
18
मई
1974
यानी
आज
से
ठीक
50
साल
पहले।
मशहूर
उद्योगपति
और
भारत
के
एटॉमिक
एनर्जी
कमीशन
(AEC)
के
सदस्य
जेआरडी
टाटा
सिंगापुर
के
प्रधानमंत्री
ली
कुआन
यू
के
साथ
एक
मीटिंग
कर
रहे
थे।
PM
ने
टाटा
से
पूछा-
क्या
आपका
देश
परमाणु
बमों
में
भरोसा
रखता
है।
.
टाटा
ने
जवाब
दिया-
नहीं।
ली
कुआन
यू
ने
हैरानी
जताते
हुए
कहा
कि
रेडियो
पर
ये
समाचार
कहां
से
आया
कि
भारत
ने
अभी-अभी
परमाणु
विस्फोट
किया
है।
ये
सुनकर
टाटा
सन्न
रह
गए,
क्योंकि
उनके
पास
पहले
से
इसकी
कोई
जानकारी
नहीं
थी।
कुछ
ऐसा
ही
हाल
उस
वक्त
के
रक्षामंत्री
जगजीवन
राम
का
भी
था।
जब
उन्हें
ब्रीफ
किया
गया
कि
भारत
ने
आज
ही
परमाणु
परीक्षण
किया
है
तो
जगजीवन
राम
ने
चिढ़ते
हुए
कहा-
अब
बताने
से
क्या
फायदा?
तत्कालीन
वायु
सेना
प्रमुख
एयर
चीफ
मार्शल
ओपी
मेहरा
को
जब
पता
चला
कि
पोकरण
परीक्षण
स्थल
पर
आर्मी
प्रमुख
जनरल
बेवूर
मौजूद
थे,
तो
वे
नाराज
हो
गए।
उन्होंने
PM
इंदिरा
गांधी
से
कहा,
‘मैं
इस्तीफा
देना
चाहता
हूं।
मुझे
परमाणु
बम
विस्फोट
की
जानकारी
क्यों
नहीं
दी
गई?’
18
मई
1974
को
जब
इंदिरा
गांधी
सरकार
ने
परमाणु
बम
का
परीक्षण
किया
तो
इसकी
जानकारी
बहुत
कम
लोगों
को
थी।
देश
के
पहले
न्यूक्लियर
टेस्ट
की
50वीं
सालगिरह
पर
ऑपरेशन
बुद्धा
की
रोचक
कहानी,
जिसके
बाद
चीन-अमेरिका
कभी
आंख
नहीं
दिखा
पाए…

पोकरण
में
परमाणु
टेस्ट
के
बाद
हुआ
विशालकाय
गड्ढा।
पोकरण
में
20
रुपए
बीघा
पर
खरीदी
गई
टेस्टिंग
साइट
1962
में
चीन
से
युद्ध
हारने
के
बाद
मशहूर
वैज्ञानिक
होमी
भाभा
ने
देश
को
परमाणु
हथियार
संपन्न
बनाने
पर
काम
शुरू
कर
दिया
था।
24
जनवरी
1966
में
होमी
भाभा
की
विमान
दुर्घटना
में
मौत
के
बाद
उनके
शिष्य
होमी
सेठना
की
अनदेखी
कर
विक्रम
सारा
भाई
को
AEC
का
अध्यक्ष
बनाया
गया।
ये
वो
समय
था
जब
भारत
कर्ज
में
डूबा
हुआ
था।
लाल
बहादुर
शास्त्री
के
बाद
इंदिरा
गांधी
PM
बनीं
तो
उन्होंने
परमाणु
कार्यक्रम
आगे
बढ़ाने
में
सहयोग
किया।
1971
में
पाकिस्तान
से
युद्ध
में
जब
अमेरिका
ने
अपना
7वां
बेड़ा
भेजा
और
परमाणु
बम
की
धमकी
दी
तो
इंदिरा
को
लगा
भारत
को
भी
इसका
जवाब
तैयार
करना
होगा।
इसके
बाद
इंदिरा
ने
परमाणु
बम
कार्यक्रम
को
तेजी
से
बढ़ा
दिया।
1972
में
इंदिरा
ने
ट्रॉम्बे
का
दौरा
किया
ओर
परमाणु
बम
बनाने
के
लिए
मौखिक
आदेश
दिया।
तब
होमी
सेठना
ने
कहा
कि
मैडम
हमें
18
महीने
दीजिए।
ये
वो
समय
था
जब
AEC
की
कमान
होमी
सेठना
के
