
12:20
AM7
मई
2024
-
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तीसरे
चरण
की
14
हॉट
सीटों
पर
एक
नजर…
1.
गांधीनगर,
गुजरात

भाजपा
की
ओर
से
देश
के
गृह
मंत्री
अमित
शाह
यहां
से
चुनाव
लड़
रहे
हैं।
इस
सीट
पर
30
सालों
से
भाजपा
का
कब्जा
है।
भाजपा
के
कई
दिग्गज
नेता
1989
से
यहां
से
जीत
रहे
हैं।
2019
के
लोकसभा
चुनाव
में
पहली
बार
अमित
शाह
ने
यहां
से
चुनाव
लड़ा
और
करीब
साढ़े
पांच
लाख
वोटों
से
जीत
हासिल
की।
वहीं,
कांग्रेस
ने
इस
सीट
से
पार्टी
की
सचिव
सोनल
रमणभाई
पटेल
को
मैदान
में
उतारा
है।
वे
मुंबई
और
पश्चिमी
महाराष्ट्र
में
पार्टी
की
सह
प्रभारी
हैं।
साथ
ही
गुजरात
महिला
कांग्रेस
की
अध्यक्ष
भी
रह
चुकी
हैं।
वे
कह
चुकी
हैं
कि
उन्हें
भाजपा
के
वरिष्ठ
नेता
के
खिलाफ
चुनाव
लड़ने
में
बिल्कुल
भी
हिचक
नहीं
है।
2.
पोरबंदर,
गुजरात

महात्मा
गांधी
की
जन्मस्थली
से
भाजपा
ने
केंद्रीय
स्वास्थ्य
मंत्री
मनसुख
मंडाविया
को
उम्मीदवार
बनाया
है।
पेशे
से
वेटरनरी
डॉक्टर
मंडाविया
गुजरात
से
दो
बार
के
राज्यसभा
सांसद
हैं।
चुनाव
प्रचार
के
लिए
केंद्रीय
मंत्री
ने
क्षेत्र
में
करीब
150
किमी.
की
पदयात्रा
की
है।
भीड़भाड़
भरे
रोड
शो
से
दूरी
बनाए
रखते
हुए
उन्होंने
प्रचार
का
यह
पुराना
तरीका
अपनाया
है।
इस
सीट
पर
पाटीदार
समुदाय
का
खासा
प्रभाव
है।
यही
कारण
है
कि
कांग्रेस
ने
पूर्व
विधायक
और
पाटीदार
नेता
ललित
वसोया
को
अपना
उम्मीदवार
बनाया
है।
पाटीदार
आरक्षण
आंदोलन
में
सक्रिय
रहे
वसोया
2019
में
भी
कांग्रेस
के
प्रत्याशी
थे,
लेकिन
भाजपा
के
रमेशभाई
धाडुक
से
हार
गए
थे।
3.
गुना,
मध्य
प्रदेश

ज्योतिरादित्य
सिंधिया
एक
बार
फिर
अपनी
पारंपरिक
सीट
से
चुनाव
मैदान
में
हैं।
वे
2019
में
अपने
पूर्व
सहयोगी
केपी
सिंह
से
चुनाव
हार
गए
थे।
हालांकि
तब
वे
कांग्रेस
में
थे।
हार
से
सबक
लेते
हुए
सिंधिया
ने
इस
बार
मैदान
में
खूब
मेहनत
की।
उनका
बेटा
और
पत्नी
भी
उनके
साथ
चुनाव
प्रचार
में
लगे
थे।
वहीं,
कांग्रेस
ने
सिंधिया
परिवार
के
राजनीतिक
विरोधी
राव
यादवेंद्र
सिंह
को
मैदान
में
उतारा
है।
राव
2023
तक
भाजपा
में
थे।
उनके
पिता
मुंगावली
सीट
से
तीन
बार
भाजपा
के
विधायक
रहे
हैं।
उन्होंने
माधवराव
सिंधिया
और
ज्योतिरादित्य
के
खिलाफ
भी
चुनाव
लड़ा
था।
यादवेंद्र
2023
में
कांग्रेस
के
टिकट
पर
सिंधिया
के
करीबी
बृजेंद्र
सिंह
के
खिलाफ
चुनाव
लड़
चुके
हैं।
हालांकि
उन्हें
हार
का
सामना
करना
पड़ा
था।
4.
विदिशा,
मध्य
प्रदेश

