6
अप्रैल
1980,
जनता
पार्टी
से
अलग
होकर
जनसंघ
ने
BJP
बनाई।
चार
साल
बाद
यानी,
1984
में
लोकसभा
चुनाव
हुए।
229
सीटों
पर
लड़ने
वाली
BJP
को
अपने
पहले
चुनाव
में
सिर्फ
2
सीटें
मिलीं।
एक
गुजरात
के
मेहसाणा
में
और
दूसरी
आंध्र
प्रदेश
के
हनमकोंडा
में।
.
BJP
के
जंगा
रेड्डी
ने
हनमकोंडा
में
कांग्रेस
के
कद्दावर
नेता
नरसिम्हा
राव
को
हराया
था।
BJP
को
यहां
51%
वोट
मिले
थे।
ये
चुनाव
इंदिरा
गांधी
की
हत्या
के
करीब
एक
महीने
बाद
हुए
थे।
देश
में
कांग्रेस
के
प्रति
सहानुभूति
की
लहर
थी।
अटल
बिहारी
वाजपेयी
जैसे
दिग्गज
नेता
भी
चुनाव
हार
गए।
ऐसे
में
हिंदी
पट्टी
की
पार्टी
माने
जानी
वाली
BJP
का
दक्षिण
भारत
से
खाता
खुलना
बड़ी
बात
थी,
लेकिन
उसके
बाद
इस
सीट
पर
BJP
कभी
नहीं
जीत
सकी।
दक्षिण
भारत
में
तमिलनाडु,
कर्नाटक,
आंध्र
प्रदेश,
तेलंगाना
और
केरल
को
मिलाकर
कुल
129
लोकसभा
सीटें
हैं।
फिलहाल
BJP
के
पास
यहां
कुल
29
यानी
22%
सीटें
हैं।
तमिलनाडु,
आंध्र
प्रदेश
और
केरल
में
BJP
का
एक
भी
सांसद
नहीं
है।
कर्नाटक
को
छोड़
दें,
तो
सिर्फ
3%
सीटें
ही
दक्षिण
में
BJP
के
पास
हैं।
दूसरी
तरफ
हिंदीभाषी
राज्यों
में
BJP
के
पास
85%
लोकसभा
सीटें
हैं।
देश
के
8
बड़े
सियासी
सवालों
के
जवाब
देने
वाली
सीरीज
‘यक्ष
प्रश्न’
के
पहले
एपिसोड
में
ग्राउंड
रिपोर्ट
और
एक्सपर्ट
एनालिसिस
के
जरिए
जानेंगे
कि
दक्षिण
भारत
BJP
के
लिए
चुनौती
क्यों
है…
प्रधानमंत्री
मोदी
ने
इस
बार
दक्षिण
भारत
में
कामयाबी
के
लिए
पूरी
ताकत
झोंक
दी
है।
19
मार्च
को
PM
ने
तमिलनाडु
के
सलेम
जिले
के
गजलाइकनपट्टी
इलाके
में
रैली
की
थी।
एक
हफ्ते
बाद
भास्कर
उस
ग्राउंड
पर
पहुंचा,
जहां
प्रधानमंत्री
की
सभा
हुई
थी।
ग्राउंड
में
हेलिपैड
के
निशान
और
BJP
के
कुछ
फटे
हुए
पोस्टर
बिखरे
मिले।
यहां
हमारी
मुलाकात
55
साल
के
सक्तिवेलू
से
हुई,
जो
कंस्ट्रक्शन
का
काम
करते
हैं।
हमने
सक्तिवेलू
से
पूछा-
कुछ
दिन
पहले
यहां
मोदी
की
रैली
हुई
थी।
आप
उसमें
शामिल
हुए
थे?
सक्तिवेलू
जवाब
देते
हैं-
‘वे
बाहरी
लोग
हैं,
मैं
उनकी
रैली
में
क्यों
जाऊंगा..
