न्यायालय
की
ओर
से
भगोड़ा
घोषित
किए
जाने
के
बाद
भी
आरोपी
अग्रिम
जमानत
के
लिए
आवेदन
दायर
कर
सकता
है।
युगलपीठ
ने
इस
संबंध
में
हाईकोर्ट
की
अलग-अलग
बेंच
द्वारा
पारित
विरोधाभासी
आदेश
पर
सुनवाई
के
बाद
उक्त
आदेश
पारित
किए।
हाईकोर्ट
के
चीफ
जस्टिस
सुरेश
कुमार
कैत
तथा
जस्टिस
विवेक
जैन
की
युगलपीठ
ने
कहा
कि
न्यायालय
को
धारा
438
के
तहत
अग्रिम
जमानत
देने
की
शक्ति
प्राप्त
है।
भगोड़ा
घोषित
अपीलकर्ता
के
आवेदन
पर
न्यायालय
को
प्रकरण
के
गुण-दोषों
के
आधार
पर
निर्णय
लेना
चाहिए।
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गौरतलब
है
कि
जबलपुर
के
ओमती
थाने
में
साल
2019
में
धोखाधड़ी
सहित
अन्य
धाराओं
के
तहत
दर्ज
अपराध
में
न्यायालय
ने
सीआरपीसी
की
धारा
82
और
83
के
तहत
आरोपी
को
भगोड़ा
घोषित
कर
दिया
था।
इसके
अलावा
सीआरपीसी
की
धारा
299
के
तहत
पुलिस
ने
उसकी
अनुपस्थिति
में
आरोप
पत्र
भी
दायर
कर
दिया
था।
भगोड़ा
धोषित
आरोपी
ने
अग्रिम
जमातन
के
लिए
मध्य
प्रदेष
हाईकोर्ट
में
आवेदन
दायर
किया
था।
एकलपीठ
ने
सुनवाई
के
दौरान
पाया
था
कि
मध्य
प्रदेश
हाईकोर्ट
की
दो
अलग-अलग
बेंच
ने
न्यायालय
द्वारा
भगोड़ा
घोषित
अपराधिक
की
अग्रिम
जमानत
आवेदन
पर
सुनवाई
किये
जाने
के
संबंध
में
विरोधाभासी
आदेश
जारी
किये
हैं।
एक
आदेश
में
सर्वोच्च
न्यायालय
द्वारा
पारित
निर्देशों
का
हवाला
देते
हुए
कहा
गया
था
कि
न्यायालय
जिस
आरोपी
को
भगोड़ा
घोषित
करता
है
उसकी
अग्रिम
जमानत
आवेदन
पर
सुनवाई
नहीं
कर
सकते
हैं।
दूसरे
आदेश
में
इसके
विपरीत
सुनवाई
किए
जाने
के
संबंध
में
कहा
गया
था।
एकलपीठ
ने
दोनों
विरोधाभासी
आदेश
में
किसे
विधि
संगत
माना
जाये
इसके
लिए
युगलपीठ
के
समक्ष
याचिका
प्रस्तुत
करने
के
निर्देश
दिये
थे।
विज्ञापन
याचिका
की
सुनवाई
के
दौरान
युगलपीठ
को
बताया
गया
कि
सर्वोच्च
न्यायालय
पूर्व
में
पारित
आदेश
को
स्पस्ष्ट
करते
हुए
कहा
है
कि
भगोड़े
घोषित
आरोपियों
की
जमानत
याचिका
पर
संवैधानिक
बेंच
सुनवाई
कर
सकती
है।
संबंधित
न्यायालयों
को
उचित
मामलों
में
अग्रिम
जमानत
देने
से
नहीं
रोका
जा
सकता
है।
न्यायालय
के
पास
सीआरपीसी
की
धारा
438
के
तहत
अग्रिम
जमानत
देने
की
आवश्यक
शक्ति
है।
युगलपीठ
ने
सुनवाई
के
बाद
पारित
अपने
आदेश
में
कहा
है
कि
अपीलकर्ता
अपनी
स्वतंत्रता
के
लिए
अग्रिम
जमानत
के
लिए
आवेदन
दायर
कर
सकता
है।
भले
ही
उसे
न्यायालय
द्वारा
भगोड़ा
घोषित
हो
या
उसके
खिलाफ
आरोप
पत्र
भी
प्रस्तुत
कर
दिया
गया
हो।
युगलपीठ
ने
रोस्टर
के
अनुसार
अपीलकर्ता
के
अग्रिम
जमानत
के
आवेदन
पर
सुनवाई
के
निर्देश
जारी
किये
हैं।
याचिकाकर्ता
की
तरफ
से
कोर्ट
मित्र
के
रूप
में
अधिवक्ता
विशाल
डेनियल
और
अधिवक्ता
आलोक
बागरेचा
ने
पैरवी
की।