Chhindwara News: झीलढाना गांव विकास से कोसों दूर, बरसात में टापू बना गांव, उफनती नदी पार कर स्कूल जाते बच्चे


छिंदवाड़ा
का
झीलढाना
गांव
आज़ादी
के
75
साल
बाद
भी
बुनियादी
विकास
की
दौड़
में
बेहद
पीछे
छूट
गया
है।
बिछुआ
विकासखंड
के
इस
आदिवासी
बहुल
गांव
की
हालत
किसी
आधुनिक
भारत
की
तस्वीर
नहीं,
बल्कि
उपेक्षा
और
अनदेखी
की
मिसाल
बन
चुकी
है।


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बरसात
में
बनता
है
टापू,
दुनिया
से
कट
जाता
है
संपर्क

गांव
को
बिछुआ-रामाकोना
मार्ग
से
जोड़ने
वाला
रास्ता
बारिश
के
दिनों
में
दलदल
और
कीचड़
से
भर
जाता
है।
गांव
से
होकर
बहने
वाली
नदी
का
जलस्तर
अचानक
बढ़
जाता
है,
जिससे
झीलढाना
टापू
बन
जाता
है
और
बाकी
दुनिया
से
उसका
संपर्क
कट
जाता
है।
आवश्यक
सेवाएं
जैसे
चिकित्सा,
राशन
और
स्कूल
तक
पहुंच
लगभग
असंभव
हो
जाती
हैं।


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प्रशासन
ने
संभाला


जान
जोखिम
में
डाल
स्कूल
जाते
हैं
बच्चे

गांव
के
प्राथमिक
और
माध्यमिक
स्कूल
में
पढ़ने
वाले
बच्चों
को
हर
रोज
उफनती
नदी
पार
करनी
पड़ती
है।

तो
नदी
पर
पुल
है
और

ही
कोई
वैकल्पिक
साधन।
बरसात
के
समय
यह
नदी
और
अधिक
खतरनाक
हो
जाती
है,
जिससे
बच्चों,
आंगनबाड़ी
में
जाने
वाले
नन्हें
बच्चों
और
गर्भवती
महिलाओं
की
जान
जोखिम
में
पड़
जाती
है।

सिर्फ
वादे,
जमीनी
हकीकत
शून्य

ग्रामीणों
का
कहना
है
कि
उन्होंने
कई
बार
पुल
निर्माण
की
मांग
को
लेकर
जनप्रतिनिधियों
और
प्रशासन
से
गुहार
लगाई,
लेकिन
हर
बार
उन्हें
सिर्फ
आश्वासन
मिला—
“प्रस्ताव
भेजा
गया
है”,
“जांच
की
जाएगी”
या
“शीघ्र
काम
शुरू
होगा”
जैसे
जवाब
मिलते
रहे।
हकीकत
ये
है
कि
अब
तक
कोई
ठोस
कार्रवाई
शुरू
नहीं
हुई।


डिजिटल
इंडिया
के
दावों
पर
सवाल

जहां
एक
ओर
सरकार
डिजिटल
इंडिया
और
स्मार्ट
गांव
की
बात
करती
है,
वहीं
झीलढाना
जैसे
गांव
आज
भी
मूलभूत
सुविधाओं
जैसे
पक्की
सड़क,
बिजली,
इंटरनेट
और
स्वास्थ्य
सेवाओं
से
वंचित
हैं।
यह
गांव
उन
सैकड़ों
ग्रामीण
इलाकों
की
तरह
है
जो
आज
भी
विकास
की
रोशनी
से
अछूते
हैं।