मध्य
प्रदेश
में
मामा
के
नाम
से
मशहूर
शिवराज
सिंह
चौहान
करीब
20
साल
बाद
दोबारा
विदिशा
से
चुनाव
लड़
रहे
हैं।
2005
में
मध्य
प्रदेश
के
मुख्यमंत्री
बनने
से
पहले
वे
यहां
से
पांच
बार
सांसद
चुने
जा
चुके
थे।
वे
अभी
यहां
की
बुधनी
विधानसभा
सीट
से
विधायक
हैं।
पूर्व
प्रधानमंत्री
अटल
बिहारी
वाजपेयी
और
सुषमा
स्वराज
भी
यहां
से
चुनाव
जीत
चुके
हैं।
मामा
के
सामने
कांग्रेस
ने
‘दादा’
को
उतारा
है।
दरअसल,
कांग्रेस
प्रत्याशी
प्रतापभानु
सिंह
स्थानीय
नेता
हैं
और
दादा
के
उपनाम
से
जाने
जाते
हैं।
भानु
1980
और
1984
में
दो
बार
यहां
से
सांसद
रह
चुके
हैं।
वे
मध्य
प्रदेश
यूथ
कांग्रेस
के
अध्यक्ष
और
1980-84
तक
रक्षा
मंत्रालय
की
सलाहकार
समिति
के
सदस्य
भी
रहे
हैं।
5.
राजगढ़,
मध्य
प्रदेश

दिग्विजय
सिंह
ने
करीब
32
साल
बाद
दोबारा
राजगढ़
सीट
पर
वापसी
की
है।
1991
में
दिग्विजय
यहां
से
सांसद
बने
थे,
लेकिन
1993
में
मुख्यमंत्री
बनने
के
बाद
इस्तीफा
दे
दिया
था।
तब
से
2004
तक
उनके
भाई
लक्ष्मण
सिंह
इस
सीट
पर
कांग्रेस
और
भाजपा
दोनों
पार्टियों
से
सांसद
रहे।
2019
में
दिग्विजय
सिंह
ने
भोपाल
से
लोकसभा
चुनाव
लड़ा,
लेकिन
भाजपा
प्रत्याशी
साध्वी
प्रज्ञा
से
हार
गए।
वहीं,
दूसरी
तरफ
भाजपा
ने
दो
बार
से
सांसद
रोडमल
नागर
को
तीसरी
बार
भी
मैदान
में
उतारा
है।
पिछले
दो
चुनावों
में
आसानी
से
जीत
हासिल
करने
वाले
नागर
के
लिए
इस
बार
चुनौती
कड़ी
है।
उन्हें
उम्मीद
नहीं
थी
कि
कांग्रेस
इतने
कद्दावर
नेता
को
उतारेगी।
इसी
वजह
से
नागर
प्रधानमंत्री
मोदी
की
छवि
के
सहारे
चुनाव
लड़
रहे
हैं।
6.
बारामती,
महाराष्ट्र

