
हाइलाइट्स
नदी-नालों,
झीलों
और
समुद्र
के
पानी
की
ऑक्सीजन
में
आ
रही
कमीइससे
जलीय
जीवजंतुओं
पर
बड़ा
संकट
मंडराने
लगा,
बढ़
रहे
डेड
वाटर
एरियाअगर
पानी
में
जीव
जंतु
खत्म
होंगे
तो
असंतुलित
पर्यावरण
मानव
पर
भी
असर
डालेगा
दुनियाभर
में
जितने
नदी-नाले,
झील-झरने
और
समुद्र
है,
उनके
पानी
में
घुली
हुई
ऑक्सीजन
तेजी
से
कम
हो
रही
है.
ये
पूरी
दुनिया
के
लिए
एक
बड़ा
खतरा
है.
अगर
ऐसा
होता
रहा
है
तो
इन
जल
में
रहने
वाले
जंतु
पहले
खतरे
में
पड़
रहे
हैं
और
उसके
बाद
इसका
असर
पूरी
दुनिया
की
मानव
प्रजाति
पर
पड़ने
लगेगा.
वैज्ञानिकों
का
कहना
है
कि
अगर
ऐसा
होता
रहा
तो
दुनिया
के
जीवन
पर
ये
बात
सबसे
बड़ा
खतरा
बन
जाएगी.
जिस
तरह
से
वातावरण
में
ऑक्सीजन
हमारे
लिए
ज़रूरी
है.
उसी
तरह
पानी
में
घुली
ऑक्सीजन
(DO)
उससे
स्वस्थ
जलीय
इकोलॉजी
के
लिए
भी
ज़रूरी
है.
चाहे
वह
मीठे
पानी
से
जुड़ा
जल
निकाय
हो
या
फिर
समुद्र,
इन
दोनों
से
जीवन
जुड़ा
है.
इसमें
रहने
वाले
जीव-जंतु
तब
तक
ही
जिंदा
हैं,
जब
कि
इनके
पानी
में
ऑक्सीजन
घुली
हुई
है.
जलीय
जीव
जंतुओं
का
जीवन
हम
सभी
के
लिए
जरूरी
है.
गर्म
पानी
में
कम
होने
लगती
है
ऑक्सीजन
पानी
में
घुली
ऑक्सीजन
की
मात्रा
कई
कारणों
से
कम
हो
जाती
है.
उदाहरण
के
लिए
गर्म
पानी
में
घुली
ऑक्सीजन
की
मात्रा
उतनी
नहीं
रह
जाती.
ग्रीनहाउस
गैस
उत्सर्जन
के
कारण
हवा
और
पानी
का
तापमान
उनके
दीर्घकालिक
औसत
से
ऊपर
बढ़ता
रहता
है,
इस
वजह
से
इसके
अंदर
की
ऑक्सीजन
भी
कम
हो
रही
है.
सतही
पानी
ऑक्सीजन
जैसे
महत्वपूर्ण
तत्व
को
बनाए
रखने
में
कम
सक्षम
होता
जा
रहा
है.

ग्लोबल
वार्मिंग
से
गर्म
होता
पानी
और
ग्रीन
हाउस
गैसों
का
उत्सर्जन
पानी
से
वो
ऑक्सीजन
खत्म
कर
रहा
है,
जो
जल
में
रहने
वाले
जीव
जंतुओं
के
लिए
जीवनदायिनी
है.
औद्योगिक
कचरा
भी
खत्म
कर
रही
जल
से
ऑक्सीजन
इस
ऑक्सीजन
को
खत्म
करने
में
कृषि
और
घरेलू
उर्वरकों,
सीवेज
और
औद्योगिक
कचरों
का
भी
खासा
योगदान
है,
जो
जल
में
घुली
हुई
ऑक्सीजन
को
सोख
ले
रहे
हैं.
किस
तरह
फिर
पानी
में
पलने
वाले
जंतुओं
पर
असर
जब
ऑक्सीजन
कम
होने
लगती
है
तो
सूक्ष्मजीवों
का
दम
घुटने
लगता
है,
वो
मर
जाते
हैं.
इसका
असर
देरसबेर
बड़ी
प्रजातियों
पर
भी
पड़ता
है.
