मध्य
प्रदेश
में
जल
जीवन
मिशन
योजना
में
पारदर्शिता
लाने
के
लिए
लगातार
प्रयास
किए
जा
रहे
हैं।
इसी
कड़ी
में
अब
प्राइवेट
कंपनियों
के
माध्यम
से
काम
करने
वाले
इंजीनियरों
को
परीक्षा
पास
करना
अनिवार्य
होगा।
इसको
लेकर
जल
निगम
के
एमडी
केवीएस
चौधरी
ने
एमपी
ऑनलाइन
से
परीक्षा
कराने
का
आग्रह
किया
है।
दरसअल
प्रदेश
भर
में
जल
जीवन
मिशन
के
मॉनिटरिंग
का
काम
निजी
कंपनी
द्वारा
करवाया
जा
रहा
है।
इसमें
करीब
2000
से
ज्यादा
इंजीनियर
काम
करते
हैं।
इन
इंजीनियरों
की
भर्ती
निजी
कंपनियां
करती
हैं
और
साक्षात्कार
जल
निगम
के
अधिकारी
लेते
हैं।
लेकिन
लगातार
आरोप
लगाते
हैं
कि
अनस्किल्ड
लोगों
की
भर्ती
की
जा
रही
है।
इस
तरह
की
शिकायत
से
उबरने
के
लिए
एमडी
ने
नई
रणनीति
तैयार
की
है
और
एमपी
ऑनलाइन
से
परीक्षा
करने
का
निर्णय
लिया
है।
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केवल
विभाग
से
संबंधित
ही
पूछे
जाएंगे
सवाल
जल
निगम
के
एमडी
केवीएस
चौधरी
ने
बताया
कि
यह
परीक्षा
विभाग
में
पारदर्शिता
लाने
के
लिए
की
जा
रही
है।
कई
जगह
से
शिकायत
आ
रही
है
कि
इंजीनियरों
की
भर्ती
में
लापरवाही
की
जा
रही
है।
इसे
देखते
हुए
एमपी
ऑनलाइन
से
हमने
आग्रह
किया
है
कि
एग्जाम
कंडक्ट
करें।
चौधरी
ने
बताया
कि
इस
एग्जाम
में
कोई
बाहर
के
सवाल
नहीं
पूछे
जाएंगे
केवल
विभाग
और
जल
जीवन
मिशन
के
काम
से
संबंधित
ही
सवाल
पूछे
जाएंगे।
किसी
को
घबराने
की
जरूरत
नहीं
है।
जिसे
काम
आता
होगा
उसे
बाहर
नहीं
किया
जाएगा।
और
पहले
से
काम
करने
वाले
इंजीनियरों
की
परीक्षा
नहीं
ली
जाएगी।
जो
नई
भर्ती
की
जाएगी
उनका
एग्जाम
लिया
जाएगा।
चौधरी
ने
बताया
कि
जल
निगम
कई
नए
टेंडर
कर
रहा
है,
कई
हो
गए
हैं
उनमें
जिन
इंजीनियरों
की
भर्ती
की
जाएगी
उनका
एग्जाम
लिया
जाएगा।
विज्ञापन
दो
हजार
इंजीनियरों
को
नौकरी
जाने
का
डर
जल
निगम
के
एमडी
द्वारा
एमपी
ऑनलाइन
को
भेजे
गए
लेटर
के
बाद
प्रदेश
भर
में SQC/TPIA
अभियंताओं
में
नौकरी
जाने
का
डर
भर
गया
है।
दरअसल
जो
लेटर
एमडी
में
एमपी
ऑनलाइन
को
लिखा
है
उसमें
स्पष्ट
नहीं
है
कि
परीक्षा
किन
अभियंताओं
की
होनी
है,
जो
वर्तमान
में
काम
कर
रहे
हैं
उनकी
या
नई
भर्ती
की।
एक
इंजीनियर
ने
बातया
कि इतिहास
में
पहली
बार
ऐसा
हो
रहा
है
कि
कार्यरत
अभियंताओं
को
ही
सेवा
के
दौरान
परीक्षा
देने
के
लिए
बाध्य
किया
जा
रहा
है,
जिससे
यह
संदेह
होता
है
कि
यह
प्रक्रिया
मात्र
एक
औपचारिकता
बनाकर
कर्मियों
को
हटाने
के
उद्देश्य
से
अपनाई
गई
है।
साथ
ही
यह
स्पष्ट
है
कि
फील्ड
का
सारा
कार्य,
गुणवत्ता
नियंत्रण,
दस्तावेज़ीकरण,
तकनीकी
निरीक्षण
और
समयबद्ध
रिपोर्टिंग
सबकुछ
SQC/TPIA
द्वारा
ही
किया
जाता
है।
हम
ही
जल
निगम
की
योजनाओं
की
रीढ़
की
हड्डी
हैं,
परंतु
आज
हम
ही
सबसे
उपेक्षित
और
असुरक्षित
स्थिति
में
हैं।
यह
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पढ़ें-भाजपा
के
प्रवक्ता
नरेंद्र
सलूजा
का
आकस्मिक
निधन,
सीने
में
अचानक
उठा
था
दर्द
एमडी
को
क्या
अपने
अधिकारियों
पर
विश्वास
नहीं?
दरअसल
जल
निगम
के
आधीन
काम
करने
वाले
इंजीनियरों
की
भर्ती
का
काम
जल
निगम
के
अधिकारी
ही
करते
हैं।
जिस
कंपनी
का
टेंडर
होता
है
वह
अवश्यकता
के
अनुसार
सीबी
लगाती
है।
और
इंटरव्यू
का
काम
जल
निगम
के
अधिकारी
करते
हैं।
ऐसे
में
अब
सवाल
उठ
रहा
है
कि
क्या
एमडी
को
अपने
अधिकारियों
पर
विश्वास
नहीं
है।
एक
इंजीनियर
ने
कहा
कि
यदि
इन
अभियंताओं
की
परीक्षा
अब
ली
जा
रही
है,
तो
पिछले
7-8
वर्षों
से
ये
कर्मचारी
जल
निगम
की
योजनाओं
में
कैसे
कार्यरत
थे?
जबकि
प्रारंभ
में
इनका
चयन
साक्षात्कार
के
माध्यम
से
जल
निगम
द्वारा
ही
किया
गया
था
और
कार्य
करने
की
अनुमति
अप्रूवल
भी
जल
निगम
द्वारा
ही
प्रदान
की
गई
थी।
तो
क्या
उस
समय
की
प्रक्रिया
त्रुटिपूर्ण
मानी
जा
रही
है,
और
क्या
अब
इतने
वर्षों
बाद
उसी
पर
प्रश्नचिह्न
लगाना
न्यायसंगत
है?