भास्कर एक्सप्लेनर- क्या ईरान के राष्ट्रपति रईसी की हत्या हुई: खामेनेई के बेटे और मोसाद का नाम क्यों आ रहा; ईरान में आगे क्या होगा

भास्कर एक्सप्लेनर- क्या ईरान के राष्ट्रपति रईसी की हत्या हुई: खामेनेई के बेटे और मोसाद का नाम क्यों आ रहा; ईरान में आगे क्या होगा

ईरान
के
राष्ट्रपति
इब्राहिम
रईसी
की
हेलिकॉप्टर
क्रैश
में
मौत
हो
गई
है।
63
साल
के
रईसी
19
मई
की
शाम
करीब
7
बजे
अजरबैजान
में
एक
बांध
के
उद्घाटन
के
बाद
ईरान
लौट
रहे
थे,
इसी
दौरान
उनका
हेलिकॉप्टर
लापता
हो
गया।
रईसी
के
अलावा
विदेश
मंत्री
होसैन
अमीराब्दुल्

.

इस
हादसे
के
पीछे
बड़ी
साजिश
का
अंदेशा
जताया
जा
रहा
है।
ईरान
में
कुछ
एक्टिविस्ट्स
रईसी
की
हत्या
का
आरोप
इजराइल
पर
लगा
रहे
हैं,
तो
वहीं
कुछ
लोगों
का
कहना
है
कि
रईसी
की
मौत
से
खामेनेई
के
बेटे
मोजताबा
खामेनेई
के
लिए
सत्ता
का
रास्ता
साफ
हो
गया
है।
दरअसल,
रईसी
को
ईरान
के
मौजूदा
सुप्रीम
लीडर
आयतुल्लाह
खामेनेई
का
उत्तराधिकारी
माना
जा
रहा
था।



रईसी
की
मौत
को
लेकर
साजिश
के
आरोप
क्यों
लग
रहे
हैं,
इस
पूरे
घटनाक्रम
का
ईरान
के
अंदर
और
बाहर
क्या
फर्क
पड़ेगा,
भारत
और
ईरान
के
संबंध
आगे
कैसे
रहेंगे?
भास्कर
एक्सप्लेनर
में
ऐसे
ही
6
जरूरी
सवालों
के
जवाब
जानेंगे…


सवाल-1:
ईरान
में
नए
राष्ट्रपति
का
चुनाव
कब
तक
होगा?
जवाब:

ईरान
की
सरकार
ने
राष्ट्रपति
रईसी
की
मौत
के
बाद
इमरजेंसी
कैबिनेट
मीटिंग
बुलाई।
देश
के
उप-राष्ट्रपति
मोहम्मद
मुखबेर
ने
इस
बैठक
की
अध्यक्षता
की।
इस
दौरान
रईसी
को
श्रद्धांजलि
देने
के
लिए
उस
सीट
को
खाली
रखा
गया,
जहां
वे
बैठते
थे।

ईरान
के
सर्वोच्च
धार्मिक
नेता
आयतुल्लाह
खामेनेई
ने
राष्ट्रपति
रईसी
की
मौत
पर
देश
में
5
दिन
के
राजकीय
शोक
का
ऐलान
किया
है।
वहीं
ईरान
की
कल्चर
मिनिस्ट्री
ने
देश
भर
में
सभी
कल्चरल
एक्टिविटीज
पर
7
दिन
के
लिए
रोक
लगा
दी
है।

ईरान
में
राष्ट्रपति
को
सरकार
का
हेड,
जबकि
सुप्रीम
लीडर
को
‘हेड
ऑफ
स्टेट’
कहा
जाता
है।
ईरान
के
संविधान
के
मुताबिक,
अगर
राष्ट्रपति
की
अचानक
मौत
होती
है
तो
उप-राष्ट्रपति
को
पद
सौंपा
जाता
है।
इसके
लिए
सुप्रीम
लीडर
आयतुल्लाह
अली
खामेनेई
अप्रूवल
देते
हैं।

