
नई
दिल्ली.
यदि
आपको
भी
लगता
है
कि
ग्राहकों
की
बात
कोई
नहीं
सुनता
तो
आपको
अपने
विचार
बदल
लेने
चाहिए.
उपभोक्ता
अदालतें
तो
आम
ग्राहकों
की
बात
न
केवल
सुनती
हैं
बल्कि
बात
में
दम
हो
तो
मनमानी
चलाने
वाली
कंपनी
के
खिलाफ
एक्शन
भी
लेती
हैं.
ताजा
मामला
एक
इंश्योरेंस
कंपनी
का
है.
दिल्ली
की
एक
उपभोक्ता
अदालत
ने
इंश्योरेंस
कंपनी
को
क्लेम
रिजेक्ट
करने
पर
लताड़
भी
लगाई
और
पीड़ित
व्यक्ति
को
पैसा
भी
दिलवाया.
उपभोक्ता
अदालत
ने
एक
बीमा
कंपनी
को
शिकायतकर्ता
को
4
लाख
रुपये
का
भुगतान
करने
का
आदेश
दिया,
क्योंकि
कंपनी
ने
2015
में
उनके
दावे
को
अस्वीकार
कर
दिया
था.
जिला
उपभोक्ता
विवाद
निवारण
आयोग
(केंद्रीय
जिला)
के
अध्यक्ष
इंदर
जीत
सिंह
और
मैंबर
रश्मि
बंसल
ने
कहा
कि
बीमा
कंपनी
की
कार्रवाइयों
के
कारण
शिकायतकर्ता
को
“असुविधा,
उत्पीड़न,
मानसिक
पीड़ा,
वित्तीय
नुकसान
और
शारीरिक
परेशानी”
का
सामना
करना
पड़ा.
सर्जरी
के
क्लेम
पर
जारी
किया
था
कम
पैसा
पीड़ित
निश्चल
जैन
ने
आरोप
लगाया
कि
उनकी
पत्नी
की
गर्भावस्था
की
जटिलताओं
के
कारण
सर्जरी
के
क्लेम
को
रिजेक्ट
करके
कंपनी
अपनी
सर्विस
के
दावों
पर
खरी
नहीं
उतरी.
कंपनी
ने
4.77
लाख
रुपये
के
दावे
पर
केवल
2.15
लाख
रुपये
जारी
किए,
जबकि
शिकायतकर्ता
को
सर्जरी
के
लिए
पूरी
राशि
की
आवश्यकता
थी.
आयोग
ने
कंपनी
को
50,000
रुपये
मुआवजे
के
रूप
में,
लंबित
दावे
के
विरुद्ध
3.25
लाख
रुपये
ब्याज
सहित
और
25,000
रुपये
मुकदमे
की
लागत
के
रूप
में
भुगतान
करने
का
निर्देश
दिया.
अदालत
ने
स्वीकार
किया
कि
शिकायतकर्ता
के
पास
एक
वैध
बीमा
पॉलिसी
थी
और
वह
समय
पर
प्रीमियम
का
भुगतान
कर
रहा
था.
इसके
बावजूद,
उसे
कंपनी
के
अनुचित
निर्णय
के
कारण
कठिनाई
का
सामना
करना
पड़ा.
कैशलेस
का
आश्वासन
दिया,
मगर
जैन
ने
2005
में
अपने
परिवार
के
लिए
मेडिक्लेम
पॉलिसी
खरीदी
थी,
जिसमें
वह,
उनकी
पत्नी
और
बेटा
शामिल
थे,
और
उनके
दूसरे
पुत्र
को
2006
में
जन्म
के
बाद
शामिल
किया
गया.
उन्होंने
नियमित
रूप
से
बिना
किसी
ब्रेक
के
प्रीमियम
का
भुगतान
किया,
और
शिकायत
दर्ज
करने
की
तारीख
तक
पॉलिसी
एक्टिव
थी.
कंपनी
ने
उन्हें
सभी
प्रमुख
अस्पतालों
में
कैशलेस
सुविधाएं
और
समय
पर
सेवाएं
प्रदान
करने
का
आश्वासन
दिया
था.
आयोग
को
बतााय
गया
कि
जब
उनकी
पत्नी
को
अगस्त
2014
में
गुड़गांव
के
एक
निजी
अस्पताल
में
भर्ती
कराया
गया,
तो
कंपनी
को
तुरंत
सूचित
किया
गया,
लेकिन
कैशलेस
सुविधा
को
मंजूरी
नहीं
दी
गई
और
जैन
को
सर्जरी
के
लिए
5
लाख
रुपये
का
भुगतान
करना
पड़ा.
उनकी
पत्नी
को
सितंबर
2014
में
छुट्टी
दे
दी
गई.
जैन
ने
कंपनी
के
पास
4.77
लाख
रुपये
का
दावा
किया,
लेकिन
केवल
2.15
लाख
रुपये
ही
मंजूर
किए
गए.
कंपनी
कर
रही
थी
‘मनमानी’
सबूतों
का
संज्ञान
लेते
हुए,
आयोग
ने
देखा
कि
बीमा
कंपनी
द्वारा
दावे
को
अस्वीकार
करना
“मनमाना,
बिना
किसी
वैध
आधार
के
और
पॉलिसी
की
शर्तों
के
विपरीत”
था,
इसके
अलावा
सेवाओं
में
कमी
भी
थी.
आयोग
ने
कहा,
“वैध
बीमा
पॉलिसी
होने
और
नियमित
रूप
से
प्रीमियम
का
भुगतान
करने
के
बावजूद,
शिकायतकर्ता
को
ओपी
के
तर्कहीन
निर्णय
के
कारण
पीड़ा
सहन
करनी
पड़ी.
इसलिए,
शिकायतकर्ता
का
मुआवजे
के
हकदार
होने
का
निवेदन
उचित
पाया
गया
है.”
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FIRST
PUBLISHED
:
July
18,
2024,
12:01
IST