इलेक्टोरल बॉन्ड से पहले ऐसे होता था चुनावी चंदे के नाम पर गड़बड़झाला

इलेक्टोरल बॉन्ड से पहले ऐसे होता था चुनावी चंदे के नाम पर गड़बड़झाला
इलेक्टोरल बॉन्ड से पहले ऐसे होता था चुनावी चंदे के नाम पर गड़बड़झाला


इलेक्टोरल
बॉन्ड्स

सीजीआई
डीवाई
चंद्रचूड
की
पीठ
का
फैसला
आने
के
प्रधानमंत्री
नरेंद्र
मोदी
ने
हाल
ही
में
एक
चैनल
को
दिए
इंटरव्यू
में
इलेक्टोरल
बॉन्ड
पर
पहली
बार
खुलकर
बात
की
है.
उन्होंने
कहा
कि
जो
लोग
इसको
लेकर
आज
नाच
रहे
हैं
या
गर्व
कर
रहे
हैं,
वो
पछताने
वाले
हैं.
2014
से
पहले
जितने
चुनाव
हुए
उनमें
खर्चा
तो
हुआ
ही
होगा,
ऐसी
कौन
सी
एजेंसी
है
जो
बता
पाएं
कि
पैसा
कहां
से
आया
था
और
कहां
गया
और
किसने
कितना
खर्च
किया.
मोदी
ने
इलेक्टोरल
बॉन्ड
बनाया
था,
इसके
कारण
आप
ढूंढ
पा
रहे
हो
कि
पैसा
कहां
से
आया,
किसने
दिया,
वरना
पहले
तो
यह
पता
ही
नहीं
लग
पाता
था.
कोई
व्यवस्था
पूरी
नहीं
होती,
उसमें
कमियां
हो
सकती
है
और
कमियों
को
सुधारा
जा
सकता
है.

केंद्र
सरकार
द्वारा
चुनावी
बॉन्ड
स्कीम
लाए
जाने
से
पहले
राजनीतिक
पार्टियों
को
चेक
के
जरिए
चंदा
दिया
जाता
था.
चंदे
में
दी
गई
राशि
की
पूरी
जानकारी
उनके
एनुअल
अकाउंट
में
होती
थी.
राजनीतिक
पार्टियां
चुनाव
आयोग
को
चंदा
देने
वाले
का
नाम
और
प्राप्त
राशि
की
जानकारी
देती
थीं.
ऐसी
स्थिति
में
आमतौर
पर
कॉरपोरेट
चेक
के
जरिए
बड़ी
रकम
का
चंदा
देने
से
बचा
जाता
था,
क्योंकि
इसकी
पूरी
जानकारी
आयोग
को
देनी
होती
थी.
बता
दें
कि
आज
से
लगभग
40
साल
पहले
सभी
राजनीतिक
दलों
के
कार्यकर्ताओं
के
पास
एक
रसीद
बुक
हुआ
करती
थी.
इस
बुक
को
लेकर
कार्यकर्ता
घर-घर
जाते
थे
और
अपनी
पार्टी
के
लिए
लोगों
से
चंदा
वसूलते
थे.

