Sagar News: वैद्य ने टटोली भगवान जगन्नाथ की नब्ज, 27 को शहर में निकलेगी रथयात्रा, 250 साल पुरानी है परंपरा

Sagar News: वैद्य ने टटोली भगवान जगन्नाथ की नब्ज, 27 को शहर में निकलेगी रथयात्रा, 250 साल पुरानी है परंपरा

देश
के
इतिहास
में
भले
ही
बीते
समय
की
बात
हो
चुकी
हो,
लेकिन
गढ़ाकोटा
के
इतिहास
में
इसकी
वर्तमान
धार्मिक
परंपरा
आज
भी
जीवित
है।
हर
वर्ष
आषाढ़
मास
की
द्वितीया
तिथि
को
भगवान
जगन्नाथ
स्वामी,
श्री
बलराम
भैया
और
बहन
सुभद्रा
की
पावन
रथयात्रा
पूरे
भव्यता
से
निकाली
जाती
है।
यह
धार्मिक
आयोजन
बीते
ढाई
सौ
वर्षों
से
भी
अधिक
समय
से
अनवरत
रूप
से
आयोजित
किया
जा
रहा
है।
इस
रथयात्रा
की
शुरुआत
सिद्ध
क्षेत्र
पटेरिया
जी
से
हुई
थी,
जो
आज
भी
श्रद्धा
और
आस्था
का
प्रतीक
माना
जाता
है।
दूर-दराज
से
श्रद्धालु
इस
आयोजन
में
शामिल
होकर
अपने
मनोकामनाएं
पूर्ण
करते
हैं।
धार्मिक
मान्यता
है
कि
जो
श्रद्धालु
उड़ीसा
के
पुरी
में
भगवान
जगन्नाथ
की
रथयात्रा
में
शामिल
नहीं
हो
पाते
वे
गढ़ाकोटा
आकर
पुण्य
लाभ
अर्जित
करते
हैं।
इस
बार
यह
भव्य
रथयात्रा
27
जून
को
निकाली
जाएगी,
जिसमें
बड़ी
संख्या
में
श्रद्धालुओं
के
भाग
लेने
की
संभावना
है।


विज्ञापन

Trending
Videos


सिद्ध
क्षेत्र
पटेरिया
का
धार्मिक
महत्व

महामंडलेश्वर
एवं
जगदीश
मंदिर
के
महंत
श्री
हरिदास
जी
के
अनुसार
सिद्ध
क्षेत्र
पटेरिया
का
अपना
विशिष्ट
धार्मिक
इतिहास
है।
इसकी
स्थापना
सिद्ध
बाबा
महाराज
ने
की
थी।
यही
कारण
है
कि
यहां
पुण्यसलिला
नर्मदा
मैया
के
प्राकट्य
की
भी
किवदंती
जुड़ी
हुई
है।
यह
स्थान
आज
“लोंग
झिरिया”
के
नाम
से
जाना
जाता
है।


विज्ञापन


विज्ञापन


1857
से
शुरू
हुई
रथयात्रा
की
परंपरा

1857
में
महंत
जानकीदास
जी
के
मार्गदर्शन
में
पहली
बार
एक
अस्थाई
रथ
पर
भगवान
जगन्नाथ,
बलराम
और
सुभद्रा
की
मूर्तियों
को
विराजमान
कर
रथयात्रा
निकाली
गई
थी।
इस
आयोजन
से
प्रभावित
होकर
अगले
वर्ष
1858
में
एक
मुस्लिम
थानेदार
ने
स्थायी
रथ
का
निर्माण
करवाया,
जो
धार्मिक
सौहार्द्र
का
अद्भुत
उदाहरण
माना
जाता
है।
इसके
बाद
महंत
रामसेवकदास
जी
के
काल
में
दो
और
रथों
का
निर्माण
हुआ।
इसके
बाद
से
तीनों
देव
विग्रहों
की
रथयात्रा
पुरी
धाम
की
तर्ज
पर
गढ़ाकोटा
के
जगदीश
मंदिर
पटेरिया
से
जनकपुरी
मंदिर
(बाजार
वार्ड)
तक
निकाली
जाती
है।


रथयात्रा
की
धार्मिक
परंपराएं

रथयात्रा
की
तैयारियां
ज्येष्ठ
शुक्ल
पूर्णिमा
से
प्रारंभ
हो
जाती
हैं,
जब
तीनों
देव
विग्रहों
को
मंदिर
के
बाहर
दर्शनार्थ
स्थापित
किया
जाता
है।
धार्मिक
मान्यता
के
अनुसार,
इस
दौरान
भगवान
जगन्नाथ
अस्वस्थ
हो
जाते
हैं
और
उनका
उपचार
एक
वैद्य
द्वारा
किया
जाता
है।
पूर्व
में
वैद्य
पं.
कालीचरण
तिवारी
भगवान
का
इलाज
करते
थे,
अब
यह
परंपरा
उनके
वंशज
पं.
अंबिकाप्रसाद
तिवारी
निभा
रहे
हैं।
एकादशी
को
भगवान
को
औषधि
रूपी
जड़ों
का
जल
और
दाल
का
पानी
पिलाया
जाता
है।
प्रतिपदा
को
भगवान
को
खिचड़ी
खिलाई
जाती
है
और
अगले
दिन
द्वितीया
तिथि
को
उन्हें
मालपुआ,
पूड़ी
तथा
छप्पन
भोग
अर्पित
किया
जाता
है।
इसी
दिन
रथयात्रा
नगर
भ्रमण
करती
है
और
श्रद्धालुओं
को
शुद्ध
घी
से
बने
मालपुए
और
पूड़ी
का
प्रसाद
वितरित
किया
जाता
है। 
 

भगवान हुए बीमार

 

भगवान हुए बीमार