इंदौर
के
समीप
पीथमपुर
में
भोपाल
से
लाए
गए
यूनियन
कार्बाइट
कचरे
का
निपटान
हो
गया
है।
साढ़े
तीन
माह
में
337
टन
कचरे
को
भस्मक
में
जलाया
जा
चुका
है।
अब
जो
राख
बची
है।
उसे
भी
वैज्ञानिक
विधि
से
दफनाया
जाएगा।
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कचरे
को
जलाने
के
दौरान
किसी
भी
तरह
की
हानिकारक
गैसें
तय
मानकों
से
ज्यादा
मात्रा
में
वातावरण
में
नहीं
फैली।
अब
प्रदूषण
विभाग
इसकी
रिपोर्ट
कोर्ट
में
प्रस्तुत
करेगा।
जहरीले
कचरे
को
चूने
के
साथ
जलाया
गया।
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337
टन
कचरा
जलाने
के
बाद
750
टन
राख
बची
है।
जिसे
विशेष
बैग
में
भरा
गया
है।
उसे
लीक
प्रफू
स्टोरेज
शेड
में
रखा
गया
है।
उसके
लिए
जमीन
से
डेढ़
मीटर
ऊंचाई
पर
एक
प्लेटफार्म
तैयार
किया
गया
है।
अभी
बारिश
का
समय
है।
राख
को
चार
माह
बाद
लैडफील
किया
जाएगा।
लैडफील
भी
कंपनी
परिसर
में
ही
बनाया
गया
है।
इस
प्लांट
में
दस
साल
पहले
भी
दस
टन
कचरे
को
लैंडफील
किया
जा
चुका
है।
उसके
कारण
तारापुर
गांव
के
नाले
व
कुएं
का
पानी
काला
पड़
गया
था।
30
टन
कचरे
का
ट्रायल
रन
हुआ था
भोपाल
से
पीथमपुर
2
जनवरी
को
12
कंटेनरों
में
कचरा
लाया
गया
था।
3
जनवरी
को
पीथमपुर
में
भारी
विरोध
हुआ था।
हाईकोर्ट
ने
पहले
30
टन
कचरे
का
ट्रायल
रन
करने
को
कहा
था।
30
टन
कचरा
जलाने
के
बाद
रिपोर्ट
कोर्ट
में
प्रस्तुत
की
गई।
इसके
बाद
5
मई
से
बचा
307
टन
कचरा
जलाने
का
काम
शुरु
किया
गया।
इसके
लिए
कोर्ट
ने
70
दिन
का
समय
दिया
था,
लेकिन
55
दिन
में
ही
कंपनी
ने
जहरीले
कचरे
का
नामो-निशान
मिटा
दिया।
रामकी
कंपनी
को
कचरे
के
निपटान
के
लिए
केंद्र
सरकार
ने
126
करोड़
रुपये
दिए
है।