ईरान
में
मोहम्मद
मुखबेर
उप-राष्ट्रपति
हैं।
लिहाजा
मुखबेर
को
देश
का
नया
अंतरिम
राष्ट्रपति
बनाया
गया
है।
उनके
पद
संभालने
के
बाद
ईरान
में
अगले
50
दिन
के
अंदर
राष्ट्रपति
चुनाव
कराने
होंगे।
वहीं
होसैन
अमीराब्दुल्लाहियन
की
जगह
उप
विदेश
मंत्री
बाघेरी
कनी
को
नया
विदेश
मंत्री
बनाया
गया
है।


सवाल-2:
क्या
रईसी
की
मौत
से
ईरान
में
राजनीतिक
संकट
और
सत्ता
की
लड़ाई
शुरू
होगी?
जवाब:

राष्ट्रपति
रईसी
ने
अपने
3
साल
के
कार्यकाल
के
दौरान
मिडिल-ईस्ट
में
ईरान
का
प्रभाव
बढ़ाने
के
लिए
काम
किया
था।
रईसी
ने
ईरान
का
राष्ट्रपति
रहते
हुए
मिडिल-ईस्ट
के
कई
देशों
में
सशस्त्र
समूहों
का
समर्थन
किया।
कई
पश्चिमी
देशों
ने
ईरान
के
साथ
न्यूक्लियर
डील
की
थी,
लेकिन
अमेरिका
के
पीछे
हटने
के
बाद
भी
रईसी
ने
ईरान
के
अपने
न्यूक्लियर
प्रोग्राम
को
गति
देने
की
कोशिश
की
थी।

रईसी
का
हेलिकॉप्टर
क्रैश
होने
की
खबर
आने
के
बाद
खामेनेई
ने
राष्ट्रीय
सुरक्षा
परिषद
के
साथ
आपात
बैठक
की।
उन्होंने
कहा,
‘ईरान
का
प्रशासन
इस
हादसे
से
प्रभावित
नहीं
होगा।
लोग
चिंता
ना
करें,
सरकार
के
काम
प्रभावित
नहीं
होंगे।’

जवाहर
लाल
नेहरू
यूनिवर्सिटी
के
प्रोफेसर
एके
पाशा
अंतरराष्ट्रीय
मामलों
के
जानकार
हैं।
वे
कहते
हैं,
‘रईसी
लंबे
समय
तक
ईरान
की
न्यायपालिका
के
प्रमुख
रहे।
उन
पर
बड़ी
तादाद
में
सरकार
के
विपक्षियों
को
मारने
के
आरोप
हैं।
उनकी
हार्ड
लाइन
पॉलिसीज
के
चलते
लोग
उनसे
नाखुश
रहे
हैं।
इसके
अलावा
ईरान
की
आर्थिक
स्थिति
खराब
होती
जा
रही
है।
सरकार
डिफेंस
और
सिक्योरिटी
पर
बहुत
पैसा
खर्च
कर
रही
है।
अभी
ईरान
में
जो
स्थिति
है,
ऐसा
लगता
है
कि
सरकार
के
खिलाफ
प्रदर्शन
करेंगे।
देखना
होगा
कि
सरकार
इससे
कैसे
निपटती
है।’

मीडिया
रिपोर्ट्स
के
मुताबिक,
जानकार
मानते
हैं
कि
रईसी
की
मौत
के
बाद
ईरान
की
विदेश
या
घरेलू
नीतियों
पर
ज्यादा
असर
नहीं
पड़ेगा।
जानकारों
का
मानना
है
कि
भले
ही
रईसी
को
खामेनेई
के
उत्तराधिकारी
के
तौर
पर
देखा
जा
रहा
था,
लेकिन
ईरान
में
सुप्रीम
नेता
के
पास
ही
सबसे
ज्यादा
ताकत
होती
है।
वही
ईरान
की
नीतियों
को
तय
करता
है।

