2019
के
लोकसभा
चुनाव
में
जब
स्मृति
ईरानी
के
अमेठी
से
लोकसभा
चुनाव
जीतने
की
खबर
आई,
तो
एक
बड़ी
खबर
बनी.
क्यूंकि
राहुल
गांधी
यहां
से
चुनाव
हारे
थे,
3
दशक
में
ये
मुश्किल
से
दूसरा-तीसरा
मौका
होगा
जब
गांधी
परिवार
का
कोई
सदस्य
इस
सीट
से
सांसद
नहीं
बना
था.
जो
सिलसिला
संजय
गांधी
से
शुरू
हुआ
था,
वो
राजीव
गांधी,
फिर
सोनिया
गांधी
और
राहुल
गांधी
तक
पहुंचा
था.
अमेठी
कितनी
खास
है,
इसका
सबूत
ये
भी
है
कि
सोनिया
गांधी
जब
पहली
बार
राजनीति
में
आईं
और
चुनाव
लड़ने
की
बारी
आई
तो
उन्होंने
इसी
सीट
को
भी
चुना.
आज
भले
ही
यहां
से
कोई
गांधी
सांसद
ना
हो,
लेकिन
रिश्ता
और
किस्से
तो
हैं
ही.
1991
में
जब
राजीव
गांधी
की
हत्या
हुई,
उसके
बाद
कांग्रेस
के
नेताओं
द्वारा
मांग
की
गई
थी
कि
सोनिया
गांधी
को
अब
राजनीति
में
आना
चाहिए
और
कांग्रेस
का
अध्यक्ष
बनना
चाहिए.
लेकिन
सोनिया
ने
ऐसा
नहीं
किया,
वो
अपने
परिवार
में
खुश
थीं
और
खुद
को
राजनीति
से
दूर
रखना
चाहती
थीं.
ऐसा
कोई
दिन
नहीं
था,
जब
कांग्रेस
का
कोई
बड़े
नेता
उनके
घर
पर
ये
अपील
करने
ना
आता
हो,
कि
आप
राजनीति
में
आ
जाइए
लेकिन
सोनिया
ने
किसी
की
बात
नहीं
सुनी.
1996
का
लोकसभा
चुनाव
आया,
सोनिया
ने
प्रचार
नहीं
किया.
इस
बीच
अमेठी
लोकसभा
सीट
का
रिश्ता
भी
गांधी
परिवार
से
खत्म
हो
गया
था,
क्यूंकि
राजीव
गांधी
की
जब
हत्या
हुई
तब
वो
अमेठी
से
ही
सांसद
थे.
वहां
की
सीट
भी
खाली
हुई,
राजीव
गांधी
की
जगह
तब
वहां
से
सतीश
शर्मा
ने
चुनाव
लड़ा
और
सांसद
बन
गए.
लेकिन
सात
साल
राजनीति
से
दूर
रहने
के
बाद
1997-98
में
सोनिया
ने
राजनीति
में
आने
का
फैसला
किया,
पहले
उन्होंने
पार्टी
की
सदस्यता
ली
और
फिर
प्रचार
करना
चाहा.
ये
भी
पढ़ें
ये
वो
वक्त
था
जब
सीताराम
केसरी
कांग्रेस
के
अध्यक्ष
हुआ
करते
थे.
कांग्रेस
की
वर्किंग
कमेटी
दो
धड़ों
में
बंट
गई
थी,
क्यूंकिलोकसभा
चुवाव
कई
लोग
चाहते
थे
कि
अब
सोनिया
गांधी
को
अध्यक्ष
बनाया
जाना
चाहिए.
लेकिन
केसरी
के
अपने
समर्थक
भी
थे,
लोकसभा
चुनाव
से
ठीक
पहले
मार्च
1998
को
ये
तय
कर
लिया
गया
कि
अब
सोनिया
गांधी
ही
अध्यक्ष
होंगी.
सीताराम
केसरी
जब
कांग्रेस
दफ्तर
में
ही
थे,
उनके
कमरे
को
बाहर
से
बंद
किया
गया.
सोनिया
गांधी
अपने
समर्थकों
के
साथ
दफ्तर
में
घुसी
और
अध्यक्ष
पद
की
कुर्सी
पर
बैठ
गई.
बाहर
लगी
सीताराम
केसरी
की
नेमप्लेट
को
हटा
दिया
गया
और
फिर
सोनिया
गांधी
के
नाम
की
पट्टी
टांग
दी
गई.
कांग्रेस
को
करीब
से
जानने
वाले
और
कई
किताब
लिखने
वाले
रशीद
किदवई
तो
कई
इंटरव्यू
में
कई
ये
भी
कहते
हैं
कि
सीताराम
केसरी
को
दफ्तर
से
बाहर
निकालने
की
खींचतान
में
कांग्रेस
अध्यक्ष
नाली
में
भी
गिरे
और
उनकी
धोती
भी
खुली.
1998
में
सोनिया
गांधी
ने
राजनीति
में
प्रवेश
कर
लिया
था,
अब
बारी
चुनावी
राजनीति
में
आने
की
थी.
वाजपेयी
की
सरकार
गिरी
तो
1999
में
फिर
से
चुनाव
हुए
और
इस
बार
अमेठी
से
सोनिया
गांधी
ने
पर्चा
भर
दिया.
ये
पहली
बार
नहीं
था
जब
सोनिया
अमेठी
आई
हो,
राजीव
गांधी
के
साथ
वो
कई
दफा
यहां
आ
चुकी
हैं
और
लोग
विदेशी
बहू
को
पहचानते
भी
हैं.
लेकिन
अब
जब
सोनिया
आईं
तो
राजीव
साथ
में
नहीं
थे,
वो
विधवा
थीं
और
खुद
के
लिए
वोट
मांग
रही
थीं.
सोनिया
गांधी
करीब
70
फीसदी
वोट
पाकर
जीत
गईं
और
पहली
बार
सांसद
बनीं.
सोनिया
अमेठी
से
सिर्फ
एक
बार
ही
सांसद
बनीं,
जब
2004
में
अगले
लोकसभा
चुनाव
हुए
तो
राहुल
गांधी
यहां
से
लड़े
और
सोनिया
खुद
अपनी
सास
यानी
इंदिरा
गांधी
की
सीट
रायबरेली
से
चुनाव
लड़ी
थीं,
साल
2024
तक
सोनिया
गांधी
यहां
से
ही
सांसद
रहीं.