आरक्षण पर सवालों के घेरे में क्यों रहा RSS: गोलवलकर कहते थे- ‘नकल करके बना तिरंगा, देश भगवा ध्वज के सामने झुकेगा’

आरक्षण पर सवालों के घेरे में क्यों रहा RSS: गोलवलकर कहते थे- ‘नकल करके बना तिरंगा, देश भगवा ध्वज के सामने झुकेगा’


2015
में
संघ
प्रमुख
मोहन
भागवत
ने
आरक्षण
की
समीक्षा
की
बात
कही
थी।
इस
साल
अप्रैल
में
उन्होंने
कहा
कि
संघ
शुरुआत
से
आरक्षण
का
समर्थक
रहा
है।

30
जनवरी
1948,
वक्त-
शाम
के
5
बजकर
10
मिनट।
जगह-
दिल्ली
का
बिड़ला
हाउस।
महात्मा
गांधी
मनु
और
आभा
के
साथ
प्रार्थना
सभा
के
लिए
निकले।
थोड़ी
दूर
चलने
के
बाद
उन्हें
भीड़
ने
घेर
लिया।
वहां
से
गांधी
जैसे
ही
आगे
बढ़े,
तभी
नाथूराम
गोडसे
उनकी
तरफ
झुका।
मनु
को
लग

.

आभा
ने
कहा
कि
देर
हो
रही
है,
आप
रास्ते
से
हट
जाइए,
लेकिन
गोडसे
ने
मनु
को
धक्का
दे
दिया।
मनु
के
हाथ
से
माला
और
किताब
नीचे
गिर
गई।
वो
जैसे
ही
माला
उठाने
के
लिए
झुकीं,
गोडसे
ने
बेरेटा
पिस्टल
निकाली
और
एक
के
बाद
एक
तीन
गोलियां
गांधी
के
सीने
और
पेट
में
उतार
दीं।

कहा
जाता
है
कि
हिंदू
महासभा
का
सदस्य
रहा
गोडसे
राष्ट्रीय
स्वयंसेवक
संघ
यानी
RSS
से
भी
जुड़ा
था।
इसलिए
गांधी
की
हत्या
को
लेकर
RSS
पर
साजिश
रचने
का
आरोप
लगा।
1
फरवरी
1948
को
RSS
प्रमुख
माधवराव
सदाशिव
गोलवलकर
गिरफ्तार
कर
लिए
गए।
तीन
दिन
बाद
यानी,
4
फरवरी
को
केंद्र
सरकार
ने
RSS
पर
बैन
लगा
दिया।

RSS
से
जुड़ा
ये
अकेला
विवाद
नहीं
है।
आजादी
के
आंदोलन
में
संघ
की
भूमिका
को
लेकर
भी
सवाल
उठते
रहे
हैं।
कई
लोग
संघ
को
मुस्लिम
विरोधी
मानते
हैं,
तो
कई
आरक्षण
विरोधी।



आज
‘RSS’
सीरीज
के
तीसरे
एपिसोड
में
संघ
और
उससे
जुड़े
विवादों
की
कहानी…

4 फरवरी 1948 को इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर, जिसमें गांधी की हत्या के बाद संघ पर बैन लगाने का जिक्र है।


4
फरवरी
1948
को
इंडियन
एक्सप्रेस
में
छपी
खबर,
जिसमें
गांधी
की
हत्या
के
बाद
संघ
पर
बैन
लगाने
का
जिक्र
है।


कंट्रोवर्सी
1
:
महात्मा
गांधी
की
हत्या
और
RSS

पहले
बात
उन
आरोपों
की,
जो
गांधी
की
हत्या
को
लेकर
संघ
पर
लगते
हैं-


  • RSS
    की
    गतिविधियों
    के
    कारण
    देश
    के
    अस्तित्व
    पर
    खतरा
    पैदा
    हुआ-
    सरदार
    पटेल

जुलाई
1948,
देश
के
गृहमंत्री
सरदार
पटेल
ने
हिंदू
महासभा
के
नेता
और
बाद
में
जनसंघ
के
संस्थापक
रहे
श्यामा
प्रसाद
मुखर्जी
को
एक
पत्र
लिखा।

पटेल
ने
लिखा-
‘गांधी
जी
की
हत्या
का
केस
अभी
कोर्ट
में
है।
इसीलिए
RSS
और
हिंदू
महासभा,
इन
दोनों
संगठनों
के
शामिल
होने
पर
मैं
कुछ
नहीं
कहूंगा,
लेकिन
हमारी
रिपोर्ट्स
में
इस
बात
की
पुष्टि
होती
है
कि
जो
हुआ,
वो
इन
दोनों
संगठनों
की
गतिविधियों
का
नतीजा
है।
RSS
की
गतिविधियों
के
कारण
भारत
सरकार
और
इस
देश
के
अस्तित्व
पर
सीधा-सीधा
खतरा
पैदा
हुआ।’