एके
पाशा
कहते
हैं
कि
रईसी
को
ईरानी
लोग
बहुत
गंभीरता
से
नहीं
लेते।
2022
में
जब
विरोध
प्रदर्शन
हुए
तब
रईसी
नहीं,
बल्कि
खामेनेई
ही
प्रदर्शनकारियों
के
निशाने
पर
रहे
थे।

रईसी
को
ईरान
में
एक
कट्टरपंथी
मौलाना
माना
जाता
था।
ईरान
के
सुप्रीम
लीडर
खामेनेई
की
उम्र
85
साल
हो
चली
है।
वह
कैंसर
से
भी
जूझ
रहे
हैं।
ऐसे
में
खामेनेई
के
वफादार
और
बेहद
करीबी
रहे
रईसी
को
उनका
उत्तराधिकारी
माना
जा
रहा
था।
ईरान
की
सत्ता
में
उसकी
फोर्स
‘इस्लामिक
रिवोल्यूशनरी
गार्ड्स
कॉर्प्स’
(IRGC)
की
बड़ी
भूमिका
रहती
है।
रईसी
को
IRGC
भी
पसंद
करती
थी।

रईसी
के
जाने
के
बाद
अब
खामेनेई
के
दूसरे
सबसे
बड़े
बेटे
मोजताबा
खामेनेई
का
रास्ता
लगभग
साफ
है।
पाशा
कहते
हैं,
‘ईरान
की
सरकार
में
दो
धड़े
बंट
गए
हैं।
एक
धड़ा
ऐसा
है
जो
कि
अब
मुल्लाओं
का
कट्टरपंथी
शासन
पसंद
नहीं
करता
है।
जबकि
दूसरा
धड़ा
जो
रईसी
के
कट्टरपंथी
शासन
के
समर्थन
में
था,
उसकी
तादाद
कम
होती
जा
रही
है।
रईसी
की
कई
मामलों
पर
मोजताबा
से
झड़प
होती
रही
है।
शुरुआत
में
खामेनेई,
रईसी
के
पक्ष
में
दिखते
थे,
लेकिन
बाद
में
चुप
हो
गए।
ये
भी
हो
सकता
है
कि
रईसी
की
मौत
के
पीछे
खामेनेई
के
ही
कुछ
करीबी
लोगों
का
हाथ
हो।’

ईरानी
पत्रकार
मसीह
अलीनेजाद
ने
भी
सोशल
मीडिया
साइट
X
पर
लिखा
कि
एक
कॉन्स्पिरेसी
थ्योरी
ये
भी
है
कि
इस
हादसे
में
खामेनेई
के
बेटे
का
हाथ
हो
सकता
है,
ताकि
वो
अपने
पिता
की
जगह
लेने
का
रास्ता
आसान
कर
सके।


सवाल-3:
रईसी
की
मौत
का
ईरान-भारत
संबंधों
पर
क्या
फर्क
पड़ेगा?
जवाब:

कुछ
समय
से
भारत
और
ईरान
के
रिश्ते
ठीक
चल
रहे
हैं।
भारत
के
ईरान
से
पुराने
व्यापारिक
रिश्ते
भी
रहे
हैं।
इसी
साल
13
मई
को
ईरान
के
चाबहार
में
शाहिद
बेहेशती
पोर्ट
को
भारत
ने
10
साल
के
लिए
लीज
पर
लिया
है।
अब
पोर्ट
का
पूरा
मैनेजमेंट
भारत
के
पास
होगा।
यह
विदेश
में
लीज
पर
लिया
गया
भारत
का
पहला
पोर्ट
है।
भारत
को
इसके
जरिए
अफगानिस्तान
और
सेंट्रल
एशिया
से
व्यापार
करने
के
लिए
नया
रूट
मिल
जाएगा।

