Bhopal: मध्य प्रदेश में सात साल से ठप हुए आयोग, नेता प्रतिपक्ष बोले-कमजोर और पीड़ित वर्ग सुनवाई के लिए भटक रहा


मध्य
प्रदेश
के
आयोगों
की
कार्यप्रणाली
पर
नेता
प्रतिपक्ष
उमंग
सिंघार
ने
सवाल
खड़े
किए
हैं। 
सिंघार
ने
कहा
है
कि
समाज
के
कमजोर
वर्गों
के
अधिकारों
की
रक्षा
और
उनके
उत्पीड़न
को
रोकने
के
लिए
प्रदेश
में
कई
आयोग
बनाए
गए,
जो
2016-17
से
भाजपा
के
कार्यकाल
में
निष्क्रिय
हो
चुके
हैं। नेता
प्रतिपक्ष
ने
कहा
कि
यह
आयोग
एक
कोर्ट
की
तरह
काम
करते
हैं
जिनके
पास
सिविल
कोर्ट
की
शक्तियां
होती
हैं।
यह
शिकायतों
को
सुनते
हैं
और
बिना
खर्च
एवं
बिना
किसी
कोर्ट,
पुलिस
को
शामिल
किए
उसका
निपटारा
करते
हैं।
आयोग
में
एक
अध्यक्ष
होता
है
और
उसके
पांच
सदस्य।
लगभग
दर्जन
भर
स्टाफ
किसी
भी
शिकायत
की
जांच
करना,
शिकायतकर्ता
को
संबल
देना
और
उस
के
निष्पादन
के
लिए
सरकार
को
आदेशित
करता
है।


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कमजोर
और
पीड़ित
वर्ग
सुनवाई
के
लिए
भटक
रहा

नेता
प्रतिपक्ष
ने
आगे
कहा
कि
यह
एक
विडंबना
है
कि
आज
समाज
के
कमजोर
वर्ग-आदिवासी,
दलित,
अल्पसंख्यक,
पिछड़ा
वर्ग
और
महिलाएं
न्याय
और
संरक्षण
के
लिए
दर-दर
भटक
रहे
हैं।
मध्यप्रदेश
के
लगभग
22%
आदिवासी,
17%
दलित,
7%
अल्पसंख्यक,
50%
पिछड़ा
वर्ग
और
महिलाओं
के
खिलाफ
उत्पीड़न
की
घटनाएं
लगातार
सामने

रही
हैं।


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इन
आयोगों
को
लेकर
उठाए
सवाल


राज्य
अनुसूचित
जनजाति
आयोग

राज्य
अनुसूचित
जाति
आयोग

राज्य
महिला
आयोग

राज्य
अल्पसंख्यक
आयोग

बाल
अधिकार
संरक्षण
आयोग

मानव
अधिकार
आयोग

सूचना
आयोग


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ट्रेनिंग
प्रोग्राम
शुरू
होंगे


आयोगों
में
बिना
जज
के
कोर्ट
जैसे
हालात

नेता
प्रतिपक्ष
ने
कहा
कि
भाजपा
सरकार
ने
इन
आयोगों
का
भट्टा
बैठा
दिया
है,
जो
सामाजिक
न्याय
पर
गहरा
प्रहार
है।
उन्होंने
कहा
कि
इन
आयोगों
की
स्थिति
इतनी
दयनीय
है
कि
ये

तो
पीड़ितों
की
आवाज
सुन
पा
रहे
हैं
और

ही
उनके
लिए
कोई
ठोस
कार्यवाही
कर
पा
रहे
हैं।
यहां
तक
कि
राज्य
के
कुल
आठ
प्रमुख
आयोगों
में
से
केवल
तीन-पिछड़ा
वर्ग
आयोग,
सूचना
आयोग
और
मानवाधिकार
आयोग
में
ही
अध्यक्ष
नियुक्त
हैं,
लेकिन
इनमें
भी
सदस्यों
की
भारी
कमी
है।
शेष
पांच
आयोग
वर्षों
से
बिना
अध्यक्ष
और
सदस्यों
एवं
बिना
कर्मचारियों
के
संचालित
हो
रहे
हैं।
जैसे
बिना
जज
के
कोर्ट।


आयोग
में
24
हजार
केस
पेंडिंग

नेता
प्रतिपक्ष
ने
उदाहरण
देते
हुए
कहा,
राज्य
महिला
आयोग
में
पिछले
पांच
वर्षों
से

तो
अध्यक्ष
नियुक्त
किया
गया
है
और

ही
सदस्यों
की
नियुक्तियां
हुई
है।
जिसके
चलते
लगभग
24,000
महिला
उत्पीड़न
से
संबंधित
मामले
लंबित
हैं।
इसी
तरह,
पिछड़ा
वर्ग
आयोग
में
भले
ही
अध्यक्ष
मौजूद
हैं,
लेकिन
सदस्यों
और
कर्मचारियों
के
अभाव
में
यह
पंगु
हो
गया
है।
हाल
ही
में
पिछड़ा
वर्ग
आयोग
के
अध्यक्ष,
जो
स्वयं
भाजपा
के
पूर्व
सांसद
हैं,
ने
मुख्यमंत्री
को
पत्र
लिखकर
खाली
पदों
को
भरने,
आयोग
के
लिए
पृथक
भवन
जैसी
कई
मांगें
की,
जो
सरकार
की
उदासीनता
को
स्पष्ट
दर्शाता
है।


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मोदी
के
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विकास
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लिखेंगे


आयोगों
की
वेबसाइट
बंद
की

 सिंघार
ने
कहा
कि
डिजिटल
भाजपा
सरकार
में
इन
आयोगों
की
वेबसाइट
तक
बंद
कर
रखी
हैं।
इन
आयोगों
की
लगभग
2
लाख
से
ज़्यादा
शिकायतें
लंबित
हैं।
लोगों
का
विश्वास
इन
संस्थानों
में
कम
हो
रहा
है।
इन
आयोगों
की
निष्क्रियता
के
बावजूद,
वित्त
वर्ष
2017
से
2024
तक
इनके
संचालन
पर
जनता
के
कर
से
करोड़ों
रुपए
खर्च
किए
गए।