BJP
के
पास
राम
मंदिर,
हिंदू-मुस्लिम
और
गौ
हत्या
के
अलावा
कोई
मुद्दा
ही
नहीं।
PM
को
लगता
है
कि
वो
यहां
हिंदुत्व
पर
भाषण
देंगे,
तो
हिंदीभाषी
राज्यों
की
तरह
हम
भावनाओं
में
बह
जाएंगे,
लेकिन
ऐसा
नहीं
होगा।’
सक्तिवेलू
कहते
हैं
कि
हमारे
गांव
में
6
हजार
वोटर्स
हैं।
प्रधानमंत्री
की
रैली
के
बाद
भी
यहां
BJP
को
100
वोट
भी
नहीं
मिलेंगे।
आपके
लिए
राम
मंदिर
मुद्दा
नहीं
है?
सक्तिवेलू
जवाब
देते
हैं-
‘राम
हमारे
दिल
में
हैं,
मंदिर
बनने
की
खुशी
है,
लेकिन
इसका
मतलब
ये
नहीं
कि
हम
महंगाई
और
विकास
के
मुद्दे
को
भूल
जाएंगे।’
वे
अपनी
जेब
से
बीड़ी
और
माचिस
निकालते
हुए
कहते
हैं,
‘ये
बीड़ी
पहले
10
रुपए
में
मिलती
थी,
आज
25
रुपए
लगता
है।
माचिस
50
पैसे
में
खरीदता
था,
आज
2
रुपए
में
मिलती
है।
जो
गैस
सिलेंडर
500
रुपए
में
मिलता
था,
वो
आज
1100
रुपए
में
मिल
रहा,
लेकिन
प्रधानमंत्री
इस
पर
कभी
बोलते
ही
नहीं।’
15
साल
से
ऑटो
चला
रहे
साहुल
हामिद,
PM
का
नाम
सुनते
ही
कहते
हैं-
‘मुझे
तो
डर
है
कि
यहां
BJP
आ
गई,
तो
हम
अपनी
बोली,
संस्कृति…
सब
कुछ
खो
देंगे।’
तमिलनाडु
में
BJP
ने
पूर्व
IPS
अन्नामलाई
कुप्पुसामी
को
प्रदेश
अध्यक्ष
बनाया
है।
अन्नामलाई
युवाओं
के
बीच
पॉपुलर
हैं,
उनकी
साफ-सुथरी
छवि
है।
वे
80%
हिंदू
आबादी
वाले
कोयंबटूर
से
चुनाव
लड़
रहे
हैं।
18
मार्च
को
कोयंबटूर
में
अन्नामलाई
के
साथ
रोड
शो
करते
प्रधानमंत्री
मोदी।
इस
बार
BJP,
अन्नामलाई
के
जरिए
तमिलनाडु
में
सेंधमारी
करना
चाहती
है।
हालांकि,
पॉलिटिकल
एनालिस्ट
और
दक्षिण
की
राजनीति
को
लंबे
समय
से
कवर
कर
रहे
डॉ.