  • नाथूराम
    RSS
    में
    पले-बढ़े,
    उन्होंने
    संघ
    कभी
    नहीं
    छोड़ा-
    गोडसे
    के
    भाई

संघ
का
कहना
है
कि
नाथूराम
ने
RSS
छोड़ने
के
बाद
गांधी
की
हत्या
की,
लेकिन
1994
में
अंग्रेजी
अखबार
फ्रंटलाइन
को
दिए
इंटरव्यू
में
गोडसे
के
भाई
गोपाल
गोडसे
ने
कहा
था-
‘हम
सभी
भाई
अपने
घर
में
नहीं,
RSS
में
पले-बढ़े
हैं।
संघ
ने
कोई
प्रस्ताव
पास
नहीं
किया
था
कि
‘जाओ
गांधी
की
हत्या
कर
दो’,
लेकिन
नाथूराम
ने
कभी
संघ
नहीं
छोड़ा।’

तस्वीर 1948 की है। 6 अगस्त को गोलवलकर कुछ शर्तों के साथ जेल से रिहा हुए। उन्हें नागपुर से बाहर जाने की मनाही थी। वे करीब 6 महीने जेल में रहे थे।


तस्वीर
1948
की
है।
6
अगस्त
को
गोलवलकर
कुछ
शर्तों
के
साथ
जेल
से
रिहा
हुए।
उन्हें
नागपुर
से
बाहर
जाने
की
मनाही
थी।
वे
करीब
6
महीने
जेल
में
रहे
थे।


  • गांधी
    की
    हत्या
    के
    लिए
    व्यक्ति
    नहीं,
    संगठन
    जिम्मेदार-
    कपूर
    आयोग
    की
    रिपोर्ट

महात्मा
गांधी
की
हत्या
में
साजिश
की
जांच
को
लेकर
बने
कपूर
आयोग
की
रिपोर्ट
में
समाजवादी
नेता
जयप्रकाश
नारायण,
राममनोहर
लोहिया
और
कमलादेवी
चटोपाध्याय
के
उस
बयान
का
जिक्र
है,
जिसमें
उन्होंने
कहा
था-
‘गांधी
की
हत्या
के
लिए
कोई
व्यक्ति
जिम्मेदार
नहीं
है,
बल्कि
इसके
पीछे
एक
बड़ी
साजिश
और
संगठन
है।’


संघ
का
पक्ष
:


  • कम्युनिस्ट
    विचारों
    से
    प्रभावित
    नेहरू
    की
    आंखों
    की
    किरकिरी
    बन
    गया
    था
    RSS

संघ
की
वेबसाइट
rss.org
के
मुताबिक-
‘उन
दिनों
कांग्रेस
के
कई
नेताओं
के
संघ
से
अच्छे
संबंध
थे।
सरदार
पटेल
जैसे
नेता
स्वयंसेवकों
को
देशभक्त
मानते
थे,
लेकिन
कम्युनिस्ट
विचारों
से
प्रभावित
नेहरू
शुरुआत
से
ही
संघ
से
बैर
रखते
थे।
संघ
उनकी
आंखों
की
किरकिरी
बन
गया
था।

मुस्लिम
लॉबी
नेहरू
के
कान
भर
रही
थी
कि
संघ
वाले
मुसलमानों
को
जबरन
पाकिस्तान
में
धकेल
रहे
हैं,
पर
हकीकत
में
ऐसा
नहीं
था।
नेहरू
बिना
किसी
जांच-पड़ताल
या
सबूतों
के
भाषण
देने
लगे
कि
संघ
गांधी
जी
का
हत्यारा
है।’


  • संघ
    ने
    अपने
    कार्यों
    में
    गांधी
    जी
    के
    आदर्शों
    को
    अपनाया
    है-
    मनमोहन
    वैद्य

संघ
के
सह
सरकार्यवाह
रहे
डॉ.
मनमोहन
वैद्य
अपनी
किताब
‘वी
एंड

वर्ल्ड
अराउंड’
में
लिखते
हैं-
‘संघ
और
महात्मा
गांधी
के
बीच
हमेशा
अच्छे
रिश्ते
रहे।
16
सितंबर
1947
को
गांधी
जी
ने
अपने
भाषण
में
संघ
की
तारीफ
की
थी।
उन्होंने
वर्धा
कैंप
का
जिक्र
करते
हुए
कहा
था
कि
संघ
के
स्वयंसेवक
बेहद
अनुशासित
हैं।
उनके
भीतर
छुआछूत
नहीं
है।’