हाथ
में
आ
गई
थी।
वे
होमी
भाभा
के
मिशन
को
तेजी
से
बढ़ा
रहे
थे।
उस
समय
परमाणु
बम
परीक्षण
के
लिए
20
किलो
प्लूटोनियम
की
जरूरत
थी।
परमाणु
ऊर्जा
करार
के
तहत
भारत
ने
कनाडा
से
प्लूटोनियम
लिया
था,
जिसका
उपयोग
पूर्णिमा
रिएक्टर
के
लिए
किया
जा
रहा
था।
बाद
में
इसका
उपयोग
ऊर्जा
की
बजाय
बम
बनाने
में
किया
गया।
1973
तक
मटेरियल
लेवल
की
सारी
परेशानी
लगभग
दूर
हो
चुकी
थी।
भाभा
परमाणु
अनुसंधान
केंद्र
के
तत्कालीन
निदेशक
राजा
रमन्ना
अपनी
बायोग्राफी
‘इयर्स
ऑफ
पिल्ग्रिमेज’
में
लिखते
हैं
कि
परमाणु
परीक्षण
के
लिए
हमने
पोकरण
का
चयन
किया,
क्योंकि
यहां
इतनी
आबादी
नहीं
थी।
न
ही
बहुत
ज्यादा
जमीनी
संसाधन
थे।
पोकरण
रेंज
के
आसपास
कई
गांव
हैं।
ऐसा
ही
एक
गांव
खेतोलाई
के
स्कूल
प्रिंसिपल
सोहन
राम
विश्नोई
बताते
हैं
कि
1960
के
दशक
में
रक्षा
विभाग
ने
उनके
पिता
और
सैकड़ों
किसानों
को
उनकी
जमीन
बेचने
के
लिए
मजबूर
किया
था।
तब
ये
जमीन
चार
रुपए
बीघा
पर
खरीदी
गई
थी।
लोग
इसका
विरोध
कर
रहे
थे।
1974
में
जब
विरोध
बढ़ा
तो
सरकार
ने
मुआवजा
बढ़ाकर
20
रुपए
बीघा
कर
दिया
था।

आर्मी
ने
कुआं
खोदा
तो
पानी
निकल
आया,
सूखे
कुएं
की
तलाश
थी
न्यूक्लियर
वेपन
आर्काइव
के
अनुसार,
जोधपुर
की
61
रेजिमेंट
पुल
और
बंकर
बनाने
की
एक्सपर्ट
थी।
उसे
ही
107
मीटर
गहरा
एक
शाफ्ट
बनाने
का
काम
सौंपा
गया।
जवानों
को
बस
इतना
बताया
गया
कि
भूकंप
को
लेकर
वैज्ञानिकों
को
कोई
प्रयोग
करना
है।
लोकल
कमांडर
ने
इसे
यह
कहकर
टाल
दिया
था
कि
ये
उनका
काम
नहीं
है।
इसके
बाद
सेनाध्यक्ष
जनरल
गोपाल
गुरुनाथ
बेवूर
को
दखल
देना
पड़ा।
उन्होंने
इसके
मौखिक
आदेश
दिए
कि
ये
अपना
भी
काम
है।
इसके
बाद
जवानों
ने
कुंए
की
खुदाई
की।
बाहरी
दुनिया
को
बताया
गया
कि
ONGC
गैस
के
कुंओं
के
लिए
खुदाई
कर
रही
है।
लोकल
लोगों
में
बात
फैलाई
गई
कि
सेना
के
लिए
पानी
के
कुएं
खोदे
जा
रहे
हैं।
जनवरी
1974
में
खुदाई
के
दौरान
भूमिगत
जल
आ
गया।
खुदाई
करने
वाले
जवान
बहुत
खुश
हुए,
लेकिन
वैज्ञानिक
बहुत
निराश
हुए।
उन्हें
परमाणु
परीक्षण
के
लिए
सूखा
कुआं
चाहिए
था।
वैज्ञानिकों
ने
उस
कुंए
को
छोड़
दिया।
इसके
बाद
एक
और
गांव
खेतोलाई
में
खुदाई
की
गई।
सूखे
कुएं
की
पहचान
के
लिए
एक
लाेकल
जल
विशेषज्ञ
को
भी
बुलाया
गया।
इस
तरह
से
सेना
ने
तय
समय
15
फरवरी
1974
को
सूखा
कुआं
खोद
दिया,
जिसे
वैज्ञानिक
शाफ्ट
कहते
थे।

पोकरण
रेंज
में
जब
ट्रिगर
दबाया
गया
तो
ऐसे
उछला
