
नई
दिल्ली.
छत्तीसगढ़
के
कैदी
कहानी
ने
सुप्रीम
कोर्ट
को
भी
हिलाकर
रख
दिया.
करीम
नाम
का
एक
कैदी
है,
जो
17
साल
से
किसी
अपराध
की
सजा
काट
रहा
है.
जब
सीनियर
वकील
विजय
हंसरिया
को
उनके
बारे
में
पता
चली
तो
वह
हक्के-बक्के
रह
गए
और
उन्होंने
कैदी
की
ओर
से
शीर्ष
न्यायलय
में
याचिका
फाइल
करते
हुए
लिखा,
‘ये
10
साल
लेट
हैं,
यानी
की
सजा
पूरा
हुए
10
साल
हो
गए
हैं.’
हंसरीया
ने
अप्रैल
में
अपने
मुवक्किल
करीमन
की
ओर
से
शीर्ष
कोर्ट
में
याचिका
फाइल
की
थी.
उन्होंने
कहा
कि
उनका
मुवक्किल
17
सालों
से
जेल
में
कैद
है,
जबकि
उसके
अपराध
की
अधिकतम
सजा
7
साल
की
है.
वह
उचित
लीगल
सहायता
न
मिलने
की
वजह
से
जेल
की
चारदीवारी
में
कैद
रहे.
उन्होंने
कहा
कि
करीमन
को
पील
करने
जैसी
बुनियादी
सुविधा
से
वंचित
कर
दिया
गया
था.
10
साल
अधिक
सलाखों
में
रहे
कैद
हंसारिया
ने
इंडियन
एक्सप्रेस
से
कहा,
‘वह
10
साल
जेल
में
ज्यादा
बिताया
क्योंकि
उन्हें
नहीं
पता
था
कि
अपील
दायर
की
जा
सकती
है.
मुझे
एहसास
हुआ
कि
यहां
एक
बड़ा
मुद्दा
है.’
करीमन
की
रिहाई
का
निर्देश
देते
हुए,
जस्टिस
बी
आर
गवई
और
संदीप
मेहता
की
सुप्रीम
कोर्ट
की
बेंच
ने
हंसारिया
को
एमिकस
क्यूरी
(अदालत
का
मित्र)
नियुक्त
किया
ताकि
यह
मूल्यांकन
किया
जा
सके
कि
देश
भर
की
जेलों
में
बंद
1.5
लाख
से
अधिक
दोषियों
को
कानूनी
प्रतिनिधित्व
मिल
रहा
है
या
नहीं?
18
राज्यों
की
कैदियों
से
मिले
शीर्ष
कोर्ट
द्वारा
अदालत
का
मित्र
नियुक्त
किये
जाने
के
बाद
से
हंसरिया
एक
प्रोफार्मा
तैयार
किया
है.
इसके
मदद
से
मई
से
राष्ट्रीय
विधिक
सेवा
प्राधिकरण
(एनएएलएसए),
प्रमुख
विधिक
सहायता
निकाय
की
देखरेख
में
विधिक
सहायता
वकील
18
राज्यों
में
15,000
से
अधिक
दोषियों
से
मिल
चुके
हैं.
इनमें
वे
भी
कैदी
है
जो
7-10
साल
या
आजीवन
कारावास
या
फिर
मौत
की
सजा
काट
रहे
हैं.
इस
प्रोफार्मा
में
यह
सुनिश्चित
करने
की
कोशिश
की
गई
कि
जानकारी
के
आभाव
प्रतिनिधित्व
की
कमी
के
कारण
कैदियों
को
जेल
में
न
रहना
पड़े.
कई
कैदियों
ने
नहीं
दायर
की
अपील
सुप्रीम
कोर्ट
में
15
जुलाई
सुनवाई
के
दौरान
एनएएलएसए
ने
अपने
सबमिशन
के
बारे
में
बताया
कि
18
राज्यों
के
870
दोषियों
विधिक
सहायता
से
अपील
दायर
करने
पर
सहमति
व्यक्त
की.
कोर्ट
ने
भी
निर्देश
दिया
कि
इन
मामलों
में
अपील
दायर
की
जाए,
हालांकि,
लगभग
675
दोषियों
ने
अपील
दायर
नहीं
करने
का
विकल्प
चुना.
क्यों
अपील
करने
से
डर
रहे
हैं
कैदी
जब
कोर्ट
ने
एनएएलएसए
की
ओर
से
पेश
अधिवक्ता
रश्मि
नंदकुमार
से
अपील
दायर
करने
से
मना
करने
वाले
675
दोषियों
के
इंकार
करने
के
बारे
में
पूछा.
नंदकुमार
ने
कोर्ट
को
4
कारण
गिनवाए-
पहला-
वे
पहले
ही
अधिकतम
सजा
काट
चुके
हैं
या
अपनी
सजा
लगभग
पूरी
कर
चुके
हैं.
दूसरा-
उन्हें
अपील
करके
अपना
नाम
साफ
करने
का
कोई
कारण
नहीं
दिखता
है.
तीसरा-
नकी
अपील
उच्च
न्यायालय
द्वारा
खारिज
कर
दी
गई
थी
और
उन्हें
अनुकूल
फैसले
की
उम्मीद
नहीं
थी.
चौथा-
गरीबी
Tags:
Supreme
Court
FIRST
PUBLISHED
:
July
18,
2024,
12:21
IST