
भारत
की
नई
संसद।
–
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संसद
में
पहुंचने
के
लिए
शुरू
हुआ
सियासी
संग्राम
धीरे-
धीरे
रोचक
ही
नहीं,
रोमांचक
भी
होने
लगा
है।
देवीपाटन
मंडल
की
चार
सीटों
में
तीन
पर
फिलहाल
दो
दलों
ने
पांच
प्रत्याशी
उतारे
हैं।
इनमें
चार
राजनीतिक
विरासत
को
संभालने
के
लिए
मैदान
में
ताल
ठोंक
रहे
हैं।
कोई
बाबा
तो
कोई
नाना
की
विरासत
संभालने
के
लिए
सियासी
पिच
पर
खुद
को
आजमा
रहा
है।
पिता
की
जिम्मेदारी
संभालने
का
भी
जोर
दिख
रहा
है।
मतदाताओं
के
बीच
पैठ
बनाने
के
लिए
रिश्तों
की
दुहाई
दी
जा
रही
है।
पुराने
संबंधों
को
भी
खंगाला
जा
रहा
है।
अभी
सियासी
मैदान
में
लड़ाकों
की
कमी
है।
सभी
दलों
ने
पूरी
तरह
पत्ते
नहीं
खोले
हैं।
इसके
बाद
भी
जिनके
नामों
की
घोषणा
हुई
है
वह
माहौल
बनाने
में
जुट
गए
हैं।
इसमें
श्रावस्ती
संसदीय
सीट
की
बात
करें
तो
भाजपा
से
मैदान
में
उतरे
साकेत
मिश्र
अपने
नाना
बदलूराम
शुक्ल
की
विरासत
को
संभालने
में
जुटे
हैं।
बदलूराम
1971
में
बहराइच
से
सांसद
रह
चुके
हैं।
वह
श्रावस्ती
के
रहने
वाले
थे
और
तब
श्रावस्ती
क्षेत्र
बहराइच
संसदीय
सीट
से
जुड़ा
था।
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का
आकलन
करने
में
जुटे
इसी
तरह
बहराइच
के
निवर्तमान
सांसद
अछैवर
लाल
गौड़
के
बेटे
डा.
आनंद
गौड़
भाजपा
से
मैदान
में
हैं।
गोंडा
में
भी
मुकाबला
काफी
रोचक
हैं।
सपा
के
संस्थापक
नेताओं
में
शामिल
व
गोंडा
से
2009
में
सांसद
रहे
बेनी
प्रसाद
वर्मा
की
पौत्री
श्रेया
वर्मा
विपक्षी
गठबंधन
इंडिया
से
मैदान
में
डटी
हैं,
वहीं
चार
बार
सांसद
रहे
आनंद
सिंह
के
बेटे
निवर्तमान
सांसद
कीर्तिवर्धन
सिंह
एक
बार
फिर
राजघराने
की
सियासत
को
विस्तार
देने
में
पूरी
तैयारी
से
डटे
हैं।
इस
तरह
बहराइच
के
सपा
प्रत्याशी
रमेश
गौतम
को
छोड़
दें
तो
अब
तक
के
भाजपा
व
सपा
से
घोषित
चारों
प्रत्याशी
विरासत
की
जंग
में
मोर्चा
संभाले
हैं।
इनकी
जीत
पार्टी
में
कद
तो
निर्धारित
करेगी
ही,
परिवार
का
राजनीतिक
रसूख
भी
बढ़ाएगा।
पिता
के
रिकॉर्ड
को
तोड़ने
की
चुनौती
गोंडा
संसदीय
सीट
से
भाजपा
से
तीसरी
बार
कीर्तिवर्धन
सिंह
इस
बार
मैदान
हैं।
वह
भाजपा
से
दो
और
सपा
से
भी
दो
बार
सांसद
रह
चुके
हैं।
इसके
पहले
उनके
पिता
राजा
आनंद
सिंह
भी
चार
बार
(1971,
1980,
1984
व
1989)
गोंडा
लोकसभा
का
प्रतिनिधित्व
कर
चुके
हैं।
इस
तरह
उन्होंने
अपने
पिता
के
संसदीय
सफर
की
बराबरी
तो
कर
ली
है,
लेकिन
अब
वह
इस
रिकॉर्ड
को
तोड़ने
के
लिए
मैदान
में
डट
गए
हैं।
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कैसरगंज
को
अभी
रणबांकुरों
का
हैं
इंतजार
कैसरगंज
संसदीय
सीट
पर
अभी
किसी
दल
ने
पत्ते
नहीं
खोले
हैं।
पहले
आप…
के
फेर
में
दलों
की
चुप्पी
से
पूरे
क्षेत्र
में
सन्नाटा
है।
2009
में
संसदीय
सीट
के
गठन
से
बृजभूषण
शरण
सिंह
यहां
नुमाइंदगी
करते
आ
रहे
हैं।
महिला
पहलवानों
से
विवादों
के
बाद
पार्टी
में
हाशिये
पर
आए
बृजभूषण
के
दांव
की
भी
खासी
चर्चा
है।
फिलहाल
भाजपा
की
ओर
से
की
गई
पेशकश
पर
इन्कार
के
बाद
पार्टी
में
विकल्पों
पर
विचार
हो
रहा
है।
सपा
भी
बड़े
दांव
की
तैयारी
कर
रही
है।
वह
भी
इस
सीट
से
पूरे
देश
की
सियासत
को
एक
संदेश
देने
का
खाका
खींच
रही
है।
बीते
दिनों
लखनऊ
में
स्थानीय
नेताओं
की
हुई
बैठक
में
अहम
मुद्दों
पर
विचार
हुआ,
जिसमें
फिलहाल
टिकट
किसी
नामी
और
चर्चित
सितारे
को
देने
पर
चर्चा
हुई।
अभी
सहमति
नहीं
बन
सकी
है।
इससे
अभी
यहां
का
सियासी
अखाड़ा
सिर्फ
टिकट
के
खेल
से
खिलखिला
रहा
है।