बिहार की 40 में से ज़्यादातर सीटों पर एनडीए ने अपने उम्मीदवार की घोषणा कर दी है. सीटों की साझेदारी में बीजेपी के हिस्से में 17 सीटें आई हैं. बीजेपी ने किसी भी सीट पर महिला उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है.
साल 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने शिवहर सीट से रमा देवी को अपना उम्मीदवार बनाया था. इस बार साझेदारी में बीजेपी ने यह सीट जेडीयू को दे दी है.
जबकि पिछले साल ही बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने संसद के दोनों सदनों में महिला आरक्षण विधेयक पारित कराया था.
इस क़ानून के लागू होने के बाद लोकसभा और राज्यों की विधानसभा में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित होंगी.
हालाँकि यह क़ानून कब से लागू हो पाएगा, यह अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है.
वहीं बिहार में बीजेपी के उम्मीदवारों की सूची में कई ऐसे नाम हैं, जिनको लेकर कयास लगाए जा रहे थे कि उनका टिकट इस बार के चुनावों में कट सकता है.
ऐसी अटकलें इसलिए भी लगाई जा रही थीं क्योंकि बीजेपी ने अपने उम्मीदवारों की शुरुआती सूची में कई सांसदों के टिकट काट दिए थे.
बिहार में एनडीए में सीटों की साझेदारी के बाद ज़्यादातर सीटों पर उम्मीदवारों का नाम भी तय हो गया है. इसमें बीजेपी और जेडीयू ने अपने ज़्यादातर मौजूदा सांसदों को फिर से चुनाव मैदान में उतारने का फ़ैसला किया है.
हालाँकि एनडीए की सूची में कई ऐसे बदलाव भी हैं जो चौंकाने वाले हैं.
बीजेपी ने कोई नया प्रयोग नहीं किया
साल 2019 में हुए लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इनमें से 13 सीटों पर उसने इस साल होने वाले चुनावों के लिए अपने पुराने सांसदों पर भरोसा जताया है.
वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर के मुताबिक़, “ऐसा लगता है कि बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को राज्य के नेताओं और नए चेहरों पर भरोसा नहीं था. इसलिए उसने किसी तरह के प्रयोग करने का जोख़िम नहीं उठाया. बिहार में जातिगत सर्वे का मुद्दा भी था, इसी मजबूरी में पहले नीतीश कुमार की जेडीयू से भी साझेदारी की गई.”
बीजेपी के जिन सांसदों के टिकट काटने को लेकर कयास लगाए जा रहे थे. उनमें कुछ की उम्र उनके सामने मुश्किल बनती दिख रही थी, जबकि कुछ का पार्टी और सरकार में लगातार गिरता ग्राफ़ भी एक वजह माना जा रहा था.
राधामोहन सिंह: पूर्वी चंपारण के सांसद राधामोहन सिंह नरेंद्र मोदी की पिछली सरकार में मंत्री थे. मंत्री पद से हटाए जाने के बाद वो आमतौर पर ख़बरों से भी गायब हो गए थे. राधामोहन सिंह पाँच बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं.
वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता नारायण कहते हैं, “राधामोहन सिंह क़रीब 75 साल के हो चुके हैं. बीजेपी और मोदी जिस उम्र सीमा की बात करते हैं, उस लिहाज़ से राधामोहन सिंह को टिकट नहीं मिलना चाहिए था. लेकिन बीजेपी नया दाँव खेलने से बच रही है. इससे टिकट कटने वालों से पार्टी को भीतरघात का भी ख़तरा हो सकता था.”
रविशंकर प्रसाद: पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद को बीजेपी ने एक बार फिर से पटना साहिब सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है.
रविशंकर प्रसाद भी मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुके थे. माना जाता है जुलाई 2021 में मंत्री पद जाने के बाद उनका भी ग्राफ़ गिरा है.
रामकृपाल यादव: रामकृपाल यादव एक ज़माने में आरजेडी में थे और लालू प्रसाद यादव के क़रीबी माने जाते थे. साल 2014 में वो आरजेडी छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो गए थे.
रामकृपाल यादव बिहार के पाटलिपुत्र लोकसभा सीट से सांसद हैं. मोदी की पिछली सरकार में वो मंत्री भी रहे थे. रामकृपाल यादव को फिर से बीजेपी ने टिकट दे दिया है.
माना जाता है कि इसके पीछे क्षेत्र में लोगों से रामकृपाल यादव का संपर्क और उनकी लोकप्रियता बड़ी वजह रही है.
वरिष्ठ पत्रकार सुरूर अहमद कहते हैं, “रविशंकर प्रसाद और रामकृपाल यादव का क़द पार्टी और सरकार में घटा है. साल 2014 के चुनावों में चर्चा थी कि बीजेपी पटना साहिब सीट से आरके सिन्हा को टिकट दे सकती है. इस बार फिर से उनको या उनके बेटे ऋतुराज को टिकट देने की चर्चा थी, लेकिन बीजेपी नए प्रयोग के मूड में नहीं है.”
गिरिराज सिंह: गिरिराज सिंह साल 2014 के लोकसभा चुनावों में नवादा सीट से चुनाव जीते थे. अभी वो बेगूसराय से बीजेपी के सांसद हैं.
गिरिराज सिंह को उनके ही लोकसभा क्षेत्र में हाल ही में बीजेपी के ही कुछ कार्यकर्ताओं ने काले झंडे दिखाए थे. हालाँकि गिरिराज को बीजेपी के अंदर कट्टर हिन्दू चेहरा माना जाता है.