कॉन्ट्रोवर्सी
2
:
आजादी
की
लड़ाई
और
RSS
की
भूमिका

संघ
की
स्थापना
1925
में
हुई।
उसके
बाद
दो
बड़े
आंदोलन
हुए।
पहला-
महात्मा
गांधी
का
दांडी
मार्च
यानी
सविनय
अवज्ञा
आंदोलन
और
दूसरा
भारत
छोड़ो
आंदोलन।
बतौर
संगठन
RSS
दोनों
ही
आंदोलनों
में
शामिल
नहीं
हुआ।


  • संघ
    नहीं,
    व्यक्तिगत
    रूप
    से
    स्वयंसेवक
    ले
    सकते
    हैं
    आंदोलन
    में
    भाग-
    डॉ.
    हेडगेवार

वरिष्ठ
पत्रकार
विजय
त्रिवेदी
अपनी
किताब
‘संघम्
शरणं
गच्छामि’
में
लिखते
हैं-
‘1930
में
सविनय
अवज्ञा
आंदोलन
के
समय
कुछ
स्वयंसेवकों
ने
हेडगेवार
से
पूछा
कि
इसमें
शामिल
होना
चाहिए
या
नहीं।
कुछ
स्वयंसेवकों
का
कहना
था
कि
वे
संघ
की
ड्रेस
में
भगवा
ध्वज
लेकर
आंदोलन
में
शामिल
होना
चाहते
हैं।

इस
पर
हेडगेवार
ने
कहा
कि
आंदोलन
जिस
बैनर
तले
हो
रहा
है,
वह
ठीक
है।
अगर
संघ
की
ड्रेस
में
या
भगवा
ध्वज
लेकर
कोई
शामिल
होगा,
तो
विवाद
होगा।
जिसे
शामिल
होना
है,
वह
व्यक्तिगत
रूप
से
आंदोलन
में
शामिल
हो
सकता
है।’

हेडगेवार
इस
आंदोलन
में
शामिल
हुए
और
9
महीने
जेल
में
भी
रहे।
आंदोलन
में
शामिल
होने
से
पहले
उन्होंने
एलवी
परांजपे
को
अस्थाई
सरसंघचालक
बनाया
था।

जंगल सत्याग्रह आंदोलन के दौरान जेल में बंद केशव बलिराम हेडगेवार।


जंगल
सत्याग्रह
आंदोलन
के
दौरान
जेल
में
बंद
केशव
बलिराम
हेडगेवार।


  • भारत
    छोड़ो
    आंदोलन
    से
    भी
    बतौर
    संगठन
    RSS
    ने
    बनाई
    दूरी

7
अगस्त
1942
को
अखिल
भारतीय
कांग्रेस
समिति
ने
‘भारत
छोड़ो
आंदोलन’
का
प्रस्ताव
पास
किया।
अगले
दिन
यानी,
8
अगस्त
से
इस
आंदोलन
की
शुरुआत
हुई।
तब
गोलवलकर
संघ
प्रमुख
थे।
उनके
सामने
कुछ
स्वयंसेवकों
ने
आंदोलन
में
भाग
लेने
का
प्रस्ताव
रखा।

‘संघम्
शरणं
गच्छामि’
किताब
के
मुताबिक
तब
गोलवलकर
ने
कहा
कि
संगठन
के
तौर
पर
संघ
आंदोलन
में
शामिल
नहीं
होगा।
वे
खुद
भी
आंदोलन
से
दूर
रहे।
इसके
पीछ
तर्क
दिया
कि
अगर
संघ
संगठन
के
रूप
में
आंदोलन
में
शामिल
होता,
तो
अंग्रेजी
हुकूमत
इस
पर
बैन
लगा
सकती
है।

हालांकि,
संघ
की
वेबसाइट
के
मुताबिक
कई
स्वयंसेवकों
ने
भारत
छोड़ो
आंदोलन
में
भाग
लिया
था।
कुछ
स्वयंसेवकों
की
जान
भी
गई।

विजय
त्रिवेदी
अपनी
किताब
में
आगे
लिखते
हैं-
‘आजादी
मिलने
के
फौरन
बाद
कुछ
लोग
नागपुर
में
उत्सव
मनाना
चाहते
थे,
लेकिन
गोलवलकर
ने
मना
कर
दिया।
उन्होंने
कहा
कि
अंग्रेज
देश
छोड़
के
नहीं
जाने
वाले।’

1925-26 की तस्वीर, तब गोलवलकर BHU में पढ़ाई करते थे। BHU में ही गोलवलकर को संघ के बारे में पता चला था, जिसके बाद वे RSS से जुड़ गए थे।


1925-26
की
तस्वीर,
तब
गोलवलकर
BHU
में
पढ़ाई
करते
थे।
BHU
में
ही
गोलवलकर
को
संघ
के
बारे
में
पता
चला
था,
जिसके
बाद
वे
RSS
से
जुड़
गए
थे।


