Ground Report Nagina :  नगीना को है हीरे की तलाश, इसी चाहत में हर बार बदलता रहा सत्ता-दरबार

Ground Report Nagina :                                     नगीना को है हीरे की तलाश, इसी चाहत में हर बार बदलता रहा सत्ता-दरबार
Ground Report Nagina : Nagina is looking for diamond

कस्बा
जलालाबाद
में
चुनावी
चर्चा…


फोटो
:
अमर
उजाला

विस्तार



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लकड़ी
पर
पेचीदा
पैटर्न
वाली
नक्काशी
के
लिए
मशहूर
नगीना
ने
किसी
भी
पार्टी
या
उम्मीदवार
को
दोबारा
जीत
का
मुकुट
नहीं
पहनाया।
पिछले
चुनाव
में
यहां
तगड़ा
मुकाबला
हुआ
था।
मोदी
लहर
के
बावजूद
भी
हाथी
यहां
सरपट
दौड़ा
था।
मतदाताओं
ने
बसपा
के
गिरीश
चंद
को
जीत
का
सेहरा
पहनाया
था।
इस
बार
हाथी
का
सवार
बदल
गया
है।
बसपा
ने
सुरेंद्र
कुमार
को
मैदान
में
उतारा
है।
भगवा
खेमे
ने
नहटौर
सीट
से
जीत
की
हैट्रिक
लगा
चुके
विधायक
ओमकुमार
पर
दांव
लगाया
है,
तो
वहीं
मनोज
कुमार
साइकिल
दौड़ा
रहे
हैं।
यहां
मुकाबला
इसलिए
भी
दिलचस्प
हो
गया
है,
क्योंकि
आजाद
समाज
पार्टी
प्रमुख
चंद्रशेखर
भी
यहां
से
अपनी
पार्टी
से
चुनावी
रण
में
कूद
पड़े
हैं।

दोपहर
के
लगभग
एक
बजे
थे।
हम
नजीबाबाद
से
सटे
जलालाबाद
कस्बा
पहुंचे।
यहां
हाईवे
के
किनारे
लोगों
में
बहस
चल
रही
थी।
दिल्ली
के
मुख्यमंत्री
अरविंद
केजरीवाल
के
जेल
जाने
से
लेकर
स्थानीय
मुद्दों
पर
लोग
पिले
पड़े
थे।
हम
भी
चुपचाप
उनकी
बहस
में
शामिल
हो
लिए।
इन्हीं
में
से
प्रदीप
पाल
कहते
हैं,
अब
चुनाव
राष्ट्रीय
मुद्दों
पर
हो
रहा
है।
भाजपा
बेहतर
कर
रही
है,
यह
सब
जानते
हैं।
आप
सब
कुछ
भी
तर्क
दो,
मेरा
वोट
तो
भाजपा
को
ही
जाएगा।
एक
बात
लिखकर
रख
लो,
भाजपा
ही
यहां
से
जीतेगी।
ओमकुमार
अच्छी
बैटिंग
कर
रहे
हैं।

 नफीस
अहमद
ने
धीरे
से
सुर्रा
छोड़ा,
भाई!
मुद्दे
भी
तो
कुछ
होते
हैं।
सबको
एक
ही
तराजू
पर
तौले
जा
रहे
हो।
सपा
का
उम्मीदवार
भी
किसी
से
कम
नहीं
है।
मुस्लिम-दलित
समीकरण
यदि
काम
कर
गया
तो
बाकी
सब
गए
काम
से। 