भारत
इस
पोर्ट
की
मदद
से
ईरान,
अफगानिस्तान,
आर्मेनिया,
अजरबैजान,
रूस,
मध्य
एशिया
और
यूरोप
के
साथ
सीधे
व्यापार
कर
सकता
है।
डील
के
तहत
भारतीय
कंपनी
इंडिया
पोर्ट्स
ग्लोबल
लिमिटेड
(IPGL)
चाबहार
पोर्ट
में
120
मिलियन
डॉलर
का
निवेश
करेगी।

पहले
भारत
से
अफगानिस्तान
कोई
भी
माल
भेजने
के
लिए
उसे
पाकिस्तान
से
गुजरना
होता
था।
हालांकि,
दोनों
देशों
में
सीमा
विवाद
के
चलते
भारत
को
पाकिस्तान
के
अलावा
भी
एक
विकल्प
की
तलाश
थी।
चाबहार
बंदरगाह
के
विकास
के
बाद
से
अफगानिस्तान
माल
भेजने
का
यह
सबसे
अच्छा
रास्ता
है।

अमेरिका
ने
भारत
को
इस
बंदरगाह
के
लिए
हुए
समझौतों
को
लेकर
कुछ
खास
प्रतिबंधों
में
छूट
दी
है।
चाबहार
को
पाकिस्तान
के
ग्वादर
पोर्ट
की
तुलना
में
भारत
के
रणनीतिक
पोर्ट
के
तौर
पर
देखा
जा
रहा
है।
ग्वादर
को
बेल्ट
एंड
रोड
प्रोजेक्ट
के
तहत
चीन
विकसित
कर
रहा
है।

इधर
रईसी
की
मौत
पर
प्रधानमंत्री
मोदी
ने
भी
दुख
जताया
है।
उन्होंने
एक
सोशल
मीडिया
पोस्ट
में
कहा,
‘रईसी
की
अचानक
मौत
से
स्तब्ध
हूं।
उन्होंने
भारत-ईरान
के
द्विपक्षीय
रिश्तों
को
आगे
बढ़ाने
में
अहम
भूमिका
निभाई।
उनके
परिवार
और
ईरान
के
लोगों
के
प्रति
मेरी
संवेदनाएं
हैं।
भारत
इस
मुश्किल
घड़ी
में
ईरान
के
साथ
खड़ा
है।’

भारत
के
विदेश
मंत्री
एस
जयशंकर
ने
भी
कहा,
‘मैंने
जनवरी
में
ही
उनके
मुलाकात
की
थी।
हादसे
की
खबर
से
बेहद
दुखी
हूं।’

एके
पाशा
कहते
हैं
कि
रईसी
ने
भारत
से
रिश्ते
बेहतर
करने
की
पूरी
कोशिश
की
थी,
लेकिन
खाड़ी
के
दूसरे
देशों
या
फिर
अमेरिका
के
दबाव
के
चलते
भारत
की
तरफ
से
उतनी
सकारात्मक
प्रतिक्रिया
नहीं
दी
गई।
ईरान
के
नए
राष्ट्रपति
के
चुनाव
के
बाद,
वह
भारत
से
चल
रही
बातचीत
और
समझौतों
की
फाइलों
को
नए
तरीके
से
देखेंगे,
उसके
बाद
ही
नए
सिरे
से
भारत
को
लेकर
नीतियां
बनाएंगे।

पाशा
के
मुताबिक,
‘अगर
हम
अमेरिका
के
दबाव
में
ईरान
को
लेकर
सकारात्मक
नहीं
रहे
तो
जल्द
ही
ईरान,
चीन,
पाकिस्तान
और
रूस
के
साथ
एक
अलायंस
की
भूमिका
में

जाएगा।
यह
भारत
के
लिए
चिंताजनक
स्थिति
होगी।’