सूक्ष्मजीवों
की
आबादी
जो
ऑक्सीजन
पर
निर्भर
नहीं
होती
है,
वे
मृत
कार्बनिक
पदार्थों
के
भंडार
पर
पलती
है,
जिससे
घनत्व
इतना
बढ़
जाता
है
कि
प्रकाश
कम
हो
जाता
है
और
प्रकाश
संश्लेषण
भी
बहुत
सीमित
हो
जाता
है,
जिससे
पूरा
जल
निकाय
एक
दुष्चक्र
में
फंस
जाता
है,
इसे
यूट्रोफिकेशन
कहा
जाता
है.
जलीय
ऑक्सीजन
की
कमी
पानी
के
तेजी
से
गर्म
होने
से
हो
रही
है
तो
बर्फ
के
पिघलने
से
महासागरों
में
सतही
लवणता
में
कमी
आने
से
भी.
हाल
ही
में
कुछ
साइंटिस्ट्स
ने
ऑक्सीजन
की
कमी
पर
चेताया
है.
इस
पानी
में
डेड
एरिया
बढ़
रहा
है
दुनिया
के
जल
निकायों
में
ऑक्सीजन
की
चिंताजनक
कमी
को
डीऑक्सीजनेशन
के
रूप
में
भी
देखा
जा
रहा
है,
जो
जलीय
पारिस्थितिकी
तंत्र
और
मानव
आजीविका
के
लिए
खतरा
है.
इससे
“मृत
क्षेत्रों”
का
विस्तार
होता
है.
मछली
का
जीवन
तो
इससे
खतरे
में
आ
ही
रहा
है
साथ
ही
पानी
की
गुणवत्ता
में
भी
व्यवधान
डालता
है.
डीऑक्सीजनेशन
से
मछली,
शेलफिश,
मूंगा
और
अन्य
समुद्री
जीवों
की
बड़े
पैमाने
पर
मृत्यु
हो
सकती
है.
ये
ऑक्सीजन-रहित
क्षेत्र,
जिन्हें
अक्सर
“मृत
क्षेत्र”
कहा
जाता
है,
संपूर्ण
खाद्य
जाल
को
बाधित
करते
हैं
और
प्रजातियों
के
वितरण
में
महत्वपूर्ण
बदलाव
का
कारण
बन
सकते
हैं.
इससे
बढ़ेगा
ग्रीनहाउस
गैसों
का
उत्पादन
मीठे
पानी
की
प्रणालियों
में,
कम
ऑक्सीजन
का
स्तर
माइक्रोबियल
प्रक्रियाओं
को
बदल
सकता
है,
जिससे
संभावित
रूप
से
मीथेन
और
नाइट्रस
ऑक्साइड
जैसी
शक्तिशाली
ग्रीनहाउस
गैसों
का
उत्पादन
बढ़
सकता
है.
यह
एक
खतरनाक
फीडबैक
लूप
बनाता
है,
क्योंकि
ये
गैसें
ग्लोबल
वार्मिंग
को
और
बढ़ाने
में
योगदान
करती
हैं.
इसके
अतिरिक्त,
तटीय
जल
में
कम
ऑक्सीजन
की
स्थिति
तलछट
से
फॉस्फोरस
की
रिहाई
को
ट्रिगर
कर
सकती
है,
पोषक
तत्व
प्रदूषण
को
बढ़ा
सकती
है
और
संभावित
रूप
से
हानिकारक
शैवाल
खिल
सकती
है.
1960
से
बढ़
गई
ऑक्सीजन
में
गिरावट
पृथ्वी
के
जल
में
ऑक्सीजन
की
कमी
का
पैमाना
चिंताजनक
है.
1950
के
दशक
के
बाद
से
महासागरों
में
घुलनशील
ऑक्सीजन
में
2%
की
गिरावट
देखी
गई
है,
कुछ
क्षेत्रों
में
20-50%
की
अधिक
गंभीर
हानि
देखी
गई
है.
तटीय
जल
में
हाइपोक्सिक
स्थलों
की
संख्या
1960
से
पहले
45
से
बढ़कर
2011
में
लगभग
700
हो
गई
है.
मीठे
पानी
की
प्रणालियों
में,
स्थिति
समान
रूप
से
चिंताजनक
है,
समशीतोष्ण
झीलें
महासागरों
की
तुलना
में
तेजी
से
ऑक्सीजन
खो
रही
हैं.
अनुमान
के
अनुसार
सामान्य
व्यवसाय
परिदृश्य
के
तहत
2100
तक
समुद्री
ऑक्सीजन
में
3-4%
की
और
हानि
हो
सकती
है.
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PUBLISHED
:
July
22,
2024,
17:36
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