Jabalpur News: नाबालिग से दुष्कर्म के दोषी पति को उम्रकैद, हाईकार्ट ने पलटा ट्रायल कोर्ट का फैसला

दुष्कर्म
के
एक
मामले
में
ट्रायल
कोर्ट
ने
पीड़िता
को
नाबालिग
मानते
हुए
आरोपी
पति
को
पॉक्सो
एक्ट
के
तहत
20
साल
की
सजा
दी।
लेकिन,
मप्र
हाईकोर्ट
की
जबलपुर
बेंच
ने
इस
फैसले
को
निरस्त
कर
दिया।
हाईकोर्ट
के
न्यायमूर्ति
विवेक
अग्रवाल
और
न्यायमूर्ति
देव
नारायण
मिश्रा
की
युगलपीठ
ने
पीड़िता
को
बालिग
माना
और
ट्रायल
कोर्ट
के
सजा
संबंधी
आदेश
निरस्त
कर
दिया। 


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जानकारी
के
अनुसार,
खंडवा
निवासी
आरोपी
पति
ने
ट्रायल
कोर्ट
के
फैसले
को
चुनौती
देते
हुए
हाईकोर्ट
में
अपील
दायर
की
थी।
अपील
में
कहा
गया
था
कि
आरोपी
और
पीड़िता
एक-दूसरे
से
प्रेम
करते
थे।
18
मई
2020
को
दोनों
ने
एक
मंदिर
में
विवाह
किया
था।
विवाह
के
बाद
वे
पति-पत्नी
की
तरह
साथ
रह
रहे
थे।
इस
दौरान
आपसी
सहमति
से
बने
शारीरिक
संबंध
के
कारण
पीड़िता
गर्भवती
हो
गई
थी।
उधर,
पीड़िता
के
पिता
ने
उसे
नाबालिग
बताते
हुए
पंधाना
थाने
में
उसकी
गुमशुदगी
की
रिपोर्ट
दर्ज
करवाई
थी,
जिसके
आधार
पर
पुलिस
ने
आरोपी
के
खिलाफ
पॉक्सो
एक्ट
के
तहत
केस
दर्ज
कर
उसे
गिरफ्तार
किया
और
ट्रायल
कोर्ट
में
प्रस्तुत
किया।


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उजाला
संवाद
इस
बार
मध्य
प्रदेश
में,
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ट्रायल
कोर्ट
में
पीड़िता
द्वारा
दिए
गए
बयान
में
खुद
उसने
अपनी
उम्र
20
वर्ष
बताई
थी।
साथ
ही
यह
भी
बताया
था
कि
उसके
पिता
ने
आरोपी
पक्ष
से
पांच
लाख
रुपये
की
मांग
की
थी,
मांग
पूरी
नहीं
होने
पर
उन्होंने
झूठी
रिपोर्ट
दर्ज
करवाई।
उसने
यह
भी
कहा
कि
उसने
कक्षा
पहली
से
पांचवीं
तक
की
पढ़ाई
सेंट
जेवियर
स्कूल
से
की
थी,
परंतु
स्कूल
से
उम्र
संबंधित
कोई
मूल
रिकॉर्ड
प्रस्तुत
नहीं
किया
गया।

पिता
के
बयान
में
विरोधाभास

ट्रायल
कोर्ट
में
पीड़िता
के
पिता
ने
स्वीकार
किया
कि
उनकी
उम्र
59
वर्ष
है
और
उनका
विवाह
22
वर्ष
की
उम्र
में
हुआ
था।
विवाह
के
चार
साल
बाद
उनकी
बड़ी
बेटी,
दो
साल
बाद
बेटा
और
डेढ़
साल
बाद
पीड़िता
का
जन्म
हुआ
था।
स्कूल
रिकॉर्ड
के
अनुसार,
जब
पीड़िता
का
कक्षा
पांचवीं
में
प्रवेश
हुआ,
तब
आयु
प्रमाणपत्र
प्रस्तुत
नहीं
किया
गया
था।
केवल
पिता
के
बताए
अनुसार
जन्मतिथि
दर्ज
की
गई
थी।
इन
तथ्यों
को
ध्यान
में
रखते
हुए
हाईकोर्ट
की
युगलपीठ
ने
माना
कि
पीड़िता
घटना
के
समय
बालिग
थी।
इस
आधार
पर
ट्रायल
कोर्ट
द्वारा
पॉक्सो
एक्ट
में
दी
गई
सजा
को
निरस्त
कर
दिया
गया
है।