
Brijbhushan
sharan
singh
–
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कैसरगंज
संसदीय
सीट
पर
सस्पेंस
अभी
बरकरार
है।
भाजपा
की
10वीं
सूची
में
भी
यहां
से
प्रत्याशी
का
नाम
तय
नहीं
हो
सका।
इससे
राजनीति
रोमांचक
दौर
में
पहुंच
गई
है।
कयास
के
साथ
ही
नए-नए
किस्से
भी
रचे
और
गढ़े
जाने
लगे
हैं।
भाजपा
की
ओर
से
प्रत्याशी
तय
न
किए
जाने
से
अन्य
दलों
ने
भी
हाथ
बांध
लिए
हैं।
पहले
आप…के
फेर
में
कैसरगंज
संसदीय
सीट
चुनावी
पहेली
बन
गई
है।
कद
और
समीकरण
के
आधार
पर
कैसरगंज
सीट
सियासत
में
अहम
स्थान
रखती
है।
जनता
ने
सपा
व
भाजपा
पर
लंबे
समय
तक
विश्वास
जताया।
सीट
का
पुनर्गठन
होने
के
बाद
2009
से
अब
तक
लगातार
बृजभूषण
शरण
सिंह
को
ही
जनता
जिता
रही
है।
एक
बार
सपा
से
व
दो
बार
भाजपा
से
वह
सांसद
हैं।
हाल
ही
में
महिला
पहलवानों
के
आरोपों
में
बृजभूषण
घिरे
तो
क्षेत्र
की
जनता
ने
उनका
साथ
भी
दिया।
इस
बीच
भाजपा
से
टिकट
कटने
और
फिर
देर
से
मिलने
के
कयास
शुरू
हो
गए।
अंदरखाने
से
यह
भी
सामने
आया
कि
पत्नी
या
बेटे
को
चुनाव
लड़ाने
का
ऑफर
दिया
गया
तो
उन्होंने
इन्कार
कर
दिया।
इससे
भाजपा
के
बड़े
नेताओं
में
नाराजगी
है,
लेकिन
मंगलवार
को
वह
क्षेत्र
में
निकले
तो
यह
संदेश
मिला
कि
टिकट
मिलने
वाला
है।
इसके
लिए
इंतजार
शुरू
हुआ
और
बुधवार
दोपहर
आई
सूची
को
लोग
खंगालने
लगे।
उसमें
नाम
न
देखकर
एक
बार
फिर
मायूसी
हाथ
लगी,
वहीं
इस
सबकी
चिंता
किए
बिना
बृजभूषण
क्षेत्र
भ्रमण
में
जुटे
रहे।
चुनाव
से
पहले
टिकट
की
जंग
कैसरगंज
सीट
पर
चुनाव
से
पहले
टिकट
की
जंग
अब
रोचक
ही
नहीं,
रोमांचक
भी
होती
जा
रही
है।
क्षेत्र
के
दो
विधायकों
को
भी
सूची
का
बेसब्री
से
इंतजार
है।
पार्टी
सूत्रों
के
अनुसार
भाजपा
की
आंखें
किसी
और
को
खोज
रहीं
हैं।
इसके
लिए
एक
टीम
क्षेत्र
के
मतदाताओं
की
नब्ज
टटोलने
के
साथ
ही
टिकट
के
असर
के
हर
पहलुओं
को
परख
रही
है।
वर्तमान
में
कई
नेता
भाजपा
हाईकमान
के
संपर्क
में
हैं।
मंडल
के
दावेदारों
में
सीएम
की
पसंद
का
विशेष
महत्व
मंडल
की
चारों
सीटों
पर
मुख्यमंत्री
की
पसंद
को
भी
भाजपा
संगठन
महत्व
दे
रहा
है।
तीन
सीटों
पर
तो
टिकट
तय
हो
गया
है,
लेकिन
कैसरगंज
का
टिकट
फंसने
के
पीछे
कई
तर्क
दिए
जा
रहे
हैं।
माना
जा
रहा
है
कि
बतौर
सांसद
बृजभूषण
सिंह
ने
कई
मुद्दों
पर
सरकार
के
कामकाज
पर
सवाल
उठाए
थे।
इससे
भले
ही
उनकी
साख
बढ़ी,
लेकिन
सरकार
की
नजरें
टेढ़ी
हो
गईं।
हरियाणा
और
जाट
बहुल
क्षेत्रों
की
सीटों
पर
टिकट
से
होने
वाले
प्रभाव
को
भी
ध्यान
में
रखा
जा
रहा
है।
सांसद
के
समर्थक
जरूर
मानते
हैं
कि
हो
चाहे
जो,
चुनाव
बृजभूषण
ही
लड़ेंगे।
टिकट
भी
मिलने
की
पूरी
उम्मीद
जता
रहे
हैं।
सांसद
ने
कई
बड़ों
पर
उठाए
थे
सवाल
-सांसद
ने
योग
गुरु
रामदेव
के
उत्पादों
पर
सवाल
उठाकर
उनको
घेरा
था।
मामला
शीर्ष
स्तर
तक
पहुंचा।
-अयोध्या
आ
रहे
मनसे
प्रमुख
राज
ठाकरे
का
विरोध
किया।
उत्तर
भारतीय
पर
हुए
हमलों
के
मुद्दे
पर
घेरा।
-गौरा
क्षेत्र
में
एक
युवा
नेता
की
हत्या
पर
स्थानीय
विधायक
व
पुलिस
पर
सवाल
खड़े
किए।
-मनकापुर
राजघराने
के
बारे
में
एक
कार्यक्रम
में
टिप्पणी।
-बाढ़
राहत
वितरण
में
प्रशासन
के
कामकाज
पर
नाराजगी।
दावेदारी
मजबूत
क्यों
साल
1991
से
संसद
पहुंचने
वाले
बृजभूषण
शरण
सिंह
अब
तक
सात
बार
खुद
चुनाव
लड़े
और
छह
बार
जीते,
वहीं
एक
बार
उनकी
पत्नी
केतकी
सिंह
ने
जीत
दर्ज
की।
संसाधनों
की
कमी
नहीं।
हेलीकॉप्टर
से
लेकर
तमाम
लग्जरी
वाहन।
बेटा
विधायक।
कुश्ती
संघ
के
राष्ट्रीय
अध्यक्ष
होने
से
पूरे
देश
में
अलग
पहचान।
कैसरगंज
में
लगातार
तीन
बार
से
सांसद
होने
से
आम
लोगों
के
बीच
पैठ।