सुमंत
रमण
को
लगता
है
कि
BJP
तमिलनाडु
में
इस
बार
भी
कुछ
खास
नहीं
कर
पाएगी।
वे
बताते
हैं-
‘BJP
ने
AIADMK
से
गठबंधन
तोड़
लिया
है।
अन्नामलाई
लगातार
जयललिता
के
खिलाफ
बयान
दे
रहे
हैं।
इससे
लोगों
में
नाराजगी
है।
दूसरी
तरफ
अन्नामलाई
के
प्रेसिडेंट
बनने
से
पार्टी
के
स्थानीय
नेता
और
कार्यकर्ता
खुश
नहीं
हैं।
BJP
को
इसका
नुकसान
भी
हो
सकता
है।’
केरल
और
आंध्र
प्रदेश
भी
कमोबेश
तमिलनाडु
की
तरह
ही
BJP
के
लिए
चुनौती
हैं।
केरल
के
कोझिकोड
से
मलप्पुरम
की
तरफ
बढ़ने
पर
साफ-सुथरी
सड़कें,
दोनों
तरफ
किसी
फार्म
हाउस
की
तरह
बने
घर
और
नारियल
के
पेड़
दिखते
हैं।
मलप्पुरम
में
70%
से
ज्यादा
मुस्लिम
आबादी
है।
रास्ते
में
हर
एक-दो
किलोमीटर
पर
मस्जिद
दिखाई
देती
है।
सड़कें
यहां
के
दो
बड़े
एलायंस
LDF
और
UDF
के
झंड़ों
से
पटी
हैं,
लेकिन
BJP
का
झंडा
एक-दो
जगह
ही
दिखा।
किराने
की
दुकान
चलाने
वाले
अब्दुल
रहमान
कहते
हैं-
‘मैं
कभी
उत्तर
भारत
नहीं
गया,
लेकिन
टीवी
पर
देखता
हूं
कि
वहां
हिंदू-मुस्लिम
मुद्दा
बनाया
जाता
है।
मुस्लिम
इलाकों
को
अलग
नजर
से
देखा
जाता
है,
लेकिन
यहां
ऐसा
नहीं
है।
यहां
धर्म
के
नाम
पर
दंगे
नहीं
होते।
BJP
का
कोई
नेता
यहां
आकर
हिंदू-मुस्लिम
करेगा,
तो
उसे
कामयाबी
नहीं
मिलेगी।’
मलप्पुरम
जिले
के
रहने
वाले
सिद्दीकी
कप्पन
बताते
हैं-
‘यहां
के
लोग
पढ़े-लिखे
हैं।
हर
रोज
अखबार
पढ़ते
हैं।
कहां
क्या
होता
है,
उसके
बारे
में
जानते
हैं।
यहां
के
लोगों
को
जाति-धर्म
के
नाम
पर
भड़काया
नहीं
जा
सकता।
BJP
जिन
मुद्दों
पर
हिंदी
पट्टी
में
जीतती
है,
वो
मुद्दे
यहां
नहीं
चलेंगे।’
केरल
के
मलप्पुरम
जिले
में
BJP
दफ्तर
की
तस्वीर।
यहां
पोस्टर-बैनर
लगाकर
NDA
के
पक्ष
में
वोट
करने
की
अपील
की
गई
है।
BJP
के
बनने
के
बाद
अब
तक
10
लोकसभा
चुनाव
हुए।
इन
10
चुनावों
में
BJP
केरल
और
पुडुचेरी
में
कभी
खाता
नहीं
खोल
पाई।
तमिलनाडु
में
7
बार
तो
आंध्र
प्रदेश
में
5
बार,
BJP
को
बिना
किसी
सीट
के
संतोष
करना
पड़ा।
आखिर
दक्षिण
भारत
BJP
के
लिए
चुनौती
क्यों
हैं…
5
बड़ी
वजह…
1.
धर्म
के
आधार
पर
ध्रुवीकरण
मुश्किल,
यहां
मुस्लिम
आक्रांता
के
रूप
में
नहीं
आए
पॉलिटिकल
एनालिस्ट
सुमंत
सी
रमण
बताते
हैं-
‘केरल,
तमिलनाडु,
तेलंगाना
और
आंध्र
प्रदेश
में
BJP
का
हिंदुत्व
कार्ड
लोगों
को
उस
तरह
अट्रैक्ट
नहीं
कर
पाता,
जैसा
हिंदी
पट्टी
के
राज्यों
में
होता
है।
यहां
के
लोगों
को
धर्म
के
आधार
पर
बांटना
मुश्किल
है,
क्योंकि
यहां
इस्लाम
आक्रांता
के
रूप
में
नहीं
आया।
यहां
हिंदुओं
और
मुस्लिमों
के
बीच
वो
मतभेद
नहीं
हैं,
जैसे
नॉर्थ
इंडिया
में
हैं।
इसलिए
यहां
राम
मंदिर
मुद्दा
नहीं
है।’
2.