  • शहाबुद्दीन
    कहते
    हैं,
    भाई,
    मुस्लिम
    तो
    चंद्रशेखर
    की
    ओर
    भी
    जा
    रहे
    हैं।
    आजाद
    समाज
    पार्टी
    उम्मीदवार
    चंद्रशेखर
    को
    दलित
    और
    मुस्लिम
    दोनों
    के
    वोट
    मिल
    गए,
    तो
    वह
    बाकी
    का
    समीकरण
    बिगाड़
    देंगे। 
  • वसीम
    ने
    बहस
    का
    रुख
    मोड़ा।
    वह
    बोले,
    जनता
    सब
    देख
    रही
    है।
    किसी
    को
    जेल
    भेजा
    जा
    रहा
    है,
    तो
    किसी
    को
    धमकाया
    जा
    रहा
    है।
    इस
    पर
    इब्राहिम
    बीच
    में
    कूद
    पड़े।
    उन्होंने
    तल्ख
    लहजे
    में
    कहा,
    यदि
    चोरी
    करोगे
    तो
    जेल
    जाना
    ही
    पड़ेगा।
    कपड़ा
    कारोबारी
    गंगाराम,
    जितेंद्र
    सिंह
    का
    मानना
    है
    कि
    नगीना
    इस
    बार
    सांसद
    बदलने
    का
    अपना
    रिकाॅर्ड
    तोड़ेगा। 


स्थानीय
मुद्दे
भी
बनाएंगे-बिगाड़ेंगे
समीकरण

दिल्ली-पौड़ी
हाईवे
पर
बसे
जलालाबाद
कस्बे
में
स्थानीय
मुद्दे
भी
हावी
हैं।
यहां
रेलवे
फाटक
के
ऊपर
से
ओवरब्रिज
बना
है
और
फाटक
बंद
कर
दिया
गया
है।
इससे
कस्बा
दो
हिस्सों
में
बंट
गया।
ऐसे
में
कब्रिस्तान
जाने
के
लिए
कई
किमी.
का
चक्कर
लगाना
पड़ता
है।
लोगों
का
कहना
है
कि
वादे
के
बावजूद
रेलवे
ने
पैदल
जाने
का
भी
रास्ता
नहीं
दिया।
ऐसे
में
यह
मुद्दा
यहां
बार-बार
उठ
रहा
है।


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जलालाबाद
कस्बे
से
निकलकर
हम
शादीपुर
गांव
पहुंचे।
यहां
मिले
जयवीर
सिंह
कहते
हैं,
मुद्दों
पर
चुनाव
अब
कहां
होतेे
हैं?
सबके
अपने-अपने
समीकरण
हैं।
यह
मिश्रित
आबादी
वाला
गांव
हैं।
क्षेत्र
में
दलित-मुस्लिम
समीकरण
प्रभावी
है।
चौधरी
रामपाल
सिंह
कहते
हैं,
रालोद
के
साथ
आने
का
भाजपा
को
लाभ
होगा,
पर
मुकाबला
आसान
नहीं
है।
करतार
सिंह

रमेश
चंद्र
का
मानना
है
कि
यहां
दलित
और
मुस्लिम
दोनों
के
वोट
बंट
रहे
हैं।
इसका
फायदा
भाजपा
को
हो
सकता
है।


पेचीदा
है
मुकाबला

शादीपुर
से
हम
निकले
तो
बरुकी
गांव
पहुंचते-पहुंचते
शाम
हो
चुकी
थी।
यहां
मिले
सौरभ
मलिक
बताते
हैं,
फिलहाल
भाजपा-रालोद
गठबंधन
मजबूत
नजर

रहा
है।
हालांकि
अन्य
दल
भी
अपने
समीकरण
मजबूत
बनाने
में
जुटे
हैं।
राशिद
खान
कहते
हैं,
सपा
का
प्रत्याशी
मजबूती
से
लड़
रहा
है।
मुकाबला
पेचीदा
है।
उनकी
बात
काटते
हुए
प्रमोद
कहते
हैं,
अभी
तो
भाजपा
ही
सबसे
आगे
चल
रही
है।
नरेंद्र
भी
उनकी
हां
में
हां
मिलाते
हुए
कहते
हैं,
पर
आजाद
समाज
पार्टी
कई
का
समीकरण
खराब
करेगी।


