
हाइलाइट्स
कर्नाटक
सरकार
की
कंपनी,
मैसूर
पेंट्स
एंड
वार्निश
लिमिटेड
ही
बनाती
है
यह
स्याही.
नेशनल
फिजिकल
लेबोरेटरी
में
इसे
सर्वप्रथम
बनाया
गया
था.1960
के
दशक
में
CSIR
के
वैज्ञानिकों
ने
इस
स्याही
पर
काम
शुरू
किया
था.
नई
दिल्ली.
भारत
में
लोक
सभा
चुनाव
2024
(Lok
Sabha
Elections
2024)
के
लिए
मतदान
का
आगाज
19
अप्रैल
को
हुआ
था.
अब
पूरा
देश
चुनावी
रंग
में
रंगा
नजर
आ
रहा
है.
सात
चरण
में
पूरी
होने
वाली
चुनावी
प्रक्रिया
के
अभी
तक
चार
चरण
संपन्न
हो
चुके
हैं.
भारतीय
चुनाव
में
भले
ही
बैनर,
पोस्टर,
रैली
और
जलसे-जुलूसों
की
शक्ल
समय
के
साथ
बदल
गई
हो,
लेकिन
एक
चीज
का
न
रंग
बदला
है
और
न
ही
अहमियत.
इस
‘खास’
चीज
के
बिना
भारत
में
चुनाव
की
तो
कल्पना
ही
नहीं
की
जा
सकती
है.
हम
बात
कर
रहे
हैं
मतदान
से
पहले
हर
वोटर
के
बाएं
हाथ
की
तर्जनी
उंगली
पर
लगाई
जाने
वाली
नीली
स्याही
(indelible
ink)
की.
लेकिन,
क्या
आपको
पता
है
कि
चुनाव
प्रक्रिया
में
इस्तेमाल
होने
वाली
इस
‘खास
स्याही’
को
कौन
सी
कंपनी
बनाती
है?
भारत
में
मतदान
के
लिए
भले
ही
बैलट
पेपर्स
की
जगह
ईवीएम
ने
ले
ली
हो,
लेकिन
क्यों
इस
स्याही
का
कोई
और
विकल्प
नहीं
आया
है?
भारत
में
चुनावी
प्रक्रिया
का
पर्याय
बन
चुकी
गाढ़े
नीले
रंग
की
इस
स्याही
को
बनाने
का
जिम्मा
भारत
में
एक
ही
कंपनी
के
पास
है.
यह
सरकारी
कंपनी
है,
मैसूर
पेंट्स
एंड
वार्निश
लिमिटेड
(Mysore
Paints
and
Varnish
Limited)
है.
इस
कंपनी
की
नींव
1937
में
नलवाड़ी
कृष्णा
राजा
वाडियार
ने
रखी
थी.
शुरुआत
में
इसका
नाम
मैसूर
लाक
फैक्ट्री
हुआ
करता
था.
लेकिन
1947
में
जब
देश
आजाद
हुआ
तो
इस
कंपनी
का
सरकार
ने
अधिग्रहण
कर
लिया
और
इसका
नाम
भी
बदल
दिया
गया
है.
वर्तमान
में
कर्नाटक
सरकार
के
अधीन
कंपनी
काम
करती
है.
अब
तक
उपलब्ध
आंकड़ों
के
अनुसार,
मैसूर
पेंट्स
एंड
वार्निश
लिमिटेड
का
वित्त
वर्ष
2021
में
टर्नओवर
3974.58
करोड़
रुपये,
FY
21-22
में
3179.22
करोड़
तो
2022-23
में
2895.95
करोड़
रुपये
रहा.
कंपनी
का
मुनाफा
वित्त
वर्ष
2022-23
में
588.63
करोड़
रुपये
रहा.
यानी
कंपनी
हर
साल
मुनाफा
कमा
रही
है.
1962
से
स्याही
बना
रही
है
कंपनी
तीसरे
आम
चुनाव
के
लिए
1962
में
पहली
बार
मैसूर
पेंट्स
एंड
वार्निश
लिमिटेड
(MVPL)
को
यह
स्याही
तैयार
करने
की
जिम्मेदारी
सौंपी
गई
थी
और
तभी
से
यही
कंपनी
इस
चुनावी
स्याही
की
मदद
से
भारतीय
लोकतंत्र
को
रंगीन
बना
रही
है.
