सात
दिवसीय
शिव
महापुराण
का
आयोजन
–
फोटो
:
अमर
उजाला
विस्तार
जिंदगी
में
मौका
देने
वाले
भी
मिलेंगे
और
धोखा
देने
वाले
भी
मिलेंगे।
जो
मौका
दे,
उसे
धोखा
कभी
मत
दो।
जो
धोखा
दे,
उसे
मौका
कभी
मत
दो।
मेरे
भगवान
भोलेनाथ
सभी
को
जीवन
में
मौका
देते
हैं,
लेकिन
अवसर
को
अपने
प्रयास
से
ही
सार्थक
बनाया
जा
सकता
है।
जैसे
चंचुला
और
देवराज
ब्राह्मण
ने
भगवान
शिव
की
कृपा
से
अपने
जीवन
को
पुण्यमय
कर
लिया
था।
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उक्त
विचार
बुधवार
से
विठलेश
सेवा
समिति
के
तत्वाधान
में
जारी
सात
दिवसीय
संगीतमय
शिव
महापुराण
के
पहले
दिन
अंतर्राष्ट्रीय
कथावाचक
पंडित
प्रदीप
मिश्रा
के
पुत्र
कथा
व्यास
पंडित
राघव
मिश्रा
ने
कहे।
इस
मौके
पर
कथा
के
मुख्य
यजमान
पंडित
विनय
मिश्रा, कविता
मिश्रा
के
अलावा
विठलेश
सेवा
समिति
की
ओर
से
प्रबंधक
पंडित
समीर
शुक्ला,
मनोज
दीक्षित
मामा,
आकाश
शर्मा
आदि
ने
व्यास
पूजन
किया।
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उन्होंने
कहा
कि
भक्ति
के
बिना
जीवन
अधूरा
है,
लाखों
योनियों
में
सबसे
सुंदर
शरीर
मनुष्य
का
है,
भगवान
के
आशीर्वाद
के
बिना
मनुष्य
जीवन
प्राप्त
नहीं
होता।
भगवान
शिव
का
संपूर्ण
चरित्र
परोपकार
की
प्रेरणा
देता
है।
भगवान
शिव
जैसा
दयालु
करुणा
के
सागर
कोई
और
देवता
नहीं
है।
चंचुला
नाम
की
स्त्री
को
जब
संत
का
संग
मिला
वह
शिव
धाम
की
अनुगामिनी
बनी।
एक
घड़ी
के
सत्संग
की
तुलना
स्वर्ग
की
समस्त
संपदा
से
की
गई
है।
भगवान
शिव
भी
सत्संग
का
महत्व
मां
पार्वती
को
बताते
हुए
कहते
हैं
कि
उसकी
विद्या,
धन,
बल,
भाग्य
सब
कुछ
निरर्थक
है,
जिसे
जीवन
में
संत
की
प्राप्ति
नहीं
हुई।
परंतु
वास्तव
में
सत्संग
कहते
किसे
हैं।
सत्संग
दो
शब्दों
के
जोड़
से
मिलकर
बना
यह
शब्द
हमें
सत्य
यानि
परमात्मा
और
संग
अर्थात्
मिलन
की
ओर
इंगित
करता
है।
परमात्मा
से
मिलन
के
लिए
संत
एक
मध्यस्थ
है,
इसलिए
हमें
जीवन
में
पूर्ण
संत
की
खोज
में
अग्रसर
होना
चाहिए,
जो
हमारा
मिलाप
परमात्मा
से
करवा
दे।
सच्चा
संत
वही
है,
जो
सहज
भाव
से
विचार
करे
और
आचरण
करे।
जब
उसका
मान
हो,
तब
उसे
अभिमान
न
हो
और
कभी
उसका
अपमान
हो
जाए,
तो
उसे
अहंकार
नहीं
करना
चाहिए।
हर
हाल
में
उसकी
वाणी
मधुर,
व्यवहार
संयमशील
और
चरित्र
प्रभावशाली
होना
चाहिए।
संत
शब्द
का
अर्थ
ही
है,
सज्जन
और
धार्मिक
व्यक्ति।
सच्चा
संत
सभी
के
प्रति
निरपेक्ष
और
समान
भाव
रखता
है,
क्योंकि
सच्चा
संत,
हर
इंसान
में
भगवान
को
ही
देखता
है,
उसकी
नजर
में
हर
व्यक्ति
में
भगवान
वास
करते
हैं,
इसलिए
उस
पर
किसी
भी
तरह
के
व्यवहार
का
कोई
प्रभाव
नहीं
पड़ता।
सच्चा
संत
वही
है,
जिसने
अपनी
इंद्रियों
पर
नियंत्रण
प्राप्त
कर
लिया
हो
और
वह
हर
तरह
की
कामना
से
मुक्त
हो।