300 साल में कंगाल हुआ देश, अर्श से फर्श पर पहुंची GDP, अब तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर

300 साल में कंगाल हुआ देश, अर्श से फर्श पर पहुंची GDP, अब तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर


नई
दिल्ली.

मौजूदा
समय
में
भारत
दुनिया
की
पांचवी
सबसे
बड़ी
अर्थव्यवस्था
है
और
देश
बहुत
जल्द
5
ट्रिलियन
डॉलर
इकॉनमी
बनने
का
ख्वाब
भी
पूरा
करना
चाहता
है.
भारत
के
लिए
यहां
तह
पहुंचने
का
सफर
बहुत
उतार-चढ़ाव
वाला
रहा.
23
जुलाई
को
देश
में
आम
बजट
2024
(Budget
2024)
पेश
होने
वाला
है
और
यह
देश
की
आर्थिक
तरक्की
पर
केंद्रित
बजट
होगा.
वैसे
तो
जीडीपी
के
मामले
में
भारत
के
आगे
अभी
चार
देश
हैं,
लेकिन
एक
समय
था
जब
इसकी
जीडीपी
का
दुनियाभर
में
डंका
बजता
था
और
भारत
को
दुनिया
के
एक्सपोर्ट
हब
के
रूप
में
जाना
जाता
था.

इतिहास
के
पन्नों
को
पलटें
तो
भारत
ने
लूटेरों
और
आक्रमणकारियों
के
सैकड़ों
हमले
झेले.
हमारी
अर्थवयवस्था
कई
बार
बर्बाद
हुई,
संसाधन
लूट
लिए
गए,
लेकिन
हम
फिर
उठ
खड़े
हुए.
हालांकि,
मुगलिया
शासन
के
बाद
जिसने
हमारा
सबसे
ज्यादा
नुकसान
किया
वो
थे
अंग्रेज.
ब्रिटेन
के
राज
परिवार
की
हुकूमत
की
ईस्ट
इंडिया
कंपनी
ने
300
साल
में
भारत
की
अर्थव्यवस्था
को
अर्श
से
फर्श
पर
ला
दिया.
देश
में
6
करोड़
लोगों
की
भूख
से
मौत
हुई.
सभी
तरह
के
उद्योग-कारखाने
उजड़
गए
और
लोग
इतने
गरीब
हो
गए
कि
दाने-दाने
को
मोहताज
हो
गए.
आज
हम
आपको
भारत
के
इतिहास
की
आर्थिक
संघर्ष
की
कहानी
से
रूबरू
कराएंगे.


16वीं
से
18वीं
सदी
के
बीच
बिजनेस
हब
था
भारत

ग्रोनिंगन
यूनिवर्सिटी
की
एक
रिपोर्ट
के
मुताबिक,
16वीं
से
18वीं
के
बीच
भारत
की
अर्थव्यवस्था
का
स्वर्णिम
दौर
था.
इस
दौरान
भारत
वैश्विक
व्यापार
का
केंद्र
बन
चुका
था.
उस
समय
भारत
में
बना
सामान
यूरोपीय
देश
में
अमीरी
की
निशानी
माना
जाता
था.
कश्मीर
से
केसर,
ऊनी
शॉल,
मेवे,
बंगाल
से
आनाज,
कच्चा
रेशम
मलमल,
आज
के
इलाहबाद
से
कागज,
आगरा
से
नील,
गोलकुंडा
से
हीरे,
मालाबार
से
काली
मिर्च
और
अन्य
मसाले
दुनियाभर
में
एक्सपोर्ट
होते
थे.



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करेंगी
पेश,
टैक्स
में
मिल
सकती
राहत

चूंकि
उस
समय
व्यापारी
लेनदेन
सोने
चांदी
में
करते
थे,
इसलिए
भारत
के
पास
सोने-चांदी
की
आमद
काफी
बढ़
गई
थी.
फ्रेंच
ट्रैवलर
और
औरंजेब
के
डॉक्टर
रहे
फ्रांस्वा
बर्नियर
ने
अपने
रिकार्ड्स
में
लिखा
कि
सोना-चांदी
दुनिया
के
हर
हिस्से
में
घूमने
के
बाद,
आखिर
में
भारत
के
भंडार
में
दफन
हो
जाता
है.


