सुप्रीम
कोर्ट
–
फोटो
:
ANI
विस्तार
मध्य
प्रदेश
में
लोकायुक्त
की
नियुक्ति
का
मसला
सुप्रीम
कोर्ट
पहुंच
गया
है।
राज्य
सरकार
ने
अपने
फैसले
का
सुप्रीम
कोर्ट
में
बचाव
किया।
साथ
ही
विधानसभा
में
नेता
प्रतिपक्ष
उमंग
सिंघार
को
लेकर
कहा
कि
राजनीतिक
लाभ
के
लिए
वह
झूठे
और
बेबुनियाद
आरोप
लगा
रहे
हैं।
नेता
प्रतिपक्ष
ने
कहा
था
कि
नियुक्ति
में
उनकी
सलाह
नहीं
ली
गई।
राज्य
सरकार
ने
सुप्रीम
कोर्ट
में
कहा
कि
नेता
प्रतिपक्ष
से
सुझाव
मांगा
गया
था
लेकिन
उन्होंने
हाईकोर्ट
के
चीफ
जस्टिस
की
ओर
से
सुझाए
नाम
पर
अपनी
कोई
राय
नहीं
दी।
राज्य
सरकार
ने
कांग्रेस
नेता
उमंग
सिंघार
की
याचिका
पर
शपथ
पत्र
दाखिल
किया
है
और
अपना
जवाब
प्रस्तुत
किया
है।
सिंघार
ने
जस्टिस
(रिटायर्ड)
सत्येंद्र
कुमार
सिंह
की
लोकायुक्त
पद
पर
नियुक्ति
को
लेकर
सवाल
उठाए
हैं।
उनका
कहना
है
कि
नियुक्ति
पर
उनकी
राय
नहीं
ली
गई।
राज्य
सरकार
ने
शीर्ष
अदालत
को
बताया
कि
सिंघार
की
याचिका
सुनवाई
योग्य
नहीं
है।
लोकायुक्त
की
नियुक्ति
मध्य
प्रदेश
लोकायुक्त
एवं
उप-लोकायुक्त
अधिनियम
1981
और
कई
न्यायिक
फैसलों
में
सुप्रीम
कोर्ट
की
ओर
से
प्रतिपादित
कानूनों
का
पालन
करते
हुए
की
गई
है।
कानूनन
नेता
प्रतिपक्ष
की
राय
ली
गई
थी।
हालांकि,
उन्होंने
न
तो
कोई
राय
दी
और
न
ही
चीफ
जस्टिस
की
सिफारिश
पर
अपनी
आपत्ति
दर्ज
कराई।
इसके
बाद
वह
राजनीतिक
लाभ
उठाने
के
लिए
मीडिया
में
बेबुनियाद
और
झूठे
आरोप
लगाने
लगे।
इस
वजह
से
याचिकाकर्ता
के
मौलिक
अधिकार
का
कोई
उल्लंघन
नहीं
हुआ
है
और
इस
याचिका
को
तत्काल
प्रभाव
से
खारिज
किया
जाए।
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विज्ञापन
सिंघार
ने
कोर्ट
से
तथ्य
छिपाए
मध्य
प्रदेश
सरकार
ने
शपथ
पत्र
में
दावा
किया
कि
सिंघार
न
केवल
शीर्ष
अदालत
से
तथ्य
छिपाने
के
दोषी
हैं
बल्कि
उन्होंने
यह
जाहिर
करने
की
कोशिश
भी
की
है
कि
लोकायुक्त
की
नियुक्ति
से
पहले
उनसे
किसी
भी
तरह
की
रायशुमारी
नहीं
की
गई।
शपथ
पत्र
कहता
है
कि
हाईकोर्ट
के
चीफ
जस्टिस
की
सिफारिश
के
आधार
पर
लोकायुक्त
की
नियुक्ति
की
फाइल
नेता
प्रतिपक्ष
को
भेजी
गई
थी।
उन्हें
संबंधित
अधिकारियों
ने
प्रासंगिक
नियमों
और
प्रक्रियाओं
की
जानकारी
भी
दे
दी
गई
थी।
मुख्यमंत्री
ने
भी
उनसे
फोन
पर
विस्तृत
चर्चा
की
थी।
यह
पूरी
प्रक्रिया
सिंघार
से
प्रभावी
रायशुमारी
को
स्पष्ट
तौर
पर
दर्शाती
है।
विज्ञापन
सिंघार
ने
यह
लगाए
थे
आरोप
सिंघार
की
ओर
से
एडवोकेट
सुमीर
सोढी
ने
याचिका
दाखिल
की
थी।
इसमें
उन्होंने
कहा
था
कि
लोकायुक्त
की
नियुक्ति
पर
नेता
प्रतिपक्ष
और
हाईकोर्ट
के
चीफ
जस्टिस
की
सहमति
आवश्यक
होती
है।
इस
वजह
से
अधिनियम
की
धारा
तीन
के
तहत
राज्य
सरकार,
चीफ
जस्टिस
और
नेता
प्रतिपक्ष
से
उचित
रायशुमारी
की
जाना
आवश्यक
है।
इसके
बाद
ही
नियुक्ति
की
जानी
चाहिए।
लोकायुक्त
की
नियुक्ति
करने
में
मध्य
प्रदेश
सरकार
ने
उनसे
रायशुमारी
नहीं
की।
इस
आधार
पर
जस्टिस
(रिटायर्ड)
सिंह
की
नियुक्ति
अवैध
और
शून्य
है।
वैधानिक
प्रक्रिया
का
पालन
नहीं
किया
गया
है।
सिंघार
ने
कहा
था
कि
नियुक्ति
मनमाने
ढंग
से
की
गई
है।
यह
गलत
है
और
अवैध
तरीके
से
की
गई
है।
नियुक्ति
को
रद्द
किया
जाना
चाहिए।