बायबैक में शेयर बेचने पर अकाउंट में क्यों आता है कम पैसा? कौन काट लेता है पैसा और किसके कहने पर? जानिए

बायबैक में शेयर बेचने पर अकाउंट में क्यों आता है कम पैसा? कौन काट लेता है पैसा और किसके कहने पर? जानिए


नई
दिल्ली.

हाल
के
सालों
में
शेयर
बायबैक
(Share
Buybacks)
तेजी
से
पॉपुलर
हो
गया
है,
कई
कंपनियां
शेयरधारकों
को
रिवॉर्ड
देने,
ओनरशिप
को
मजबूत
करने
और
शेयर
की
कीमतों
को
बढ़ावा
देने
के
लिए
इस
रणनीति
को
अपना
रही
हैं.
साल
2022
में
50
से
ज्यादा
कंपनियों
ने
कुल
37,500
करोड़
रुपये
से
ज्यादा
की
बायबैक
की
घोषणा
की
थी.

शेयर
बायबैक
उस
स्थिति
को
कहते
हैं
जब
कंपनी
अपनी
कैपिटल
से
मौजूदा
शेयरधारकों
से
अपने
ही
शेयर
वापस
खरीदती
है.
इससे
कंपनी
का
इक्विटी
कैपिटल
कम
हो
जाता
है.
मार्केट
से
वापस
खरीदे
गए
शेयर
खारिज
हो
जाते
हैं.
बायबैक
किए
गए
शेयरों
को
दोबारा
जारी
नहीं
किया
जा
सकता.
इक्विटी
कैपिटल
कम
होने
से
कंपनी
की
शेयर
आमदनी
बढ़
जाती
है.


2013
में
लागू
हुआ
था
बायबैक
टैक्स

बायबैक
या
तो
सीधे
टेंडर
ऑफर
के
माध्यम
से
या
ओपन
मार्केट
के
माध्यम
से
हो
सकता
है. सरप्लस
फंड
वितरित
करने
के
लिए
अन-लिस्टेड
कंपनियों
के
लिए
2013
में
बायबैक
टैक्स
लागू
किया
गया
था.
यह
टैक्स
2019
में
लिस्टेड
कंपनियों
तक
बढ़ा
दिया
गया
था.


टेंडर
ऑफर
में
शेयरधारकों
के
लिए
कोई
तत्काल
टैक्स
लायबिलिटी
नहीं

एक
टेंडर
ऑफर
में,
शेयरधारक
एक
स्पेसिफाइड
टाइम
फ्रेम
के
भीतर
प्रीमियम
पर
अपने
शेयर
कंपनी
को
वापस
बेच
सकते
हैं.
इस
मेथड
में
आमतौर
पर
इंडीविजुअल
शेयरधारकों
के
लिए
कोई
तत्काल
टैक्स
लायबिलिटी
नहीं
होता
है.
हालांकि,
कंपनी
को
डिस्ट्रीब्यूटेड
इनकम
पर
20
फीसदी
टैक्स
का
भुगतान
करना
होगा,
जो
एडिशनल
सरचार्ज
के
साथ
बायबैक
प्राइस
और
ऑरिजनल
इश्यू
प्राइस
के
बीच
का
अंतर
होता
है.


बायबैक
से
होने
वाला
लाभ
शेयरधारकों
के
लिए
टैक्सेबल

कंपनियों
द्वारा
पसंद
किए
जाने
वाले
ओपन
मार्केट
रूट
में
एक्सटेंडेट
पीरियड
में
स्टॉक
एक्सचेंजों
के
माध्यम
से
शेयर
खरीदना
शामिल
है.
इस
मामले
में
कंपनी
की
टैक्स
लायबलिटी
वही
रहती
हैं,
बायबैक
से
होने
वाला
लाभ
शेयरधारकों
के
लिए
टैक्सेबल
होता
है.


1
अप्रैल,
2025
से
ओपन
मार्केट
के
जरिए
शेयर
बायबैक
करने
की
अनुमति
नहीं

ओपन
मार्केट
में
ट्रांजैक्शन
की
गुमनामी
के
कारण
यह
निर्धारित
करना
चुनौतीपूर्ण
हो
जाता
है
कि
कोई
ट्रेड
बायबैक
प्रोग्राम
का
हिस्सा
है
या
नहीं.
इससे
कंपनी
और
शेयरधारक
दोनों
के
लिए
संभावित
डबल
टैक्सेशन
होता
है. इन
जटिलताओं
के
कारण
सेबी
ने
आदेश
दिया
है
कि
1
अप्रैल,
2025
से
कंपनियों
को
ओपन
मार्केट
के
जरिए
शेयर
बायबैक
करने
की
अनुमति
नहीं
होगी.

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