2004
से
2015
तक
अज्ञात
स्रोतों
से
मिलता
था
चंदा

नवंबर
2023
में
केंद्र
ने
सुप्रीम
कोर्ट
को
बताया
था
कि
वित्त
वर्ष
2004-05
से
2014-15
के
बीच
11
साल
की
अवधि
के
दौरान
राजनीतिक
दलों
की
कुल
आय
का
69
फीसदी
हिस्सा
‘अज्ञात
स्रोतों’
से
प्राप्त
हुआ
था.
सॉलिसिटर
जनरल
तुषार
मेहता
ने
कोर्ट
को
ADR
की
रिपोर्ट
का
हवाला
देते
हुए
बताया
था
कि
इस
अवधि
के
दौरान,
‘अज्ञात
स्रोतों’
से
राष्ट्रीय
पार्टियों
की
आय
6,612.42
करोड़
रुपये
और
क्षेत्रीय
पार्टियों
की
आय
1,220.56
करोड़
रुपये
थी.
अज्ञात
स्रोत
का
अर्थ
हुआ
कि
ऐसे
राजनीतिक
चंदे
का
कोई
लेखा
जोखा
नहीं
था.
ऐसे
में
राजनीतिक
चंदे
कैश
में
दिए
जाते
हैं
और
बैंकिंग
सिस्टम
से
बाहर
रहते
हैं.
इस
कारण
ऐसे
चंदे
को
ब्लैक
मनी
माना
जा
सकता
है.

पहले
कैसे
घपला
करतीं
थी
पार्टियां?

इलेक्टोरल
बॉन्ड
से
पहले
की
स्थिति
को
देखें
तो
सभी
राजनीतिक
दलों
के
लिए
आयकर
रिटर्न
दाखिल
करते
समय
पार्टी
फंड
में
20
हजार
रुपये
से
अधिक
का
योगदान
देने
वाले
दानकर्ताओं
के
नाम
और
अन्य
विवरण
रिपोर्ट
करना
अनिवार्य
था.
20
हजार
से
कम
राशि
दान
करने
वालों
की
जानकारी
नहीं
मांगी
जाती
थी,
इस
दान
को
अज्ञात
स्रोतों
से
आमदनी
के
रूप
में
घोषित
किया
जाता
था
और
ऐसे
दानदाताओं
के
विवरण
सार्वजनिक
डोमेन
में
उपलब्ध
नहीं
होते
थे.
एसोसिएशन
फॉर
डेमोक्रेट
रिफॉर्म्स
यानी
एडीआर
ने
2017
में
एक
अध्ययन
के
जरिए
पाया
कि
2004-5
और
2014-15
के
बीच
भारत
में
राजनीतिक
दलों
की
कुल
आय
11
हजार
367
करोड़
रुपये
थी,
जिसमें
20
हजार
से
कम
दान
वाले
दान
से
प्राप्त
आमदनी
कुल
आय
का
69
प्रतिशत
हिस्सा
थी.
यानी
7833
करोड़
रुपये
अज्ञात
स्रोतों
से
आए
थे,
जबकि
राजनीतिक
दलों
की
कुल
आय
का
केवल
16
प्रतिशत
हिस्सा
ही
ज्ञात
दानदाताओं
से
था.

पहले
पता
ही
नहीं
चलता
था
कहां
से
हुई
फंडिंंग

2004
के
बाद
से
2015
तक
6
राष्ट्रीय
पार्टियों
(कांग्रेस,
बीजेपी,
बीएसपी,
एनसीपी,
सीपीआई,
सीपीएम)
और
51
क्षेत्रीय
पार्टियों
को
कुल
आय
11,367.34
करोड़
रुपये
में
से
अज्ञात
स्रोतों
से
आय
7,832.98
करोड़
रुपये
थी.
इसमें
राष्ट्रीय
पार्टियों
को
71
फीसदी
फंडिंग
अज्ञात
स्रोतों
से
हुई
और
क्षेत्रीय
पार्टियों
के
लिए
यह
58
फीसदी
थी.
11
साल
में
कांग्रेस
की
83
फीसदी
फंडिंग,
बीजेपी
की
65
फीसदी,
एसपी
की
95
फीसदी
और
शिरोमणि
अकाली
दल
की
86
फीसदी
फंडिंग
का
पता
नहीं
चला
पाया
था
कि
किसने
उनको
यह
रकम
दी
है.

