अतीत
के
गौरवशाली
इतिहास
को
जन
सामान्य
के
सामने
लाने
के
लिए
दो
हजार
वर्ष
पहले
सम्राट
विक्रमादित्य
द्वारा
सुशासन
के
सिद्धांतों
पर
स्थापित
शासन
संचालन
व्यवस्था
और
उनकी
कीर्ति
पर
केंद्रित
महानाट्य
की
प्रस्तुति
दिल्ली
के
लाल
किले
पर
12-13-14
अप्रैल
को
होने
जा
रही
है।
ये
जानकारी
दिल्ली
दौरे
के
दौरान
मुख्यमंत्री
डॉ.
मोहन
यादव
ने
दी।
सीएम
नई
दिल्ली
में
विक्रमोत्सव
अंतर्गत
सम्राट
विक्रमादित्य
महानाट्य
के
महामंचन
के
संबंध
में
पत्रकारों
से
चर्चा
कर
रहे
थे।
मुख्यमंत्री
डॉ.
मोहन
यादव
ने
कहा
है
कि
प्रधानमंत्री
नरेन्द्र
मोदी
का
ध्येय
वाक्य
‘विरासत
से
विकास
की
ओर’
हमारे
लिए
एक
पाथेय
की
तरह
सिद्ध
हो
रहा
है।
हम
विकास
कार्यों
में
विरासत
को
महत्वपूर्ण
स्थान
दे
रहे
हैं।
मध्यप्रदेश
सरकार
सुशासन
को
ध्यान
में
रखते
हुए
विकास
और
जनकल्याण
की
सभी
गतिविधियां
संचालित
कर
रही
हैं।
विज्ञापन
मुख्यमंत्री
डॉ.
यादव
ने
कहा
कि
सम्राट
विक्रमादित्य
के
विराट
व्यक्तित्व
को
सबके
सामने
लाने
के
लिए
महानाट्य
की
कल्पना
की
गई
है।
उन्होंने
कहा
कि
जब
इसका
मंचन
दिल्ली
में
12,
13
और
14
अप्रैल
को
लाल
किले
पर
होगा
तो
इसमें
हाथी,
घोड़ों,
पालकी
के
साथ
250
से
ज्यादा
कलाकार
अभिनय
करते
नजर
आएंगे।
महानाट्य
में
शामिल
कलाकार
निजी
जीवन
में
अलग-अलग
क्षेत्र
के
प्रोफेशनल्स
हैं।
महानाट्य
में
वीर
रस
समेत
सभी
रस
देखने
को
मिलेंगे।
महानाट्य
का
मंचन
गौरवशाली
इतिहास
को
विश्व
के
सामने
लाने
का
मध्यप्रदेश
सरकार
का
एक
अभिनव
प्रयास
है।
इस
कालजयी
रचना
को
सबके
सामने
रखने
में
दिल्ली
सरकार
का
भी
सहयोग
मिल
रहा
है।
इससे
पहले
हैदराबाद
में
भी
विक्रमादित्य
महानाट्य
की
प्रस्तुति
हो
चुकी
है।
उनके नवाचार
और
कार्य
आज
भी
हैं
प्रासंगिक
मुख्यमंत्री
डॉ.
यादव
ने
कहा
कि
सम्राट
विक्रमादित्य
का
शासन
काल,
सुशासन
व्यवस्था
का
एक
आदर्श
उदाहरण
प्रस्तुत
करता
है।
वे
एकमात्र
ऐसे
शासक
थे,
जिनके
जीवन
के
विविध
प्रसंगों
से
आज
भी
लोग
प्रेरणा
लेते
हैं।
उनके
द्वारा
किए
गए
कार्य
और
नवाचार
आज
भी
प्रासंगिक
हैं।
वर्तमान
में
हिजरी
और
विक्रम
संवत
प्रचलन
में
हैं।
इसमें
विक्रम
संवत
उदार
परंपरा
को
लेकर
चलने
वाला
संवत
है,
अर्थात
संवत
चलाने
वाले
के
लिए
शर्त
है
कि
जिसके
पास
पूरी
प्रजा
का
कर्ज
चुकाने
का
सामर्थ्य
हो,
वही
संवत
प्रारंभ
कर
सकता
है।
सम्राट
विक्रमादित्य
ने
अपने
सुशासन,
व्यापार-व्यवसाय
को
प्रोत्साहन
और
दूरदृष्टि
से
यह
संभव
किया।
विक्रमादित्य
ने
विदेशी
शक
आक्रांताओं
को
पराजित
कर
विक्रम
संवत
का
प्रारंभ
57
ईस्वी
पूर्व
में
किया
था।
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मंत्री
आशीष
सूद
ने
किए
बाबा
महाकाल
के
दर्शन, बोले-
दर्शन
से
अंतरात्मा
खिल
उठती
है
विक्रम
संवत
के
60
अलग-अलग
प्रकार
विक्रम
संवत
के
60
अलग-अलग
प्रकार
के
नाम
हैं।
संवत
2082
को
धार्मिक
अनुष्ठानों
के
संकल्प
में
“सिद्धार्थ”
नाम
दिया
गया