था
रेत
का
‘पहाड़’।
सलाहकारों
के
खिलाफ
जाकर
इंदिरा
गांधी
ने
कहा-
हम
टेस्ट
करेंगे
राजा
रमन्ना
लिखते
हैं
कि
पहली
बार
DRDO
और
बार्क
एक
साथ
इतने
बड़े
और
सीक्रेट
प्रोजेक्ट
पर
काम
कर
रहे
थे।
जब
परीक्षण
की
तैयारी
की
गई
तो
इसकी
खबर
कुछ
चुनिंदा
लोगों
को
ही
थी।
पहले
दौर
की
बैठक
अप्रैल
1974
में
की
गई।
इसमें
PM
इंदिरा
गांधी
के
सेक्रेटरी
पीएन
हक्सर,
PM
के
पूर्व
प्रधान
सचिव
पीएन
नाग
चौधरी,
रक्षामंत्री
के
वैज्ञानिक
सलाहकार
एचएन
सेठना,
AEC
के
तत्कालीन
अध्यक्ष
और
भाभा
परमाणु
अनुसंधान
केंद्र
यानी
बार्क
के
डायरेक्टर
राजा
रमन्ना
ही
इन
बैठकों
में
शामिल
थे।
बैठक
में
नाग
चौधरी
ने
इस
परीक्षण
का
विरोध
किया।
उन्होंने
कहा
कि
इससे
हमारी
इकोनॉमी
बर्बाद
हो
जाएगी।
अमेरिका
और
पश्चिमी
देश
कई
तरह
के
बैन
लगा
देंगे।
अर्थशास्त्री
के
रूप
में
हक्सर
ने
भी
नाग
से
सुर
मिलाया
और
कहा
कि
परमाणु
बम
के
परीक्षण
के
लिए
ये
सही
समय
नहीं
है,
लेकिन
पश्चिम
देश
थोड़े
दिन
चिल्लाएंगे
फिर
चुप
हो
जाएंगे।
इसके
बाद
राजा
रमन्ना
ने
कहा
कि
इस
टेस्ट
को
रोका
नहीं
जाना
चाहिए।
उन्होंने
नाग
और
हक्सर
से
कहा
कि
आप
जितना
सोच
रहे
हैं
उतना
कुछ
नहीं
होगा।
24
साल
से
वैज्ञानिक
इस
पर
काम
कर
रहे
हैं।
एटम
बम
क्लब
में
आने
से
हम
पर
कोई
देश
दादागिरी
नहीं
कर
पाएगा।
उस
समय
तक
एटम
बम
क्लब
में
पांच
देश
अमेरिका,
ब्रिटेन,
फ्रांस,
चीन
और
रूस
ही
थे।
आमतौर
पर
हर
सरकारी
बैठक
का
रिकॉर्ड
रखा
जाता
है,
लेकिन
इन
बैठकों
को
कोई
रिकॉर्ड
नहीं
रखा
जा
रहा
था।
आखिर
में
इंदिरा
गांधी
ने
कहा
कि
देश
के
लिए
एटम
बम
का
परीक्षण
जरूरी
है।
हमें
ये
टेस्ट
करना
होगा।
इसके
लिए
18
मई
1974
बुद्ध
पूर्णिमा
का
दिन
चुना
गया।
इसे
ऑपरेशन
स्माइलिंग
बुद्धा
नाम
दिया
गया।
उस
समय
विपक्ष
के
नेता
अटल
बिहारी
वाजपेयी
थे।
इंदिरा
ने
विपक्ष
को
भरोसे
में
लेते
हुए
वाजपेयी
को
मिलने
बुलाया।
ये
मीटिंग
कहीं
और
करने
की
बजाय,
संसद
भवन
के
कमरे
में
ही
की
गई।
ऐसा
इसलिए
किया
गया
ताकि
किस
को
शक
न
हो।
फिर
1998
में
इन्हीं
अटल
जी
की
सरकार
ने
पोकरण
में
दोबारा
परमाणु
परीक्षण
करके
दुनिया
को
चौंका
दिया।

टेस्ट
के
बाद
अमेरिका
ने
भारत
को
आंख
दिखाई,
लेकिन
वहां
के
मीडिया
ने
प्रथम
पेज
पर
भारत
के
टेस्ट
को
जगह
दी
थी।
उस
समय
हम
छठे
देश
थे
जिसके
पास
परमाणु
बम
था।
‘अब
टेस्ट
करना
ही
होगा,
हम
पीछे
नहीं
हट
सकते’
उधर
मुंबई
स्थित
ट्रॉम्बे
परमाणु
ऊर्जा
