
दिल्ली
की
हीरामंडी
:
लोकसभा
चुनाव
2024
के
बीच
संजय
लीला
भंसाली
की
नेटफ्लिक्स
पर
आई
फिल्म
‘हीरामंडी’
की
खूब
चर्चा
हो
रही
है.
यह
फिल्म
तवायफों
की
कहानी
पर
अधारित
है.
हीरामंडी
फिल्म
की
चर्चा
के
बीच
न्यूज18
हिंदी
ने
देश
की
राजधानी
दिल्ली
की
हीरामंडी
का
हाल
जाना.
मुगलकालीन
जमाने
से
चला
आ
रहा
इस
हीरामंडी
का
स्वरूप
अब
काफी
बदल
गया
है.
नई
दिल्ली
रेलवे
स्टेशन
और
पहाड़गंज
के
पास
जीबी
रोड
के
नाम
से
चर्चित
तवायफों
के
इस
ठिकाने
को
अब
श्रद्धानंद
मार्ग
के
नाम
से
लोग
जानने
लगे
हैं.
लोकसभा
चुनाव
2024
को
लेकर
इस
हीरामंडी
की
तवायफें
क्या
सोचती
हैं?
क्या
इन
तवायफों
में
पीएम
मोदी,
राहुल
गांधी
या
अरविंद
केजरीवाल
को
लेकर
भी
किसी
तरह
का
क्रेज
है
या
फिर
ये
सारी
तवायफें
अपने
धंधे
के
अलावा
किसी
और
चीज
से
कोई
मतलब
नहीं
रखती
हैं.
इन
सारे
सवालों
का
जवाब
कुछ
तवायफों
और
ग्राहक
लाने
वाले
दलालों
ने
बड़ी
बेबाकी
से
दिया.
पश्चिम
बंगाल
के
उत्तर
दिनाजपुर
जिले
का
रहने
वाला
सलाम
वैसे
तो
रिक्शा
चलाता
है,
लेकिन
उसका
काम
है
रिक्शा
पर
बैठाकर
ग्राहकों
को
एक
कोठा
से
दूसरे
कोठा
ले
जाना
और
तवायफों
से
डील
कराना.
सलाम
कहता
है,
‘महंगाई
बढ़
गई
है,
लेकिन
कमाई
कम
होती
जा
रही
है.
अजमेरी
गेट
से
लाहौरी
गेट
तक
जाने
में
लोग
10
रुपया
ही
देते
हैं.
पूरे
दिन
इससे
100,
200
या
300
ही
कमाते
हैं,
लेकिन
अगर
कोई
ग्राहक
मिल
जाता
है
तो
उसका
कमीशन
200
रुपया
एक
बार
में
ही
मिल
जाता
है.
पिछले
12
सालों
से
यह
काम
कर
रहे
हैं.
मुझे
राजनीति
के
बारे
में
कुछ
समझ
नहीं
है.
वैसे
अरविंद
केजरीवाल
मुझको
पसंद
हैं.’

देश
के
हर
पुराने
शहर
में
तकरीबन
एक
हीरामंडी
जरूर
है.
दिल्ली
के
‘हीरामंडी’
का
क्या
है
चुनावी
मिजाज
एक
चाय
के
दुकान
पर
यूपी
के
प्रतापगढ़
के
रहने
वाले
देव
नरायण
शर्मा
मिले.
शर्मा
के
साथ
विक्की
नाम
का
एक
शख्स
भी
था.
इस
चाय
के
दुकान
पर
तकरीबन
5
लोगों
से
दिल्ली
का
चुनावी
माहौल
जानने
की
कोशिश
की.
देव
नरायण
शर्मा
कहते
हैं,
‘इस
बार
दिल्ली
में
आम
आदमी
पार्टी
की
लहर
है.
कम
से
कम
5
सीट
केजरीवाल
जीतेगा.’
हालांकि,
बाद
में
शर्मा
अपनी
बात
से
मुकर
गए
और
कहा,
देखिए
आएगा
तो
मोदी
ही.
अरविंद
केजरीवाल
एक
जगह
टिक
कर
नहीं
रहता
है.
बताओ
दिल्ली
छोड़
कर
पंजाब
क्यों
चला
गया?
उसी
दुकान
पर
दूसरा
शख्स
ने
कहा
कि
मोदी
सरकार
अच्छा
काम
कर
रही
है.
लेकिन
जीबी
रोड
पर
नशेड़ियों
की
संख्या
बढ़ी
है.
इसी
दुकान
पर
बबलू
नाम
के
शख्स
ने
कहा
कि
देखिए
पान
वालों,
चाय
वालों
की
कमाई
यह
कम
हो
गई,
क्योंकि
अब
ग्राहक
यहां
नहीं
आते
हैं.’
जीबी
रोड
पर
घूम-घूम
कर
लोगों
के
कान
साफ
करने
वाले
लोनी
के
रहने
वाले
नूर
मोहम्मद
कहते
हैं,
‘पहले
कान
साफ
करने
के
50,
100
और
200
रुपये
मिल
जाते
थे,
लेकिन
अब
कोई
20
रुपये
भी
नहीं
दे
रहा
है.’
नूर
मोहम्मद
के
साथ
में
खड़ा
एक
शख्स
कहता
है
कि
अब
यहां
ग्राहक
नहीं
मिल
रहा
है.
यहां
अब
पॉकेटमारी
और
मोबाइल
छिनैती
की
घटना
बढ़
गई
है.
पुलिस
वाला
भी
कमीशन
लेता
है.’
किस
पार्टी
पर
चलेंगे
तवायफों
के
तीर?
इस
हीरामंडी
के
कोठा
नंबर
64
के
पास
एक
चाय
की
दुकान
पर
यूपी
के
रहने
वाले
70
साल
के
अब्दुला
खान
मिले.
अब्दुला
खान
पिछले
52
साल
से
इस
हीरामंडी
में
रह
रहे
हैं.
इन्होंने
यहां
की
एक
तवायफ
से
शादी
कर
ली
और
उससे
एक
बेटी
भी
है.
अब
अब्दुला
खान
कहते
हैं
कि
मैं
नाना
भी
बन
गया
हूं.
अब्दुला
खान
कहते
हैं,
देखो
भाई
इंदिरा
सरकार
गरीबों
की
ताकत
थी.
अब
तो
लोग
रो
रहे
हैं.
हालांकि,
केजरीवाल
ने
बहुत
कुछ
किया
है.
बिजली,
पानी
और
इलाज
मुफ्त
कर
दिया
है.
स्कूल
भी
फ्री
कर
दिया
है.
मेरे
समझ
से
केजरीवाल
का
ही
अबकी
बार
डंका
बजेगा.’