गरीब
राज्यों
में
BJP
का
प्रदर्शन
बेहतर,
दक्षिण
में
गरीबी
कम
2019
के
नीति
आयोग
के
गरीबी
दर
के
आंकड़े
और
लोकसभा
चुनाव
के
नतीजों
का
एनालिसिस
करने
पर
पता
चला
कि
जहां
गरीबी
ज्यादा
है,
वहां
BJP
मजबूत
स्थिति
में
है।
जबकि
जहां
गरीबी
दर
कम
है,
खासकर
दक्षिण
के
राज्यों
में,
वहां
BJP
कमजोर
है।
दिल्ली
और
हिमाचल
प्रदेश
जैसे
छोटे
राज्य
अपवाद
हैं।
यहां
गरीबी
दर
कम
होने
के
बाद
भी
BJP
का
स्ट्राइक
रेट
100%
है।
इसी
तरह
मेघालय
और
नागालैंड
जैसे
छोटे
राज्यों
में
गरीबी
दर
ज्यादा
होने
के
बाद
भी
BJP
की
स्थिति
अच्छी
नहीं
है।
अब
गरीबी
दर
भी
समझ
लेते
हैं…दरअसल
भारत
के
शहरों
में
जिनकी
मंथली
इनकम
1286
रुपए
और
गांवों
में
1059
रुपए
से
कम
है,
वे
गरीबी
रेखा
से
नीचे
यानी
BPL
माने
जाते
हैं।
गरीबी
दर
यानी
हर
100
में
से
कितने
लोग
गरीबी
रेखा
से
नीचे
हैं।
जैसे
बिहार
में
गरीबी
दर
करीब
33%
है।
इसका
मतलब
है
कि
बिहार
में
हर
100
में
से
33
लोग
गरीब
हैं।
3.
भाषा
और
कल्चर
की
वजह
से
BJP
पर
बाहरी
पार्टी
का
तमगा
बेंगलुरु
के
गीतम
यूनिवर्सिटी
में
पॉलिटिकल
साइंस
के
प्रोफेसर
अरुण
कुमार
एक
मीडिया
इंटरव्यू
में
बताते
हैं-
‘BJP
और
RSS
के
बड़े
नेता
हिंदी
का
फेवर
करते
रहे
हैं।
उनके
दबाव
में
स्थानीय
BJP
नेता
भी
लोगों
को
समझाने
की
कोशिश
करते
हैं
कि
हिंदी
के
इस्तेमाल
से
तमिल
पर
प्रभाव
नहीं
पड़ेगा।
इससे
यहां
के
लोगों
को
लगता
है
कि
BJP
बाहरी
पार्टी
है।’
वहीं,
अभय
दुबे
कहते
हैं-
‘PM
मोदी
या
अमित
शाह
दक्षिण
भारत
में
आते
हैं,
तो
हिंदी
में
भाषण
देते
हैं।
BJP
के
पास
एक
भी
बड़ा
नेता
नहीं
है,
जो
यहां
के
लोगों
से
उनकी
भाषा
में
बात
करे,
उनके
मुद्दे
उनकी
बोली
में
उठाए।
BJP
के
बड़े
नेताओं
के
मैसेज
जनता
के
बीच
मजबूती
से
नहीं
पहुंच
पाते।’
साल
1965,
तमिलनाडु
में
हिंदी
के
विरोध
में
सड़कों
पर
उतरे
लोग।
4.