ब्रिटेन
की
महारानी
से
भी
ज्यादा
था
अकबर
का
रेवेन्यू

ग्रोनिंगन
यूनिवर्सिटी
के
रिकाॅर्ड्स
के
मुताबिक,
अकबर
के
समय
सरकारी
खजाने
में
जमा
होने
वाला
टैक्स
और
रेवेन्यू
आज
के
87,980
करोड़
रुपये
के
बराबर
है.
उस
समय
ब्रिटेन
की
महारानी
एलिजाबेथ
के
सरकारी
खजाने
में
हर
साल
केवल
1,380
करोड़
रुपये
ही
जमा
होते
थे.


नंबर-1
इकॉनमी
को
बना
दिया
कंगाल

17वीं
सदी
तक
डच,
फ्रेंच
और
इंग्लिश
कंपनियां
भारत
आने
लगीं
थीं.
उन्होंने
देश
के
कई
इलाकों
में
कॉलोनियां
बनानी
शुरू
कर
दीं
और
उनकी
हिफाजत
के
लिए
सैनिक
भी
रखने
लगे.
मुगलों
के
जाते-जाते
भारत
के
राजा
कमजोर
पड़
गए
थे.
यहीं
मौका
देखते
हुए
ब्रिटिश
सैनिकों
ने
आक्रमण
करना
शुरू
कर
दिया.
मुगल
शासन
के
बचे-खुचे
नवाब
भी
अंग्रेजों
से
हार
गए.
इसके
बाद
भारतीयों
पर
दमन
और
शोषण
का
कुचक्र
शुरू
हुआ.

इकोनॉमिस्ट
पॉल
कैनडी
अपनी
किताब
“द
राइज
एंड
फॉल
ऑफ
ग्रेटेस्ट
सिविलाइजेशन”
में
लिखते
हैं
कि
ग्लोबल
इकॉनमी
में
भारत
की
हिस्सेदारी
करीब
25%
हुआ
करती
थी
जो
200
साल
के
अंग्रेजी
हुकूमत
में
1%
से
भी
नीचे

गई.
सांसद
और
लेखक
शशि
थरूर
बताते
हैं
कि
1700
में
जब
ईस्ट
इंडिया
कंपनी
को
बनाया
गया
था,
तब
ब्रिटेन
की
जीडीपी
दुनिया
की
जीडीपी
का
केवल
1.8%
था,
जबकि
भारत
की
हिस्सेदारी
23%
थी.
200
साल
तक
भारत
पर
शासन
करने
के
बाद
1940
तक
ब्रिटेन
की
इकॉनमी
दुनिया
का
10
प्रतिशत
हो
गई,
जबकि
भारत
दुनिया
का
तीसरा
सबसे
गरीब
देश
बन
गया.


अंग्रेजों
ने
बर्बाद
किए
भारतीय
उद्योग

1865
में
अमेरीका
में
सिविल
वॉर
ख़त्म
होने
के
बाद
ब्रिटेन
ने
भारत
से
कपास
खरीदना
कम
कर
दिया
जिससे
किसान
कर्ज
में
डूबने
लगे.
कर्ज

चुका
पाने
की
स्थिति
में
किसानों
की
जमीन
नीलाम
हो
जाती.
ब्रिटेन
भारत
से
औने-पौने
दाम
पर
कपास
खरीदकर
महंगे
दाम
में
कपड़े
भारत
में
बेचते.
इससे
देश
का
कपास
और
कपड़ा
उद्योग
पूरी
तरह
तहस-नहस
हो
गया.
एक
रिसर्च
के
अनुसार
17वीं
शताब्दी
में
दुनिया
का
25%
कपड़ा
भारत
में
बनता
था.
1947
में
अंग्रेजों
के
जाने
तक
यह
घटकर
सिर्फ
2%
रह
गया.

1735
से
1938
के
बीच
अंग्रेजों
ने
आज
के
हिसाब
से
45
ट्रिलियन
डॉलर
के
बराबर
की
संपत्ति
लूटी,
जो
भारत
की
मौजूदा
जीडीपी
से
12
गुना
ज्यादा
है.


