
मुंबई
एयरपोर्ट
पर
लोडर
स्टाफ
के
600
पदों
के
लिए
हाल
ही
में
भर्ती
खुली
थी,
जिसमें
25,000
लोगों
ने
आवेदन
किया.
इस
भारी
भीड़
को
संभालने
में
कंपनी
के
अधिकारी
भी
परेशान
हो
गए.
हालात
बेकाबू
होते
देखकर
आवेदकों
से
सिर्फ
रिज्यूमे
जमा
करवाकर
वापस
चले
जाने
को
कह
दिया
गया.
इसका
वीडियो
सोशल
मीडिया
पर
वायरल
है
और
लोग
अपनी
बात
कह
रहे
हैं.
कुछ
लोग
सरकार
के
खिलाफ
तो
कुछ
पक्ष
में
भी
बोल
रहे
हैं.
Crowd
for
walk-in
interviews
for
airport
services
jobs
at
AI
Airport
Services
in
Mumbai.(-@shukla_tarun)
pic.twitter.com/d4aOxGoBcM—
Indian
Tech
&
Infra
(@IndianTechGuide)
July
17,
2024
मुंबई
एयरपोर्ट
की
यह
स्थिति
देश
में
कम
पदों
के
लिए
भारी
संख्या
में
आवेदन
प्राप्त
होने
से
बेरोजगारी
का
आलम
पता
चलता
है.
मगर
यह
पहला
ऐसा
उदाहरण
नहीं
है
कि
कम
पदों
के
लिए
भारी
संख्या
में
आवेदन
आए
हों.
इससे
पहले
तो
कई
और
‘महान
उदाहरण’
भी
उपलब्ध
हैं-
2015:
उत्तर
प्रदेश
में
चपरासी
के
368
पदों
के
लिए
23
लाख
आवेदन
प्राप्त
हुए
थे.
इनमें
हायर
एजुकेशन
पा
चुके
उम्मीदवार
भी
शामिल
थे.
2018:
भारतीय
रेलवे
में
90,000
पदों
के
लिए
2
करोड़
से
अधिक
आवेदन
आए
थे.
यह
नौकरी
के
अवसरों
की
‘अत्यधिक
कमी’
को
दर्शाता
है.
2020:
महाराष्ट्र
में
पुलिस
कांस्टेबल
के
12,500
पदों
के
लिए
13
लाख
आवेदन
प्राप्त
हुए
थे.
इस
घटना
ने
भी
रोजगार
की
गंभीर
स्थिति
को
उजागर
किया
था.
2024:
गुजरात
के
भरूच
में
10
पदों
के
लिए
आयोजित
इंटरव्यू
में
लगभग
1800
उम्मीदवार
लाइन
में
लगे
थे.
इस
भीड़
की
वजह
से
वहां
लगी
रेलिंग
तक
टूट
गई
थी.
बेरोजगारी
के
आंकड़े:
पिछले
10
वर्षों
की
स्थिति
भारत
में
बेरोजगारी
दर
पिछले
10
वर्षों
में
विभिन्न
स्तरों
पर
रही
है,
जो
देश
की
आर्थिक
और
सामाजिक
स्थिति
को
दर्शाती
है.
इसे
दर्शाने
के
लिए
नीचे
आंकड़े
दिए
गए
हैं.
ये
आंकड़े
वर्ल्ड
बैंक,
इंटरनेशनल
लेबर
ऑर्गेनाइजेशन
(ILO),
नेशनल
सैंपल
सर्वे
ऑफिस
(NSSO),
और
सेंटर
फॉर
मॉनिटरिंग
इंडियन
इकॉनमी
(CMIE)
से
लिए
गए
हैं.
-
2014:
4.9%
–
यह
अवधि
आर्थिक
सुधारों
की
थी,
लेकिन
रोजगार
सृजन
की
गति
धीमी
रही.
(स्रोत
–
वर्ल्ड
बैंक) -
2015:
5.0%
–
रोजगार
के
अवसर
बढ़ाने
के
लिए
नई
नीतियां
लाई
गईं,
लेकिन
परिणाम
सीमित
रहे.
