Gwalior News: 100 करोड़ से अधिक की बेशकीमती जमीन को हारा प्रशासन, पुनर्विचार याचिका को आधारहीन बताकर किया खारिज

ग्वालियर
में
100
करोड़
रुपए
से
अधिक
की
बेशकीमती
मंदिर
की
जमीन
को
राज्य
शासन
हाईकोर्ट
में
हार
गया
है।
हाईकोर्ट
की
एकलपीठ
ने
एक
अहम
फैसले
में
राज्य
सरकार
द्वारा
दायर
समीक्षा
याचिका
को
आधारहीन
बताते
हुए
खारिज
कर
दिया
है।


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ग्वालियर
के
बहोड़ापुर
स्थित
जगनापुरा
में
रामजानकी
राधाकृष्ण
मंदिर
की
100
करोड़
रुपए
से
ज्यादा
की
बेशकीमती
19.10
बीघा
जमीन
मामले
में
राज्य
शासन
को
हाईकोर्ट
में
करारी
हार
मिली
है।
हाईकोर्ट
की
सिंगल
बेंच
ने
सेवानिवृत्त
न्यायाधीश
एनके
मोदी
के
पक्ष
में
कोर्ट
ने
फैसला
सुनाते
हुए
राज्य
शासन
की
पुनर्विचार
करने
की
मांग
को
खारिज
कर
दिया।
कोर्ट
ने
कहा
कि
राज्य
शासन

सरकारी
अधिवक्ता
ने
समीक्षा
का
कोई
ऐसा
आधार
नहीं
बताया
जिसको
ध्यान
में
रखते
हुए
आदेश
वापस
लिया
जा
सके,
इसीलिए
न्यायालय
द्वारा
दिए
गए
आदेश
की
समीक्षा
करने
का
कोई
कारण
नजर
नहीं
आता
है।
जगनापुरा
जमीन
मामले
में
कोर्ट
ने
यह
भी
कहा
कि
अभिलेख
में
कोई
कमी
दिखाई
नहीं
देती
है।
जबकि
इस
मामले
में
राज्य
शासन
की
ओर
से
तर्क
दिया
गया
है
कि
रिट
न्यायालय
के
समक्ष
उत्तर
दाखिल
करने
का
कोई
अवसर
दिए
बिना
ही
न्यायालय
ने
आदेश
दिया
है,
जो
अवैध
है।
इस
पर
कोर्ट
ने
स्पष्ट
किया
कि
अंतिम
आक्षेपित
आदेश
में
किसी
हस्तक्षेप
की
आवश्यकता
नहीं
है।
इस
याचिका
की
सुनवाई
न्यायाधीश
मिलिंद
रमेश
फड़के
द्वारा
की
गई
है।


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के
आरोपी
तहसीलदार
का
सरेंडर,
पांच
हजार
का
इनाम
था;
खुद
का
चौथी
पत्नी
बताने
महिला
ने
लगाया
है
आरोप

बता
दें
कि
ग्वालियर
शहर
के
बहोड़ापुर
स्थित
जगनापुरा
के
सर्वे
क्रमांक
183,
187,
482,
487,
492,
494,
498,
503,
524
की
भूमि
रामजानकी
राधाकृष्ण
मंदिर
के
नाम
से
थी।
27
जून
1966
को
एक
आदेश
के
बाद
यह
भूमि
नियमित
भूस्वामी
के
नाम
से
दर्ज
की
गई।
इस
भूमि
को
लेकर
तत्कालीन
संभागायुक्त
दीपक
सिंह
ने
ग्वालियर
कलेक्टर
को
पत्र
लिखा।
इसमें
यह
जमीन
फिर
से
माफी
औकाफ
यानी
मंदिर
के
नाम
करने
का
आदेश
दिया
गया,
लेकिन
दीपक
सिंह
के
आदेश
को
सेवानिवृत्त
हाईकोर्ट
जज
एनके
मोदी
ने
हाईकोर्ट
में
चुनौती
दी।
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आत्महत्या
के
मामले
में
जेल
में
बंद
आरोपी
की
मौत,
पत्नी
ने
कहा-
एक
दिन
पहले
मिलने
गई
थी

हाईकोर्ट
ने
सुनवाई
करते
हुए
दीपक
सिंह
का
आदेश
निरस्त
कर
दिया।
इस
याचिका
की
जब
सुनवाई
की
गई
थी
तब
शासकीय
अधिवक्ता
ने
जवाब
पेश
करने
के
लिए
समय
नहीं
मांगा।
इस
कारण
आदेश
शासन
को
बिना
सुने
फैसला
हो
गया।
शासन
ने
अपने
पक्ष
रखने
के
लिए
पुनर्विचार
याचिका
दायर
की,
जिसके
बाद
न्यायालय
ने
कहा
कि
अंतिम
आदेश
पारित
करते
समय
राज्य
की
ओर
से
उपस्थित
सरकारी
अधिवक्ता
ने
दलीलों
का
जोरदार
तरीके
से
उत्तर
दिया
था
और
उन्होंने
उत्तर
दाखिल
करने
के
लिए
समय
नहीं
मांगा
था,
जो
यह
दर्शाता
है
कि
उस
समय
राज्य
शासन
को
उत्तर
दाखिल
करने
की
कोई
आवश्यकता
नहीं
थी।
इसीलिए
न्यायालय
द्वारा
जो
आदेश
दिए
गए
हैं
उनमें
किसी
हस्तक्षेप
की
आवश्यकता
नहीं
है।
इसलिए
पुनर्विचार
याचिका
को
खारिज
किया
जाता
है।