भूख
से
मरे
6
करोड़
लोग

दूसरे
विश्व
युद्ध
की
बात
है,
मई
1942
में
जापानी
सेना
ने
बर्मा
जीत
लिया
और
अंडमान
तक
पहुंच
गई
थी.
अंग्रेजों
को
लगा
कि
बंगाल
पर
हमला
हो
सकता
है,
इसलिए
वहां
के
घरों
से
अतिरिक्त
राशन
जब्त
कर
लिया,
ताकि
जापानी
सैनिकों
को
कुछ

मिले।
लेकिन
इससे
बंगाल
में
भुखमरी
फैल
गई
और
खेतों
में
लाशें
दिखाई
देने
लगीं।
तभी
बंगाल
में
1942
में
आए
चक्रवाती
तूफ़ान
ने
पश्चिमी
मेदिनीपुर
में
लगे
फसलों
को
बर्बाद
कर
दिया।
ब्रिटेन
की
वॉर
कैबिनेट
ने
भारत
में
5
लाख
टन
गेहूं
भेजने
की
शिफारिश
की
लेकिन
ब्रिटिश
पीएम
विंस्टन
चर्चिल
बोले
कि
खरगोश
की
तरह
बच्चा
पैदा
करने
वाले
भारतीय
इस
आकाल
के
लिए
खुद
जिम्मेदार
हैं.

रिसर्च
पत्रिका
जियोफिजिकल
रिसर्च
लेटर्स
ने
बताया
कि
सूखा
या
फसल
नष्ट
होना
1943
के
बंगाल
अकाल
की
वजह
नहीं
थी,
बल्कि
यह
ब्रिटिश
सरकार
की
गलत
नीतियों
की
देन
थी.
कई
इतिहासकारों
ने
भूख
से
मरने
वाले
भारतीयों
की
तुलना
नाजी
कैंप
और
हिरोशिमा
और
नागासाकी
में
परमाणु
हमले
में
मरने
वाले
लोगों
से
की
है.
वहीं
शशि
थरूर
के
मुताबिक,
अंग्रेज
सरकार
की
गलत
नीतियों
के
वजह
से
40
लाख
बंगाली
भूखे
मर
गए,
जबकि
पूरे
ब्रिटिश
शासन
के
दौरान
भारत
में
6
करोड़
लोगों
ने
भूख
से
तड़पते
हुए
अपनी
जान
दे
दी.


अब
तीसरी
बड़ी
इकोनाॅमी
की
ओर

लगभग
10
साल
पहले
भारत
दुनिया
की
10वीं
सबसे
बड़ी
इकोनॉमी
था.
तब
देश
की
जीडीपी
(सकल
घरेलू
उत्पाद)
1.9
ट्रिलियन
डॉलर
थी.
साल
2022
में
ब्रिटेन
को
पछाड़कर
भारत
दुनिया
की
पांचवीं
सबसे
बड़ी
इकोनॉमी
बन
चुका
है.
अभी
देश
की
जीडीपी
करीब
3.94
ट्रिलियन
डॉलर
है
जिसकी
2030
तक
7
ट्रिलियन
डॉलर
होने
की
उम्मीद
है.
वित्तीय
मंत्रालय
के
अनुसार
देश
की
जीडीपी
अगले
तीन
सालों
में
5
ट्रिलियन
डॉलर
हो
जाएगी.

भारत
की
जीडीपी
दुनिया
में
सबसे
तेजी
से
विकसित
होने
वाली
बन
गई
है.
इंटरनेशनल
मॉनिटरी
फंड
(IMF)
ने
भारत
की
जीडीपी
ग्रोथ
वित्त
वर्ष
2024-25
के
लिए
7%
प्रोजेक्ट
की
है.
अगर
भारत
की
अर्थव्यवस्था
इसी
तरह
बढ़ती
रही
भारत,
अमेरिका
और
चीन
के
बाद
दुनिया
की
तीसरी
सबसे
बड़ी
इकोनॉमी
बनने
का
दम
रखता
है.
हालांकि,
प्रति
व्यक्ति
आय
के
मामले
में
भारत
दुनियाभर
के
देशों
में
136वें
स्थान
पर
है.

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