दक्षिण
में
BJP
के
पास
कोई
बड़ा
लीडर
नहीं,
पार्टियां
तोड़ना
मुश्किल
अभय
दुबे
बताते
हैं-
‘नॉर्थ
ईस्ट
में
BJP
ने
दूसरी
पार्टियों
के
स्थानीय
नेताओं
को
अपनी
पार्टी
में
शामिल
कराके
सरकार
बनाई
है।
चाहे
असम
के
मुख्यमंत्री
हिमंता
बिस्वा
सरमा
हों
या
मणिपुर
के
मुख्यमंत्री
एन
बीरेन
सिंह,
दोनों
BJP
या
RSS
के
कैडर
से
नहीं
हैं।
BJP
के
साथ
दिक्कत
है
कि
ऐसी
कामायाबी
उसे
साउथ
में
नहीं
मिल
रही।
यहां
वो
दूसरे
दलों
के
बड़े
नेताओं
को
अपनी
पार्टी
में
शामिल
नहीं
करा
पा
रही
है।
एकमात्र
कर्नाटक
में
BJP
मजबूत
है,
तो
इसके
पीछे
येदुरप्पा
जैसे
बड़े
नेता
हैं।
सुमंत
सी
रमण
कहते
हैं-
‘
नॉर्थ
ईस्ट
में
पार्टियां
छोटी
हैं।
किसी
के
5
विधायक,
तो
किसी
के
10
विधायक
BJP
में
शामिल
हो
गए,
लेकिन
दक्षिण
में
दूसरी
पार्टियों
को
तोड़ना
मुश्किल
है,
क्योंकि
ये
राज्य
बड़े
हैं।’
2021
में
BJP
ने
केरल
में
मेट्रोमैन
ई
श्रीधरन
को
CM
फेस
बनाया
था,
लेकिन
वो
प्रयोग
सफल
नहीं
हुआ।
श्रीधरन
अपनी
सीट
भी
नहीं
बचा
पाए।
अब
BJP
ने
तमिलनाडु
में
युवा
IPS
अन्नामलाई
को
प्रदेश
अध्यक्ष
बनाया
है।
इसका
BJP
को
कितना
फायदा
मिलेगा,
यो
तो
नतीजों
के
बाद
ही
पता
चलेगा।
24
अप्रैल
को
कर्नाटक
के
मैसूर
में
रैली
के
दौरान
प्रधानमंत्री
मोदी
और
कर्नाटक
के
पूर्व
मुख्यमंत्री
बीएस
येदियुरप्पा
(सबसे
बाएं)।
6.
द्रविड़
वर्सेज
आर्यन्स
की
लड़ाई,
सनातन
पर
जाति
का
मुद्दा
हावी
दक्षिण
भारत,
खासकरके
तमिलनाडु
में
द्रविड़
वर्सेज
आर्यन्स
के
बीच
सालों
से
संघर्ष
रहा
है।
द्रविड़
यानी
यहां
के
लोग
खुद
को
मूल
निवासी
मानते
हैं
और
आर्यन्स
यानी
उतर
भारत
के
लोगों
को
बाहरी।
द्रविड़ों
का
कहना
है
कि
आर्यों
ने
आक्रमण
करके
उन्हें
विंध्य
के
पार
पहुंचा
दिया।
आर्यन्स,
वैदिक
पूजा
पद्धति
को
फॉलो
करते
थे
और
खुद
को
श्रेष्ठ
बताते
थे।
NCERT
की
किताब
‘Our
India’
के
मुताबिक
आर्यों
ने
1500
ईसा
पूर्व
में
वेदों
की
रचना
की
और
समाज
को
चार
वर्णों
में
बांट
दिया।
जिसका
द्रविड़ों
ने
विरोध
किया।
1940
के
दशक
में
ब्राह्मणवादी
सोच
के
खिलाफ
द्रविड़
आंदोलन
की
शुरुआत
हुई।
तमिलनाडु
के
समाज
सुधारक
ईवीके
रामास्वामी
‘पेरियार’
की
इसमें
अहम
भूमिका
रही
थी।
उन्होंने
मनुस्मृति
को
जला
दिया
था।
प्रोफेसर
अरुण
कुमार
बताते
हैं,
‘1950
के
दशक
में
DMK
ने
आर्यन-द्रविड़ियन
और
तमिल
आइडेंटिटी
का
मुद्दा
उठाया।
इन्हीं
मुद्दों
के
बल
पर
उसने
1967
में
कांग्रेस
को
हरा
भी
दिया।
उसके
बाद
तमिलनाडु
का
राजनीतिक
विमर्श
बदल
गया।
BJP
ना
तो
द्रविड़ियन
पहचान
के
साथ
खड़ी
हो
पाई,
न
ही
तमिल
आइडेंटिटी
के
साथ।’
वहीं,
सुमंत
सी
रमण
का
कहना
है
कि
तमिलनाडु
के
लोग
BJP
को
ब्राह्मणवादी
पार्टी
मानते
हैं।
इसी
वजह
से
BJP
के
सनातन
का
मुद्दा
यहां
काम
नहीं
आता।
यहां
कास्ट
का
मुद्दा
ज्यादा
हावी
है।
मार्च
1967।
DMK
नेता
एम.
