विस्तार
यौन
अपराधों
से
बच्चों
के
संरक्षण
पॉक्सो
एक्ट
का
12
वर्ष
बाद
भी
सार्वजनिक
रूप
से
समुचित
प्रचार-प्रसार
नहीं
किए
जाने
को
चुनौती
देते
हुए
हाईकोर्ट
में
जनहित
याचिका
दायर
की
गई
थी।
याचिका
में
कहा
गया
था
कि
व्यापक
प्रचार-प्रसार
नहीं
किए
जाने
के
अभाव
में
कठोर
दंडात्मक
प्रावधान
से
अनभिज्ञ
कई
किशोर
व
युवा
अपराध
के
दलदल
में
फंसते
चले
जा
रहे
हैं।
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हाईकोर्ट
के
कार्यवाहक
मुख्य
न्यायाधीश
संजीव
सचदेवा
व
न्यायमूर्ति
विनय
सराफ
की
युगलपीठ
ने
याचिका
की
सुनवाई
करते
हुए
नोटिस
जारी
कर
शासकीय
अधिवक्ता
को
इस
सिलसिले
में
राज्य
शासन
से
निर्देश
हासिल
आदेश
जारी
किए
हैं।
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जबलपुर
निवासी
अधिवक्ता
अमिताभ
गुप्ता
की
तरफ
से
दायर
याचिका
में
कहा
गया
था
कि
यौन
अपराधों
से
बच्चों
के
संरक्षण
(पॉक्सो)
अधिनियम
2012
की
धारा
43
में
निहित
वैधानिक
प्रावधानों
का
परिपालन
सुनिष्चित
रूप
किए
जाने
का
प्रावधान
है।
पॉक्सो
अधिनियम
के
उद्देश्य
को
देखते
हुए
विधायिका
ने
अपने
विवेक
से
पॉक्सो
अधिनियम
के
प्रावधानों
के
बारे
में
सार्वजनिक
जागरूकता
के
लिए
राज्य
की
जिम्मेदारी
को
सुनिश्चित
की
थी।
अधिनियम
के
प्रावधानों
के
लागू
होने
के
बाद
से
केंद्र
और
राज्य
सरकारों
ने
अधिनियम
के
प्रावधानों,
विशेष
रूप
से
कड़ी
सजा
के
बारे
में
जागरूकता
फैलाने
के
लिए
कोई
उल्लेखनीय
पहल
की
है।
अधिनियम
में
निहित
कानूनी
अनिवार्यताओं
के
बारे
में
उनकी
अज्ञानता
के
कारण
अधिनियम
के
कठोर
दंडात्मक
प्रावधान
के
दायरे
में
आकर
युवाओं
का
भविष्य
बर्बाद
हो
रहा
है।
याचिका
की
सुनवाई
के
बाद
युगलपीठ
ने
उक्त
आदेश
जारी
किए।
याचिकाकर्ता
ने
अपना
पक्ष
स्वयं
रखा।