवई
और
जस्टिस
संदीप
मेहता
की
पीठ
ने
अपने
फैसले
में
महत्वपूर्ण
बात
कही.
पीठ
ने
कहा,
‘तमाम
प्रक्रिया
बेहद
गोपनीय
तरीके
से
किया
गया.
यह
और
कुछ
नहीं
बल्कि
निर्धारित
कानूनी
प्रक्रिया
को
खुले
तौर
पर
नाकाम
करने
का
प्रयास
था.
आरोपी
को
गिरफ्तारी
का
आधार
बताए
बिना
पुलिस
हिरासत
में
रखना
और
कानूनी
अवसरों
का
इस्तेमाल
करने
से
वंचित
करना
कतई
उचित
नहीं
है.’
कोर्ट
ने
स्पष्ट
तौर
पर
कहा
कि
आरोपी
शख्स
को
गिरफ्तारी
का
आधार
लिखित
में
बताना
अनिवार्य
है.
हालांकि,
दिल्ली
पुलिस
की
स्पेशल
सेल
की
ओर
से
कोर्ट
में
पेश
हुए
ASG
एसवी
राजू
ने
कहा
कि
प्रबीर
पुरकायस्थ
को
मौखिक
तौर
पर
गिरफ्तारी
का
आधार
बताया
गया
था.
कोर्ट
ने
इसे
मानने
से
इनकार
कर
दिया.
PMLA
से
UAPA
तक
सुप्रीम
कोर्ट
ने
पंकज
बंसल
मामले
में
स्पष्ट
तौर
पर
कहा
था
कि
मनी
लॉन्ड्रिंग
रोकथाम
कानून
के
तहत
गिरफ्तार
आरोपी
को
लिखित
में
गिरफ्तारी
का
आधार
बताना
अनिवार्य
है.
शीर्ष
अदालत
ने
प्रबीर
पुरकायस्थ
मामले
में
फैसला
सुनाते
हुए
अब
इस
आदेश
का
विस्तार
गैरकानूनी
गतिविधि
रोकथाम
कानून
(UAPA)
तक
कर
दिया
है.
ASG
एसवी
राजू
ने
कोर्ट
में
इसका
पुरजोर
विरोध
किया.
उन्होंने
कहा
कि
पंकज
बंसल
मामले
में
दिया
गया
फैसला
पीएमएलए
तक
ही
सीमित
था,
इसे
यूएपीए
मामले
में
शामिल
नहीं
किया
जा
सकता
है.
फैसला
लिखने
वाले
जस्टिस
संदीप
मेहता
ने
कहा
कि
पीएमएलए
की
धारा
19(1)
और
यूएपीए
की
धारा
43B(1)
में
कोई
महत्वपूर्ण
या
बड़ा
अंतर
नहीं
है.
बता
दें
कि
दोनों
कानून
की
ये
धाराएं
गिरफ्तारी
की
शक्ति
और
प्रक्रिया
के
बारे
में
बताती
हैं.
सुप्रीम
कोर्ट
ने
साफ
कर
दिया
कि
जीने
का
अधिकार
और
निजी
स्वतंत्रता
मौलिक
अधिकारों
में
सबसे
पवित्र
और
उच्च
है.
Tags:
Supreme
Court,
UAPA
FIRST
PUBLISHED
:
May
17,
2024,
08:34
IST