इस
कार्यकाल
में
राष्ट्रीय
पार्टियों
को
अज्ञात
स्रोतों
से
मिलने
वाली
फंडिंग
में
313
प्रतिशत
की
वृद्धि
देखी
गई
जबकि
क्षेत्रीय
पार्टियों
की
फंडिंग
में
652
प्रतिशत
की
बढ़ोतरी
देखी
गई.
संयोग
से
बसपा
एकमात्र
ऐसी
पार्टी
है,
जो
लगातार
घोषणा
करती
है
कि
उसे
20,000
रुपये
से
अधिक
का
चंदा
नहीं
मिला.
बसपा
का
कहना
था
कि
उसे
अज्ञात
स्रोतों
से
100
प्रतिशत
दान
मिला
है
और
पिछले
11
वर्षों
में
कुल
आय
में
2057
प्रतिशत
की
वृद्धि
देखी
गई
थी.

इलेक्टोरल
बॉन्ड
पर
सुप्रीम
कोर्ट
ने
क्या
कहा?

राजनैतिक
दलों
को
चंदा
देने
के
लिए
2018
से
लागू
की
गई
इलेक्टोरल
बॉन्ड
योजना
को
सुप्रीम
कोर्ट
की
संविधान
पीठ
ने
15
फरवरी
को
असंवैधानिक
करार
दे
दिया.
जस्टिस
डीवाई
चंद्रचूड़
की
अध्यक्षता
वाली
पांच
जजों
की
संविधान
पीठ
ने
एक
राय
से
अपने
फैसले
में
कहा
कि
राजनीतिक
दलों
को
गुमनाम
चंदे
वाली
चुनावी
बांड
योजना
संविधान
के
अनुच्छेद
191ए
के
तहत
मतदाताओं
के
सूचना
के
अधिकार
का
उल्लंघन
करती
है.
व्यक्तिगत
चंदे
से
ज्यादा
परेशानी
कंपनियों
द्वारा
दिए
जाने
वाले
चंदे
से
है.
कोर्ट
ने
कहा
कि
इस
बात
की
आशंका
से
इनकार
नहीं
किया
जा
सकता
कि
चंदा
लेने
वाले
राजनीतिक
दल
और
कंपनियों
के
बीच
एक
तरह
का
गठजोड़
पैदा
हो
जाएगा.
संविधान
पीठ
ने
कहा
कि
यह
योजना
राजनीतिक
प्रक्रिया
में
आम
वोटर
के
बजाय
बड़ी
कॉरपोरेट
कंपनियों
के
गैर-वाजिब
दखल
को
बढ़ावा
देती
है.
यह
एक,
व्यक्ति
एक
वोट
के
राजनीतिक
समानता
के
बुनियादी
सिद्धांत
और
स्वतंत्र
और
निष्पक्ष
चुनावी
प्रक्रिया
में
बाधा
डालने
वाली
योजना
है.

इलेक्टोरल
बॉन्ड
पर
केंद्र
का
पक्ष

चुनावी
बॉन्ड
योजना
से
पहले
पार्टियों
को
चंदा
अधिकतर
नगदी
के
तौर
पर
मिलता
था,
जिससे
राजनीतिक
दलों
और
चुनावी
प्रक्रिया
में
काले
धन
को
बढ़ावा
मिलता
था.
किसी
पार्टी
को
चंदा
देने
वालों
को
अक्सर
विरोधी
पार्टी
से
निशाना
बनाए
जाने
की
आशंका
रहती
थी.
पहचान
छिपी
होने
से
ऐसे
राजनैतिक
उत्पीड़न
को
रोका
जा
सकेगा.
चंदा
देने
वाली
कंपनी
को
अपने
खातों
में
सिर्फ
इलेक्टोरल
बॉन्ड
की
राशि
की
जानकारी
देनी
होती
थी,
ना
कि
किस
पार्टी
को
चंदा
मिला
है.
इसी
तरह
हर
पार्टी
को
चुनाव
आयोग
को
कुल
बॉन्ड
राशि
की
जानकारी
देनी
होती
थी.