बारामती
सीट
पर
मुकाबला
काफी
दिलचस्प
है।
पिछले
साल
एनसीपी
में
दो
फाड़
होने
के
बाद
यहां
इमोशनल
मुद्दे
पर
चुनाव
लड़ा
जा
रहा
है।
चुनाव
में
शरद
पवार
की
बेटी
और
बहू
के
आमने-सामने
होने
और
परिवार
टूटने
का
मुद्दा
बड़ा
है।
मोदी
की
गारंटी
और
राम
मंदिर
जैसे
मुद्दे
यहां
गायब
हैं।
एक
तरफ
सुप्रिया
सुले
एनसीपी
(शरद
पवार
गुट)
से
मैदान
में
हैं
तो
उनकी
भाभी
और
महाराष्ट्र
के
डिप्टी
CM
की
पत्नी
सुनेत्रा
पवार
एनसीपी
से
उन्हें
टक्कर
दे
रही
हैं।
1960
में
भी
ऐसा
ही
मुकाबला
देखने
को
मिला
था,
जब
शरद
पवार
अपने
बड़े
भाई
वसंतराव
के
खिलाफ
उतरे
थे।
तब
उनके
भाई
चुनाव
हार
गए
थे।
यह
सीट
एनसीपी
का
गढ़
मानी
जाती
है।
शरद
पवार
यहां
से
छह
बार
सांसद
रह
चुके
हैं।
अजीत
पवार
भी
यहां
से
एक
बार
सांसद
रह
चुके
हैं,
जबकि
पिछले
तीन
बार
से
सुप्रिया
यहां
से
सांसद
चुनी
जा
रही
हैं।
7.
सातारा,
महाराष्ट्र

भाजपा
इस
सीट
पर
पहली
बार
कमल
खिलने
की
आस
लगाए
बैठी
है।
भाजपा
ने
आज
तक
कभी
भी
यह
सीट
नहीं
जीती,
लेकिन
पार्टी
को
छत्रपति
शिवाजी
महाराज
के
वंशज
छत्रपति
उदयनराजे
भोसले
से
पूरी
उम्मीद
है।
भोसले
2004
से
2014
तक
तीन
बार
यहां
से
सांसद
रह
चुके
हैं।
2019
का
चुनाव
भी
उन्होंने
ही
जीता
था,
लेकिन
भाजपा
जॉइन
करने
के
बाद
उन्हें
इस
सीट
से
इस्तीफा
देना
पड़ा।
इसी
साल
हुए
उपचुनाव
में
एनसीपी
के
श्रीनिवास
पाटिल
से
चुनाव
हार
गए।
वहीं,
दूसरी
तरफ
एनसीपी
(शरद
पवार
गुट)
ने
ट्रेड
यूनियन
के
नेता
रहे
और
चार
बार
के
विधायक
रहे
शशिकांत
शिंदे
को
मैदान
में
उतारा
है।
शिंदे
2019
का
विधानसभा
चुनाव
हार
गए
थे
और
अभी
विधान
परिषद
के
सदस्य
हैं।
सातारा
शरद
पवार
का
गृह
जिला
है
और
एनसीपी
(शरद
पवार
गुट)
की
यहां
गहरी
पैठ
है,
इसलिए
यहां
मुकाबला
टक्कर
का
है।
8.
रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग,
महाराष्ट्र

केंद्रीय
सूक्ष्म,
लघु
और
मध्यम
उद्यम
मंत्री
नारायण
राणे
यहां
से
भाजपा
के
उम्मीदवार
हैं।
राज्यसभा
सांसद
राणे
महाराष्ट्र
के
मुख्यमंत्री
भी
रह
चुके
हैं।
वे
सिंधुदुर्ग
की
कुडाल
सीट
से
छह
बार
विधायक
रहे
हैं।
शिवसेना
से
राजनीति
शुरू
करके
राणे
मुख्यमंत्री
पद
तक
पहुंचे,
लेकिन
2005
में
उद्धव
ठाकरे
से
विवाद
के
बाद
कांग्रेस
में
शामिल
हो
गए
थे।
फिर
2017
में
कांग्रेस
छोड़कर
अपनी
पार्टी
बनाई
और
2019
में
भाजपा
में
पार्टी
का
विलय
कर
दिया।
लंबे
राजनीतिक
अनुभव
वाले
राणे
के
खिलाफ
इंडी
गठबंधन
की
ओर
से
शिवसेना
(उद्धव
गुट)
के
विनायक
राउत
मैदान
में
हैं।
वे
पिछले
दो
लोकसभा
चुनाव
जीत
चुके
हैं।
9.
आगरा,
उत्तर
प्रदेश