प्रतिष्ठान
में
टेस्ट
के
लिए
जरूरी
प्लूटोनियम
बॉल
और
ट्रिगर
भी
समय
पर
तैयार
हो
गया
था।
पीके
अयंगर
इन्हें
कॉमर्शियल
फ्लाइट
से
लेकर
जोधपुर
होते
हुए
पोकरण
पहुंचे।
वहीं
आर
गोपाल
चिदंबरम
दूसरे
उपकरणों
को
सेना
के
काफिले
के
साथ
मुंबई
से
पोकरण
बाय
रोड
लेकर
पहुंचे।
बाकी
टीम
बचे
हुए
सामान
के
साथ
पोकरण
पहुंची।
राजा
रमन्ना,
सेठना
और
नाग
चौधरी
एक
ही
विमान
में
जोधपुर
पहुंचे।
अब
असेंबली
का
काम
शुरू
हो
गया
था
और
कुल
मिलाकर
ये
अंतिम
चरण
में
था।
14
मई
1974
को
एल
आकार
के
शाफ्ट
में
बिजली
केबल
डालने
का
काम
सिस्टम
इंटीग्रेटेड
टीम
के
लीडर
जितेंद्र
नाथ
सोनी
और
परमाणु
डिवाइस
रखने
का
काम
डॉ.
नागपट्टिनम
संबाशिव
वेंकटेशन
ने
किया।
इसके
बाद
शाफ्ट
को
रेत
से
भर
दिया
गया।
ग्रामीणों
से
कहा
गया
कि
वे
गांव
से
दूर
रहें।
15
मई
को
प्रधानमंत्री
की
अंतिम
मंजूरी
के
लिए
सेठना
दिल्ली
पहुंचे।
उन्होंने
वहां
पहुंचकर
इंदिरा
गांधी
से
कहा
कि
हमने
परमाणु
डिवाइस
काे
शाफ्ट
में
पहुंचा
दिया
है।
अब
हम
इसे
बाहर
नहीं
निकाल
सकते।
आप
कहेंगी
तो
भी
हम
इसे
बाहर
नहीं
निकाल
सकते।
हमें
अब
आगे
बढ़ना
ही
होगा।
इंदिरा
ने
कहा-
आगे
बढ़िए,
क्या
आपको
डर
लग
रहा
है।
सेठना
ने
कहा,-बिल्कुल
भी
नहीं,
मैं
बस
आपको
ये
बताना
चाह
रहा
था
कि
अब
हम
यू-टर्न
नहीं
ले
पाएंगे।
PM
की
मंजूरी
मिलते
ही
सेठना
पोकरण
पहुंचे।

टेस्ट
के
बाद
PM
इंदिरा
गांधी
पोकरण
रेंज
गई
थीं
और
देखा
कि
कहां
टेस्ट
हुआ।
इंदिरा
ने
देखा
था
कि
परमाणु
बम
से
कितना
बड़ा
गड्ढा
हुआ
था।
4
किमी
दूर
मचान
से
देख
रहे
थे
वैज्ञानिक
18
मई
1974
आ
गया।
ये
बहुत
ही
गरम
दिन
था।
सुबह-सुबह
ही
तापमान
35
पार
चला
गया
था।
परीक्षण
से
पहले
टीम
ने
सारी
चीजों
की
फाइनल
चेकिंग
की।
कुछ
दिक्कतें
भी
सामने
आईं।
भले
ही
ये
दिक्कतें
छोटी
थीं,
लेकिन
इनसे
काम
रुक
सकता
था।
विस्फोट
के
लिए
बनाए
गए
107
मीटर
गहरे
गड्ढे
में
बिजली
सप्लाई
के
दौरान
कुछ
अर्थिंग
की
दिक्कत
आ
गई
थी।
DRDO
के
साहसिक
वैज्ञानिक
बालकृष्णनन
नीचे
गड्ढे
में
उतरे
और
जान
पर
खेलकर
अर्थिंग
को
ठीक
किया।
दरअसल
छोटी
सी
अर्थिंग
की
चिनगारी
समय
से
पहले
विस्फोट
का
कारण
बन
सकती
थी।
वैज्ञानिकों
के
बीच
बड़ा
सवाल
ये
खड़ा
हुआ
कि
विस्फोट
का
ट्रिगर
कौन
दबाएगा।
कोई
भी
इस
मौके
को
गंवाना
नहीं
चाहता
था,
लेकिन
ये
काम
कोई
एक
ही
कर
सकता
था।
तय
हुआ
कि
ट्रिगर
बनाने
वाला
ही
इसे
प्रेस
करेगा।
वो
भाग्यशाली
इंसान
डॉ.