ख़ास बात यह भी है कि इलाक़े में बीते कुछ समय से बीजेपी के राज्य सभा सांसद राकेश सिन्हा काफ़ी सक्रिय रहे हैं.
ऐसे में अटकलें लग रही थीं कि बीजेपी राकेश सिन्हा पर भी दाँव खेल सकती है. लेकिन अंत में बीजेपी ने इस सीट पर भी अपने पुराने चेहरे पर भरोसा जताया है.
जिनके टिकट कटने से हुई हैरानी
अश्विनी कुमार चौबे: केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे बीजेपी के पुराने नेताओं में से एक हैं. अश्विनी चौबे का टिकट काटकर बीजेपी ने इस बार अपने एक पूर्व विधायक मिथिलेश तिवारी को बक्सर से चुनाव मैदान में उतारा है.
अश्विनी चौबे मूल रूप से बिहार के भागलपुर से ताल्लुक रखते हैं. हालाँकि मिथिलेश तिवारी भी बिहार के गोपालगंज से संबंध रखते हैं और यहीं के बैकुंठपुर सीट से विधायक रहे हैं.
अश्विनी चौबे को भी बीजेपी में हिन्दू चेहरे के तौर पर देखा जाता है और उनपर केंद्र सरकार का भरोसा अभी तक बरकरार दिख रहा था.
मणिकांत ठाकुर मानते हैं, “हमेशा पुराने चेहरों को ही मौक़ा मिलेगा तो नए लोग कहाँ जाएंगे. बीजेपी को कुछ नए लोगों को टिकट देना ही था और पार्टी को लगा होगा कि अश्विनी चौबे का टिकट काट देने से शोर कम होगा, इसलिए उनको इस बार टिकट नहीं मिला.”
माना जा रहा है कि इस मामले में बीजेपी का अनुमान ग़लत निकला है और ख़बरों के मुताबिक़ अश्विनी चौबे टिकट कटने की वजह से नाराज़ हुए हैं. हालाँकि उन्होंने इस मुद्दे पर खुलकर कुछ नहीं कहा है.
अजय निषाद: बीजेपी के वरिष्ठ नेता और सांसद रहे जय नारायण निषाद के बेटे अजय निषाद ने साल 2019 में मुज़फ़्फ़रपुर सीट से वीआईपी के राज भूषण चौधरी को 4 लाख़ से ज़्यादा वोटों से पराजित किया था.
बाद में राज भूषण वीआईपी छोड़कर बीजेपी शामिल हो गए थे.
इस बार अजय निषाद का टिकट काटकर बीजेपी ने उन्हीं राज भूषण को टिकट दे दिया है, जिन्हें अजय निषाद ने रिकॉर्ड वोटों के अंतर से मात दी थी.
बीजेपी ने इस साल हो रहे लोकसभा चुनावों के लिए सासाराम के अपने मौजूदा सांसद छेदी पासवान का टिकट भी काट दिया है.
माना जाता है कि पिछले साल रामनवमी के मौक़े पर बिहार के सासाराम में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद छेदी पासवान की लोकप्रियता में काफ़ी गिरावट आ गई थी, जिसकी वजह से उनका टिकट काटा गया है.
वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी कहते हैं, “मोदी में जो आत्मविश्वास साल 2019 के चुनावों में दिख रहा था, वह इस बार नज़र नहीं आ रहा है. इसलिए टिकट बंटवारे में बीजेपी के अन्य नेताओं की राय को भी जगह मिली है. बीजेपी में अगड़ी जाति और राजपूत बिरादरी को टिकट बंटवारे में कोई नुक़सान नहीं होने दिया गया है.”
बीजेपी ने टिकट बंटवारे में अपने हिस्से की 17 में से दस सीटों पर अगड़ी जाति के उम्मीदवार को टिकट दिया है.
उसने इस बार भी साल 2019 के चुनावों की तरह 5 राजपूतों को टिकट दिया है जबकि दो भूमिहार, दो ब्राह्मण, एक कायस्थ, एक जायसवाल, 3 यादव, 2 अति पिछड़ा वर्ग और एक दलित को टिकट दिया है.
एनडीए के बाक़ी सहयोगियों की बात करें तो चिराग पासवान भी अपने पिता की तरह टिकट बंटवारे में अपने परिवार पर भरोसा करते नज़र आए हैं.
चिराग ने ख़ुद की जमुई लोकसभा सीट से अपने बहनोई अरुण भारती को एलजेपी( रामविलास) का उम्मीदवार बनाया है.
एनडीए के सीट बंटवारे में एक ख़ास बात यह भी है कि ख़बर लिखे जाने तक उसने अब तक बिहार की 37 सीटों में केवल एक मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया है. जेडीयू ने किशनगंज सीट से मोहम्मद मुजाहिद आलम को टिकट दिया है.
एनडीए की तरफ से जनता दल यूनाइटेड ने दो सीटों पर महिला उम्मीदवारों को भी टिकट दिया है. इनमें से एक शिवहर की सीट है, जहाँ से हाल ही में जेल से बाहर आए पूर्व सांसद आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद को टिकट दिया है.
जबकि जेडीयू ने सिवान लोकसभा सीट से भी एक महिला विजय लक्ष्मी कुशवाहा को टिकट दिया है.
एलजेपी(आर) ने अभी खगड़िया, वैशाली और समस्तीपुर लोकसभा सीट के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है.
चिराग पासवान अपनी पार्टी से किसी महिला या मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट देते हैं तो एनडीए में टिकट बंटवारे में इन दोनों के लिए एक छोटी सी जगह और दिख सकती है.