इंदौर
में
नर्मदा
साहित्य
मंथन
के
तीन
दिवसीय
आयोजन
की
शुरुआत
शुक्रवार
से
हुई।
उद्घाटन
सत्र
में
स्वयंसेवक
संघ
के
अखिल
भारतीय
कार्यकारिणी
सदस्य
सुरेश
सोनी
ने
कहा
कि
विश्व
के
कई
देश
आतंकवाद
से
परेशान
है,
लेकिन
आतंकवाद
अस्त्रों
और
शास्त्रों
में
नहीं
है।
मेरा
ही
भगवान
ठीक
है
और मेरा
ही
मार्ग
ठीक
है,
जब
तक
यह
मजहबी
मतांनता
रहेगी।
तब
तक
आतंकवाद
खत्म
नहीं
होने
वाला,
इस
तरह
की
बातों
को
पाठ्यक्रमों
में
बदलाव
किया
जाना
चाहिए।
अब
अरब
देश
भी
बदलाव
ला
रहे
है।
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उन्होंने
कहा
कि
भगवान
के
अनेक
रुप
और
अनेक
मार्ग,
यही
बात
इसका
समाधान
हो
सकती
है।
इसके
लिए धीरे-धीरे
भारत
की
तरफ
चिंतन
आता
है।
हम
प्रकृति
में
भी
ईश्वर
को
खोजते
है।
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दूसरे
देशों
में
प्रदूषण
के
खिलाफ
आंदोलन
प्रकृति
से
प्रेम
के
कारण
नहीं
हो
रहे
है।
वहां
की
हवा
खराब
हो
रही
है।
पानी
में
प्रदूषण
बढ़
रहा
है।
समस्या
के
कारण
आंदोलन
हो
रहे
है,
लेकिन
हम
प्रकृति
को
पूजते
है।
हमारे
देश
के
पारिवारिक
मूल्यों
की
तरफ
दूसरे
देशों
का
आकर्षण
बढ़
रहा
है।
सोनी
ने
कहा
कि
दुर्भाग्य
से
हमारे
देश
में
इस्लाम
और
ईसाईयत
सभ्यता
के
आक्रमण
हुए।
उनसे
देश
राजनीतिक
रुप
से
तो
लड़ता
रहा,लेकिन
विचारधारा
के
स्तर
पर
कभी
शास्त्रार्थ
नहीं
हुए।
उनकी
मान्यताअेां
पर
कभी
बहस
नहीं
हुई,
इसलिए
इस्लाम
और ईसाईयत
को
हिन्दू
अपनी
दृष्टि
से
समझने
की
कोशिश
करता
रहा।
दयानंद
सरस्वती
पहले
व्यक्ति
थे,
जिन्होंने
दोनो
की
मान्यता,
विचारधारा
को
चुनौती
दी,
तब
समाज
ने
कुछ
समझा।
उन्होंने
कहा
कि
शास्त्रार्थ
की
पंरपरा
लुप्त
हो
जाती
है
तो
फिर
अंधश्रद्धाएं
बढ़ती
है।
वैचारिक
आक्रमणों
का
प्रतिकार
करने
में
समाज
असमर्थ
हो
जाता
है।
सोनी
ने
कहा
कि
संघर्ष
भौतिक,
शस्त्रों
से
और
वैचारिक
होता
है।
शस्त्रों
की
संघर्ष
उतना
नुकसान
नहीं
करता,
जितना
विचारों
का
करता
है।
विचारों
का
संघर्ष
गहरा
होता
है।
उन्होंने
संस्कृति
के
एक
श्लोक
की
व्याख्या
करते
हुए
कहा
कि
शत्रु
शस्त्र
से
पूरा
नहीं
मरता,शस्त्र
से
सिर्फ
शरीर
मरता
है,
लेकिन
यदि
उसकी
प्रज्ञा
मार
दी
जाए
तो
वैभव,
समृद्धि
और कुल
का
नाश
हो
जाता
है।
इस
नाते
से
प्रज्ञा
के
आक्रमण
का
प्रतिहार
महत्वपूर्ण
रहता
है।
विचारों
के
आक्रमण
में
जब
एक
विचार
को
स्थापित
किया
जाता
है
तो
फिर
संघर्ष
होता
है।
हमारे
देश
में
उसे
शास्त्रार्थ
कहा
गया
है।
उन्होंने
कहा
कि
भारत
देश
में
नए
विचारों
को
लेकर
कभी
रोक
नहीं
रही।
इससे
देश
भयभीत
भी
नहीं
हुआ।
विचारधारा
आती
है
और
चली
जाती
है।
जिसमें
सच्चाई
होती
है,
वही
टिकती
है।
भारत
देश
कई
विचारधाराएं
देख
चुका
है,
लेकिन
उसका
आत्मविश्वास
कभी
कम
नहीं
हुआ।
कार्यक्रम
के
दूसरे
सत्र
में
विश्व
कल्याण
में
रामराज्य
की
भूमिका
पर
श्याम
मनावत
ने
अपनी
बात
रखी।
देवी
अहिल्या
सभागृह
परिसर
में
एक
प्रदर्शनी
का
भी
उद्घाटन
दिलीप
सिंह
जाधव
व
प्रकाश
शास्त्री
ने
किया।