
नवजात
एवं
मासूमों
बच्चों
की
तस्करी
कर
बेचने
वाला
गिरोह
बच्चे
के
लिंग
व
रंग-रूप
के
हिसाब
से
कीमत
तय
करता
था।
बच्चा
छोरा
यानी
लड़का
है,
रंग
गोरा
है
तो
कीमत
ज्यादा
लगाई
जाती
थी।
बच्चा
सांवला
है
या
लड़की
है
तो
कम
रुपयों
में
सौदा
कर
दिया
जाता
था।
खरीदार
भी
स्वस्थ
व
सुंदर
बच्चों
की
मांग
ज्यादा
करते
थे।
एसीपी
अलीगंज
बृज
नारायण
सिंह
का
कहना
है
कि
गिरफ्तार
किए
गए
आरोपियों
से
पूछताछ
के
आधार
पर
गिरोह
में
शामिल
अन्य
लोगों
के
बारे
में
पता
लगाया
जा
रहा
है।
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पूछताछ
में
सामने
आया
है
कि
गिरोह
में
कई
ऐसी
महिलाएं
भी
शामिल
हैं,
जो
बच्चे
पैदा
कर
उन्हें
बेच
देती
हैं।
प्रारंभिक
छानबीन
में
झारखंड
की
ऐसी
कुछ
महिलाओं
के
बारे
में
पुलिस
को
जानकारी
मिली
है।
सूत्रों
का
कहना
है
कि
दिल्ली
की
एक
महिला
के
बारे
में
पुलिस
जानकारी
कर
रही
है।
इस
महिला
के
पकड़े
जाने
के
बाद
पूरे
अंतरराज्यीय
गिरोह
का
पर्दाफाश
होगा।
पुलिस
ने
आरोपियों
के
मोबाइल
फोन
की
कॉल
डिटेल
खंगाल
रही
है।
इसके
जरिए
गिरोह
के
अन्य
सदस्यों
की
तलाश
की
जा
रही
है।
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मनोवैज्ञानिक
दबाव
बनाकर
खरीदते
थे
नवजात
गिरोह
का
सरगना
विनोद
अस्पतालों
में
ज्यादातर
महिला
कर्मचारियों
की
नौकरी
लगवाता
था।
इसके
एवज
में
वह
उनसे
गर्भवती
महिलाओं
का
ब्योरा
मांगता
था।
बाद
में
महिला
कर्मचारियों
के
जरिए
गर्भवती
पर
मनोवैज्ञानिक
दबाव
डलवाता
था।
खास
कर
लड़की
पैदा
होने
पर
उनके
पालन
पोषण
में
आने
वाली
परेशानियों
का
जिक्र
किया
जाता
था।
अगर
गर्भवती
की
पहले
से
कोई
बेटी
होती
तो
भविष्य
की
जिम्मेदारियों
के
बारे
में
बताकर
उन्हें
बच्ची
बेचने
के
तैयार
किया
जाता।
इसके
एवज
में
उन्हें
रुपये
भी
दिए
जाते
थे।
गिरोह
ज्यादातर
गरीब
परिवार
की
महिलाओं
को
टारगेट
करता
था।