है।
ये
60
नाम
चक्रीकरण
में
बदलते
रहते
हैं।
विक्रमादित्य
का
न्याय
देश
और
दुनिया
में
प्रचारित
हुआ।
यह
सम्वत्
भारतीय
इतिहास
का
एक
महत्वपूर्ण
वैज्ञानिक
आधार
वाला
कालगणना
सम्वत्
बन
गया,
जो
आज
भी
प्रचलित
है।
भारत
वर्ष
में
उज्जयिनी
के
सार्वभौम
सम्राट
विक्रमादित्य
युग
परिवर्तन
और
नवजागरण
की
एक
महत्वपूर्ण
धुरी
रहे
हैं
और
उनके
द्वारा
प्रवर्तित
विक्रम
सम्वत्
हमारी
एक
अत्यंत
मूल्यवान
धरोहर
है।
विक्रम
सम्वत्
हिंदू
समाज
का
महज
एक
पर्व
या
नववर्ष
भर
नहीं
है।
विक्रम
सम्वत्
तथा
सम्राट
विक्रमादित्य
भारतवर्ष
के
गौरव
को,
मनोबल
को
और
राष्ट्र
की
चेतना
को
जागृत
करने
का
एक
उपयुक्त
अवसर
है।
यह
पुरातन
परंपरा
से
शक्ति
प्राप्त
कर
भारत
को
विश्वगुरु
के
रूप
में
प्रतिष्ठित
करने
का
एक
राष्ट्रव्यापी
अभियान
है।
हमारे
प्रधानमंत्री
मोदी
ने
कहा
है
कि
“यही
समय
है,
सही
समय
है…”विश्व
में
भारत
का
समय
है।
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पटेल
की
गुमशुदगी
मामले
में
मंत्री
गोविंद
सिंह
राजपूत
को
बड़ी
राहत,
एससी
का
CBI
जांच
से
इंकार
उनके
शासन
में
दिखा नवरत्नों
का
समूह
मुख्यमंत्री
डॉ.
यादव
ने
कहा
कि
हम
जानते
हैं
कि
विदेशी
आक्रांताओं
और
उपनिवेशवादी
इतिहासकारों
ने
भारत
गौरव
तथा
ज्ञान
संपदा
के
प्रमाणों,
साक्ष्यों,
स्थापत्यों
के
सुनियोजित
विनाश
का
अभियान
चलाया।
उनके
द्वारा
हमारी
संपदा
का
विध्वंस
किये
जाने
के
प्रमाण
लगातार
मिलते
रहे
हैं।
मुख्यमंत्री
डॉ.
यादव
ने
कहा
कि
पहली
बार
सम्राट
विक्रमादित्य
की
शासन
व्यवस्था
में
ही
नवरत्नों
का
समूह
देखने
को
मिलता
है।
इन
नवरत्नों
में
सभी
अलग-अलग
विषयों
के
विशेषज्ञ
थे।
उन्होंने
सुशासन
की
व्यवस्था
स्थापित
की।
नवरत्न
सभी
परिस्थितियों
में
सुचारू
शासन
संचालन
में
सक्षम
थे।
इसी
क्रम
में
300
साल
पहले
शिवाजी
महाराज
के
अष्ट
प्रधान
की
पद्धति
में
यही
व्यवस्था
दिखाई
देती
है।
विक्रमादित्य
उज्जैन
के
सार्वभौम
सम्राट
के
रूप
में
लोक
विख्यात
हैं।
आज
विक्रमादित्य
के
अनेक
पुरातत्वीय
प्रमाण,
लेख,
मुद्रा
अवशेष
प्राप्त
हैं।
विक्रमादित्य
का
मूल
नाम
साहसांक
था
मुख्यमंत्री
डॉ.
यादव
ने
कहा
कि
सम्राट
विक्रमादित्य
की
दानशीलता,
वीरता
और
प्रजा
के
प्रति
संवेदनशीलता
अद्भुत
थी।
विक्रम-बेताल
पच्चीसी
और
सिंहासन
बत्तीसी
की
कहानियों
में
इस
प्रकार
के
कई
प्रसंग
आते
हैं।
सम्राट
विक्रमादित्य
के
आदर्शों
का
सभी
शासक
अनुसरण
करना
चाहते
थे।
विक्रमादित्य
का
मूल
नाम
साहसांक
था,
उन्हें
विक्रमादित्य
की
उपाधि
से
सुशोभित
किया
गया,
जो
उल्टे
क्रम
को
सूत्र
में
बदल
दे,
वो
विक्रम
और
जो
सूर्य
के
समान
प्रकाशमान
रहे
वो
आदित्य
का
भाव
निहीत
था।
उज्जयिनी
के
सार्वभौम
सम्राट
विक्रमादित्य
भारतीय
अस्मिता
के
उज्जवल
प्रतीक
हैं।
वे
शक
विजेता,
सम्वत्
प्रवर्तक,
वीर,
दानी,
न्यायप्रिय,
प्रजावत्सल,
स्तत्व
सम्पन्न
थे।
वे
साहित्य,
संस्कृति
और
विज्ञान
के
उत्प्रेरक
रहे।