आरोप
:
संघ
ने
अंग्रेजों
की
मदद
की,
आजादी
की
लड़ाई
में
शामिल
नहीं
हुआ


संघ
का
पक्ष
:


  • स्वयंसेवकों
    ने
    आंदोलनों
    में
    भाग
    लिया,
    हेडगेवार
    जेल
    भी
    गए

डॉ.
मनमोहन
वैद्य
‘वी
एंड

वर्ल्ड
अराउंड’
में
लिखते
हैं-
‘भारत
में
यह
प्रोपेगैंडा
फैलाया
जाता
है
कि
कांग्रेस
और
1942
के
सत्याग्रह
की
वजह
से
ही
भारत
आजाद
हुआ।
इसमें
और
किसी
की
भूमिका
नहीं
रही।
डॉ.
हेडगेवार
ने
1921
में
सत्याग्रह
आंदोलन
में
भाग
लिया
था।
उन्होंने
1930
में
जंगल
सत्याग्रह
में
भी
भाग
लिया
और
दोनों
बार
वे
जेल
भी
गए।
1942
के
आंदोलन
में
भी
संघ
के
स्वयंसेवकों
ने
भाग
लिया
था।’


कॉन्ट्रोवर्सी
3
:
RSS
और
तिरंगा

राष्ट्रीय
स्वयंसेवक
संघ
ने
15
अगस्त
1947
और
26
जनवरी
1950
को
नागपुर
मुख्यालय
में
तिरंगा
फहराया
था।
इसके
बाद
करीब
52
साल
तक
संघ
मुख्यालय
में
तिरंगा
नहीं
फहराया
गया।

संघ
और
तिरंगे
से
जुड़ीं
किताबें
और
रिकॉर्ड्स
खंगालने
पर
कुछ
प्रमुख
वाकये
मिलते
हैं…


  • सभी
    शाखाओं
    में
    भगवा
    ध्वज
    फहराएं-
    डॉ.
    हेडगेवार

हेडगेवार
के
पत्रों
का
संग्रह
‘पत्ररूप
व्यक्तिदर्शन’
किताब
के
मुताबिक
संघ
प्रमुख
ने
कांग्रेस
के
पूर्ण
स्वराज
प्रस्ताव
का
समर्थन
करते
हुए
21
जनवरी
1930
को
एक
सर्कुलर
जारी
किया,
जिसमें
सभी
शाखाओं
में
26
जनवरी
1930
को
भगवा
ध्वज
फहराने
के
लिए
कहा
था।

तस्वीर 1949 की है। गोलवलकर यानी गुरुजी कर्नाटक के हुबली में RSS का भगवा ध्वज फहराते हुए।


तस्वीर
1949
की
है।
गोलवलकर
यानी
गुरुजी
कर्नाटक
के
हुबली
में
RSS
का
भगवा
ध्वज
फहराते
हुए।


  • ऑर्गेनाइजर
    ने
    लिखा-
    हिंदू
    कभी
    तिरंगे
    को
    स्वीकार
    नहीं
    करेंगे

1947
में
संघ
के
मुख
पत्र
कहे
जाने
वाले
ऑर्गेनाइजर
में
एक
लेख
छपा।
इसमें
लिखा
था-
‘जो
लोग
भाग्य
से
सत्ता
में

गए
हैं,
उन्होंने
हमारे
हाथों
में
तिरंगा
पकड़ा
दिया,
लेकिन
इसे
हिंदू
कभी
स्वीकार
नहीं
करेंगे।
तीन
अक्षर
अपने
आप
में
अशुभ
हैं।’


  • फ्रांस
    के
    झंडे
    से
    नकल
    करके
    बना
    तिरंगा
    :
    गोलवलकर

गोलवलकर
ने
अपनी
किताब
‘बंच
ऑफ
थॉट्स’
में
लिखा
है-
‘हमारे
नेताओं
ने
देश
के
लिए
एक
नया
झंडा
तैयार
किया
है।
उन्होंने
ऐसा
क्यों
किया?
यह
सिर्फ
बहकने
और
नकल
करने
का
मामला
है।
यह
झंडा
कैसे
अस्तित्व
में
आया?
फ्रांसीसी
क्रांति
के
दौरान
फ्रांस
ने
स्वतंत्रता,
समानता
और
भाईचारा
के
तीन
विचारों
को
व्यक्त
करने
के
लिए
अपने
झंडे
पर
तीन
पट्टियां
लगाईं।’


  • संघ
    मुख्यालय
    पर
    तिरंगा
    फहराने
    वाले
    तीन
    युवकों
    पर
    केस
    कराया