सवाल-4:
ईरान
ने
रईसी
की
मौत
के
लिए
अमेरिकी
पाबंदियों
को
जिम्मेदार
ठहराया,
क्या
इजराइल
या
अमेरिका
ने
कोई
साजिश
की?
जवाब:

ईरानी
सोशल
मीडिया
पर
ये
सवाल
उठाया
जा
रहा
है
कि
ऐसा
कैसे
हो
सकता
है
कि
रईसी
के
काफिले
के
दो
हेलिकॉप्टर
सही-सलामत
पहुंच
गए
और
रईसी
का
हेलिकॉप्टर
क्रैश
हो
गया।

ईरान
के
पूर्व
विदेश
मंत्री
मोहम्मद
जावेद
जरीफ
ने
आरोप
लगाया
है
कि
राष्ट्रपति
रईसी
की
मौत
के
लिए
अमेरिकी
पाबंदियां
जिम्मेदार
हैं।
जरीफ
ने
कहा
कि
ईरान
की
एविएशन
इंडस्ट्री
पर
अमेरिकी
प्रतिबंधों
की
वजह
से
देश
को
जरूरी
सामान
नहीं
मिल
सका।
इसके
चलते
हेलिकॉप्टर
क्रैश
में
राष्ट्रपति
की
जान
गई।

‌‌BBC
की
एक
खबर
के
मुताबिक,
अमेरिका
के
सीनेटर
चक
शूमर
ने
कहा
है
कि
अमेरिकी
खुफिया
एजेंसियों
के
अधिकारियों
से
हुई
बातचीत
ये
बताती
है
कि
अभी
ऐसे
कोई
सबूत
नहीं
हैं,
जिसके
आधार
पर
रईसी
की
हत्या
में
किसी
साजिश
की
बात
कही
जा
सके।
हालांकि,
शूमर
ने
ये
भी
कहा
कि
वह
हालात
पर
नजर
बनाए
हुए
हैं।

उन्होंने
कहा,
नॉर्थ-वेस्ट
ईरान
जहां
ये
हेलिकॉप्टर
क्रैश
हुआ,
वहां
मौसम
बहुत
खराब
था।
ऐसे
में
ये
हादसा
लगता
है,
मगर
इसकी
पूरी
तरह
से
जांच
होनी
बाकी
है।

अमेरिकी
राज्य
फ्लोरिडा
के
सांसद
माइकल
वॉल्ट्ज
ने
रईसी
की
मौत
पर
खुशी
जताई।
उन्होंने
कहा
कि
ये
अच्छी
बात
है
कि
हमें
उनसे
छुटकारा
मिल
गया।
उन्होंने
मानवाधिकारों
की
हत्या
की
थी।

फ्लोरिडा
के
ही
रिपब्ल्किन
सीनेटर
रिक
स्कॉट
ने
भी
कहा
कि
रईसी
के
जाने
से
दुनिया
और
सुरक्षित
हो
गई
है।
उन्होंने
कहा,
‘ईरान
की
जनता
रईसी
से
प्यार
नहीं
करती
थी
और
अब
उन्हें
कोई
याद
नहीं
रखेगा।
ईरानी
जनता
हत्यारे
तानाशाहों
से
देश
को
मुक्त
कराने
में
कामयाब
होगी।’

माइकल
वॉल्ट्ज
ने
अंदेशा
जताया
है
कि
ईरान
इस
घटना
के
लिए
अमेरिका
और
इजराइल
को
जिम्मेदार
ठहरा
सकता
है।

