

वेज
बैंक
का
इलाका
जो
श्रीलंका
ने
भारत
को
दे
दिया
है.
कच्चातिवु
द्वीप
को
लेकर
राजनैतिक
विवाद
जारी
है,
भाजपा
इसे
लेकर
कांग्रेस
पर
हमलावर
है.
पीएम
मोदी
ने
भी
पिछले
दिनों
इस
द्वीप
का
जिक्र
किया
था.
इसके
अलावा
तमिलनाडु
में
भाजपा
के
प्रदेश
अध्यक्ष
के
अन्नामलाई
और
और
विदेश
मंत्री
एस
जयशंकर
ने
भी
इसे
लेकर
कांग्रेस
पर
सवाल
उठाए
थे.
एस
जयशंकर
ने
यह
भी
सवाल
उठाया
था
कि
कैसे
रामानापुरम
से
24
किमी
दूर
बंजर
द्वीप
कैसे
श्रीलंका
का
हिस्सा
बन
गया.
उन्होंनेतमिलनाडु
की
पार्टी
डीएमके
और
कांग्रेस
पर
हमला
करते
हुए
कहा
कि
दो
दशकों
में
6,000
से
अधिक
भारतीय
मछुआरों
और
1,100
जहाजों
को
हिरासत
में
लेने
के
लिए
यह
दोनों
जिम्मेदार
हैं.
बेशक
कच्चातिवु
द्वीप
विवादों
में
हैं,
लेकिन
इस
समझौते
के
बाद
भारत
और
श्रीलंका
के
बीच
एक
और
समझौता
हुआ
था.
1976
में
हुए
इस
समझौते
के
तहतश्रीलंका
ने
कन्याकुमारी
समुद्री
तट
से
करीब
80
किलोमीटर
दूर
संसाधन
समृद्ध
वेज
बैंक
को
भारतीय
क्षेत्र
के
रूप
में
मान्यता
दी
थी.
यह
दुनिया
के
सबसे
समृद्ध
मछली
पकड़ने
के
मैदानों
में
से
एक
है
और
कच्चातिवु
द्वीप
की
तुलना
में
समुद्र
के
कहीं
अधिक
रणनीतिक
हिस्से
में
है.
कन्याकुमारी
के
पास
का
यह
क्षेत्र
चार
दशकों
से
अधिक
समय
से
तमिलनाडु
और
केरल
के
मछुआरों
के
लिए
महत्वपूर्ण
रहा
है.
वेज
बैंक
क्यों
है
महत्वपूर्ण
वेज
बैंक
कन्याकुमारी
के
तट
से
50
मील
समुद्र
की
ओर
लगभग
80
किलोमीटर
दूर
एक
महाद्वीपीय
शेल्फ
है
और
1920
के
दशक
से
श्रीलंका
के
आधीन
रहा
है,
जहां
पर
उसके
मछुआरे
मछली
पकड़ने
जाते
थे.
वेज
बैंक
कन्याकुमारी
के
दक्षिण
में
स्थित
है
और
इसको
लेकर
दोनों
देशों
के
बीच
1976
में
समझौता
हुआ.
वेज
बैंक
लगभग
3,000
वर्ग
मील
को
कवर
करता
है
और
कोलंबो
से
लगभग
115
समुद्री
मील
पूर्व
में
है.
श्रीलंका
के
सिलोन
में
फिशर
रिसर्च
स्टेशन
द्वारा
1957
में
प्रकाशित
एक
अध्ययन
में
कहा
गया
है
कि
वेज
बैंक
कई
वर्षों
तक
दुनिया
के
कुछ
सफल
मत्स्य
पालन
का
केंद्र
हुआ
करता
था.
पहला
सर्वेक्षण
1907
में
कैप्टन
हॉर्नेल
और
कैप्टन
क्रिब
द्वारा
सिलोन
पर्ल
फिशरी
कंपनी
की
ओर
से
आया.
1929
में
मद्रास
सरकार
की
रिपोर्ट
में
कहा
गया
था
कि
केप
कॉमिन
का
क्षेत्र
(जो
वर्तमान
में
कन्याकुमारी
है)
गहरे
समुद्र
में
मछली
पकड़ने
के
लिए
मई
से
अक्टूबर
तक
सबसे
उपयुक्त
है.
1976
में
क्या
हुआ?
भारत
और
श्रीलंका
के
बीच
1976
के
समुद्री
सीमा
समझौते
ने
वेज
बैंक
पर
नई
दिल्ली
की
संप्रभुता
को
मान्यता
दी.
भारत
और
श्रीलंका
के
बीच
23
मार्च
1976
को
हस्ताक्षरित
समझौते
में
कहा
गया
कि
यह
भारत
के
विशेष
आर्थिक
क्षेत्र
के
अंतर्गत
आता
है
और
इस
क्षेत्र
के
संसाधनों
पर
भारत
का
संप्रभु
अधिकार
होगा.
हालांकि
इसकी
समृद्धि
और
संसाधन
मत्स्य
पालन
तक
ही
सीमित
नहीं
हैं.
इस
समझौते
में
यह
भी
कहा
गया
भारत
द्वारा
अपनी
विशेष
आर्थिक
स्थापना
की
तारीख
से
तीन
साल
तक
यहां
पर
छह
से
अधिक
श्रीलंकाई
जहाजों
को
मछली
पकड़ने
की
अनुमति
नहीं
होगी
और
इसके
लिए
भारत
से
लाइसेंस
लेना
होगा.
इसके
साथ
ही
श्रीलंकाई
मछुआरे
हर
साल
2000
टन
से
ज्यादा
मछली
नहीं
पकड़
सकते.
समझौते
में
यह
भी
कहा
गया
कि
भारत
अगर
तीन
साल
के
अंदर
यहां
पर
पेट्रोल
या
दूसरे
खनिज
संसाधनों
का
पता
लगाता
है
तो
श्रीलंका
यहां
पर
मछली
पकड़ने
की
गतिविधि
बंद
कर
देगा.
भारत
ने
इस
साल
निकालाा
है
तेल
की
खोज
का
टेंडर
भारत
की
तरफ
से
इस
वर्ष
की
शुरुआत
में
इस
क्षेत्र
में
तेल
की
खोज
के
लिए
केंद्र
सरकार
की
तरफ
से
टेंडर
भी
निकाला
है.
भारत
और
श्रीलंका
के
बीच
1976
के
समझौते
में
विशेष
रूप
से
एक
प्रावधान
भी
रखा
गया,
जिसमें
कहा
गया
कि
यदि
भारत
सरकार
वेज
बैंक
में
पेट्रोलियम
और
अन्य
खनिज
संसाधनों
के
लिए
का
पता
लगाने
का
निर्णय
लेती
है
तो
वह
श्रीलंका
सरकार
को
इसके
बारे
में
सूचित
करेगी,
जिसके
बाद
श्रीलंका
मछली
पकड़ने
वाले
जहाज
को
इस
क्षेत्र
में
प्रतिबंधित
कर
देगी.
1976
के
समझौते
के
अनुसार,
कुछ
महीने
पहले
भारतीय
पेट्रोलियम
और
प्राकृतिक
गैस
मंत्रालय
ने
हाइड्रोकार्बन
और
तेल
की
खोज
के
लिए
इस
क्षेत्र
में
नोटिस
भी
निकाला
था.
समझौते
का
ही
परिणाम
है,
जहां
श्रीलंका
1920
के
दशक
की
शुरुआत
से
मछली
पकड़ने
का
काम
करता
था,
उसने
यहां
पर
अपने
मछुआरों
के
जाने
पर
रोक
लगा
दी
है.