26
जनवरी
2001,
संघ
मुख्यालय
नागपुर
में
तीन
युवकों
ने
तिरंगा
फहराने
की
कोशिश
की,
तो
उनके
खिलाफ
केस
दर्ज
किया
गया।
कांग्रेस
ने
RSS
के
इस
कदम
की
आलोचना
की।
एक
साल
बाद
यानी,
26
जनवरी
2002
को
नागपुर
में
संघ
मुख्यालय
पर
तिरंगा
फहराया
गया।
1950
के
बाद
यह
पहली
बार
था,
जब
संघ
ने
नागपुर
मुख्यालय
में
तिरंगा
फहराया।


आरोप
:
संघ
तिरंगा
झंडे
को
नहीं
मानता
है


संघ
का
पक्ष
:


  • राष्ट्र
    से
    जुड़े
    सभी
    प्रतीकों
    का
    सम्मान
    करता
    है
    RSS

RSS
के
अखिल
भारतीय
प्रचार
प्रमुख
सुनील
आंबेकर
ने
एक
इंटरव्यू
में
बताया-
‘जिस
दिन
से
भारत
की
संविधान
सभा
में
निर्णय
हुआ
और
विधिवत
भारत
ने
तिरंगे
को
राष्ट्रीय
ध्वज
के
रूप
में
स्वीकार
किया,
उस
दिन
सिर्फ
संघ
ही
नहीं,
बल्कि
वो
पूरे
देश
के
लिए
राष्ट्रीय
ध्वज
हो
गया।
संघ
राष्ट्र
से
जुड़े
जितने
भी
प्रतीक
हैं,
चाहें
राष्ट्र
ध्वज
हों
या
राष्ट्रगान
हों,
उनका
सम्मान
करता
है।’

2002
तक
संघ
मुख्यालय
पर
तिरंगा
नहीं
लगाने
के
सवाल
पर
आंबेकर
ने
सफाई
देते
हुए
कहा,
‘पहले
निजी
तौर
पर
तिरंगा
फहराने
को
लेकर
कई
तरह
की
पाबंंदियां
थीं।
2004
में
सुप्रीम
कोर्ट
ने
रोक
हटाई।
तब
से
संघ
कार्यालय
पर
राष्ट्रध्वज
फहराया
जा
रहा
है।’

तस्वीर इसी साल 26 जनवरी की है। RSS के नागपुर ऑफिस में संघ प्रमुख मोहन भागवत तिरंगा फहराते हुए।


तस्वीर
इसी
साल
26
जनवरी
की
है।
RSS
के
नागपुर
ऑफिस
में
संघ
प्रमुख
मोहन
भागवत
तिरंगा
फहराते
हुए।


कॉन्ट्रोवर्सी
4
:
RSS,
मनुवाद
और
आरक्षण

अभी
तक
6
सरसंघचालक
हुए
हैं।
इनमें
से
पांच
मराठी
ब्राह्मण
और
एक
उत्तर
प्रदेश
से
आने
वाले
ठाकुर।
यानी
सभी
सवर्ण।
संघ
के
दूसरे
सरसंघचालक
गुरु
गोलवलकर
ने
अपनी
किताब
‘बंच
ऑफ
थॉट्स’
में
वर्णाश्रम
व्यवस्था
की
तारीफ
की
है।


  • संघ
    प्रमुख
    ने
    कहा-
    आरक्षण
    की
    समीक्षा
    होनी
    चाहिए,
    विरोध
    हुआ
    तो
    सफाई
    देनी
    पड़ी

सितंबर
2015
की
बात
है।
केंद्र
में
BJP
की
सरकार
बने
करीब
एक
साल
हुए
थे।
बिहार
में
विधानसभा
चुनाव
की
घोषणा
हो
चुकी
थी।
इसी
बीच
‘ऑर्गेनाइजर’
में
संघ
प्रमुख
मोहन
भागवत
का
एक
इंटरव्यू
छपा।
इसमें
उन्होंने
आरक्षण
की
समीक्षा
करने
की
बात
कही।

विपक्ष
इस
मुद्दे
को
लेकर
संघ
और
भाजपा
को
घेरने
लगा।
लालू
यादव
और
नीतीश
कुमार
ने
बिहार
चुनाव
में
इस
मुद्दे
को
खूब
भुनाया।
इसके
बाद
संघ
को
बयान
जारी
कर
सफाई
देनी
पड़ी।

29 सितंबर 2015 को संघ ने मोहन भागवत के आरक्षण के बयान पर विज्ञप्ति जारी करते हुए अपना पक्ष रखा था।


29
सितंबर
2015
को
संघ
ने
मोहन
भागवत
के
आरक्षण
के
बयान
पर
विज्ञप्ति
जारी
करते
हुए
अपना
पक्ष
रखा
था।