लखनऊ,
बनारस,
मेरठ,
जयपुर
और
बिहार
के
मुजफ्फरपुर
जैसे
शहरों
में
भी
तवायफों
के
कोठे
हैं.
बता
दें
कि
अब्दुला
खान
ने
ही
इस
हीरामंडी
की
एक
तवायफ
से
मिलवाया.
30-32
साल
की
यह
तवायफ
यूपी
की
है
और
इसके
पति
ने
दूसरी
शादी
कर
ली
है.
पति
की
दूसरी
शादी
करने
के
बाद
इस
तवायफ
ने
दिल्ली
का
रुख
किया
और
फिर
यहां
आ
गई.
पिछले
10
साल
से
यह
तवायफ
यहां
रह
रही
है.
जीबी
रोड
पर
ही
इसने
दो
बच्चों
को
जन्म
दिया.
दोनों
बच्चों
को
यह
अब
पढ़ा
रही
है.
जानें
तवायफों
के
दर्द
तवायफ
रुखसाना
(बदला
हुआ
नाम)
कहती
है,
देखो
कोरोना
से
पहले
दिन
में
5000
से
10000
रुपये
तक
कमा
लेती
थीं,
लेकिन
अब
दिन
में
500
रुपया
भी
कमा
लें
तो
सोचते
हैं
कि
बहुत
कमा
लिया.
हमलोगों
को
हर
महीने
सरकार
2500
रुपये
देती
है.
कुछ
एनजीओ
आकर
अब
सहायता
कर
रही
हैं.
अब
ग्राहकों
ने
यहां
आना
बंद
कर
दिया
है.
क्योंकि,
यहां
कम
उम्र
की
तवायफ
नहीं
मिल
रही
हैं.
इसका
कारण
यह
है
कि
अब
पहले
से
सख्ती
ज्यादा
हो
गई
है.
नई-नई
लड़की
भी
नहीं
आ
रही
है.
पुलिस
की
सख्ती
बढ़
गई
है.
रही
बात
वोट
देने
की
तो
मैं
मोदी
को
पसंद
करती
हूं,
लेकिन
वह
पैसा
नहीं
बढ़ाता
है.
इस
बार
अभी
तक
नहीं
सोचा
है
कि
किसको
वोट
दें.’

इन
तवायफों
की
आर्थिक
स्थिति
बिगड़ने
लगी
है.
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या
हरभजन
की?
कुलमिलाकर
दिल्ली
की
हीरामंडी
का
जो
हाल
है,
वही
हाल
देश
के
दूसरे
हीरामंडियों
की
भी
है.
क्योंकि
कोरोना
के
बाद
से
तवायफों
का
धंधा
काफी
मंद
हो
गया
है.
बता
दें
कि
देश
के
हर
पुराने
शहर
में
तकरीबन
एक
हीरामंडी
जरूर
है.
लखनऊ,
बनारस,
मेरठ,
जयपुर
और
बिहार
के
मुजफ्फरपुर
जैसे
शहरों
में
भी
तवायफों
के
कोठे
हैं.
लेकिन,
इन
कोठों
पर
लोग
अब
कम
ही
आते
हैं,
जिससे
इन
तवायफों
की
आर्थिक
स्थिति
बिगड़ने
लगी
है.
इन
लोगों
का
कहना
है
कि
राजनीतिक
दलों
के
नेता
रेड
लाइट
एरिया
में
आने
से
बचते
हैं.
दिल्ली
का
हीरामंडी
भी
इसका
अपवाद
नहीं
है.
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PUBLISHED
:
May
17,
2024,
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