बीजेपी ने इस बार NRC से क्यों बनाई दूरी? जानें इसके पीछे की असली कहानी

बीजेपी ने इस बार NRC से क्यों बनाई दूरी? जानें इसके पीछे की असली कहानी
बीजेपी ने इस बार NRC से क्यों बनाई दूरी? जानें इसके पीछे की असली कहानी


संकल्प
पत्र
जारी
करते
पीएम
मोदी
और
पार्टी
के
अन्य
नेता

लोकसभा
चुनाव
के
लिए
बीजेपी
की
ओर
से
जारी
संकल्प
पत्र
से
नेशनल
रजिस्टर
ऑफ
सिटिजन्स
(NRC)
का
मुद्दा
गायब
रहने
से
कई
तरह
के
सवाल
उठ
रहे
हैं.
सवाल
इसलिए
कि
बीजेपी
ने
सीएए
को
तो
इस
बार
संकल्प
पत्र
में
जगह
दी
है
जबकि
एनआरसी
का
जिक्र
नहीं
है
जबकि
पिछले
चुनाव
में
बीजेपी
का
यह
प्रमुख
चुनावी
वादा
था.
2019
के
चुनाव
बीजेपी
ने
प्रमुखता
से
सीएए-एनआरसी
को
चुनावी
मुद्दा
भी
बनाया
था.

पिछली
बार
यानी
2019
में
सरकार
बनने
के
बाद
2
दिसंबर
को
गृह
मंत्री
अमित
शाह
ने
झारखंड
में
एक
बयान
भी
दिया
था.
तब
उन्होंने
कहा
था
कि
मैं
आपको
भरोसा
देता
हूं
कि
एनआरसी
को
पूरे
देश
में
लागू
किया
जाएगा
और
सभी
घुसपैठियों
की
पहचान
करके
उनको
2024
के
चुनाव
से
पहले
देश
से
बाहर
भेज
दिया
जाएगा.
2024
के
लोकसभा
चुनाव
से
पहले
अमित
शाह
का
नवंबर
2023
में
बयान
आया
कि
अभी
एनआरसी
पर
चर्चा
नहीं.
अभी
एनआरसी
नहीं

रहा
है.

बीजेपी
के
रुख
में
बदलाव
के
पीछे
ये
है
वजह

दरअसल
एनआरसी
को
लेकर
बीजेपी
के
रुख
में
आए
बदलाव
के
पीछे
राजनीतिक
और
चुनावी
वजह
है.
इसी
का
नतीजा
है
कि
इस
बार
के
संकल्प
पत्र
में
NRC
लागू
करने
का
कहीं
जिक्र
नहीं
हैं.
बीजेपी
ने
2019
के
संकल्प
पत्र
में
बिना
दस्तावेज
के
देश
में
अवैध
तरीके
से
रह
रहे
लोगों
से
निपटने
के
लिए
चरणबद्ध
तरीके
से
NRC
लागू
करने
की
घोषणा
की
थी.
2019
के
बीजेपी
ने
घोषणा
पत्र
में
कहा
गया
था
कि
अवैध
तरीके
से
देश
मे
बस
जाने
की
वजह
से
कुछ
क्षेत्रों
की
सांस्कृतिक
और
भाषाई
पहचान
में
भारी
बदलाव
आया
है,
जिसके
कारण
स्थानीय
लोगों
की
आजीविका
और
रोजगार
पर
प्रतिकूल
प्रभाव
पड़ा
है.

ये
भी
पढ़ें

लोकसभा
चुनाव
पर
पड़
सकता
था
असर

दरअसल
एनआरसी
को
सीएए
से
जोड़कर
देखा
जा
रहा
है
जिसका
बीजेपी
को
लोकसभा
चुनाव
में
नुकसान
हो
सकता
है.
एक
आम
राय
है
कि
सीएए
नागरिकता
देने
वाला
कानून
है
जबकि
एनआरसी
से
नागरिकता
छीन
जाएगी.
ऐसे
में
बीजेपी
के
विरोधी
दल
भी
वोटरों
के
बीच
में
ऐसे
दावे
कर
रहे
है
कि
सीएए
और
एनआरसी
एक
है.
नागरिकता
छीनने
के
लिए
ये
कानून
लाया
जा
रहा
है.

सीएए-एनआरसी
को
लेकर
टीएमसी
भी
बीजेपी
पर
हमलावर

टीएमसी
के
नेता
भी
वोटरों
में
ये
संदेश
दे
रहे
है
कि
सीएए
के
बाद
केंद्र
सरकार
एनआरसी
लाएगी
जिससे
हिंदुओं
और
मुस्लिमों
की
नागरिकता
छीन
ली
जाएगी.
बीजेपी
को
डर
था
कि
एनआरसी
को
विरोधियों
के
ऐसे
अभियान
से
मुस्लिम
वोटरों
का
एकमुश्त
ध्रुवीकरण
टीएमसी
के
पक्ष
में
हो
जाएगा
जिसका
फायदा
टीएमसी
या
विरोधियों
को
होगा.
क्योंकि
अगर
मुस्लिम
वोटर
बंटे
तो
ही
बीजेपी
के
उम्मीदवारों
की
जीत
की
संभावना
बन
सकती
है.

इसके
साथ
ही
बीजेपी
को
डर
ये
भी
था
कि
एनआरसी
के
नाम
में
देशभर
में
बीजेपी
के
विरोधी
दलों
को
बीजेपी
के
खिलाफ
धरना
करने
के
लिए
देशभर
में
फ्री
में
सपोर्टर
मिल
जाते
जिनका
चुनावी
असर
भी
होगा.
साथ
ही
बीजेपी
को
बंगाल
और
असम
के
हिंदू
वोटरों
की
नाराजगी
का
भी
डर
था.
क्योंकि
विरोधियों
ने
एक
धारणा
बना
दी
थी
कि
एनआरसी
में
बहुत
सारे
हिंदुओं
की
भी
नागरिकता
चली
जाएगी.
हिंदू
जो
उन
देशों
से
भारत
में
भागकर
आए
और
देश
में
बसे
थे
उनमे
से
ज्यादातर
अपनी
नागरिकता
साबित
करने
वाले
दस्तावेज
साथ
नहीं
ला
पाए
थे.

असम
में
19
लाख
से
अधिक
बाहर

इसके
पीछे
बीजेपी
के
विरोधी
असम
का
उदाहरण
दे
रहे
थे
जहां
लाखों
हिंदुओं
को
एनआरसी
से
बाहर
कर
दिया
गया
था.
गौरतलब
है
कि
असम
में
सुप्रीम
कोर्ट
के
आदेश
पर
की
गई
कवायद
में
राज्य
के
3.29
करोड़
आवेदकों
में
से
लगभग
19
लाख
से
अधिक
आवेदकों
को
अंतिम
राष्ट्रीय
नागरिक
रजिस्टर
(एनआरसी)
से
बाहर
कर
दिया
गया
था.
यही
वजह
है
कि
विरोधियों
की
रणनीति
को
कुंद
करने
और
सीएए-एनआरसी
को
लेकर
भ्रम
ना
पैदा
हो
बीजेपी
ने
एनआरसी
को
इस
बार
संकल्प
पत्र
से
बाहर
रखा.