
वरिष्ठ
पत्रकार
और
लेखक
उत्पल
कुमार
की
नई
पुस्तक
‘भारत
राइजिंग:
धर्म,
डेमोक्रेसी,
डिप्लोमेसी’
इन
दिनों
काफी
चर्चा
में
है.
इस
किताब
में
सांस्कृतिक
पुनर्जागरण
के
नये
दौर
की
विशेषताएं
बताई
गई
हैं.
किताब
में
परिवर्तन
के
दौर
को
मोदी
सरकार
का
सराहनीय
प्रयास
के
तौर
पर
उल्लेख
किया
गया
है.
लेखक
का
कहना
है
मोदी
सरकार
की
पहल
ने
न
केवल
भारत
के
आम
लोगों
को
प्रभावित
किया
है,
बल्कि
आंतरिक
शासन
और
राजनयिक
पहुंच
पर
भी
अपनी
अमिट
छाप
छोड़ी
है.
लेखक
का
मानना
है
मोदी
सरकार
ने
राष्ट्रीय
मंच
पर
परिवर्तनों
को
प्रासंगिक
बनाया
है.
उत्पल
कुमार
की
यह
पुस्तक
बताती
है
कि
आजादी
के
इतने
सालों
बाद
सही
मायने
में
अब
सांस्कृतिक
सुधार
का
नया
दौर
आया
है.
यह
एक
नई
शुरुआत
है.
संभव
है
इसमें
और
समय
लग
जाता
अगर
देश
में
2014
में
बड़ा
परिवर्तन
नहीं
होता.
नरेंद्र
मोदी
ने
प्रधानमंत्री
के
रूप
में
एक
प्रकार
से
सांस्कृतिक
पुनर्जागरण
की
शुरुआत
की.
इससे
देश
की
विरासत
को
फिर
से
संवरने
का
मौका
मिला.
पुनर्जागरण
की
देरी
की
वजह
पर
चर्चा
लेखक
ने
किताब
में
स्वतंत्रता
के
बाद
सांस्कृतिक
पुनर्जागरण
की
देरी
की
वजहों
का
भी
जिक्र
किया
है.
उन्होंने
इस
संबंध
में
अनुसंधान
और
तथ्यों
के
आधार
पर
विश्लेषण
किया
है.
साथ
ही
ये
सवाल
भी
उठाया
है
कि
जब
सरकारों
और
उसके
अहम
संस्थानों
के
प्रमुख
लोगों
का
ब्रेनवॉश
कर
दिया
जाता
है
और
औपनिवेशिक
आकाओं
की
शिक्षा
को
आत्मसात
कर
लिया
जाता
है
तो
सांस्कृतिक
पुनर्जागरण
आखिर
कैसे
हो
सकता
है?
ऐतिहासिक
जागृति
के
दौर
का
विश्लेषण
इस
किताब
में
प्रधानमंत्री
मोदी
के
कार्यकाल
की
कुछ
बड़ी
उपलब्धियों
की
खासतौर
पर
चर्चा
की
गई
है.
लेखक
ने
लिखा
है
कि
मोदी
सरकार
ने
विकास
और
विरासत
को
साध
लिया
है.
अयोध्या
में
भव्य
राम
मंदिर
का
निर्माण
हो
या
अबू
धाबी
में
मंदिर
का
उद्घाटन
या
फिर
सुदर्शन
सेतु
हो
या
अटल
सेतु,
लेखक
ने
काशी
और
अयोध्या
में
परिवर्तन
को
ऐतिहासिक
जागृति
के
नजीर
के
तौर
पर
पेश
किया
है.
(समीक्षक
अनुभवी
लेखक-पत्रकार
हैं,
जिनकी
आधा
दर्जन
से
अधिक
पुस्तकें
प्रकाशित
हैं.
उन्होंने
एक
किताब
संजीव
सान्याल
के
साथ
मिलकर
लिखी
है.)