एके
पाशा
कहते
हैं,
‘असल
बात
ये
है
कि
कई
सालों
से
ईरान
और
अजरबैजान
के
ताल्लुक
खराब
हैं।
अजरबैजान
और
आर्मेनिया
के
बीच
जमीन
के
विवाद
को
लेकर
इजराइल
और
अमेरिका,
अजरबैजान
का
समर्थन
करते
रहे
हैं।
मोसाद,
अजरबैजान
में
बहुत
सक्रिय
है।
हो
सकता
है
कि
बांध
के
उद्घाटन
के
कार्यक्रम
के
दौरान
जितनी
देर
रईसी
का
हेलिकॉप्टर
रुका
रहा
हो,
उस
दौरान
मोसाद
ने
हेलिकॉप्टर
का
कोई
पुर्जा
निकाल
लिया
हो।’

पाशा
कहते
हैं,
‘चीन
के
अखबार
ग्लोबल
टाइम्स
ने
दावा
किया
है
कि
इजराइल
ही
रईसी
की
हत्या
में
शामिल
है।
हो
सकता
है
उन्हें
कुछ
और
इनपुट्स
मिले
हों।
हालांकि,
अभी
ये
सिर्फ
आशंकाएं
हैं
कि
मोसाद,
CIA
या
अजरबैजान
ने
रईसी
की
हत्या
की
साजिश
रची
हो।’


सवाल-5:
इजराइल-हमास
जंग
को
लेकर
अब
ईरान
का
रुख
क्या
रहेगा?
जवाब:

इजराइल
और
ईरान,
साल
1979
तक
एक-दूसरे
के
सहयोगी
हुआ
करते
थे।
1979
में
ईरान
में
इस्लामिक
क्रांति
हुई
और
देश
में
जो
सरकार
आई
वह
विचारधारा
के
स्तर
पर
इजराइल
की
घोर
विरोधी
थी।
अब
ईरान
इजराइल
के
अस्तित्व
को
स्वीकार
नहीं
करता
और
उसे
पूरी
तरह
खत्म
करने
की
वकालत
करता
है।

खामेनेई
कहते
रहे
हैं
कि
‘इजराइल
‘कैंसर
का
ट्यूमर’
है,
उसे
बेशक
‘जड़ों
से
उखाड़
फेंका
जाएगा
और
बर्बाद
कर
दिया
जाएगा।’

इजराइल
भी
मानता
है
कि
ईरान
उसके
अस्तित्व
के
लिए
खतरा
है।
इजराइल
का
कहना
है
कि
ईरान
फिलिस्तीनी
हथियारबंद
समूहों
और
लेबनान
में
शिया
गुट
हिजबुल्लाह
को
फंड
करता
है।
इजराइल
और
हमास
की
जंग
के
दौरान
हिजबुल्लाह
भी
हमास
की
तरफ
से
इजराइल
के
खिलाफ
हमले
करने
लगा।

बीते
अप्रैल
में
कथित
तौर
पर
इजराइल
ने
सीरिया
की
राजधानी
दमिश्क
में
ईरान
के
वाणिज्य
दूतावास
पर
हमला
किया।
इसमें
ईरान
के
कई
अधिकारियों
की
मौत
हो
गई।
रईसी
ने
तब
कहा
था
कि
ईरानी
इलाके
में
इजराइल
के
हमले
हुए
तो
इजराइल
को
इसका
अंजाम
भुगतना
होगा।
इसके
कुछ
ही
दिन
बाद
ईरान
ने
इजराइल
पर
भी
पहली
बार
कई
मिसाइल
अटैक
किए।

इसके
पहले
भी
ईरान
और
इजराइल
एक-दूसरे
के
ठिकानों
पर
हमले
करते
रहे
हैं,
लेकिन
तब
दोनों
देशों
में
कोई
भी
इन
हमलों
की
जिम्मेदारी
नहीं
लेता
था।

