मध्यप्रदेश
हाईकोर्ट,
जबलपुर
–
फोटो
:
अमर
उजाला
विस्तार
नेशनल
हाइवे-7
के
प्रोजेक्ट
डायरेक्टर
तथा
तकनीकी
मैनेजर
को
जबलपुर हाईकोर्ट
से
झटका
लगा
है।
हाईकोर्ट
जस्टिस
जीएस
अहलूवालिया
की
एकलपीठ
ने
कहा
कि
सड़क
खराब
होने
के
कारण
दुर्घटना
घटित
हुई
थी।
सद्भावना पूर्वक
किए गए कार्य
में
भारतीय
राजमार्ग
प्राधिकरण
अधिनियम
1988
की
धारा-28
के
तहत
सद्भावना
पूर्वक
किए गए कार्यों
में
अपराधिक
अभियोजन
की
छूट
प्राप्त
की
है।
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उचित
सावधानी
और ध्यान
के
साथ
सद्भावना
पूर्वक
कार्य
किया
जाता
है।
एकलपीठ
ने
दोनों
अधिकारियों
की
लापरवाही
मानते
हुए
उनके
खिलाफ
11
साल
पहले
लगी
आपराधिक
प्रकरण
की
सुनवाई
पर
लगाई
रोक
को
हटाने
के
आदेश
जारी
किए हैं।
राष्ट्रीय
राजमार्ग-7
के
प्रोजेक्ट
डायरेक्टर
आईएम
सिद्दीकी तथा
मैनेजर
तकनीकी
एमके
जैन
की
तरफ
से
साल
2013
में
पुलिस
द्वारा
दर्ज
किये
गये
प्रकरण
को
चुनौती
देते
हुए
हाईकोर्ट
की
शरण
ली
गई थी।
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याचिका
में
कहा
गया
था
कि
अनावेदक
अशोक
तिवारी
ने
उनके
खिलाफ
धूमा
थाने
में
रिपोर्ट
दर्ज
करवाई
थी।
रिपोर्ट
में
कहा
गया
था
कि
वह
ग्राम
बंजारी
से
लौट
रहा
था।
एनएच-7
में
गड्ढे
होने
के
कारण
वह
मोटर
साइकिल
सहित
खाई
में
गिर
गया, जिसके
कारण
उसे
हाथ
पैर
में
चोट
आई
थी
और
मोटर
साइकिल
क्षतिग्रस्त
हो
गई थी।
पुलिस
ने
शिकायत
पर
उनके
खिलाफ
धारा-
431,
287,
290,
337
तथा
427
के
तहत
प्रकरण
दर्ज
कर
लिया
था।
याचिका
की
सुनवाई
के
दौरान
एकलपीठ
को
बताया
गया
कि
पुलिस
ने
प्रकरण
में
चालान
पेश
कर
दिया
था।
याचिका
की
सुनवाई
करते
हुए
हाईकोर्ट
ने
न्यायालय
की
कार्रवाई पर
रोक
लगा
दी
थी।
याचिकाकर्ता
की
तरफ
से
तर्क
दिया
गया
कि
याचिकाकर्ता
को
भारतीय
राजमार्ग
प्राधिकरण
अधिनियम
1988
की
धारा-28
के
तहत
अपराधिक
अभियोजन
से
छूट
प्राप्त
है।
इस
संबंध
में
पूर्व
में
पारित
आदेश
का
हवाला
भी
दिया
गया।
एकलपीठ
ने
याचिका
की
सुनवाई
के
दौरान
पाया
कि
राष्ट्रीय
राजमार्ग
में
बडे-बडे
गड्ढे
थे, जिसके
कारण
शिकायतकर्ता
हादसे
का
शिकार
हुआ।
राष्ट्रीय
राजमार्ग
के
देख-रेख
की
जिम्मेदारी
एनएएचआई
की
है।
सड़क
चलने
योग्य
है
या
नहीं
यह
उन्हें
देखना
था।
भारतीय
राजमार्ग
प्राधिकरण
अधिनियम
के
तहत
उन्हें
चलने
योग्य
सड़क
को
यातायात
के
लिए
बंद
करने
का
अधिकार
था।
इसके
अलावा
वाहनों
की
गति
निर्धारण
का
भी
अधिकार
उनके
पास
था।
भारतीय
राजमार्ग
प्राधिकरण
अधिनियम
1988
की
धारा
28
के
तहत
सद्भावना
पूर्वक
किए गए कार्य में
अपराधिक
अभियोजन
से
छूट
प्राप्त
है।
एकलपीठ
ने
अपने
आदेश
में
कहा
है
कि
पुलिस
द्वारा
न्यायालय
में
दिसंबर 2013
में
चालान
प्रस्तुत
किया
गया
था।
प्रकरण
11
साल
पुराना
होने
के
कारण
न्यायालय
एक
साल
की
अवधि
में
उसका
निराकरण
करें।
एकलपीठ
ने
उक्त
आदेश
के
साथ
याचिका
को
खारिज
कर
दिया।