
लोकसभा.
(फाइल
फोटो)
संसद
में
करीब
27
साल
से
लटके
महिला
आरक्षण
विधेयक
(नारी
शक्ति
वंदन
अधिनियम)
को
सितंबर
2023
में
पारित
किया
गया
था.
इसने
महिलाओं
के
लिए
एक
तिहाई
विधायी
सीटों
के
आरक्षण
का
मार्ग
प्रशस्त
किया.
हालांकि,
जनगणना
और
परिसीमन
के
बाद
ही
इसके
लागू
होने
की
संभावना
है.
मतलब,
2029
से
पहले
ये
लागू
नहीं
होगा.
AIMIM
को
छोड़कर
सभी
प्रमुख
राजनीतिक
दलों
ने
इसका
समर्थन
किया
था.
कुछ
ने
इसे
जल्द
से
जल्द
लागू
करने
की
बात
भी
कही.
मगर,
18वीं
लोकसभा
के
चुनाव
के
लिए
जब
पार्टियों
द्वारा
उम्मीदवार
उतारने
की
बात
आती
है
तो
महिला
उम्मीदवारों
की
संख्या
काफी
कम
नजर
आती
है.
आजादी
के
बाद
से
लोकसभा
में
महिलाओं
का
प्रतिनिधित्व
कभी
भी
12
प्रतिशत
तक
नहीं
पहुंचा.
इस
असमानता
का
एक
बड़ा
कारण
चुनाव
लड़ने
वाली
महिलाओं
की
कम
संख्या
है.
1999
के
बाद
से
पांच
लोकसभा
चुनावों
में
महिला
प्रत्याशियों
का
प्रतिशत
बेहद
कम
है.
1999
में
कुल
4,648
उम्मीदवारों
में
से
केवल
6.11
प्रतिशत
महिलाएं
थीं.
2004
में
यह
मामूली
सुधार
के
साथ
यहां
आकंड़ा
6.53
फीसद
पहुंची.
2009
में
केवल
7
प्रतिशत
महिला
प्रत्याशी
थीं.
जो
2014
में
8.01
तक
पहुंच
गईं.
जानिए
क्या
कहते
हैं
चुनाव
आयोग
के
आंकड़े
चुनाव
आयोग
के
आंकड़ों
से
पता
चलता
है
कि
2019
के
आम
चुनावों
में
8,054
उम्मीदवारों
में
से
केवल
726
महिलाएं
थीं.
यानी
सिर्फ
9
फीसदी
टिकट
ही
महिलाओं
को
दिए
गए.
इनमें
से
करीब
एक
तिहाई
महिला
निर्दलीय
चुनाव
लड़ी
थीं
और
उनको
किसी
भी
राजनीतिक
दल
का
समर्थन
नहीं
था.
2014
में
कुल
8,251
उम्मीदवारों
में
महिला
उम्मीदवारों
की
संख्या
सिर्फ
668
थी.
ये
भी
पढ़ें
भाजपा
ने
417
संसदीय
सीटों
के
लिए
उम्मीदवारों
की
घोषणा
की
है.
इनमें
से
68
(16
प्रतिशत
से
कुछ
अधिक)
महिलाएं
हैं.
पार्टी
ने
2009
में
45,
2014
में
38
और
2019
में
55
महिला
उम्मीदवारों
को
मैदान
में
उतारा
था.
वहीं,
कांग्रेस
ने
अब
तक
जो
सूची
जारी
की
है,
उसमें
247
उम्मीदवारों
की
घोषणा
की
है.
इसमें
35
उम्मीदवार
(14
प्रतिशत
से
कुछ
अधिक)
महिलाएं
हैं.
2019
में
कांग्रेस
ने
54
महिला
उम्मीदवारों
को
टिकट
दिया
था.
समाजवादी
पार्टी
ने
7
महिला
उम्मीदवारों
को
टिकट
दिया
यूपी
में
कांग्रेस
के
साथ
गठबंधन
में
चुनाव
लड़
रही
समाजवादी
पार्टी
ने
भी
अभी
तक
49
सीटों
पर
अपने
उम्मीदवारों
के
नाम
की
घोषणा
कर
दी
है.