करुणानिधि
के
समर्थक
माला
पहनाकर
उनका
स्वागत
कर
रहे
हैं।
करुणानिधि
पांच
बार
तमिलनाडु
के
मुख्यमंत्री
रहे।
सोर्स
:
इंडियन
एक्सप्रेस
दक्षिणी
राज्यों
में
BJP
के
पास
3%
सीटें,
लेकिन
कर्नाटक
में
90%
सीटें,
ऐसा
क्यों…?
इस
सवाल
का
जवाब
ढूंढने
हम
कर्नाटक
की
राजधानी
बेंगलुरु
पहुंचे।
सड़कों
और
घरों
के
ऊपर
भगवा
झंडे
लगे
थे।
कई
घरों
के
ऊपर
भगवान
राम
की
फोटो
वाले
झंडे
भी
दिखे।
हमें
बताया
गया
कि
अयोध्या
के
राम
मंदिर
में
प्राण
प्रतिष्ठा
के
वक्त
पूरे
शहर
में
भगवा
झंडे
लगाए
गए
थे।
कर्नाटक
में
जमीनी
स्तर
पर
RSS,
बाकी
के
दक्षिणी
राज्यों
के
मुकाबले
ज्यादा
मजबूत
नजर
आता
है।
इसकी
बड़ी
वजह
है
कर्नाटक
का
महाराष्ट्र
से
सटा
हुआ
होना,
जहां
BJP-RSS
का
संगठन
काफी
मजबूत
है।
अभय
दुबे
बताते
हैं-
‘1990
में
जब
देशभर
में
BJP
ने
राम
रथयात्रा
निकाली,
तो
वह
कर्नाटक
भी
गई।
उससे
BJP
का
हिंदुत्व
कार्ड
कर्नाटक
में
मजबूत
हुआ,
लेकिन
बाकी
दक्षिणी
राज्यों
में
BJP
ने
ना
तो
रथयात्रा
निकाली
ना
कोई
मंदिर
आंदोलन
किया।’
वहीं,
सीनियर
जर्नलिस्ट
कमल
मंगलश्री
कहते
हैं-
‘BJP
की
कामयाबी
के
पीछे
एक
बड़ी
वजह
यह
भी
है
कि
कर्नाटक
में
शहरी
लोग
हिंदी
समझते
हैं।
PM
के
भाषणों
को
समझने
के
लिए
उन्हें
किसी
ट्रांसलेटर
की
जरूरत
नहीं
पड़ती।’
कर्नाटक
में
BJP
की
कामयाबी
के
पीछे
यहां
की
धार्मिक
कम्युनिटी
लिंगायत
की
भी
बड़ी
भूमिका
रही
है।
ये
कम्युनिटी
OBC
की
मजबूत
जातियों
में
आती
है।
यहां
लिंगायत
की
आबादी
17%
है।येदियुरप्पा
लिंगायत
कम्युनिटी
से
ही
आते
हैं।
BJP
को
येदियुरप्पा
के
चेहरे
का
फायदा
चुनावों
में
होता
है।
आखिर
कर्नाटक
BJP
के
लिए
गेटवे
ऑफ
साउथ
कैसे
बना…
मोदी
के
PM
बनने
के
बाद
दक्षिण
भारत
में
BJP
का
वोट
शेयर
6%
बढ़ा
2009
में
BJP
के
पास
दक्षिण
