एस्ट्राजेनेका की कोरोना वैक्सीन से हार्ट अटैक का खतरा: ब्रिटिश कोर्ट में कंपनी ने यह माना; भारत में इसी फॉर्मूले से कोवीशील्ड बनी

एस्ट्राजेनेका की कोरोना वैक्सीन से हार्ट अटैक का खतरा: ब्रिटिश कोर्ट में कंपनी ने यह माना; भारत में इसी फॉर्मूले से कोवीशील्ड बनी


5
मिनट
पहले

  • कॉपी
    लिंक

एस्ट्राजेनेका कंपनी की वैक्सीन को भारत में कोवीशील्ड के नाम से जाना जाता है। सीरम इंस्टीट्यूट ने एस्ट्राजेनेका के फॉर्मूले से ही कोवीशील्ड को मैन्यूफैक्चर किया था। वैक्सीन को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर बनाया गया था। (फाइल) - Dainik Bhaskar


एस्ट्राजेनेका कंपनी
की
वैक्सीन
को
भारत
में
कोवीशील्ड
के
नाम
से
जाना
जाता
है।
सीरम
इंस्टीट्यूट
ने
एस्ट्राजेनेका
के
फॉर्मूले
से
ही
कोवीशील्ड
को
मैन्यूफैक्चर
किया
था।
वैक्सीन
को
ऑक्सफोर्ड
यूनिवर्सिटी
के
साथ
मिलकर
बनाया
गया
था।
(फाइल)

ब्रिटेन
की
फार्मा
कंपनी
एस्ट्राजेनेका
ने
माना
है
कि
उनकी
कोविड-19
वैक्सीन
से
खतरनाक
साइड
इफेक्ट्स
हो
सकते
हैं।
हालांकि
ऐसा
बहुत
रेयर
(दुर्लभ)
मामलों
में
ही
होगा।
एस्ट्राजेनेका
का
जो
फॉर्मूला
था
उसी
से
भारत
में
सीरम
इंस्टीट्यूट
ने
कोवीशील्ड
नाम
से
वैक्सीन
बनाई
है।

ब्रिटिश
मीडिया
टेलीग्राफ
की
रिपोर्ट
के
मुताबिक,
एस्ट्राजेनेका
पर
आरोप
है
कि
उनकी
वैक्सीन
से
कई
लोगों
की
मौत
हो
गई।
वहीं
कई
अन्य
को
गंभीर
बीमारियों
का
सामना
करना
पड़ा।
कंपनी
के
खिलाफ
हाईकोर्ट
में
51
केस
चल
रहे
हैं।
पीड़ितों
ने
एस्ट्राजेनेका
से
करीब
1
हजार
करोड़
का
हर्जाना
मांगा
है।

ब्रिटिश
हाईकोर्ट
में
जमा
किए
गए
दस्तावेजों
में
कंपनी
ने
माना
है
कि
उनकी
कोरोना
वैक्सीन
से
कुछ
मामलों
में
थ्रॉम्बोसिस
थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया
सिंड्रोम
यानी
TTS
हो
सकता
है।
इस
बीमारी
से
शरीर
में
खून
के
थक्के
जम
जाते
हैं
और
प्लेटलेट्स
की
संख्या
गिर
जाती
है।


सबसे
पहले
ब्रिटिश
नागरिक
जेमी
स्कॉट
ने
केस
किया

अप्रैल
2021
में
जेमी
स्कॉट
नाम
के
शख्स
ने
यह
वैक्सीन
लगवाई
थी।
इसके
बाद
उनकी
हालत
खराब
हो
गई।
शरीर
में
खून
के
थक्के
बनने
का
सीधा
असर
उनके
दिमाग
पर
पड़ा।
इसके
अलावा
स्कॉट
के
ब्रेन
में
इंटर्नल
ब्लीडिंग
भी
हुई।
रिपोर्ट
के
मुताबिक,
डॉक्टरों
ने
उनकी
पत्नी
से
कहा
था
कि
वो
स्कॉट
को
नहीं
बचा
पाएंगे।


कंपनी
ने
पहले
दावों
को
नकारा,
फिर
माना

पिछले
साल
स्कॉट
ने
एस्ट्राजेनेका
के
खिलाफ
शिकायत
दर्ज
कराई।
मई
2023
में
स्कॉट
के
आरोपों
के
जवाब
में
कंपनी
ने
दावा
किया
था
कि
उनकी
वैक्सीन
से
TTS
नहीं
हो
सकता
है।
इस
साल
फरवरी
में
हाईकोर्ट
में
जमा
किए
कानून
दस्तावेजों
में
कंपनी
इस
दावे
से
पलट
गई।
इन
दस्तावेजों
की
जानकारी
अब
सामने
आई
है।

हालांकि,
वैक्सीन
में
किस
चीज
की
वजह
से
यह
बीमारी
होती
है,
इसकी
जानकारी
फिलहाल
कंपनी
के
पास
नहीं
है।
इन
दस्तावेजों
के
सामने
आने
के
बाद
स्कॉट
के
वकील
ने
कोर्ट
में
दावा
किया
है
कि
एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड
की
वैक्सीन
में
खामियां
हैं
और
इसके
असर
को
लेकर
गलत
जानकारी
दी
गई।

तस्वीर जेमी स्कॉट और उनकी पत्नी केट स्कॉट की है। जेमी को अप्रैल 2021 में वैक्सीन की वजह से ब्लड क्लॉटिंग का सामना करना पड़ा था।


तस्वीर
जेमी
स्कॉट
और
उनकी
पत्नी
केट
स्कॉट
की
है।
जेमी
को
अप्रैल
2021
में
वैक्सीन
की
वजह
से
ब्लड
क्लॉटिंग
का
सामना
करना
पड़ा
था।


