
चतरा
लोकसभा
चुनाव
के
मैदान
में
एक
बार
फिर
बीजेपी
और
कांग्रेस
के
बीच
सीधा
मुकाबला
होने
जा
रहा
है.
यहां
से
भारतीय
जनता
पार्टी
ने
कालीचरण
सिंह
के
रूप
में
नए
चेहरे
को
मौका
दिया
है,
तो
कांग्रेस
ने
पूर्व
मंत्री
केएन
त्रिपाठी
पर
दांव
आजमाया
है.
1999
में
चतरा
से
राष्ट्रीय
जनता
दल-
आरजेडी
सांसद
बने
नागमणि
इस
बार
बसपा
के
टिकट
पर
किस्मत
आजमा
रहे
हैं.
अब
फैसला
चतरा
की
जनता
के
हाथ
में
है.
झारखंड
की
सबसे
छोटी
चतरा
लोकसभा
सीट
में
5
विधानसभा
आती
हैं.
इसमें
से
सिमरिया
और
पांकी
पर
बीजेपी,
चतरा
पर
आरजेडी,
मनिका
पर
कांग्रेस
और
लातेहार
पर
झारखंड
मुक्ति
मोर्चा-
जेएमएम
का
कब्जा
है.
यानी
5
विधानसभा
सीटों
में
से
2
पर
बीजेपी
और
3
सीटों
पर
महागठबंधन
के
विधायक
हैं.
चतरा
लोकसभा
सीट
से
सबसे
ज्यादा
4
बार
बीजेपी,
3
बार
कांग्रेस
और
2
बार
आरजेडी
जीती
है.
2019
के
लोकसभा
चुनाव
में
बीजेपी
उम्मीदवार
सुनील
सिंह
को
5,28,077
यानी
57
फीसदी
वोट
मिले
थे.
उनके
निकटतम
प्रतिद्वंद्वी
कांग्रेस
के
मनोज
यादव
सिर्फ
1,50,206
यानी
16.2
फीसदी
वोट
ही
ला
सके
थे.
इस
चुनाव
में
बीजेपी
और
कांग्रेस
के
बीच
वोट
प्रतिशत
का
अंतर
तीन
गुना
से
ज्यादा
रहा
था.
उस
समय
फ्रैंडली
फाइट
करने
के
लिए
आरजेडी
उम्मीदवार
सुभाष
यादव
भी
मैदान
में
कूदे
थे.
पर
उन्हें
सिर्फ
9
फीसदी
वोट
मिले.
2019
के
चुनाव
में
चतरा
लोकसभा
सीट
से
26
उम्मीदवार
चुनाव
मैदान
में
थे.
इनमें
से
18
उम्मीदवारों
को
नोटा
से
भी
कम
वोट
मिले.
इस
बार
के
लोकसभा
चुनाव
में
22
उम्मीदवार
मैदान
में
हैं.
चतरा
में
बीजेपी
को
2014
में
41
और
2019
में
57
फीसदी
वोट
मिले
थे.
जो
चतरा
लोकसभा
के
इतिहास
में
अब
तक
की
सबसे
बड़ी
जीत
के
तौर
पर
दर्ज
है.
चतरा
में
28
फीसदी
अनुसूचित
जाति,
19
फीसदी
आदिवासी
और
13
फीसदी
मुस्लिम
वोटर
हैं.
इसके
अलावा
कुशवाहा
और
यादव
जाति
के
वोटर
भी
बड़ी
तादाद
में
है.
कांग्रेस
19
फीसदी
आदिवासी,
13
फीसदी
मुस्लिम
के
साथ-साथ
यादव
और
कुशवाहा
मतों
के
जरिए
जीत
की
राह
देख
रही
है.
बीजेपी
ने
क्यों
बदला
चेहरा?
भारतीय
जनता
पार्टी
ने
2014
और
2019
में
लगातार
2
बार
चतरा
से
पार्टी
सांसद
रहे
सुनील
सिंह
का
टिकट
काट
कर
कालीचरण
सिंह
को
उम्मीदवार
बनाया.
सुनील
सिंह
के
रवैये
से
बीजेपी
कार्यकर्ता
बेहद
नाराज
थे.
कई
चुनावी
सभाओं
में
उनके
खिलाफ
खुलआम
नारेबाजी
हुई
थी.
बीजेपी
कार्यकर्ताओं
के
विरोध
और
पार्टी
के
सर्वे
की
रिपोर्ट
के
आधार
पर
सुनील
सिंह
का
पत्ता
कट
गया.
बीजेपी
के
प्रदेश
अध्यक्ष
बाबूलाल
मरांडी
के
करीबी
और
प्रदेश
उपाध्यक्ष
कालीचरण
सिंह
को
उम्मीदवार
बनाया
गया.
उन्हें
पार्टी
और
संगठन
में
काम
करने
का
लंबा
अनुभव
रहा
है.
चतरा
के
मूल
निवासी
कालीचरण
सिंह
को
टिकट
मिलने
से
बीजेपी
कार्यकर्ताओं
की
नाराजगी
तो
दूर
हुई.
पर
चतरा
से
सुनील
सिंह
के
साथ
धनबाद
से
पीएन
सिंह
जैसे
2
राजपूत
नेताओं
का
टिकट
कटने
से
राजपूत
समाज
खफा
हो
गया.