भारत
में
129
में
से
19
लोकसभा
सीटें
थीं
और
वोट
शेयर
11.24%
था।
तब
BJP
को
सभी
19
सीटें
कर्नाटक
से
ही
मिली
थीं।
2014
में
जब
नरेंद्र
मोदी
BJP
के
PM
फेस
बने,
तो
उस
चुनाव
में
BJP
को
दक्षिण
भारत
में
कुल
22
सीटें
मिलीं।
कर्नाटक
में
17,
आंध्र
प्रदेश
में
3
और
तेलंगाना-तमिलनाडु
में
एक-एक
सीट।
वहीं,
2019
में
BJP
को
दक्षिण
भारत
में
कुल
29
सीटें
मिलीं
और
वोट
शेयर
17.8%
रहा।
यानी,
2009
के
मुकाबले
करीब
6%
वोट
शेयर
बढ़
गया।
2024
लोकसभा
चुनाव
में
दक्षिण
भारत
के
लिए
मोदी
के
5
बड़े
प्लान
1.
राम
मंदिर
से
सेंगोल
तक
दक्षिण
कल्चर
को
बढ़ावा
देना
पिछले
साल
28
मई
को
दिल्ली
में
नई
संसद
भवन
का
उद्घाटन
हुआ।
इसमें
तमिलनाडु
के
अधीनम
मठ
से
सेंगोल
लाकर
लोकसभा
अध्यक्ष
के
आसन
के
पास
लगाया
गया।
करीब
ढाई
हजार
साल
पहले
सेंगोल
को
चोल
राजाओं
ने
सत्ता
हस्तांतरण
का
प्रतीक
बनाया
था।
तमिल
संस्कृति
में
सेंगोल
का
खास
महत्व
है।
28
मई
2023,
सेंगोल
लेकर
संसद
भवन
जाते
हुए
प्रधानमंत्री
मोदी।
इस
साल
22
जनवरी
को
अयोध्या
के
राम
मंदिर
में
रामलला
की
प्राण
प्रतिष्ठा
हुई।
राम
मंदिर
में
कुल
तीन
मूर्तियां
स्थापित
की
गईं।
इनमें
से
दो
कर्नाटक
के
मूर्तिकारों
की
बनाई
और
एक
राजस्थान
की
बनी
प्रतिमा
है।
गर्भगृह
में
जो
प्रतिमा
लगी
है,
उसे
कर्नाटक
के
मूर्तिकार
अरुण
योगीराज
ने
बनाया
है।
काशी-तमिल
संगमम
के
जरिए
भी
पार्टी
ने
दक्षिण
से
रिश्ता
बनाने
की
पहल
की
है।
पहला
काशी-तमिल
संगमम
नवंबर-दिसंबर
2022
में
और
दूसरा
दिसंबर
2023
में
वाराणसी
में
किया
गया।
इसमें
बड़ी
संख्या
में
तमिलनाडु
के
अलग-अलग
क्षेत्रों
के
एक्सपर्ट
शामिल
हुए।
कहा
जाता
है
कि
तमिलनाडु
में
कई
जगहों
पर
काशी
विश्वनाथ
और
विशालाक्षी
मंदिर
मौजूद
हैं।
तमिलनाडु
में
काशी
नाम
का
शहर
भी
है।
2.