इसमें
7
महिला
उम्मीदवारों
को
टिकट
दिया
है.
उत्तर
प्रदेश
की
एक
अन्य
पार्टी
बसपा,
जिसकी
मुखिया
मायावती
महिला
हैं,
उन्होंने
भी
महिलाओं
पर
कोई
ज्यादा
भरोसा
नहीं
जताया.
अभी
तक
उन्होंने
37
उम्मीदवारों
को
टिकट
दिया
है.
इसमें
सिर्फ
2
महिलाएं
हैं.
हालांकि,
2019
में
मायावती
के
नेतृत्व
वाली
बसपा
कुल
383
सीटों
पर
चुनाव
लड़ी
थी.
इसमें
24
महिला
उम्मीदवारों
(6.3
प्रतिशत)
को
टिकट
दिया
था.
जो
कि
बीजेपी
और
कांग्रेस
के
बाद
देश
में
महिला
उम्मीदवारों
पर
भरोसा
जताने
वाली
तीसरी
बड़ी
पार्टी
थी.
ममता
ने
2019
में
23
महिलाओं
को
टिकट
दिया
था
इसके
साथ
ही
टीएमसी
ने
पश्चिम
बंगाल
के
लिए
अपनी
पहली
सूची
में
जिन
42
उम्मीदवारों
की
घोषणा
की.
इसमें
12
उम्मीदवार
(3.5
प्रतिशत)
महिलाएं
हैं.
ममता
ने
2019
में
23
महिलाओं
को
टिकट
दिया
था.
इस
लिस्ट
में
अभी
तक
सबसे
खराब
रिकॉर्ड
आम
आदमी
पार्टी
का
रहा
है.
आम
आदमी
पार्टी
22
सीटों
पर
लोकसभा
चुनाव
लड़
रही
है.
हालांकि,
उसने
अभी
तक
4
सीटों
पर
अपने
उम्मीदवार
घोषित
नहीं
किए
है.
मगर,
जो
लिस्ट
आज
तक
जारी
की
गई
है,
उसमें
एक
भी
महिला
उम्मीदवार
को
टिकट
नहीं
दिया
है.
पहले
चरण
में
सिर्फ
8
फीसदी
महिलाएं
इस
बार
के
लोकसभा
चुनाव
7
चरणों
में
होंगे.
पहला
चरण
19
अप्रैल
को
है,
जिसमें
21
राज्यों
और
केंद्र
शासित
प्रदेशों
की
102
सीटों
पर
मतदान
होगा.
पहले
चरण
में
कुल
1,625
उम्मीदवारों
ने
नामांकन
किया
है,
जिनमें
1,491
पुरुष
और
केवल
134
(8
प्रतिशत)
महिलाएं
हैं.
अरुणाचल
प्रदेश
में
14
(एक
महिला),
असम
में
35
उम्मीदवार
(4
महिलाएं),
मध्य
प्रदेश
में
88
उम्मीदवार
(7
महिलाएं),
महाराष्ट्र
में
97
उम्मीदवार
(7
महिलाएं),
मेघालय
में
10
उम्मीदवार
(2
महिलाएं),
मिजोरम
में
6
उम्मीदवार
(एक
महिला),
पुडुचेरी
में
26
उम्मीदवार
(3
महिलाएं),
राजस्थान
में
114
उम्मीदवार
(12
महिलाएं),
सिक्किम
में
14
उम्मीदवार
(एक
महिला),
उत्तर
प्रदेश
में
80
उम्मीदवार
(7
महिलाएं),
उत्तराखंड
में
55
उम्मीदवार
(4
महिलाएं),
बिहार
38
उम्मीदवार
(3
महिलाएं),
अंडमान
और
निकोबार
द्वीप
समूह
12
उम्मीदवार
मैदान
(2
महिलाएं),
मिजोरम
6
उम्मीदवार,
(1
महिला)
और
पश्चिम
बंगाल
में
37
उम्मीदवार
(4
महिलाएं)
मैदान
में
हैं.