एमवीपीएल
इस
चुनावी
स्याही
को
सरकार
या
चुनाव
से
जुड़ी
एजेंसियों
को
ही
बेचती
है.
कंपनी
इस
स्याही
का
निर्यात
भी
करती
है
और
25
देश
इसके
ग्राहक
हैं.
174
रुपये
है
एक
शीशी
की
कीमत
एक
अनुमान
के
अनुसार,
2024
के
आम
चुनावों
के
लिए
मैसूर
पेंट्स
एंड
वार्निश
लिमिटेड
ने
10
एमएल
की
26.5
लाख
फायल्स
(छोटी-छोटी
शीशियां)
की
सप्लाई
भारतीय
चुनाव
आयोग
को
की
है.
हर
फायल
की
कीमत
करीब
174
रुपए
है.
यानी
इस
बार
कंपनी
461,100,000
रुपये
की
स्याही
बेची
है.
अगर
हम
लीटर
में
देखें
तो
आम
चुनाव
प्रक्रिया
में
इस
बार
26,500
लीटर
नीली
स्याही
का
इस्तेमाल
होने
का
अनुमान
है.
इन
देशों
को
बेची
है
स्याही
mygov.in
पर
मौजूद
एक
ब्लॉग
के
अनुसार,
मैसूर
पेंट्स
एंड
वार्निश
लिमिटेड
अब
तक
कनाडा,
घाना,
नाइजीरिया,
मंगोलिया,
मलेशिया,
नेपाल,
दक्षिण
अफ्रीका,
तुर्की,
सिंगापुर,
डेनमार्क
और
मालदीव
सहित
25
देशों
को
इस
स्याही
का
निर्यात
कर
चुकी
है.
किसने
बनाई
यह
‘अमिट
छाप’
mygov.in
के
अनुसार,
फर्जी
मतदान
से
बचने
के
लिए
1960
के
दशक
में
सीएसआईआर
के
वैज्ञानिकों
ने
इस
स्याही
पर
काम
शुरू
किया.
इस
स्याही
के
लिए
भारतीय
चुनाव
आयोग
ने
दरख्वास्त
की
थी.
बाद
में
इसे
नेशनल
रिसर्च
डेवलेपमेंट
कॉर्पोरेशन
ने
पेटेंट
करवा
लिया.
नेशनल
फिजिकल
लेबोरेटरी
(NPL)
में
इसे
सर्वप्रथम
बनाया
था.
NPL
के
पास
इस
स्याही
का
कोई
लिखित
रिकॉर्ड
नहीं
है.
ऐसा
माना
जाता
है
कि
औद्योगिक
अनुसंधान
परिषद
(CSIR)
के
रसायनज्ञ
सलीमुज्जमां
सिद्दीकी
ने
इस
स्याही
को
बनाने
का
काम
शुरू
किया.
लेकिन,
कुछ
समय
बाद
वो
पाकिस्तान
चले
गए.
इसके
बाद
सिद्दीकी
के
सहयोगियों
डॉ.
एमएल
गोयल,
डॉ.
बीजी
माथुर
और
डॉ.
वीडी
पुरी
ने
उनके
इस
ऐतिहासिक
काम
को
पूरा
किया.
40
सेकेंड
में
ही
हो
जाता
है
‘जादू’
पानी
आधारित
यह
नीली
स्याही
सिल्वर
नाइट्रेट,
कई
तरह
के
डाई
और
कुछ
सॉल्वैंट्स
का
एक
मिश्रण
है.
इसे
उंगली
के
नाखून
और
त्वचा
पर
लगाने
के
40
सेकेंड
बाद
ही
यह
सूख
जाती
है.
सिल्वर
नाइट्रेट
रंग-विहीन
केमिकल
है
जो
पराबैंगनी
किरणों
या
सूर्य
की
रौशनी
में
आने
के
बाद
नजर
आने
लगता
है.
स्याही
में
सिल्वर
नाइट्रेट
की
मात्रा
जितनी
ज्यादा
होती
है,
स्याही
की
गुणवत्ता
उतनी
ही
बेहतर
होती
है.
स्याही
जल्द
से
जल्द
सूख
जाए,
इसके
लिए
इसे
बनाने
में
अल्कोहल
का
इस्तेमाल
किया
जाता
है.
करीब
72
घंटों
तक
यह
स्याही
साबुन,
डिटर्जेंट
और
अन्य
हैंड
वाश
लगाने
से
भी
नहीं
धुलती.
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May
18,
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