चार
महीने
में
दक्षिण
भारत
के
31
दौरे
पिछले
140
दिनों
में
मोदी
ने
दक्षिण
भारत
के
37
दौरे
किए
हैं।
इनमें
सबसे
ज्यादा
13
बार
वे
तमिलनाडु
गए
हैं।
पिछले
एक
महीने
में
PM
ने
कर्नाटक
में
9,
तेलंगाना
में
5,
तमिलनाडु
में
4
और
केरल-आंध्र
प्रदेश
में
2-2
रैलियां
की
हैं।
3.
राज्यसभा
में
दक्षिण
भारत
से
BJP
के
8
सांसद,
5
नॉमिनेटेड
राज्यसभा
में
दक्षिण
भारत
से
BJP
के
कोटे
से
8
सांसद
हैं।
इसके
अलावा
मशहूर
एथिलीट
पीटी
उषा,
संगीतकार
इलैयाराजा,
तेलुगु
फिल्मों
के
डायरेक्टर
विजयेंद्र
प्रसाद,
जैन
धर्माधिकारी
वीरेंद्र
हेगड़े
और
इंफोसिस
की
प्रेसिडेंट
सुधा
मूर्ति
नॉमिनेटेड
सांसद
हैं।
पीटी
उषा
केरल
से
आती
हैं,
इलैयाराजा
तमिलनाडु
से,
विजयेंद्र
प्रसाद
आंध्र
प्रदेश
से,
जबकि
वीरेंद्र
हेगड़े
और
सुधा
मूर्ति
कर्नाटक
से
ताल्लुक
रखते
हैं।
एक्सपर्ट्स
का
मानना
है
कि
राज्यसभा
में
दक्षिण
की
बड़ी
हस्तियों
को
भेजकर
BJP
अपनी
पैठ
बनाना
चाहती
है।
4.
क्षेत्रीय
पार्टियों
से
गठबंधन
BJP
तेलंगाना
में
TDP
के
साथ
लड़
रही
है
और
कर्नाटक
में
JDS
के
साथ।
इसी
तरह
तमिलनाडु,
आंध्र
प्रदेश
और
केरल
में
भी
BJP
ने
स्थानीय
पार्टियों
के
साथ
गठबंधन
किया
है।
5.
भारत
रत्न
और
पद्म
पुरस्कारों
के
जरिए
दक्षिण
में
कामयाबी
की
कोशिश
इस
साल
बिहार
के
पूर्व
CM
कर्पूरी
ठाकुर,
लालकृष्ण
आडवाणी
,
पूर्व
PM
नरसिम्हा
राव,
पूर्व
PM
चौधरी
चरण
सिंह
और
वैज्ञानिक
एमएस
स्वामीनाथन
को
भारत
रत्न
दिया
गया।
नरसिम्हा
राव
तेलंगाना
और
एमएस
स्वामीनाथन
तमिलनाडु
के
रहने
वाले
थे।
चुनावी
साल
में
इन
दोनों
हस्तियों
को
भारत
रत्न
देने
के
फैसले
को
BJP
के
मिशन
दक्षिण
से
जोड़कर
देखा
गया।
बुधवार
यानी
22
मई
को
‘यक्ष
प्रश्न’
सीरीज
के
दूसरे
एपिसोड
में
जानिए
कांग्रेस
के
हाथ
से
UP
कैसे
फिसल
गया…
इस
चुनाव
में
UP
से
कांग्रेस
का
एक
भी
सिटिंग
सांसद
नहीं
है।
राज्यसभा
में
UP
से
कांग्रेस
का
कोई
सांसद
नहीं
है।
विधान
परिषद
में
कोई
मेंबर
नहीं
बचा।
403
विधानसभा
सीटों
वाली
UP
में
सिर्फ
2
विधायक
बचे
हैं।
ग्राफिक्स
:
अंकित
द्विवेदी