क्योंकि
इन
दोनों
सीटों
पर
उम्मीदवार
बदलने
के
साथ
ही
झारखंड
की
14
सीट
पर
बीजेपी
की
ओर
से
राजपूत
समाज
का
प्रतिनिधित्व
शून्य
हो
गया.
इससे
नाराज
राजपूत
समुदाय
ने
बीजेपी
का
विरोध
करने
की
धमकी
दी.
बीजेपी
ने
तुरंत
डैमेज
कंट्रोल
करने
की
कोशिश
की.
पर
नाराजगी
दूर
नहीं
हुई.
पांकी
के
बीजेपी
विधायक
कुशवाहा
शशिभूषण
मेहता
भी
चतरा
से
टिकट
की
रेस
में
थे.
पर
कालीचरण
सिंह
को
टिकट
मिलने
से
उनकी
उम्मीद
टूट
गई.
ऐसे
में
बीजेपी
में
भी
भीतरघात
का
खतरा
बढ़
गया
है.
राजपूत
समाज
और
भाजपा
के
एक
खेमे
की
नाराजगी
के
बीच
वर्तमान
उम्मीदवार
कालीचरण
सिंह
के
सामने
2019
का
प्रदर्शन
दोहराने
के
साथ-साथ
57
फीसदी
वोट
शेयर
के
पिछले
प्रदर्शन
को
दोहराने
की
दोहरी
चुनौती
है.
पीएम
नरेंद्र
मोदी
ने
भरा
नया
जोश
झारखंड
में
3
मई
से
14
मई
के
बीच
प्रधानमंत्री
नरेंद्र
मोदी
6
बार
चुनावी
सभा
और
रोड
शो
कर
चुके
हैं.
उन्होंने
सबसे
पहले
3
मई
को
चाईबासा
में
विजय
संकल्प
रैली
के
जरिए
सिंहभूम
और
खूंटी
के
पार्टी
उम्मीदवारों
के
लिए
वोट
मांगा
था.
इसी
दिन
उन्होंने
झारखंड
की
राजधानी
रांची
में
रोड
शो
भी
किया
था.
अगले
दिन
4
मई
को
पलामू
और
गुमला
की
सभा
के
जरिए
प्रधानमंत्री
ने
पलामू
और
लोहरदगा
के
उम्मीदवारों
के
लिए
चुनाव
प्रचार
किया
था.
11
मई
को
पीएम
मोदी
चतरा
में
वोट
मांगा.
जबकि
14
मई
को
कोडरमा
में
चुनावी
सभा
की.
रैली
के
दौरान
प्रधानमंत्री
नरेंद्र
मोदी
ने
जिस
तरह
से
भ्रष्टाचार
पर
करारा
वार
किया
था.
इससे
कार्यकर्ताओं
में
नया
जोश
आया
और
पार्टी
के
चुनाव
प्रचार
में
तेजी
आ
गयी.
पार्टी
का
हर
नेता
और
कार्यकर्ता
सक्रिय
हो
गया.
पीएम
मोदी
को
नजदीक
से
देखने
और
सुनने
के
बाद
कोल्हान
और
छोटानागपुर
की
जनता
का
नजरिया
भी
बदल
गया.
प्रधानमंत्री
के
ताबड़तोड़
दौरे
से
बीजेपी
की
राह
आसान
दिखने
लगी.
तो
इंडिया
गठबंधन
के
सामने
नई
चुनौतियां
खड़ी
हो
गईं.
प्रधानमंत्री
की
रैली
के
बाद
मोदी
बनाम
एंटी
मोदी
का
माहौल
भी
बनने
लगा
है.
केएन
त्रिपाठी
को
अपनों
से
खतरा
चतरा
सीट
को
लेकर
इंडिया
गठबंधन
के
घटक
दलों
में
लंबे
समय
तक
खटपट
होती
रही.
आरजेडी
चतरा
पर
बार-बार
दावा
ठोंकती
रही.
पर
आरजेडी
के
अड़ने
के
बावजूद
कांग्रेस
ने
16
अप्रैल
को
पूर्व
मंत्री
केएन
त्रिपाठी
को
उम्मीदवार
बनाने
का
ऐलान
कर
दिया.
पर
त्रिपाठी
को
बाहरी
बता
कर
कांग्रेस
का
एक
गुट
नाराज
हो
गया,
तो
आरजेडी
कार्यकर्ताओं
का
गुस्सा
भी
उबल
पड़ा.
टिकट
बंटवारे
के
6
दिन
बाद
22
अप्रैल
को
रांची
में
हुई
इंडिया
गठबंधन
की
उलगुलान
महारैली
में
कांग्रेस
और
आरजेडी
कार्यकर्ताओं
के
बीच
इसी
बात
को
लेकर
जबर्दस्त
भिड़ंत
हो
गई.
गोड्डा
की
तरह
चतरा
से
भी
कांग्रेस
उम्मीदवार
बदलने
की
मांग
तेज
होने
लगी.
पर
कांग्रेस
ने
फैसला
नहीं
बदला.
इसके
बाद
केएन
त्रिपाठी
के
चुनाव
प्रचार
में
सभी
सहयोगी
दल
उतर
गए.
बिहार
के
पूर्व
उपमुख्यमंत्री
तेजस्वी
यादव
ने
भी
चुनावी
सभा
की.
पर
केएन
त्रिपाठी
पर
भितरघात
का
खतरा
अभी
भी
टला
नहीं
है.
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:
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18,
2024,
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