योजना
के
बचाव
में
केंद्र
ने
यह
भी
कहा
कि
इसके
दुरुपयोग
को
रोकने
के
लिए
कई
प्रावधान
किए
गए
थे
जैसे
सिर्फ
वही
पार्टी
इलेक्टोरल
बॉन्ड
ले
सकती
थी,
जिसे
पिछले
आम
चुनाव
में
कम
से
कम
1
प्रतिशत
वोट
हासिल
हुए
हो,
केवल
वही
व्यक्ति
या
कंपनी
बॉन्ड
खरीद
सकते
थे
जिनका
केवाईसी
पूरा
हो
यानी
जिनकी
पहचान
बैंक
स्थापित
कर
चुका
हो,
बॉन्ड
का
इस्तेमाल
अवैध
लेनदेन
में
ना
हो
इसके
लिए
15
दिन
के
भीतर
ही
इनको
भुनाना
जरूरी
किया
गया
था.
अगर
15
दिनों
में
बॉन्ड
को
कैश
नहीं
कराया
जाता
है
तो
इसका
पैसा
प्रधानमंत्री
राहत
कोष
में
ट्रांसफर
हो
जाता
था.
हालांकि
कोर्ट
ने
चंदा
देने
वाले
की
निजता
और
एक
नागरिक
के
राजनीतिक
दल
की
फंडिंग
को
जानने
के
अधिकार
में
संतुलन
को
चुनावी
प्रक्रिया
में
पारदर्शिता
के
लिए
जरूरी
बताया.

क्या
है
इलेक्टोरल
बॉन्ड?

इलेक्टोरल
बॉन्ड
एक
ऐसा
उपकरण
है,
जो
प्रोमस
नोट
और
ब्याज
मुक्त
बैंकिंग
टूल
की
तरह
काम
करता
था.
भारत
में
पंजीकृत
कोई
भी
भारतीय
नागरिक
या
संगठन
आरबीआई
द्वारा
निर्धारित
केवाईसी
मानदंडों
को
पूरा
करने
के
बाद
इन
बॉन्ड
को
खरीद
सकता
था.
इसे
दानकता
द्वारा
भारतीय
स्टेट
बैंक
की
विशिष्ट
शाखाओं
से1000,
10000,
1
लाख,
10
लाख
और
एक
करोड़
रुपये
जैसे
विभिन्न
मूल
वर्ग
में
चेक
या
डिजिटल
भुगतान
के
माध्यम
से
खरीदा
जा
सकता
था.
बॉन्ड
जारी
होने
के
15
दिनों
की
अवधि
के
भीतर
इन्हें
लोक
प्रतिनिधित्व
अधिनियम
1951
की
धारा
29a
के
तहत
कानूनी
रूप
से
पंजीकृत
राजनीतिक
दल
के
निर्दिष्ट
खाते
में
बनाया
जा
सकता
था,
जिसे
कम
से
कम
1
प्रतिशत
वोट
मिले
हो.

इस
व्यवस्था
को
लाते
समय
सरकार
की
ओर
से
यह
तर्क
दिया
गया
था
कि
चुनावी
बॉन्ड
के
इस
सुधार
से
राजनीतिक
फंडिंग
के
क्षेत्र
में
पारदर्शिता
और
जवाबदेही
बढ़ने
की
उम्मीद
है.
साथ
ही
भविष्य
में
अवैध
फंड
की
गतिविधि
को
भी
रोका
जा
सकेगा.
चुनावी
बॉन्ड
योजना
की
घोषणा
तत्कालीन
वित्त
मंत्री
अरुण
जेटली
ने
2017-18
के
अपने
बजट
भाषण
में
की
थी
और
इसे
राजनीतिक
वित्त
पोषण
में
पारदर्शिता
लाने
के
प्रयासों
के
तहत
राजनीतिक
दलों
को
दिए
जाने
वाले
नकद
चंदे
के
विकल्प
के
रूप
में
पेश
किया
था.