प्रणब
आर.
दस्तीदार
थे।
रमन्ना,
सेठना,
नागचौधरी,
अयंगर
और
सुभरवाल
शाफ्ट
से
5
किमी
दूर
एक
खाईदार
मचान
पर
खड़े
थे।
चिदंबरम
और
सिक्का
कंट्रोल
रूम
के
पास
दूसरे
कमरे
में
थे।
श्रीनिवासन
और
दस्तीदार
कंट्रोल
रूम
में
थे।
वहां
सेना
अध्यक्ष
जनरल
बेवूर
और
लेफ्टिनेंट
कर्नल
सभरवाल
भी
मौजूद
थे।
उसके
अपोजिट
ही
चार
किलोमीटर
दूर
फोटोग्राफ
लेने
वालों
के
लिए
एक
मचान
बनाया
गया
था।
फोटोग्राफर
सही
से
फोटो
ले
सकें;
उन्हें
पता
चले
कि
कब
क्लिक
करना
है,
फोटोग्राफर्स
को
काउंटिंग
सुनाई
दे,
इसके
लिए
अलग
से
स्पीकर
की
व्यवस्था
की
गई।
तय
किया
गया
कि
ट्रिगर
सुबह
8
बजे
दबाया
जाएगा।

परमाणु
रेंज
में
इंदिरा
गांधी।
जीप
फंसी
तो
सेनाध्यक्ष
बोले-
उसे
भी
उड़ा
दो
सीनियर
जर्नलिस्ट
राज
चेंगप्पा
अपनी
किताब
‘वेपन्स
ऑफ
पीस:
द
सीक्रेट
स्टोरी
ऑफ
इंडियाज
क्वेस्ट
टु
बी
अ
न्यूक्लियर
पावर’
में
लिखते
हैं
कि
परीक्षण
से
घंटे
भर
पहले
DRDO
की
TBRL
ब्रांच
के
वीरेंद्र
सिंह
सेठी
हाई
स्पीड
कैमरों
की
जांच
के
लिए
शाफ्ट
पर
पहुंचे।
सेना
की
जिस
जीप
से
गए
थे
वह
स्टार्ट
नहीं
हो
रही
थी।
सेठी
ने
जीप
को
वहीं
छोड़
दिया
और
पैदल
कंट्रोल
रूम
आ
गए।
सेठना
ने
जब
जीप
को
देखा
तो
सेना
अध्यक्ष
से
पूछा
कि
जीप
का
क्या
करना
है।
जनरल
बेवूर
ने
कहा
कि
वह
इतनी
भी
खास
नहीं
है।
आप
उसे
उड़ा
सकते
हो।
हालांकि,
ऐसी
नौबत
नहीं
आई।
जवान
दूसरी
जीप
लेकर
पहुंचे
और
खराब
जीप
को
बांधकर
वहां
से
खींचकर
ले
गए।
मचान
के
पास
लगे
लाउडस्पीकर
से
उल्टी
गिनती
शुरू
हुई।
उधर
फोटोग्राफर
भी
चौंकन्ने
हो
गए।
पांच
तक
गिनती
पहुंचते
ही
प्रणव
ने
हाई
वोल्टेज
स्विच
ऑन
किया।
दस्तीकार
ने
जब
इलेक्ट्रिसिटी
मीटर
को
देखा
तो
वो
चौंक
गए।
इलेक्ट्रिसिटी
मीटर
की
रीडिंग
बता
रही
थी
कि
न्यूक्लियर
डिवाइस
तक
तय
वोल्टेज
का
केवल
10
प्रतिशत
ही
सप्लाई
हो
रहा
है।
दस्तीकार
के
असिस्टेंट
भी
ये
देखकर
घबरा
गए।
वो
चिल्लाने
लगे
क्या
हम
इसे
रोक
दें…रोक
दें…।
इस
उठापटक
में
गिनती
बंद
हो
गई।
मचान
पर
बैठे
रमन्ना
और
सेठना
को
जब
गिनती
की
आवाज
लाउडस्पीकर
में
सुनाई
देना
बंद
हो
गई
तो
उन्होंने
माना
कि
किसी
तकनीकी
खराबी
के
कारण
टेस्ट
रोक
दिया
गया
है।
उधर
दस्तीकार
लगभग
चीखे-
नहीं
हम
रुकेंगे
नहीं,
हम
आगे
बढ़ेंगे।
ये
बात
रमन्ना
और
सेठना
को
नहीं
पता
थी।
दस्तीदार
ने
अपने
‘सौभाग्य’
का
लाल
बटन
दबाया।
लगा
मेहनत
बेकार
गई,
इसके
बाद
रेत
का
पहाड़
उछल
गया
राजा
रमन्ना
लिखते
हैं
कि
बटन
दबाने
के
पहले
से
ही
डॉ.