  • लंबे
    समय
    तक
    आरक्षण
    की
    व्यवस्था
    ठीक
    नहीं-
    मनमोहन
    वैद्य

जनवरी
2017,
जयपुर
लिटरेचर
फेस्टिवल
के
दौरान
संघ
के
सह
सरकार्यवाह
रहे
मनमोहन
वैद्य
ने
कहा-
‘डॉ.
अंबेडकर
ने
कहा
था
कि
लंबे
समय
तक
आरक्षण
की
व्यवस्था
जारी
रखना
किसी
भी
देश
के
लिए
ठीक
नहीं
है।
वह
वक्त
जरूर
आना
चाहिए
जब
सभी
को
ज्यादा
रोजगार
के
अवसर
मिलें।
आरक्षण
के
बदले
सभी
को
अधिक
अवसर
और
शिक्षा
देनी
चाहिए।
आगे
आरक्षण
देना
समाज
में
अलगाव
पैदा
कर
सकता
है।’

विवाद
बढ़ा
तो
मौजूदा
सरकार्यवाह
दत्तात्रेय
होसबोले
ने
तब
कहा
कि
मनमोहन
वैद्य
के
कहने
का
मतलब
था
कि
जब
तक
देश
में
जातिगत
भेदभाव
है,
तब
तक
आरक्षण
जारी
रहना
चाहिए।


आरोप
:
संघ
आरक्षण
विरोधी
है।


संघ
का
पक्ष
:


  • संविधान
    में
    आरक्षण
    की
    जो
    व्यवस्था
    है,
    संघ
    उसका
    समर्थन
    करता
    है

अक्टूबर
2023,
बिहार
सरकार
ने
जातिगत
जनगणना
की
रिपोर्ट
जारी
की।
कांग्रेस
और
विपक्षी
दल
केंद्र
सरकार
से
जातिगत
जनगणना
कराने
की
मांग
करने
लगे।

इसके
बाद
संघ
ने
भी
बयान
जारी
किया
कि
वह
जातिगत
जनगणना
का
समर्थन
करता
है।

28
अप्रैल
2024
को
संघ
प्रमुख
ने
कहा-
‘जब
से
आरक्षण
आया
है,
तब
से
संविधान
सम्मत
सारे
आरक्षण
को
संघ
पूर्ण
समर्थन
देता
है।
संघ
का
मानना
है
कि
आरक्षण
जिसके
लिए
है,
उन्हें
जब
तक
जरूरी
लगेगा
या
भेदभाव
जब
तक
है,
आरक्षण
जारी
रहना
चाहिए।’


कॉन्ट्रोवर्सी
5
:
RSS,
मुसलमान
और
ईसाई

‘We
and
Our
Nationhood
identified’
किताब
में
संघ
के
दूसरे
सरसंघचालक
रहे
गोलवलकर
लिखते
हैं-
‘अल्पसंख्यकों
को
दोयम
दर्जे
के
नागरिक
के
अलावा
कोई
अधिकार
नहीं
होना
चाहिए,
जब
तक
कि
वे
हिंदुओं
की
संस्कृति
को
स्वीकार
नहीं
करते।’

गोलवलकर
ने
अपनी
किताब
‘बंच
ऑफ
थॉट्स’
(पेज
नंबर
178)
में
मुस्लिमों,
ईसाइयों
और
कम्युनिस्टों
को
आंतरकि
संकट
बताया
है।

उन्होंने
मुसलमानों
के
लिए
लिखा
है-
‘देश
में
जहां
भी
एक
मस्जिद
या
मुसलमानी
मोहल्ला
है,
मुसलमान
समझते
हैं
कि
वह
उनका
अपना
स्वतंत्र
प्रदेश
है।
यदि
वहां
हिंदुओं
का
कोई
जुलूस
गाते-बजाते
जाता
है,
तो
वे
यह
कहते
हुए
क्रोधित
होते
हैं
कि
इससे
उनकी
धार्मिक
भावनाओं
को
ठेस
लगती
है।’

ईसाइयों
के
लिए
उन्होंने
लिखा
है-
‘ईसा
ने
अपने
अनुयायियों
से
कहा
कि
वो
गरीबों,
अज्ञानियों
और
दबे
कुचले
लोगों
के
लिए
अपना
सब
कुछ
दे
दें,
लेकिन
उनके
अनुयायियों
ने
व्यवहारिक
रूप
से
क्या
किया?
जहां
भी
वो
गए
‘खून
देने
वाले’
नहीं
बल्कि
‘खून
चूसने
वाले’
बने?’

