
मंडी.
हिमाचल
प्रदेश
के
मंडी
जिले
के
नरचौक
से
ऐसा
मामला
सामने
आया
है,
जो
अब
सरकार
के
गले
की
फांस
बन
गया
है.
यह
मामला
अब
सुर्खियां
बटोर
रहा
है.
सरकार
को
या
तो
शख्स
को
जमीन
देनी
होगा
या
फिर
1061
करोड़
रुपये
का
मुआवजा
देना
है.
दरअसल,
मामला
हिमाचल
प्रदेश
के
मंडी
जिले
का
है.
जानकारी
के
अनुसार,
मंडी
जिले
के
नरचौक
में
मेडिकल
कॉलेज
की
जमीन
निजी
जमीन
निकली
है
और
अब
इसके
मालिक
के
पक्ष
में
हाईकोर्ट
से
लेकर
सुप्रीम
कोर्ट
से
भी
फैसला
आया
है.
92
बीघा
भूमि
के
बदले
1
हजार
61
करोड़
57
लाख
11
हजार
431
रुपये
की
मांग
की
गई
है.
नरचौक
मेडिकल
कॉलेज
के
पास
रहने
वाले
मीर
बख्श
ने
इस
पूरे
मामले
पर
न्यूज18
से
बातचीत
की
है.
मीरबख्त
ने
कहा
कि
वह
इस
मसले
के
समाधान
के
लिए
तैयार
हैं,
लेकिन
कम
से
कम
सरकार
वार्ता
के
लिए
तो
बुलाए
और
इस
विषय
पर
बात
करे.
मीर
को
इसी
बात
का
मलाल
भी
है
कि
इस
मामले
को
इतना
लंबा
समय
बीत
गया,
लेकिन
अभी
तक
सरकार
की
तरफ
से
वार्ता
के
लिए
कोई
प्रयास
नहीं
किया
गया.
पूर्वजों
की
जमीन
प्रदेश
सरकार
ने
मीर
बख्श
के
पूर्वजों
की
नेरचौक
में
92
बीघा
भूमि
पर
मिनी
सचिवालय,
कृषि
केंद्र,
पशु
औषधालय
और
मेडिकल
कॉलेज
का
निर्माण
कर
दिया
है.
इस
पर
हाईकोर्ट
और
सुप्रीम
कोर्ट
ने
मीर
बख्श
के
पक्ष
में
फैसला
सुनाया
है.
प्रदेश
सरकार
को
जमीन
के
बदले
उसी
कीमत
की
जमीन
किसी
दूसरे
स्थान
पर
देने
का
आदेश
दिया
है,
लेकिन
अब
तक
जो
जमीन
उपलब्ध
करवाई
गई
है.
उसे
मीर
बख्श
ने
नामंजूर
कर
दिया
है.
मीर
बख्श
ने
जमीन
के
बदले
1
हजार
करोड़
से
अधिक
का
मुआवजा
मांगा
है,
लेकिन
इसके
साथ
ही
मीर
बख्श
ने
सरकार
को
यह
प्रस्ताव
भी
दिया
है
कि
अगर
सरकार
इस
विषय
पर
उन्हें
वार्ता
के
लिए
बुलाती
है
तो
वह
नेगोसिएशन
करने
के
लिए
तैयार
हैं.
इसके
लिए
मीर
ने
कोर्ट
में
लिखित
में
भी
दे
रखा
है.
1956
से
लड़
रहे
हैं
लड़ाई,
न्याय
तो
मिला
लेकिन
सरकार
का
साथ
नहीं
न्यूज18
मीर
बख्श
ने
बताया
कि
उनके
स्व.
पिता
सुल्तान
मोहम्मद
ने
वर्ष
1956
में
अपनी
जमीन
को
वापिस
हासिल
करने
की
लड़ाई
लड़ना
शुरू
किया
था,
लेकिन
उन्हें
इसमें
कामयाबी
नहीं
मिली
और
वर्ष
1983
को
उनका
देहांत
हो
गया.
उसके
बाद
वर्ष
1992
से
खुद
मीर
बख्श
ने
इस
लड़ाई
को
लड़ा.
मीर
बख्श
2009
में
हाईकोर्ट
से
इस
केस
को
जीते.
सके
बाद
सरकार
ने
डबल
बेंच
और
फिर
सुप्रीम
कोर्ट
का
दरवाजा
खटखटाया
लेकिन
इसमें
जीत
मीर
बख्श
की
ही
हुई.
मीर
बख्श
का
कहना
है
कि
कोर्ट
से
न्याय
तो
मिल
गया,
लेकिन
सरकार
का
साथ
आज
दिन
तक
नहीं
मिला
और
उसी
के
लिए
अभी
तक
जंग
जारी
है.
अपनी
ही
जमीन
को
नीलामी
में
खरीदकर
हुई
थी
नई
शुरूआत
मीर
बख्श
ने
बताया
कि
जब
विभाजन
हुआ
तो
नेरचौक
के
बहुत
से
मुसलमान
पाकिस्तान
चले
गए,
लेकिन
इनका
परिवार
यहीं
पर
ही
रहा.
सरकार
ने
यह
सोचा
कि
यह
परिवार
भी
पाकिस्तान
चला
गया
है
और
इसके
चलते
निष्क्रांत
कानून
के
तहत
इन
सभी
जमीनों
पर
सरकार
का
कब्जा
हो
गया.
मीर
बख्श
के
पिता
दिल्ली
तक
अपनी
जमीन
वापिस
लाने
के
लिए
जाते
रहे,
लेकिन
कहीं
कोई
सुनवाई
नहीं
हुई.
इसके
बाद
जब
इनके
पास
अपनी
जमीन
ही
नहीं
बची
तो
नीलामी
में
खुद
अपनी
ही
जमीन
को
खरीदना
पड़ा.
उस
समय
मीर
बख्श
के
पिता
ने
500
रुपये
में
अपनी
ही
9
बीघा
जमीन
को
खरीदकर
फिर
से
नई
शुरूआत
की
थी
अकेले
मीर
बख्श
ही
नहीं
है,
मालिक
और
भी
हैं
हिस्सेदार
92
बीघा
जमीन
के
अकेले
मीर
बख्श
ही
मालिक
नहीं
है.
इसमें
उनके
बड़े
भाई
की
बेटी
और
तीन
बहनें
भी
शामिल
हैं.
क्योंकि
बड़े
भाई
का
देहांत
हो
गया
है,
इसलिए
अब
उनकी
बेटी
के
पास
इस
संपत्ति
का
मालिकाना
हक
है.
मीर
बख्श
के
तीन
बेटे
और
एक
बेटी
है.
परिवार
खेती-बाड़ी
के
साथ-साथ
ट्रांसपोर्ट
का
कारोबार
भी
करता
है.
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FIRST
PUBLISHED
:
July
17,
2024,
10:06
IST