नागपट्टिनम
संबाशिव
वेंकटेशन
ने
विष्णु
सहस्रनाम
का
जाप
शुरू
कर
दिया।
बताया
जाता
है
कि
वेंकटेशन
भले
ही
मिसाइल
बनाने
वाले
वैज्ञानिक
थे,
लेकिन
उनकी
ईश्वर
में
गहरी
आस्था
थी।
यही
कारण
था
कि
पृथ्वी
के
गर्भ
में
विनाश
वाले
बम
के
सफलतापूर्वक
फटने
के
लिए
पृथ्वी
के
पालनकर्ता
विष्णु
से
प्रार्थना
कर
रहे
थे।
जब
ट्रिगर
दबाने
के
बाद
भी
विस्फोट
नहीं
हुआ
तो
वेंकटेशन
कुछ
पलों
के
लिए
चुप
हो
गए।
सब
उम्मीद
कर
रहे
थे
कि
तुरंत
आवाज
होगी।
जब
तीस
सेकेंड
तक
भी
कुछ
नहीं
हुआ
तो
सबके
चेहरे
उतरने
लगे।
फिर
करीब
एक
मिनट
बाद
रेगिस्तान
में
रेत
का
एक
पहाड़
उछलता
नजर
आया।
एक
मिनट
तक
रेत
हवा
में
थी।
सब
सोच
रहे
थे
कि
विस्फोट
हो
गया,
लेकिन
आवाज
नहीं
आई।
कुछ
पल
बाद
वैज्ञानिकों
ने
आवाज
भी
सुनी
जो
जमीन
के
भीतर
107
मीटर
नीचे
हुई।
विस्फोट
से
जो
झटका
मिला
उससे
रमन्ना
नीचे
गिर
गए।
अब
बारी
परमाणु
ताकत
की
थी।
जो
कोई
भी
खड़े
रहने
की
कोशिश
कर
रहा
था
वो
सब
गिर
गए।
सिक्का
भी
गिर
गए।
जब
रेत
का
पहाड़
वापस
जमीन
पर
गिरा
तो
सब
शांत
हो
गया।
सब
तेजी
से
उठे
तो
और
जश्न
मनाने
लगे।
सिक्का
ने
सभी
को
गले
लगाना
शुरू
कर
दिया।
राजा
रमन्ना
लिखते
हैं
कि
रेत
का
पहाड़
हवा
में
देखकर
ऐसा
लगा
जैसे
हनुमान
ने
पहाड़
को
उठा
लिया
हो।
उधर
मचान
पर
खड़े
सिक्का
इतने
एक्साइटेड
हो
गए
कि
मचान
पर
बनी
सीढ़ी
से
उतरने
की
बजाय
कूद
गए।
फोन
खराब
हो
गया,
लेकिन
‘बुद्धा
इज
स्माइलिंग’
इसके
बाद
सेठना
ने
दिल्ली
में
इंदिरा
गांधी
के
सेक्रेटरी
पीएन
धर
को
फोन
किया
और
कहा-
बुद्धा
इज
स्माइलिंग।
इसका
मतलब
था-
टेस्ट
सफल
रहा।
हालांकि,
टेलिफोन
लाइन
खराब
होने
के
कारण
फोन
कट
गया।
सेठना
को
लगा
कि
धर
को
सुनाई
नहीं
दिया।
इसके
बाद
सेठना
ने
सेना
की
जीप
निकाली।
उनके
साथ
लेफ्टिनेंट
कर्नल
सभरवाल
भी
थे।
दोनों
ने
सेना
की
जीप
दौड़ाई
और
पोकरण
पहुंचे।
यहां
सेना
का
एक
टेलिफोन
एक्सचेंज
स्थापित
किया
गया
था।
वहां
पहुंचकर
सेठना
ने
जोर
से
माथा
पीटा,
क्योंकि
उन्हें
धर
का
नंबर
याद
