आईआईटी
इंदौर
के
वैज्ञानिकों
ने
पारंपरिक
सीमेंट
का
पर्यावरण
पर
पड़ने
वाले
दुष्प्रभाव
को
देखते
हुए
एक
नई
और
प्रभावी
खोज
की
है।
संस्थान
के
सिविल
इंजीनियरिंग
विभाग
में
एसोसिएट
प्रोफेसर
डॉ.
अभिषेक
राजपूत
और
उनकी
शोध
टीम
ने
ऐसा
कांक्रीट
विकसित
किया
है
जिसमें
एक
भी
ग्राम
सीमेंट
का
उपयोग
नहीं
किया
गया,
फिर
भी
इसकी
मजबूती
किसी
भी
पारंपरिक
कांक्रीट
से
कम
नहीं
है।
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जियोपॉलिमर
तकनीक
से
तैयार
हुआ
सीमेंट
मुक्त
कांक्रीट
इस
कांक्रीट
को
‘जियोपॉलिमर
तकनीक’
से
तैयार
किया
गया
है।
इस
तकनीक
में
सीमेंट
के
स्थान
पर
फ्लाई
ऐश
और
ग्राउंड
ग्रेन्युलेटेड
ब्लास्ट
फर्नेस
स्लैग
(GGBS)
जैसे
औद्योगिक
अपशिष्टों
का
प्रयोग
किया
गया
है।
इससे
न
केवल
पर्यावरण
को
नुकसान
पहुंचाने
वाले
सीमेंट
की
जरूरत
खत्म
होती
है,
बल्कि
औद्योगिक
कचरे
का
भी
सही
उपयोग
होता
है।
मजबूती
और
टिकाऊपन
में
भी
अव्वल
आईआईटी
इंदौर
का
दावा
है
कि
यह
नया
कांक्रीट
पारंपरिक
कांक्रीट
की
तुलना
में
कहीं
ज्यादा
मजबूत
और
टिकाऊ
है।
खास
बात
यह
है
कि
इसे
तैयार
करने
में
पानी
की
आवश्यकता
भी
काफी
कम
होती
है,
जिससे
जल
संरक्षण
में
भी
मदद
मिलती
है।
इसका
उपयोग
मकानों
से
लेकर
बहुमंजिला
इमारतों
तक,
हर
निर्माण
कार्य
में
किया
जा
सकता
है।
कार्बन
उत्सर्जन
में
मिलेगी
बड़ी
राहत
रिपोर्ट्स
के
अनुसार,
सीमेंट
इंडस्ट्री
दुनिया
के
कुल
कार्बन
डाईऑक्साइड
(CO₂)
उत्सर्जन
में
करीब
8%
का
योगदान
देती
है।
हर
वर्ष
लगभग
2.5
अरब
टन
CO₂
केवल
सीमेंट
उत्पादन
से
वातावरण
में
छोड़ी
जाती
है।
आईआईटी
इंदौर
की
इस
खोज
से
निर्माण
क्षेत्र
में
कार्बन
उत्सर्जन
में
भारी
कटौती
संभव
हो
सकेगी।
विशेषज्ञ
मानते
हैं
कि
यह
तकनीक
भविष्य
में
‘ग्रीन
कंस्ट्रक्शन’
यानी
पर्यावरण
अनुकूल
निर्माण
की
दिशा
में
एक
बड़ी
क्रांति
ला
सकती
है।
एसजीएसआईटीएस
की
छात्रा
की
अनोखी
पहल
इस
दिशा
में
इंदौर
की
एसजीएसआईटीएस
कॉलेज
की
छात्रा
सोनल
रामटेककर
ने
भी
एक
अनोखा
प्रयोग
किया
था।
वर्ष
2023
में
सोनल
ने
प्लास्टिक
कचरे
का
उपयोग
कर
विशेष
प्रकार
का
कांक्रीट
विकसित
किया,
जो
सामान्य
कांक्रीट
की
तुलना
में
दो
गुना
हल्का
और
तीन
गुना
अधिक
मजबूत
था।
डेढ़
साल
की
रिसर्च
के
बाद
तैयार
इस
फॉर्मूले
को
अमेरिकी
संस्था
American
Society
of
Civil
Engineers
के
जर्नल
में
भी
प्रकाशित
किया
गया
था।
सोनल
द्वारा
किए
गए
बीम
टेस्ट
में
यह
कांक्रीट
50
टन
तक
का
भार
आसानी
से
झेलने
में
सक्षम
रहा।