वैज्ञानिकों
ने
अप्रैल
2021
में
वैक्सीन
से
होने
वाली
बीमारी
की
पहचान
की

वैज्ञानिकों
ने
सबसे
पहले
मार्च
2021
में
एक
नई
बीमारी
वैक्सीन-इंड्यूस्ड
(वैक्सीन
से
होने
वाली)
इम्यून
थ्रॉम्बोसिस
थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया
सिंड्रोम
(VITT)
की
पहचान
की
थी।
पीड़ितों
से
जुड़े
वकील
ने
दावा
किया
है
कि
VITT
असल
में
TTS
का
ही
एक
सबसेट
है।
हालांकि,
एस्ट्राजेनेका
ने
इसे
खारिज
कर
दिया।


कंपनी
ने
कहा-
हमने
मानकों
का
पालन
किया

एस्ट्रजेनेका
ने
कहा,
“उन
लोगों
के
प्रति
हमारी
संवेदनाएं
हैं,
जिन्होंने
अपनों
को
खोया
है
या
जिन्हें
गंभीर
बीमारियों
का
सामना
करना
पड़ा।
मरीजों
की
सुरक्षा
हमारी
प्राथमिकता
है।
हमारी
रेगुलेटरी
अथॉरिटी
सभी
दवाइयों
और
वैक्सीन
के
सुरक्षित
इस्तेमाल
के
लिए
सभी
मानकों
का
पालन
करती
है।”

कंपनी
ने
आगे
कहा,
“क्लिनिकल
ट्रायल
और
अलग-अलग
देशों
के
डेटा
से
यह
साबित
हुआ
है
कि
हमारी
वैक्सीन
सुरक्षा
से
जुड़े
मानकों
को
पूरा
करती
है।
दुनियाभर
के
रेगुलेटर्स
ने
भी
माना
है
कि
वैक्सीन
से
होने
वाले
फायदे
इसके
दुर्लभ
साइड
इफैक्ट्स
से
कहीं
ज्यादा
हैं।”


एस्ट्राजेनेका
ने
बचाई
60
लाख
लोगों
की
जान

कंपनी
ने
यह
भी
दावा
किया
है
कि
उन्होंने
अप्रैल
2021
में
ही
प्रोडक्ट
इन्फॉर्मेशन
में
कुछ
मामलों
में
TTS
के
खतरे
की
बात
शामिल
की
थी।
कई
स्टडीज
में
यह
साबित
हुआ
है
कि
कोरोना
महामारी
के
दौरान
एस्ट्राजेनेका
की
वैक्सीन
आने
के
बाद
पहले
साल
में
ही
इससे
करीब
60
लाख
लोगों
की
जान
बची
है।

वर्ल्ड
हेल्थ
ऑर्गेनाइजेशन
(WHO)
ने
भी
कहा
था
कि
18
साल
या
उससे
ज्यादा
की
उम्र
वाले
लोगों
के
लिए
यह
वैक्सीन
सुरक्षित
और
असरदार
है।
इसकी
लॉन्चिंग
के
वक्त
ब्रिटेन
के
तत्कालीन
प्रधानमंत्री
बोरिस
जॉनसन
ने
इसे
ब्रिटिश
साइंस
के
लिए
एक
बड़ी
जीत
बताया
था।

ब्रिटेन के पूर्व PM बोरिस जॉनसन ने एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को ब्रिटिश साइंस के लिए बड़ी जीत बताया था।


ब्रिटेन
के
पूर्व
PM
बोरिस
जॉनसन
ने
एस्ट्राजेनेका
वैक्सीन
को
ब्रिटिश
साइंस
के
लिए
बड़ी
जीत
बताया
था।


ब्रिटेन
में
नहीं
इस्तेमाल
हो
रही
एस्ट्राजेनेका
की
वैक्सीन

खास
बात
यह
है
कि
इस
वैक्सीन
का
इस्तेमाल
अब
ब्रिटेन
में
नहीं
हो
रहा
है।
टेलीग्राफ
की
रिपोर्ट
के
मुताबिक,
बाजार
में
आने
के
कुछ
महीनों
बाद
वैज्ञानिकों
ने
इस
वैक्सीन
के
खतरे
को
भांप
लिया
था।
इसके
बाद
यह
सुझाव
दिया
गया
था
कि
40
साल
से
कम
उम्र
के
लोगों
को
दूसरी
किसी
वैक्सीन
का
भी
डोज
दिया
जाए।
ऐसा
इसलिए
क्योंकि
एस्ट्राजेनेका
की
वैक्सीन
से
होने
वाले
नुकसान
कोरोना
के
खतरे
से
ज्यादा
थे।

मेडिसिन
हेल्थकेयर
प्रोडक्ट्स
रेगुलेटरी
(MHRA)
के
मुताबिक
ब्रिटेन
में
81
मामले
ऐसे
हैं,
जिनमें
इस
बात
की
आशंका
है
कि
वैक्सीन
की
वजह
से
खून
के
थक्के
जमने
से
लोगों
की
मौत
हो
गई।
MHRA
के
मुताबिक,
साइड
इफेक्ट
से
जूझने
वाले
हर
5
में
से
एक
व्यक्ति
की
मौत
हुई
है।

रिपोर्ट
के
मुताबिक,
फ्रीडम
ऑफ
इन्फॉर्मेशन
के
जरिए
हासिल
किए
गए
आंकड़ों
के
मुताबिक
ब्रिटेन
में
फरवरी
में
163
लोगों
को
सरकरों
ने
मुआवजा
दिया
था।
इनमें
से
158
ऐसे
थे,
जिन्होंने
एस्ट्राजेनेका
की
वैक्सीन
लगाई
थी।


खबरें
और
भी
हैं…