नहीं
था
और
जो
नंबर
था
उसे
लिखकर
नहीं
लाए
थे।
सेठना
का
चेहरा
देखकर
सभरवाल
समझ
गए।
उन्होंने
अपनी
सेना
वाली
कड़क
आवाज
में
टेलीफोन
ऑपरेटर
से
कहा
मेरी
प्रधानमंत्री
कार्यालय
में
तुरंत
बात
कराइए।
जब
फोन
PMO
लगा
तो
सभरवाल
ने
जोर
से
कहा
‘बुद्धा
इज
स्माइलिंग’
यानी
टेस्ट
सफल
रहा।

उधर
परमाणु
परीक्षण
हो
रहा
था,
इधर
इंदिरा
लोगों
से
मिल
रही
थीं
सीनियर
जर्नलिस्ट
राज
चेंगप्पा
लिखते
हैं
कि
18
मई
को
PM
हाउस
में
इंदिरा
गांधी
से
मिलने
वालों
की
भीड़
लगी
हुई
थी।
करीब
8.30
बजे
वे
लोगों
से
मिल
रही
थीं।
इतने
बड़े
दिन
पर
भी
इंदिरा
ने
अपनी
बेचैनी
को
दबाए
रखा
था।
वो
लोगों
से
आवेदन
ले
रही
थीं।
उनसे
बात
कर
रही
थीं।
इतने
में
उन्होंने
अपने
सेक्रेटरी
पीएन
धर
को
आते
देखा।
धर
उनके
पास
आते
उससे
पहले
ही
लगभग
दौड़ते
हुए
इंदिरा
गांधी
उनके
पास
पहुंच
गईं।
उन्होंने
धर
से
पूछा
क्या
हुआ।
धर
ने
कहा
सब
ठीक
है।
ये
सुनने
के
बाद
इंदिरा
ने
एक
लंबी
सांस
ली।
सुबह
9
बजे
आकाशवाणी
से
घोषणा
की
गई
कि
सुबह
8
बजकर
5
मिनट
पर
भारत
ने
देश
के
पश्चिमी
हिस्से
में
किसी
गुप्त
स्थान
पर
शांतिपूर्ण
उद्देश्यों
के
लिए
सफल
परमाणु
परीक्षण
किया।
उधर
राजा
रमन्ना
और
सेठना
प्रधानमंत्री
इंदिरा
गांधी
से
मिलने
दिल्ली
पहुंचे।
इंदिरा
ने
कहा
कि
आपकी
टीम
ने
शानदार
काम
किया
है।
कार्यक्रम
खत्म
हुआ।
अब
पार्टी
कीजिए।
विस्फोट
के
बाद
केवल
फ्रांस
ने
बधाई
दी,
बाकी
ने
आलोचना
की
इस
विस्फोट
के
बाद
दुनियाभर
में
हलचल
मच
गई।
सबसे
ज्यादा
लाल-पीला
कनाडा
हुआ।
उसे
पता
था
कि
भारत
ने
उसके
प्लूटोनियम
का
उपयोग
ऊर्जा
अनुसंधान
की
बजाय
बम
बनाने
में
किया
है।
उसने
हमें
आगे
प्लूटोनियम
देने
पर
बैन
लगा
दिया।
अमेरिका
भी
भारत
पर
तमाम
आर्थिक
पाबंदियां
लगाने
की
बात
कर
रहा
था।
उधर
पाकिस्तान
के
प्रधानमंत्री
जुल्फिकार
अली
भुट्टो
ने
परमाणु
बम
बनाने
के
लिए
अपना
रक्षा
बजट
कई
गुना
बढ़ा
दिया
था।
फ्रांस
ही
एकमात्र
पश्चिमी
देश
था
जिसने
भारत
को
परमाणु
परीक्षण
की
बधाई
दी
थी।