गोलवलकर की किताब 'बंच ऑफ थॉट्स' का हिंदी अनुवाद विचार नवनीत है।


गोलवलकर
की
किताब
‘बंच
ऑफ
थॉट्स’
का
हिंदी
अनुवाद
विचार
नवनीत
है।


  • मोहन
    भागवत
    ने
    मदर
    टेरेसा
    पर
    लगाया
    था
    धर्मांतरण
    का
    आरोप

2015
में
मोहन
भागवत
ने
कहा
‘मदर
टेरेसा
की
सेवा
अच्छी
रही
होगी,
परंतु
इसमें
एक
उद्देश्य
हुआ
करता
था
कि
जिसकी
सेवा
की
जा
रही
है,
उसका
ईसाई
धर्म
में
धर्मांतरण
किया
जाए।’


आरोप
:
संघ
मुसलमानों
और
ईसाइयों
से
नफरत
करता
है।


संघ
का
पक्ष
:


  • गोलवलकर
    की
    किताब
    संघ
    का
    आधिकारिक
    साहित्य
    नहीं
    है

संघ
के
अखिल
भारतीय
प्रचार
प्रमुख
नरेंद्र
ठाकुर
अपनी
किताब
‘राष्ट्रीय
स्वयंसेवक
संघ
का
दृष्टिकोण’
में
लिखते
हैं-
‘वी,
ऑर
अवर
नेशनहुड
डिफाइंड’
और
‘बंच
ऑफ
थॉट्स’
संघ
का
अधिकृत
साहित्य
नहीं
है।’


  • मुसलमान
    भी
    हमारे
    हैं-
    मोहन
    भागवत

26
सितंबर
2023
को
लखनऊ
में
संघ
प्रमुख
मोहन
भागवत
ने
कहा-
‘मुसलमान
भी
हमारे
हैं
वो
हमसे
अलग
नहीं
हैं।
उनकी
पूजा
पद्धति
बदल
गई
है।
यह
देश
उनका
भी
है,
वह
भी
यहीं
रहेंगे।
संघ
का
कोई
पराया
नहीं
है।
जो
आज
हमारा
विरोध
करते
हैं
वह
भी
हमारे
हैं,
लेकिन
उनके
विरोध
से
हमारा
नुकसान
नहीं
हो,
इतनी
चिंता
हम
जरूर
करेंगे।


कॉन्ट्रोवर्सी
6
:
RSS
का
हिटलर-मुसोलिनी
कनेक्शन

इतालवी
राइटर
मार्जिया
कोसालेरी
ने
2000
में
‘इकोनॉमिक
एंड
पॉलिटिकल
वीकली’
में
एक
आर्टिकल
लिखा।
इसके
मुताबिक
हेडगेवार
के
मेंटर
और
हिंदू
महासभा
के
अध्यक्ष
रहे
डॉ.
बीएस
मुंजे
ने
1930-31
में
लंदन
में
हुए
गोलमेज
सम्मेलन
से
लौटते
हुए
इटली
के
तानाशाह
मुसोलिनी
से
मुलाकात
की
थी।

कोसालेरी
के
मुताबिक,
मुंजे
15
मार्च
से
24
मार्च
तक
इटली
में
रुके।
उन्होंने
वहां
मिलिट्री
कॉलेज,
सेंट्रल
मिलिट्री
स्कूल
ऑफ
फिजिकल
एजुकेशन,

फासिस्ट
एकेडमी
ऑफ
फिजिकल
एजुकेशन
का
दौरा
किया।

मुंजे

बाल्लिया
और
अवांगार्दिस्त
ऑर्गेनाइजेशन
के
ट्रेनिंग
सेंटर
भी
गए।
ये
दोनों
ही
ऑर्गेनाइजेशन
फासीवादी
राजनीति
के
केंद्र
थे,
जहां
युवाओं
को
फासीवादी
विचारधारा
की
ट्रेनिंग
दी
जाती
थी।
उनकी
साप्ताहिक
बैठकें
होती
थीं,
जहां
एक्सरसाइज
के
साथ
उन्हें
मिलिट्री
ट्रेनिंग
दी
जाती
थी,
उनकी
परेड
होती
थी।

इटली के तानाशाह रहे मुसोलिनी के साथ डॉ. बीएस मुंजे।


इटली
के
तानाशाह
रहे
मुसोलिनी
के
साथ
डॉ.
बीएस
मुंजे।

भारत
आने
के
बाद
उन्होंने
‘डॉ.
मुंजे
पेपर्स’
नाम
से
13
पन्नों
का
एक
लेख
लिखा।
इसमें
उन्होंने
लिखा-
‘फासिज्म
का
विचार
लोगों
को
संगठित
करता
है।
भारत,
खास
करके
हिंदुओं
को
इस
तरह
के
संगठन
की
जरूरत
है।
डॉ.
हेडगेवार
के
लीडरशिप
में
हमारा
RSS
भी
इसी
तरह
काम
कर
रहा
है।
मैं
अपना
बाकी
जीवन
RSS
के
महाराष्ट्र
और
बाकी
राज्यों
में
विस्तार
के
लिए
लगाऊंगा।’

