
तेहरान5
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पहले
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प्रधानमंत्री
नरेंद्र
मोदी
2016
में
ईरान
के
दौरा
पर
गए
थे।
इसी
दौरान
चाहबार
पोर्ट
पर
चर्चा
हुई
थी।
ईरान
के
चाबहार
में
शहीद
बेहेशती
पोर्ट
को
भारत
ने
10
साल
के
लिए
लीज
पर
ले
लिया
है।
भारत
और
ईरान
के
बीच
यह
डील
सोमवार
को
हुई।
अब
पोर्ट
का
पूरा
मैनेजमेंट
भारत
के
पास
होगा।
भारत
को
इसके
जरिए
अफगानिस्तान
और
सेंट्रल
एशिया
से
व्यापार
करने
के
लिए
नया
रूट
मिल
जाएगा।
पाकिस्तान
की
जरूरत
खत्म
हो
जाएगी।
यह
पोर्ट
भारत
और
अफगानिस्तान
को
व्यापार
के
लिए
वैकल्पिक
रास्ता
मुहैया
कराएगा।
डील
के
तहत
भारतीय
कंपनी
इंडिया
पोर्ट्स
ग्लोबल
लिमिटेड
(IPGL)
चाबहार
पोर्ट
में
120
मिलियन
डॉलर
का
निवेश
करेगी।
चाबहार
पोर्ट
के
समझौते
के
लिए
भारत
से
केंद्रीय
मंत्री
सर्बानंद
सोनोवाल
को
ईरान
भेजा
गया
था।
भारत
और
ईरान
दो
दशक
से
चाबहार
पर
काम
कर
रहे
हैं।
चाबहार
विदेश
में
लीज
पर
लिया
गया
भारत
का
पहला
पोर्ट
है।
क्या
है
चाबहार
पोर्ट
और
भारत
के
लिए
क्यों
जरूरी
है

भारत
दुनियाभर
में
अपने
व्यापार
को
बढ़ाना
चाहता
है।
चाहबार
पोर्ट
इसमें
अहम
भूमिका
निभा
सकता
है।
भारत
इस
पोर्ट
की
मदद
से
ईरान,
अफगानिस्तान,
आर्मेनिया,
अजरबैजान,
रूस,
मध्य
एशिया
और
यूरोप
के
साथ
सीधे
व्यापार
कर
सकता
है।
ईरान
और
भारत
ने
2018
में
चाबहार
पोर्ट
तैयार
करने
का
समझौता
किया
था।
पहले
भारत
से
अफगानिस्तान
कोई
भी
माल
भेजने
के
लिए
उसे
पाकिस्तान
से
गुजरना
होता
था।
हालांकि,
दोनों
देशों
में
सीमा
विवाद
के
चलते
भारत
को
पाकिस्तान
के
अलावा
भी
एक
विकल्प
की
तलाश
थी।
चाबहार
बंदरगाह
के
विकास
के
बाद
से
अफगानिस्तान
माल
भेजने
का
यह
सबसे
अच्छा
रास्ता
है।
भारत
अफगानिस्तान
को
गेंहू
भी
इस
रास्ते
से
भेज
रहा
है।
अफगानिस्तान
के
अलावा
यह
पोर्ट
भारत
के
लिए
मध्य
एशियाई
देशों
के
भी
रास्ते
खोलेगा।
इन
देशों
से
गैस
और
तेल
भी
इस
पोर्ट
के
जरिए
लाया
जा
सकता
है।
अमेरिका
ने
भारत
को
इस
बंदरगाह
के
लिए
हुए
समझौतों
को
लेकर
कुछ
खास
प्रतिबंधों
में
छूट
दी
है।
चाहबार
को
पाकिस्तान
के
ग्वादर
पोर्ट
की
तुलना
में
भारत
के
रणनीतिक
पोर्ट
के
तौर
पर
देखा
जा
रहा
है।
ग्वादर
को
बेल्ट
एंड
रोड
प्रोजेक्ट
के
तहत
चीन
विकसित
कर
रहा
है।
पोर्ट
के
लिए
भारत
ने
अब
तक
क्या-क्या
किया
चाबहार
पोर्ट
पर
अटल
बिहारी
वाजपेयी
सरकार
के
समय
से
काम
चलता
आया
है।
2003
में
तब
इसे
लेकर
दोनों
देशों
के
बीच
बातचीत
हुई
थी।
इसके
बाद
अमेरिका
की
ईरान
से
चल
तनातनी
से
बातचीत
को
बीच
में
ही
रोकना
पड़ा
था।
फिर
UPA
सरकार
के
दौरान
2013
में
पूर्व
प्रधानमंत्री
मनमोहन
सिंह
ने
इसके
लिए
800
करोड़
रुपए
निवेश
करने
की
बात
कही
थी।
इस
पर
बात
तब
आगे
बढ़ी
जब
2016
में
प्रधानमंत्री
नरेंद्र
मोदी
ने
ईरान
का
दौरा
किया
था।
मोदी
ने
ईरानी
राष्ट्रपति
हसन
रूहानी
और
अफगानिस्तान
के
राष्ट्रपति
अशरफ
गनी
के
साथ
इस
समझौते
पर
हस्ताक्षर
किए
थे।
भारत
ने
चाबहार
के
एक
टर्मिनल
में
700
करोड़
रुपए
निवेश
करने
की
घोषणा
की
थी।
साथ
ही
भारत
ने
इस
बंदरगाह
के
विकास
के
लिए
1250
करोड़
रुपए
का
कर्ज
देने
की
भी
घोषणा
की
थी।
फिर
पिछले
साल
नवंबर
में,
विदेश
सचिव
विनय
क्वात्रा
ने
ईरानी
विदेश
मंत्री
होसैन
अमीर-अब्दुल्लाहियन
के
साथ
कनेक्टिविटी
को
बढ़ावा
देने
पर
चर्चा
की।
चाबहार
को
विकसित
करने
वाली
भारतीय
कम्पनी
IPGL
के
अनुसार,
बंदरगाह
के
पूरी
तरह
विकसित
होने
पर
इसकी
क्षमता
82
मिलियन
टन
हो
जाएगी।
इससे
ईरान
के
बंदर
अब्बास
बंदरगाह
से
भीड़
कम
करने
में
राहत
मिलेगी।
इसी
के
साथ
इसके
नए
तकनीक
से
बने
होने
के
कारण
यहाँ
माल
की
आवाजाही
आसानी
से
हो
सकेगी।
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भी
हैं…