विस्तार
नर्मदापुरम
कलेक्टर
ने
व्यक्तिगत
उपस्थिति
माफी
के
लिए
हाईकोर्ट
को
सीधे
पत्र
लिख
दिया
था।
इस
पर
हाईकोर्ट
जस्टिस
जी
एस
अहलूवालिया
ने
मुख्य
सचिव
को
निर्देश
दिया
है
कि
कलेक्टर
की
इस
गलती
पर
गंभीरता
से
कार्यवाही
करें।
मुख्य
सचिव
को
एक
माह
के
भीतर
कार्यवाही
की
जानकारी
कोर्ट
को
देने
का
निर्देश
दिया
गया
है।
एकलपीठ
ने
नर्मदापुरम
एडीएम
और
तहसीलदार
की
न्यायिक
और
मजिस्ट्रियल
शक्तियां
एक
साल
के
लिए
वापस लेने
के
निर्देश
दिए
हैं।
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मामला
जमीन
संबंधी
विवाद
का
है,
जिसमें
हाईकोर्ट
और
सर्वोच्च
न्यायालय
ने
नामांतरण
पर
यथास्थिति
बनाए
रखने
के
आदेश
दिए
थे।
बावजूद
इसके
तहसीलदार
ने
बिना
एमपीएलआरसी
के
तहत
आवेदन
किए,
संपत्ति
बंटवारे
का
आदेश
जारी
कर
दिया।
इस
आदेश
के
खिलाफ
अपील
की
सुनवाई
में
अतिरिक्त
कलेक्टर
ने
भी
तहसीलदार
के
आदेश
को
बरकरार
रखा।
इसके
विरोध
में
हाईकोर्ट
में
याचिका
दायर
की
गई।
याचिका
की
सुनवाई
के
दौरान
कलेक्टर
सोनिया
मीना,
अतिरिक्त
कलेक्टर
देवेंद्र
कुमार
सिंह
और
सिवनी
मालवा
के
तहसीलदार
राजेश
खजुरिया
को
व्यक्तिगत
रूप
से
तलब
किया
गया
था।
शुक्रवार
को
सुनवाई
के
दौरान
सरकार
ने
कोर्ट
को
बताया
कि
जिले
में
प्राकृतिक
आपदा
के
कारण
कलेक्टर
व्यक्तिगत
रूप
से
उपस्थित
नहीं
हो
सकीं।
सरकार
की
ओर
से
कलेक्टर
की
व्यक्तिगत
उपस्थिति
माफी
के
लिए
प्रार्थना
की
गई।
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अतिरिक्त
कलेक्टर
ने
हाईकोर्ट
को
दिया
लिफाफा
इसी
दौरान
अतिरिक्त
कलेक्टर
देवेंद्र
कुमार
सिंह
ने
खड़े
होकर
एक
लिफाफा
दिखाया।
जस्टिस
अहलूवालिया
ने
सरकारी
अधिवक्ता
से
उस
लिफाफे
को
मंगवाकर
खोला।
उसमें
कलेक्टर
ने
हाईकोर्ट
को
संबोधित
करते
हुए
व्यक्तिगत
उपस्थिति
माफी
के
लिए
पत्र
लिखा
था।
एकलपीठ
ने
इसे
अक्षम्य
आचरण
करार
दिया
और
कलेक्टर
को
शाम
चार
बजे
उपस्थित
होने
का
आदेश
दिया।
शाम
चार
बजे
हुई
सुनवाई
में
जज को
बताया
गया
कि
कलेक्टर
जिला
मुख्यालय
से
15
किलोमीटर
दूर
दुर्गम
इलाके
में
हैं।
उनसे
संपर्क
नहीं
हो
सका
है।
जज
ने
सरकार
के
आग्रह
पर
कलेक्टर
सोनिया
मीना
की
व्यक्तिगत
उपस्थिति
माफी
स्वीकार
कर
ली,
लेकिन
उनके
आचरण
के
लिए
शासकीय
वकील
से
स्पष्टीकरण
मांगा।
कलेक्टर
तो
सीधे
सीएस
को
भी
नहीं
लिख
सकते
शासकीय
अधिवक्ता
ने
स्पष्ट
किया
कि
कलेक्टर
सीधे
मुख्य
सचिव
को
भी
पत्र
नहीं
लिख
सकते।
इस
पर
जस्टिस
अहलूवालिया
ने
अपने
आदेश
में
कहा
कि
कलेक्टर
की
गलती
पर
मुख्य
सचिव
कार्रवाई
करें
और
एक
माह
में
इसकी
जानकारी
न्यायालय
को
दें।
तहसीलदार
और
अतिरिक्त
कलेक्टर
ने
स्वीकार
किया
कि
वे
न्यायालय
के
आदेश
को
समझ
नहीं
पाए
थे।
जस्टिस
अहलूवालिया
ने
पाया
कि
बाहरी
प्रभाव
के
कारण
उन्होंने
याचिकाकर्ता
को
परेशान
करने
के
आदेश
जारी
किए
थे।
याचिकाकर्ता
दोनों
अधिकारियों
के
खिलाफ
भ्रष्टाचार
निवारण
अधिनियम
के
तहत
कार्यवाही
कर
सकते
हैं,
क्योंकि
वे
संरक्षण
के
अधिकारी
नहीं
हैं।