भाजपा
ने
आगरा
लोकसभा
सीट
से
केंद्रीय
मंत्री
एसपी
सिंह
बघेल
को
मैदान
में
उतारा
है।
बघेल
ने
अपने
करियर
की
शुरुआत
बतौर
पुलिस
सब
इंस्पेक्टर
की।
इसके
बाद
वे
आगरा
कॉलेज
में
मिलिट्री
साइंस
के
एसोसिएट
प्रोफेसर
भी
रहे।
अपने
राजनीतिक
करियर
की
शुरुआत
उन्होंने
समाजवादी
पार्टी
से
की
और
बसपा
से
होते
हुए
2014
में
भाजपा
का
हिस्सा
बन
गए।
वे
चार
बार
सांसद
और
योगी
सरकार
में
कैबिनेट
मंत्री
भी
रह
चुके
हैं।
समाजवादी
पार्टी
ने
सीट
के
30%
दलित
वोटर्स
को
साधने
के
लिए
सुरेश
चंद
कर्दम
को
उतारा
है।
वे
उसी
समुदाय
से
आते
हैं,
जिससे
बसपा
सुप्रीमो
मायावती
आती
हैं।
यहां
हैरानी
की
बात
यह
है
कि
बड़ी
संख्या
में
दलित
वोटर
होने
के
बाद
भी
बसपा
का
कोई
भी
उम्मीदवार
आज
तक
यहां
से
जीत
नहीं
सका
है।
10.
मैनपुरी,
उत्तर
प्रदेश

मुलायम
सिंह
यादव
की
विरासत
लिए
उनकी
बहू
डिंपल
यादव
मैनपुरी
से
चुनाव
मैदान
में
हैं।
2019
के
चुनाव
में
मुलायम
सिंह
यहां
से
सांसद
चुने
गए
थे।
2022
में
उनकी
मृत्यु
के
बाद
हुए
उपचुनाव
में
डिंपल
सांसद
चुनी
गईं।
इससे
पहले
वे
उत्तर
प्रदेश
की
कन्नौज
सीट
से
दो
बार
सांसद
रह
चुकी
थीं,
लेकिन
2019
लोकसभा
चुनाव
में
भाजपा
के
सुब्रत
पाठक
से
हार
गई
थीं।
भाजपा
ने
डिंपल
के
सामने
योगी
सरकार
में
पर्यटन
एवं
संस्कृति
मंत्री
जयवीर
सिंह
को
उतारा
है।
जयवीर
मैनपुरी
सदर
से
विधायक
हैं।
वे
कुल
तीन
बार
विधायक
और
दो
बार
एमएलसी
रह
चुके
हैं।
साथ
ही
1999
से
2008
तक
तीन
बार
जिला
सहकारी
बैंक
फिरोजाबाद
के
अध्यक्ष
भी
रहे
हैं।
11.
उत्तर
गोवा,
गोवा

केंद्रीय
पर्यटन
राज्य
मंत्री
श्रीपद
येसो
नाइक
उत्तर
गोवा
सीट
से
भाजपा
के
उम्मीदवार
हैं।
वे
लगातार
पांच
बार
से
यह
सीट
जीतते
आ
रहे
हैं।
वे
1988
में
भाजपा
के
राज्य
महासचिव
बनाए
गए
और
1990
में
उन्हें
प्रदेश
अध्यक्ष
की
जिम्मेदारी
दी
गई।
1994
में
विधायक
और
1999
में
सांसद
चुने
गए।
वे
तभी
से
लगातार
सांसद
चुने
जा
रहे
हैं।
नाइक
मोदी
मंत्रिमंडल
में
आयुष
मंत्री
(स्वतंत्र
प्रभार)
और
रक्षा
राज्य
मंत्री
की
जिम्मेदारी
भी
संभाल
चुके
हैं।
वहीं,
कांग्रेस
ने
राज्य
के
उपमुख्यमंत्री
रहे
रमाकांत
खलप
को
उम्मीदवार
बनाया
है।
वे
छह
बार
विधायक
रहे
हैं।
1996
में
सांसद
चुने
जाने
के
बाद
केंद्रीय
विधि
राज्य
मंत्री
रहे।
12.
बेलगाम,
कर्नाटक