उत्तराखंड
में
शामिल
करने
की
मांग
भी
कई
गांवों
में
मुद्दा

उत्तराखंड
की
सीमा
से
सटे
कई
गांव
खुद
को
उत्तराखंड
में
शामिल
करने
की
मांग
कर
रहे
हैं।
यह
भी
इस
चुनाव
में
अहम
मुद्दा
है।
इन
गांवों
के
लोग
कहते
हैं,
नगीना
में
शामिल
होने
की
वजह
से
वे
नुकसान
में
हैं।
नगीना
निवासी
रामस्वरूप
कहते
हैं,
हमारे
यहां
से
राजधानी
लखनऊ
काफी
दूर
है।
देहरादून
करीब
है।
कोविड
जैसी
महामारी
में
बड़ी
समस्या
हुई
थी।
यहां
से
बिजनौर
भी
दूर
ही
है।
उद्योग,
शैक्षणिक
संस्थान,
अस्पताल
नहीं
हैं।
ऐसे
में
जो
हमारे
गांवों
को
उत्तराखंड
से
जोड़ने
का
वादा
करेगा,
उसे
ही
वोट
दिया
जाएगा।
 (इनपुट
रजनीश
त्यागी-
संवाद)


ऐसा
है
नगीना
का
मिजाज 

वर्ष
2009
में
अस्तित्व
में
आई
नगीना
लोकसभा
सीट
की
जनता
के
मिजाज
को
अभी
तक
कोई
समझ
नहीं
पाया
है।
यहां
हुए
तीनों
ही
चुनाव
में
जनता
ने
अलग-अलग
पार्टी
के
प्रत्याशी
को
जिताया।
वर्ष
2009
में
यहां
से
सपा
के
यशवीर
सिंह
धोबी
चुनाव
जीते
थे।
वहीं,
2014
के
लोकसभा
चुनाव
में
यहां
के
मतदाताओं
ने
भाजपा
प्रत्याशी
डाॅ.
यशवंत
सिंह
को
जीत
का
सेहरा
पहनाया।
वर्ष
2019
के
लोकसभा
चुनाव
में
लोगों
ने
भाजपा
को
पटकनी
दी
और
बसपा
के
गिरीश
चंद
को
जिता
दिया।


नगीना
के
योद्धा
ओमकुमार
:
भाजपा 

स्थानीय
हैं।
नहटौर
से
विधायक
हैं
और
क्षेत्र
में
इनका
खासा
प्रभाव
है।
एक
बार
बसपा,
तो
दो
बार
भाजपा
से
विधायक
बने।
रालोद
का
गठबंधन
होने
के
कारण
स्थिति
और
मजबूत
हो
गई
है।
पहली
बार
लोकसभा
का
चुनाव
लड़
रहे
हैं।
गुटबंदी
का
नुकसान
उठाना
पड़
सकता
है।

मनोज
कुमार
:
सपा

एडीजे
रहे
हैं।
सपा
के
साथ
कांग्रेस
का
गठबंधन
होने
के
कारण
कांग्रेस
के
मूल
वोटरों
के
रुझान
का
लाभ
मिल
सकता
है।
साथ
ही
मुस्लिम
वोटों
की
लामबंदी
का
भी
फायदा
मिल
सकता
है।
राजनीतिक
बैकग्राउंड
नहीं
होने
से
स्थानीय
लोगों
में
पकड़
कम
है।

सुरेंद्र
पाल
सिंह
:
बसपा

बसपा
का
बड़ा
वोट
बैंक
इनके
साथ

सकता
है।
स्थानीय

होना
एक
कमजोरी
है।
इस
बार
बसपा
का
किसी
से
गठबंधन
भी
नहीं
है
और
अकेले
ही
चुनावी
मैदान
में
है।

चंद्रशेखर
आजाद
:
आजाद
समाज
पार्टी

युवाओं
में
अच्छी
पकड़
है।
खास
तौर
से
दलित
युवाओं
में
अच्छी
पैठ
है।
मुस्लिमों
का
भी
कुछ
वोटर
इनसे
जुड़
रहा
है।
सहारनपुर
का
होने
के
बावजूद
नगीना
क्षेत्र
में
काफी
समय
से
सक्रिय
हैं।
अकेले
ही
चुनावी
मैदान
में
हैं।
किसी
मुख्य
दल
का
साथ
और
समर्थन
नहीं
है।