31
जनवरी
1934
को
हेडगेवार
की
अध्यक्षता
में
फासिज्म
और
मुसोलिनी
के
बारे
में
एक
कॉन्फ्रेंस
हुई।
इसमें
डॉ.
मुंजे
भी
शामिल
थे।
तीन
महीने
बाद
यानी
31
मार्च
1931
को
हेडगेवार
और
मुंजे
ने
फिर
से
एक
मीटिंग
की।
इस
मीटिंग
में
इटली
और
जर्मनी
की
तर्ज
पर
हिंदुओं
के
लिए
मिलिट्री
ऑर्गेनाइजेशन
बनाने
को
लेकर
चर्चा
हुई।

संघ
के
दूसरे
सरसंघचालक
गोलवलकर
‘वी,
ऑर
अवर
नेशनहुड
डिफाइंड’
में
लिखते
हैं-
‘राष्ट्र
और
इसकी
संस्कृति
की
पवित्रता
को
बनाए
रखने
के
लिए,
जर्मनी
ने
देश
को
यहूदियों
से
मुक्त
करके
दुनिया
को
चौंका
दिया।
जर्मनी
ने
यह
भी
दिखाया
है
कि
जिन
नस्लों
और
संस्कृतियों
के
बीच
जड़
तक
मतभेद
हैं,
उनका
एकजुट
होना
कितना
असंभव
है,
यह
हिंदुस्तान
में
हमारे
लिए
सीखने
और
लाभ
उठाने
के
लिए
एक
अच्छा
सबक
है।’


आरोप
:
संघ
के
यूनिफॉर्म
और
ट्रेनिंग
में
मुसोलिनी
का
प्रभाव
दिखता
है।


संघ
का
पक्ष
:

डॉ.
मनमोहन
वैद्य
लिखते
अपनी
किताब
‘वी
एंड

वर्ल्ड
अराउंड’
में
लिखते
हैं,
‘संघ
के
यूनिफॉर्म
को
अपनाना,
उस
वक्त
के
भारतीय
समाज
के
लिए
एक
अच्छा
सिद्धांत
था।
जब
हम
एकता
में
अनेकता
की
बात
को
लेकर
खड़े
होते
हैं,
तो
एकता
और
अनुशासन
के
लिए
यूनिफॉर्म
जरूरी
हो
जाती
है।
उस
समय
संघ
ने
मॉडर्न
यूनिफॉर्म
को
अपनाया।’

तस्वीर 1938 की है। बीएस मुंजे (बाएं से दूसरे), हेडगेवार (बाएं से चौथे) और सावरकर (सबसे दाएं)। तीनों पुणे में हिंदू युवक परिषद की बैठक में शामिल हुए थे।


तस्वीर
1938
की
है।
बीएस
मुंजे
(बाएं
से
दूसरे),
हेडगेवार
(बाएं
से
चौथे)
और
सावरकर
(सबसे
दाएं)।
तीनों
पुणे
में
हिंदू
युवक
परिषद
की
बैठक
में
शामिल
हुए
थे।


RSS
से
जुड़ीं
ये
स्टोरीज
भी
पढ़िए…


RSS
एपिसोड-1
:
एक
कांग्रेसी
ने
शुरू
किया
RSS:मुस्लिमों
का
साथ
देने
पर
गांधी
से
असहमत
थे
हेडगेवार,
मालाबार-नागपुर
दंगे
के
बाद
पार्टी
छोड़ी


RSS
एपिसोड-2
:
संघ
का
संविधान-
हिंदू
युवक
ही
स्वयंसेवक
होगा:अब
तक
6
RSS
प्रमुख
हुए,
इनमें
5
ब्राह्मण;
पहली
बार
84
रुपए
मिला
फंड


कल
यानी
शनिवार
को
RSS
सीरीज
के
चौथे
एपिसोड
में
पढ़िए
समय
के
साथ
संघ
में
बदलाव
और
उसके
फ्यूचर
प्लान
की
कहानी…


रेफरेंस

  • वी
    एंड
    वर्ल्ड
    अराउंड-
    मनमोहन
    वैद्य
  • गुरु
    गोलवलकर
    की
    किताब-
    बंच
    ऑफ
    थॉट्स
  • सुनील
    आंबेकर
    की
    किताब,
    राष्ट्रीय
    स्वंयसेवक
    संघ,
    स्वर्णिम
    भारत
    के
    दिशा-सूत्र
  • RSS
    Interviews
    :
    Narendra
    thakur,
    k
    Aayushi
  • संघ
    दर्शन
    :
    लोकेंद्र
    सिंह
  • संघम्
    शरणम्
    गच्छामि-
    विजय
    त्रिवेदी
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