(स्रोत
–
वर्ल्ड
बैंक) -
2016:
5.1%
–
नोटबंदी
का
असर,
जिससे
कई
छोटे
और
मध्यम
उद्योग
प्रभावित
हुए.
(स्रोत
–
वर्ल्ड
बैंक) -
2017:
5.4%
–
जीएसटी
लागू
होने
से
असंगठित
क्षेत्र
में
रोजगार
की
स्थिति
प्रभावित
हुई.
(स्रोत
–
इंटरनेशनल
लेबर
ऑर्गेनाइजेशन
(ILO)) -
2018:
6.1%
–
बढ़ती
बेरोजगारी
का
प्रमुख
कारण
संगठित
और
असंगठित
क्षेत्र
में
मंदी
थी.
(स्रोत
–
नेशनल
सैंपल
सर्वे
ऑफिस
(NSSO)) -
2019:
5.8%
–
भारतीय
अर्थव्यवस्था
में
मंदी
के
संकेत,
जिससे
नए
रोजगार
सृजन
में
कमी.
(स्रोत
–
सेंटर
फॉर
मॉनिटरिंग
इंडियन
इकॉनमी
(CMIE)) -
2020:
7.1%
–
COVID-19
महामारी
का
बड़ा
प्रभाव,
लाखों
लोगों
की
नौकरियां
गईं.
(स्रोत
–
CMIE) -
2021:
6.3%
–
महामारी
के
बाद
आर्थिक
सुधारों
के
बावजूद,
रोजगार
के
अवसर
सीमित
रहे.
(स्रोत
–
CMIE) -
2022:
7.0%
–
महामारी
के
बाद
की
आर्थिक
चुनौतियां
और
रोजगार
संकट
जारी.
(स्रोत
–
CMIE) -
2023:
6.8%
–
आंशिक
सुधार,
लेकिन
अभी
भी
बेरोजगारी
उच्च
स्तर
पर.
(स्रोत
–
CMIE) -
2024:
6.5%
–
प्रारंभिक
आंकड़े
संकेत
देते
हैं
कि
स्थिति
में
सुधार
हो
रहा
है,
लेकिन
अभी
भी
बहुत
कुछ
करना
बाकी
है.
(स्रोत
–
CMIE)
क्या
हैं
सरकार
के
दावे
13
जुलाई
2024
को
प्रधानमंत्री
नरेंद्र
मोदी
ने
रोजगार
के
मामले
पर
सरकार
की
पीठ
थपथपाई
थी.
उन्होंने
रिजर्व
बैंक
ऑफ
इंडिया
की
एक
रिपोर्ट
का
हवाला
देते
हुए
कहा,
“पिछले
3-4
वर्षों
में
देश
में
लगभग
8
करोड़
नई
नौकरियां
पैदा
हुई
हैं.”
12
जुलाई
को
केंद्रीय
मंत्री
पीयूष
गोयल
और
दो
दिन
पहले
पेट्रोलियम
मंत्री
हरदीप
पुरी
भी
इसी
रिपोर्ट
के
हवाले
से
बता
चुके
थे
कि
रोजगार
बढ़
रहे
हैं.
गौरतलब
है
कि
भारतीय
स्टेट
बैंक
(SBI)
ने
एक
रिपोर्ट
में
यह
दावा
किया
था
कि
पिछले
10
वर्षों
में
(2014
से
2023)
भारत
में
12
करोड़
50
लाख
नौकरियां
का
सृजन
हुआ
है.
SBI
की
यह
रिपोर्ट
बैंक
के
आर्थिक
अनुसंधान
विभाग
ने
तैयारी
की
थी.
इस
रिपोर्ट
में
साफ-साफ
लिया
गया
कि
अगर
कृषि
को
छोड़
दें
तो
मैन्युफैक्चरिंग
और
सर्विसेज
में
नौकरियों
की
‘बहार’
है.
कहा
गया
है
2014
से
2023
तक
8.9
करोड़
नौकरियां
बनी
हैं,
जबकि
2004-2014
तक
6.6
करोड़
नौकरियां
ही
पैदा
हुई
थीं.
Tags:
Business
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Unemployment
Rate
FIRST
PUBLISHED
:
July
17,
2024,
18:18
IST