भाजपा
ने
बेलगाम
सीट
से
कर्नाटक
के
मुख्यमंत्री
रहे
जगदीश
शेट्टार
को
उम्मीदवार
बनाया
है।
अखिल
भारतीय
विद्यार्थी
परिषद
(ABVP)
से
राजनीति
शुरू
करने
वाले
शेट्टार
संघ
से
भी
जुड़े
रहे
हैं।
हालांकि,
पिछले
साल
हुए
विधानसभा
चुनाव
में
टिकट
न
दिए
जाने
पर
नाराज
होकर
कांग्रेस
में
चले
गए
और
चुनाव
लड़ा।
हारने
के
बाद
दोबारा
भाजपा
में
आ
गए।
इस
सीट
पर
2004
से
ही
भाजपा
का
कब्जा
है।
2020
में
मृत्यु
तक
अंगदी
सुरेश
चन्नबसप्पा
इस
सीट
से
सांसद
रहे।
इसके
बाद
हुए
उपचुनाव
में
उनकी
पत्नी
मंगला
सुरेश
ने
यहां
से
जीत
दर्ज
की
थी।
कांग्रेस
ने
इस
सीट
पर
मृणाल
हेब्बलकर
को
उतारा
है।
वे
राज्य
की
महिला
एवं
बाल
विकास
मंत्री
लक्ष्मी
हेब्बलकर
के
बेटे
हैं
और
पिछले
सात-आठ
साल
से
पार्टी
में
सक्रिय
हैं।
लक्ष्मी
बेलगाम
ग्रामीण
सीट
से
विधायक
भी
हैं।
13.
हावेरी,
कर्नाटक

भाजपा
ने
हावेरी
सीट
से
लिंगायत
नेता
बसवराज
बोम्मई
को
मैदान
में
उतारा
है।
जनता
दल
से
राजनीति
की
शुरुआत
करने
वाले
बसवराज
2008
में
भाजपा
में
शामिल
हुए
थे।
उसी
साल
शिग्गांव
सीट
से
विधायक
चुने
गए
और
येदियुरप्पा
सरकार
में
मंत्री
रहे।
वे
बीएस
येदियुरप्पा
के
करीबी
हैं
और
उनके
बाद
दूसरे
बड़े
लिंगायत
नेता
हैं।
इसी
कारण
2021
में
येदियुरप्पा
के
बाद
बोम्मई
राज्य
के
मुख्यमंत्री
बने।
उनके
पिता
बीएस
बोम्मई
भी
राज्क्
मुख्यमंत्री
रह
चुके
हैं।
कांग्रेस
ने
बोम्मई
के
सामने
आनंदस्वामी
गद्दादेवर्मथ
को
उतारा
है।
वे
राजनीति
का
बहुत
चर्चित
चेहरा
नहीं
हैं।
हालांकि,
यह
उनका
पहला
चुनाव
नहीं
है,
हालांकि
इससे
पहले
लड़े
दोनों
चुनाव
वे
हार
गए
थे।
14.
धारवाड़,
कर्नाटक

2008
में
परिसीमन
के
बाद
अस्तित्व
में
आई
इस
सीट
पर
भाजपा
के
प्रल्हाद
जोशी
लगातार
जीतते
आ
रहे
हैं।
केंद्रीय
संसदीय
कार्य
मंत्री
जोशी
पार्टी
के
प्रदेश
अध्यक्ष
भी
रह
चुके
हैं।
उनके
पास
कोयला
मंत्रालय
की
भी
जिम्मेदारी
है।
वहीं
कांग्रेस
ने
उनके
सामने
विनोद
आसुती
को
उतारा
है।
वे
पहली
बार
चुनाव
लड़
रहे
हैं।