

मध्यप्रदेश
हाईकोर्ट,
जबलपुर
–
फोटो
:
अमर
उजाला
विस्तार
वैधानिक
शादी
किए
बिना
भरण-पोषण
की
राशि
निर्धारित
किए
जाने
के
खिलाफ
जबलपुर
हाईकोर्ट
में
याचिका
दायर
की
गई थी।
हाईकोर्ट
जस्टिस
जीएस
अहलुवालिया
की
एकलपीठ
ने
पाया
कि
पति-पत्नी
के
तौर
पर
लंबे समय
तक
साथ
रहने
तथा
संतान
उत्पत्ति
करने
के
आधार
पर
न्यायालय
ने
भरण-पोषण
की
राशि
निर्धारित
की
है।
एकलपीठ
ने
न्यायालय
के
फैसले
को
सही
करार
देते
हुए
याचिका
को
खारिज
कर
दिया।
याचिकाकर्ता
शैलेंद्र बोपचे
निवासी
बालाघाट
की
तरफ
से
दायर
की
गई याचिका
में
कहा
गया
था
कि
ग्राम
न्यायालय
ने
धारा-125
के
तहत
कथित
पत्नी
को
15
सौ
रुपये
भरण-पोषण
देने
का
आदेश
साल
2012
में
जारी
किया
गया
था।
उसके
खिलाफ
उसने
अपील
दायर
की
थी,
जिससे
अतिरिक्त
सत्र
न्यायालय
द्वारा
खारिज
कर
दिया
गया
था।
याचिका
में
कहा
गया
था
कि
अनावेदिका
से
उसकी
शादी
नहीं
हुई
है।
न्यायालय
ने
अपने
आदेश
में
स्वयं
माना
है
कि
अनावेदिका
उसकी
वैधानिक
पत्नी
नहीं
है।
उसका
दावा
था
कि
विवाह
मंदिर
में
हुआ
है।
सुनवाई
के
दौरान
वह
न्यायालय
के
समक्ष
मंदिर
में
शादी
करने
का
कोई
साक्ष्य
नहीं
पेश
कर
पाई।
इसके
अलावा
विवाद
की
विधि
के
संबंध
में
भी
कुछ
नहीं
बता
पाई।
न्यायालय
ने
सिर्फ
पति-पत्नी
के
तौर
पर
लंबे समय
तक
साथ
रहने
के
आधार
पर
भरण-पोषण
की राशि
निर्धारित
की
है।
याचिका
में
कहा
गया
था
कि
अनावेदिका
उम्र
में
उससे बड़ी है।
इसके
अलावा
उसके
खिलाफ
धारा-
376
का
प्रकरण
भी
दर्ज
करवाया
है।
अव्यस्क
होने
के
कारण
जुबेनाइल
जस्टिस
बोर्ड
में
मामले
की
सुनवाई
हुई
थी
और
वह
दोष
मुक्त
हुआ
था।
याचिका
में
कहा
गया
था
कि
विवाह
अवैधानिक
है
तो
धारा-125
के
तहत
अनावेदिका
भरण-पोषण
की
राशि
प्राप्त
करने
की
हकदार
नहीं
है।
एकलपीठ
ने
सर्वोच्च
न्यायालय
के
आदेश
का
हवाला
देते
हुए
अपने
आदेश
में
कहा
कि
दोनों
ने
पति-पत्नी
तरह
लंबे
समय
तक
साथ
में
रहते
हुए
संतान
उत्पत्ति
की
थी।
इस
आधार
पर
न्यायालय
द्वारा
पारित
आदेश
उचित
है।
एकलपीठ
ने
सुनवाई
के
बाद
याचिका
को
खारिज
कर
दिया।