गजब है विश्वविद्यालय! यहां स्टूडेंट नहीं अधिकारियों के नाम से निकली है मेरिट

गजब है विश्वविद्यालय! यहां स्टूडेंट नहीं अधिकारियों के नाम से निकली है मेरिट


विशाल
भटनागर/मेरठ:

उत्तर
प्रदेश
के
चौधरी
चरण
सिंह
विश्वविद्यालय
मेरठ
प्रशासन
द्वारा
व्यवस्थाओं
को
सुधारने
के
लाख
दावे
किए
जाते
हैं,
लेकिन
जैसे
ही
प्रवेश
प्रक्रिया
शुरू
होती
है.
तब
विश्वविद्यालय
के
सभी
दावे
हवा
हवाई
नजर
आते
हैं. 
जी
हां!
यह
बात
हम
इसलिए
कह
रहे
हैं,
क्योंकि
इसबार
भी
विश्वविद्यालय
प्रशासन
द्वारा
जो
मेरिट
जारी
की
जा
रही
है.
उसमें
अनेकों
खामियां
देखने
को
मिल
रही
हैं.
स्टूडेंट
की
जगह
विश्वविद्यालय
के
अधिकारियों
के
नाम
मेरिट
लिस्ट
में
देखने
को
मिल
रहे
हैं,
जो
चर्चा
का
केंद्र
बना
हुआ
है.


मेरिट
में
अंकित
हुए
अधिकारियों
के
नाम

सोशल
मीडिया
पर
तेजी
से
वायरल
हो
रहे
फार्म
के
अनुसार,
जहां
विश्वविद्यालय
के
वित्त
अधिकारी
रमेश
चंद्र
का
ऑफर
लेटर
पश्चिमी
उत्तर
प्रदेश
के
ऐतिहासिक
मेरठ
कॉलेज
में
बीएससी
कंप्यूटर
साइंस
एवं
विश्वविद्यालय
के
प्रवेश
समन्वयक
का
विश्वविद्यालय
के
फाइन
आर्ट
डिपार्टमेंट
की
मेरिट
लिस्ट
में

गया
है.
वहीं,
विश्वविद्यालय
की
कुलपति
प्रो.
संगीता
के
नाम
से
विश्वविद्यालय
कैंपस
में
फाइन
आर्ट
डिपार्टमेंट
में
रजिस्ट्रेशन
दिखाया
गया
है.


टेक्निकल
रूप
से
हुई
गलती

वहीं,
दूसरी
और
विश्वविद्यालय
के
प्रेस
प्रवक्ता
मितेंद्र
कुमार
गुप्ता
ने
लोकल-18
से
खास
बातचीत
करते
हुए
बताया
कि
जो
यह
ऑफर
लेटर
निकल
कर
आए
हैं.
यह
सभी
नाम
विश्वविद्यालय
के
अधिकारियों
से
मिलते-जुलते
हैं,
जो
टेक्निकल
समस्या
के
कारण
ऐसा
हुआ
है.
हालांकि
अगर
उन
फॉर्म
को
देखा
जाए
तो
उसमें
जो
जन्मतिथि
है.
वह
बिल्कुल
अलग
है.
उन्होंने
बताया
कि
इस
संबंध
में
कंपनी
के
अधिकारियों
से
विश्वविद्यालय
प्रशासन
द्वारा
वार्ता
की
गई
है.


कॉलेज
के
पदाधिकारियों
ने
जताई
आपत्ति

बता
दें
कि
सेल्फ
फाइनेंस
कॉलेज
फेडरेशन
के
पदाधिकारी
ने
भी
मेरिट
में

रही
खामियों
पर
विश्वविद्यालय
प्रशासन
को
पत्र
लिखकर
आपत्ति
जताई
है. 
फेडरेशन
के
अध्यक्ष
एडवोकेट
नितिन
यादव
ने
विवि
को
लिखे
पत्र
में
कॉलेजो
के
प्रवेश
पोर्टल
से
कन्फर्म
नहीं
होने
पर
एतराज
जताया
है.
उन्होंने
कहा
कि
पोर्टल
की
खामियों
से
अधिकांश
कॉलेजो
में
अभी
तक
प्रवेश
कन्फर्म
नहीं
होने
पर
कॉलेजो
के
सामने
प्रवेश
को
लेकर
संकट
खड़ा
हो
गया
है.

वहीं,
संगठन
के
महासचिव
डॉ
राजीव
गुप्ता
के
अनुसार
विवि
ने
एजेंसी
तो
बदली,
लेकिन
हालातों
को
बदलने
की
हिम्मत
नहीं
उठाई
है.
साल
दर
साल
एजेंसी
बदलने
से
कॉलेजो
पर
उनके
अस्तित्व
का
खतरा
मडराने
लगा
है.

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