HEALTH NEWS: नौ बार आईवीएफ फेल होने के बावजूद सरकारी अस्पताल काटजू के चिकित्सकों के प्रयास से गूंजी किलकारी

Despite IVF failing nine times, the efforts of the doctors of Katju Government Hospital brought a baby to the

बच्चे
के
साथ
डॉ.
रचना
दुबे


फोटो
:
अमर
उजाला

विस्तार

राजधानी
भोपाल
की
रहने
वाली
अमृता
को
शादी
के
12
साल
बाद
भी
कोई
जीवित
संतान
नहीं
हुई
थी।
प्राइवेट
अस्पतालों
में
महंगे
इलाज
के
बावजूद
भी
कोई
फायदा
नहीं
हुआ।
इलाज
के
बाद
बच्चे
कुछ
महीने
पेट
में
ठहरते
और
फिर
गर्भपात
हो
जाता
है।
पिछले
12
सालों
में
9
बार
उनके
साथ
ऐसा
हुआ।
इससे
अमृता
पूरी
तरह
टूट
गई
और
परिवार
भी
मायूस
रहता
था।
अमृता
के
परिजनों
को
ये
जानकारी
मिली
कि
निसंतान
दंपत्तियों
के
लिए
काटजू
चिकित्सालय
में
रोशनी
क्लिनिक
संचालित
किया
जा
रहा
है।
यहां
पर
दंपतियों
को
निशुल्क
और
गुणवत्ता
पूर्ण
सेवाएं
दी
जा
रही
हैं

Trending
Videos


बच्चेदानी
के
मुंह
में
लगाना
पड़ा
था
टांके

अस्पताल
में
स्टेट
ऑफ
आर्ट
फॉर
प्रीवेंटिव
गायनेकोलॉजी
इनफर्टिलिटी
एंड
ऑन्कोलॉजी
सेंटर
प्रभारी
डॉ.
रचना
दुबे
ने
बताया
कि
महिला
का
स्वास्थ्य
परीक्षण
कर
इनफर्टिलिटी
के
कारणों
विस्तृत
की
जांच
की
गई।
उन्होंने
बताया
कि
मां
के
आरएच
नेगेटिव
होने
एवं
गर्भस्थ
शिशु
के
आरएच
पॉजिटिव
होने
पर
शरीर
में
एंटीबॉडीज
बन
गई
है।
साथ
ही
बच्चेदानी
का
मुंह
छोटा
होने
के
कारण
हर
तीन
से
चार
महीने
में
बच्चा
अपने
आप
पेट
से
गिर
जाता
था।
डॉक्टर
दुबे
द्वारा
बच्चेदानी
के
मुंह
में
टांके
लगा
लगाए
गए
जिससे
गर्भपात
ना
हो
और
पूरे
गर्भकाल
में
समय-समय
पर
इंजेक्शन
और
दवाइयां
देकर
महिला
का
निरंतर
फॉलोअप
भी
किया
गया।
इस
बारे
में
डॉ.
रचना
दुबे
ने
बताया
कि
महिला
का
ब्लड
ग्रुप
आरएच
नेगेटिव
होने
के
कारण
आरएच
आइसो
इम्यूनाइजेशन
होने
का
खतरा
था।
अस्पताल
द्वारा
पूरे
गर्भकाल
में
महिला
की
नियमित
जांच,
उपचार
एवं
फॉलोअप
किया
गया
है।
महिला
ने
स्वस्थ
शिशु
को
जन्म
दिया
है।


विज्ञापन


विज्ञापन


निसंतान
दंपत्तियों
के
लिए
संचालित
है
रोशनी
क्लिनिक

भोपाल
सीएमएचओ
ने
बताया
कि
डॉ.
प्रभाकर
तिवारी
ने
बताया
कि
कैलाशनाथ
काटजू
महिला
चिकित्सालय
डेडीकेटेड
महिला
और
बाल्य
चिकित्सालय
के
रूप
में
संचालित
है।
यहां
पर
निसंतान
दंपत्तियों
के
लिए
संचालित
रोशनी
क्लिनिक
में
शासन
द्वारा
परामर्श
एवं
उपचार
सुविधा
उपलब्ध
करवाई
जा
रही
है।
निजी
अस्पतालों
में
यह
इलाज
काफी
महंगा
होता
है
जबकि
शासन
द्वारा
सरकारी
अस्पताल
में
ये
सुविधा
नि:शुल्क
दी
जा
रही
है।