गाजा
में
इजराइल
हमास
जंग
के
दौरान
अब
ईरान
खुलकर
फिलिस्तीनियों
का
साथ
दे
रहा
है।
19
मई
को
अजरबैजान
में
बांध
के
उद्घाटन
के
बाद
रईसी
ने
फिलिस्तीनियों
के
लिए
ईरान
का
समर्थन
जारी
रखने
की
बात
कही
थी।
उन्होंने
कहा
था
कि,
‘हम
ये
मानते
हैं
कि
फिलिस्तीन
मुस्लिम
दुनिया
का
सबसे
अहम
मुद्दा
है
और
हम
इस
बात
को
लेकर
निश्चिंत
हैं
कि
ईरान
और
अजरबैजान
के
लोग
हमेशा
फिलिस्तीन
और
गाजा
के
लोगों
का
समर्थन
करते
हैं
और
इजराइल
के
यहूदीवादी
शासन
से
नफरत
करते
हैं।’

रईसी
की
मौत
के
बाद
इजराइल
के
खिलाफ
युद्ध
लड़
रहे
हमास
का
बयान
भी
सामने
आया
है।
हमास
ने
कहा,
‘हमारी
संवेदनाएं
खामेनेई,
ईरान
की
सरकार
और
ईरान
के
लोगों
के
साथ
हैं।
दुख
और
मुश्किल
की
इस
स्थिति
में
हम
ईरान
के
साथ
हैं।
हादसे
में
ईरान
के
उन
नेताओं
की
जान
चली
गई,
जिन्होंने
ईरान
के
हित
के
लिए
लंबी
लड़ाई
लड़ी
और
हमारी
लड़ाई
में
भी
पूरा
सहयोग
दिया।’

हमास
ने
ये
भी
कहा,
‘यहूदियों
के
अत्याचार
के
खिलाफ
फिलिस्तीनियों
की
लड़ाई
में
उन्होंने
हमेशा
हमारा
साथ
दिया।
हमें
भरोसा
है
कि
ईरान
के
लोग
इस
दुखद
हादसे
से
बाहर
निकलने
में
कामयाब
रहेंगे।’

एके
पाशा
कहते
हैं,
‘अगर
हिजबुल्लाह
को
दिए
जाने
वाले
समर्थन
से
तुलना
करें
तो
ईरान,
हमास
को
बहुत
कम
सपोर्ट
करता
है।
हमास
का
सबसे
बड़ा
मददगार
देश
कतर
है।
रईसी
की
मौत
के
बाद
हमास
और
गाजा
को
लेकर
ईरान
के
रुख
में
कोई
खास
बदलाव
नहीं
आएगा।’


सवाल-6:
क्या
ईरान
पर
अंतरराष्ट्रीय
दबाव
बढ़ेगा?
जवाब:

हमास
और
इजराइल
के
बीच
जंग
शुरू
होने
के
बाद
ईरान
ने
लगातार
हमास
के
लिए
अपना
समर्थन
जाहिर
किया
है।
इधर
यूक्रेन
और
रूस
के
बीच
जंग
के
दौरान
ईरान
ने
रूस
की
मदद
की
है।
अमेरिका
और
पश्चिमी
देश,
ईरान
के
इस
रुख
के
खिलाफ
हैं।

एके
पाशा
कहते
हैं
कि
इजराइल
के
प्रधानमंत्री
बेंजामिन
नेतन्याहू
के
खिलाफ
इंटरनेशनल
क्रिमिनल
कोर्ट
में
मुकदमा
चलाने
की
तैयारी
की
जा
रही
है।
इससे
ध्यान
हटाने
के
लिए
ईरान
पर
दबाव
बनाने
की
कोशिश
की
जा
सकती
है,
लेकिन
ऐसा
हाल-फिलहाल
होने
की
संभावना
नहीं
है।
सबसे
खास
बात
यह
है
कि
ईरान
हमारी
तरफ
हाथ
बढ़ा
रहा
है
और
हम
अमेरिका
के
दबाव
में
पीछे
हट
रहे
हैं।
ऐसे
में
अगले
साल
तक
ईरान
के
पाकिस्तान
और
चीन
के
साथ
जाने
और
कई
समझौते
करने
की
आशंका
है।